1990 के दशक के चारा घोटाला से जुड़े मामले में रांची की बिरसा मुंडा केंद्रीय जेल में सजा काट रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने पिछले साल 10 अप्रैल को, लोकसभा चुनाव के दौरान, बिहार के मतदाताओं को संबोधित करते हुए पत्र लिखा था. उस पत्र में, अन्य बातों के अलावा, उन्होंने पूछा था कि “क्या विध्वंसकारी शक्तियां मुझे कैद कराके बिहार में किसी षड़यंत्र की पठकथा लिखने में सफल हो पाएंगी?”
दरअसल, हाई कोर्ट से जमानत याचिका खारिज हो जाने के बाद यादव ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका डाली थी लेकिन 9 अप्रैल 2019 को सर्वोच्च अदालत ने भी उनकी याचिका खारिज कर दी थी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जेल से बाहर आकर अपनी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करने की यादव की संभावना समाप्त हो गई थी और 1977 के बाद पहली बार यादव किसी चुनाव से प्रत्यक्ष रूप से दूर कर दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दूसरे दिन लिखे उस पत्र में यादव ने घोषणा की थी, “मैं कैद में हूं, मेरे विचार नहीं. 44 वर्षों में यह पहला चुनाव है जिसमें मैं आपके बीच नहीं हूं. इस चुनाव में सबकुछ दांव पर है.”
करीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर वैसा ही दृश्य इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में दिखाई देने जा रहा है. पिछले साल की मानिंद यादव की रिहाई विधानसभा चुनाव तक होती नहीं दिख रही है. बिहार विधानसभा चुनाव तीन चरणों (28 अक्टूबर, 3 नवंबर, 7 नवंबर) में होने वाले हैं. यादव के वकील प्रभात कुमार ने मुझे बताया, “लालू जी बिहार चुनाव तक बाहर नहीं आएंगे. किसी हालत में नहीं आएंगे. दुमका कोषागार मामले में जमानत याचिका रांची हाई कोर्ट में पिछले हफ्ते दायर की गई है. अभी सुनवाई की कोई तारीख नहीं मिली है. हाई कोर्ट दुर्गा पूजा के लिए 2 नवंबर तक बंद है. इसके बाद ही सुनवाई की कोई तारीख मिलेगी. जमानत मिलने के बाद भी जेल से बाहर आने में तीन-चार दिन लगते हैं.”
लेकिन क्या इस बार भी यादव के बिना चुनाव लड़ रही उनकी पार्टी के लिए नतीजे पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों से अलग होगें, जिसमें राजद अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी? यह जानने के लिए मैंने बिहार के वरिष्ठ पत्रकारों, राजद और अन्य दलों के नेताओं और जानकारों से बात की. मैंने उनसे राजद के नेता और यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर भी बात की जिन्हें महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया जा रहा है.
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