17 मार्च मध्य रात्रि से कुछ वक्त पहले अवंतीपोरा में एक स्कूल के प्रिंसिपल 29 वर्षीय रिजवान पंडित को सुरक्षा अधिकारियों ने स्थानीय पुलिस के साथ मिल कर उनके घर से गिरफ्तार कर लिया. दो दिन बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने एक वक्तव्य जारी किया और बताया कि रिजवान की मृत्यु पुलिस हिरासत में हो गई है और उसे आतंकवाद से संबंधित मामले में गिरफ्तार किया गया था. अब तक पुलिस ने इस बारे में बहुत कम जानकारी दी है. उसने रिजवान की गिरफ्तारी और बाद में मौत के कारण के बारे में नहीं बताया है. हालांकि पुलिस ने रिजवान की मौत के बाद उसके खिलाफ पुलिस कस्टडी से भागने की कोशिश करना मामला दर्ज किया है. शुरुआती पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया है कि रिजवान की मौत गांवों से हुए रक्त रिसाव के कारण हुई है. रिजवान को इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर का समर्थक माना जाता था. उसके पिता असादुल्लाह पंडित इस संगठन का सदस्य है.
जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर के सदस्यों और समर्थकों को भारतीय राज्य द्वारा सताए जाने का लंबा इतिहास है. पिछले 3 दशकों से जमात दो तरह के काम कर रहा है. वह सामाजिक-धार्मिक संगठन के रूप में स्कूलों और मस्जिदों का संचालन करता है और साथ ही राजनीतिक संगठन के रूप में वह इस्लामिक कानूनों से शासित स्वायत्त कश्मीर राज्य की स्थापना की वकालत करता है. 28 फरवरी को, रिजवान को गिरफ्तार करने से एकाध हफ्ते पहले भारत सरकार ने जमात पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस संगठन पर लगा यह तीसरा प्रतिबंध है. हालांकि जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ढांचे का विरोध करता है फिर भी नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी मुख्यधारा की पार्टियों ने जमात पर लगाए गए प्रतिबंध का तत्काल विरोध किया. कश्मीर की राजनीतिक में जमात की भूमिका को समझना जटिल काम है.
इस साल उस पर लगे प्रतिबंध से 5 दिन पहले कश्मीर से जमात के 150 से अधिक सदस्यों को गिरफ्तार किया गया. साथ ही पुलिस ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के एक प्रमुख और बड़े अलगाववादी नेता यासीन मलिक को भी गिरफ्तार कर लिया. इसके अगले महीने जेकेएलएफ को भी प्रतिबंधित कर दिया गया.
जमात-ए-इस्लामी का इतिहास कश्मीर के इतिहास से और इस क्षेत्र में शासन करने वाली राजनीतिक पार्टियों के इतिहास से जुड़ा हुआ है. जमात पर लगे सभी प्रतिबंध उस समय लगाए गए जब भारत की पक्षधर मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां कमजोर पड़ी और भारत सरकार को कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन का सामना करना पड़ा. इस तीसरे प्रतिबंध के बाद 1990 के दशक में सशस्त्र बलों द्वारा जमात के सदस्यों और समर्थकों की गिरफ्तारी और उनको गायब कर देने जैसी घटनाओं की याद फिर ताजा हो गई है.
जमात की स्थापना इस्लामिक विचारक और दार्शनिक सैयद अब्दुल अल मौदूदी ने 1940 के दशक में की थी. वह मानते थे कि इस्लाम एक ऐसी व्यवस्था है जो व्यक्तिगत और सामूहिक रूप में मुसलमानों के सभी क्रियाकलापों को संचालित करती है. जिस जमात की परिकल्पना मौदूदी ने की थी वह ईश्वर के कानून द्वारा संचालित इस्लामिक राज्य की स्थापना की वकालत करता था और लोकतंत्र और धर्म निरपेक्षता के मानकों पर स्थापित राज्य व्यवस्था की खिलाफत करता था. हिंदुस्तान के बंटवारे के बाद मौदूदी पाकिस्तान चले गए और जमात दो धड़ो में बंट गया- जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद. 1952 में कश्मीर में जमात की अलग शाखा बनी जो भारतीय शाखा से अलग थी. इसका नाम था जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर.
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