सीएए विरोधी प्रदर्शनों में पुलिस ने नहीं करने दी घायलों की जांच

23 दिसंबर 2019 को जामिया में सीएए का विरोध करते चिकित्सक और मेडिकल छात्र बुरहान कीनू/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

20 दिसंबर को दिल्ली पुलिस ने मध्य दिल्ली के दरियागंज इलाके में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आयोजित विरोध का बेरहमी से दमन किया. चश्मदीदों के मुताबिक, पुलिस ने उस शाम ढेरों प्रदर्शनकारियों की पिटाई की. पुलिस ने 31 बालिगों और आठ नाबालिगों को भी हिरासत में लिया. रात करीब 8 बजे जब हिरासत में लिए गए लोगों की खबर फैली तो कई सारे वकील और डॉक्टर दरियागंज पुलिस स्टेशन के बाहर इकट्ठा हो गए. उन्होंने पुलिस से मांग की कि उन्हें बंदियों को कानूनी और चिकित्सीय सहायता प्रदान करने दी जाए. लेकिन दो घंटे से भी ज्यादा वक्त तक पुलिस ने उन्हें भीतर नहीं जाने दिया.

करीब 10.30 बजे एक डॉक्टर और एक वकील को हिरासत में रखे गए लोगों से मिलने की इजाजत दी गई. प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम (पीएमएसएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष 33 वर्षीय डॉक्टर हरजीत सिंह भट्टी ने बंदियों से मुलाकात की. पीएमएसएफ देश भर के लगभग सौ डॉक्टरों का एक समूह है जिसकी शुरूआत छद्म विज्ञान और अंधविश्वासों से लड़ने के लिए की गई है. पुलिस स्टेशन के अंदर, भट्टी ने पाया कि हिरासत में लिए गए लोग, जिनमें नाबालिग भी शामिल थे, "दर्द से कराह रहे थे" और उन्हें चिकित्सा सहायता की जरूरत थी.

देश भर में चल रहे सीएए विरोधी में पुलिस कार्रवाई के चलते हजारों लोग घायल हुए हैं. दिसंबर के दूसरे सप्ताह के बाद से, दिल्ली पुलिस- जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीनस्थ है- ने विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए लाठी, वाटर केनन और आंसू गैस सहित अन्य तरह के बर्बर हमलों का इस्तेमाल किए है. बीजेपी शासित राज्यों में भी स्थिति ऐसी ही है. बावजूद इसके कानून का विरोध लगातार जारी है.

27 वर्षीय अजय वर्मा उस वक्त दरियागंज पुलिस स्टेशन में मौजूद थे. उन्होंने कहा, “हम देख सकते थे कि विरोध स्थलों पर हिंसा की आशंका थी इसलिए हमने सहजता से चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने की योजना बनाई. पीएमएसएफ ने विरोध स्थलों पर ही चिकित्सा शिविर लगाए. तब से पीएमएसएफ के सदस्य प्रदर्शनकारियों की चोटों, जख्मों, जलने के घावों, लाठीचार्च की वजह से आई सूजन और यहां तक कि उनका भी इलाज कर चुके हैं जिनके टखनों पर पुलिस से बच कर भागते वक्त मोच आ गई थी.''

वर्मा ने कहा, "प्राथमिक चिकित्सा देना और फिर घायलों को उन अस्पतालों में स्थानांतरित करना महत्वपूर्ण है जहां आगे चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है." उनके अनुसार, पुलिस ने कई बार अस्पतालों के कामकाज में भी हस्तक्षेप किया. वर्मा ने कहा, "यह स्वीकार्य नहीं है. अस्पताल पवित्र स्थान हैं, जहां मरीज बिना किसी डर के जा सकते हैं."

भट्टी और वर्मा ने 20 दिसंबर को दरियागंज में हिरासत में लिए गए लोगों की चिकित्सा स्थिति को लेकर पुलिस की उदासीनता पर भी सवाल उठाया. भट्टी के अनुसार, डॉक्टरों ने पुलिस कर्मियों से कहा कि वे उन बंदियों से मिलना चाहते हैं, जो लाठीचार्ज का शिकार हुए हैं, "और अगर सब कुछ ठीक रहा तो हम वापस चले जाएंगे." भट्टी ने बताया कि पुलिस कर्मियों ने जवाब दिया, "आप उन्हें क्यों देखना चाहते हैं? आप दंगे भड़काने वालों को क्यों देखना चाह हो?”

डॉक्टर ने बताया कि पुलिस ने उनसे कहा, "कोई जरूरत नहीं है. हम खुद कर लेंगे. तुम लोग चले जाओ!” लेकिन भट्टी ने कहा कि उनकी टीम को थाने के बाहर सड़कों पर कुछ खून के धब्बे दिखे थे. "हमें बताया गया कि एक नाबालिग को सिर पर चोट लगने की वजह से अस्पताल लाया गया है.''

इस बीच, एक वकील ने मध्य दिल्ली के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरुल वर्मा से संपर्क किया ताकि मामले में हस्तक्षेप कर पुलिस को निर्देश दिया जा सके कि वे बंदियों को कानूनी और चिकित्सीय सहायता प्रदान कराए. लगभग 10.30 बजे, उनमें से एक वकील थाने के बाहर वर्मा के आदेश की एक इलेक्ट्रॉनिक प्रति ले आए. अन्य बातों के अलावा, इस आदेश में पुलिस को हर आवश्यक चिकित्सा सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया गया था.

जब भट्टी अंदर गए तो उन्होंने देखा कि हिरासत में लिए गए आठ नाबालिगों के "शरीर पर चोट और घाव थे". वर्मा के आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि पुलिस स्टेशन में नाबालिगों को हिरासत में लेना "कानून का उल्लंघन है." अन्य बंदियों को भी गंभीर चोटें आई थीं. “किसी के घुटने में चोट थी, कुछ के पेट में. हमने उन्हें दर्द निवारक और प्राथमिक उपचार दिया,” भट्टी ने बताया. "लेकिन वे एक घंटे तक भयानक दर्द में तड़पते रहे क्योंकि पुलिस ने हमें अंदर नहीं जाने दिया था."

दरियागंज पुलिस स्टेशन में स्थिति को देखने के बाद, पीएमएसएफ ने विरोध प्रदर्शनों में घायल लोगों की चिकित्सा देखभाल के लिए टीमों को व्यवस्थित करना शुरू किया है. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया के सदस्य डॉक्टरों ने क्राउड-फंडिंग से जुटाए पीएमएसएफ के पैसों से एम्बुलेंस और दवाओं की व्यवस्था की.

पीएमएसएफ के पास अब चार एम्बुलेंसें हैं जिनका उपयोग विभिन्न विरोध प्रदर्शनों के बीच शटल के तौर पर किया जाता है - दो एम्बुलेंस का उपयोग घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए किया जाता है, जबकि अन्य दो में दवा और प्राथमिक चिकित्सा उपकरण रखे जाते हैं. आमतौर पर, किसी विरोध स्थल पर पीएमएसएफ की एक मेडिकल टीम के सात से दस सदस्य होते हैं.

23 दिसंबर को पीएमएसएफ की एक मेडिकल टीम दक्षिण दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र और मध्य दिल्ली में स्थित असम भवन के बाहर एक विरोध प्रदर्शन में तैनात थी. असम भवन में छात्रों ने सूचना के अधिकार कार्यकर्ता अखिल गोगोई को रिहा करने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन किया था. गोगोई को असम पुलिस ने दिसंबर के शुरू में सीएए विरोधी प्रदर्शन में भाग लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था. दिल्ली पुलिस ने असम भवन के बाहर से 93 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया, जिनमें पीएफएसएफ की मेडिकल टीम के दो स्वयंसेवक भी शामिल थे.

सिंह ने कहा, "पुलिस देख सकती है कि स्वयंसेवक टी-शर्ट पहने हुए थे और उनके पास पहचान पत्र थे, जिन पर 'मेडिकल वॉलेंटियर्स' लिखा था तब भी उन्हें गिरफ्तार किया गया. उन्होंने एम्बुलेंस से नर्सों को बाहर खींच लिया. एक डॉक्टर जो एम्बुलेंस के बाहर खड़ा था, उसे दौड़ा दिया.” सिंह के अनुसार, पुलिस कर्मियों ने स्वयंसेवकों से कहा, “तुम लोग यहां से निकल जाओ. यहां किसी भी चिकित्सा-सहायता की जरूरत नहीं है. अपनी एम्बुलेंस यहां छोड़ दो और भागो!” हिरासत में लिए गए स्वयंसेवकों को चार घंटे बाद रिहा किया गया.

सिंह ने मुझसे कहा, "चिकित्सा सहायता से इनकार करना मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन है." उन्होंने जिनेवा कन्वेंशन का भी उल्लेख किया जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं. जिनेवा समझौता सशस्त्र संघर्ष के दौरान मानवीय उपचार के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानून है. जिनेवा कन्वेंशन के अनुच्छेद 19 में कहा गया है कि किसी संघर्ष में किसी भी पक्ष को किसी भी परिस्थिति में चिकित्सा सेवा प्रदान करने वाली मोबाइल इकाइयों पर हमला नहीं करना चाहिए और ऐसी इकाइयों को "हर समय सम्मानित और संरक्षित किया जाना चाहिए." सिंह ने कहा, " लेकिन यहां पुलिस उन लोगों पर हमला कर रही है जो चिकित्सा सुविधा उपल्बध करा रहे हैं.”

24 दिसंबर को, पीएमएसएफ स्वयंसेवक मध्य दिल्ली में स्थित कनॉट प्लेस गए ताकि वे उस दिन होने वाले विरोध प्रदर्शनों में अगर मदद की जरूरत हो तो कहीं भी आसानी से पहुंच सकें. उस दिन मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक विरोध मार्च और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित होना था. पीएमएसएफ की मेडिकल टीमें जामिया में भी कई विरोध प्रदर्शनों में मौजूद रही. विश्वविद्यालय में 15 दिसंबर को पुलिस ने छात्रों पर बर्बर कार्रवाई की थी.

"जब कोई हताहत नहीं होता है तो एम्बुलेंस एक मिनी-चिकित्सा शिविर के रूप में भी काम करती है," सिंह ने बताया. पीएमएसएफ की एक मेडिकल टीम 22 दिसंबर से कम से कम 28 दिसंबर तक शाहीन बाग में तैनात थी. यहां पर 15 दिसंबर से लगातार विरोध प्रदर्शन चल रहा है. जबकि वहां कोई हिंसा नहीं हुई, पीएमएसएफ के स्वयंसेवकों ने प्रदर्शनकारियों को चिकित्सा सलाह और दवाएं दीं. भट्टी के अनुसार, शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन के दौरान के एक दिन "लगभग पांच से छह सौ लोग जांच और चिकित्सा सलाह के लिए आए थे."

पीएमएसएफ उन सत्तर समूहों में से एक था जो 24 दिसंबर को सीएए और अखिल भारतीय राष्ट्रीय नागरिक पंजिका का विरोध करने के लिए बनाए गए एक संयुक्त मंच, यंग इंडिया नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी में शामिल था. वर्मा ने कहा कि मंच "उत्तर प्रदेश में टीमों की व्यवस्था करने के लिए डॉक्टरों के साथ सहयोग कर रहा है." उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी प्रदर्शनों में हिंसक रुख अपनाया है. राज्य में कम से कम उन्नीस लोगों की मौत सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई है.

वर्मा ने मुझे बताया, "हमने उन पुलिस वालों का भी इलाज किया जो शिविरों में घायल हुए थे. हम केवल मानवीय आधार पर घायलों की सेवा कर रहे हैं, फिर चाहे वह कोई भी हो."