20 दिसंबर को दिल्ली पुलिस ने मध्य दिल्ली के दरियागंज इलाके में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आयोजित विरोध का बेरहमी से दमन किया. चश्मदीदों के मुताबिक, पुलिस ने उस शाम ढेरों प्रदर्शनकारियों की पिटाई की. पुलिस ने 31 बालिगों और आठ नाबालिगों को भी हिरासत में लिया. रात करीब 8 बजे जब हिरासत में लिए गए लोगों की खबर फैली तो कई सारे वकील और डॉक्टर दरियागंज पुलिस स्टेशन के बाहर इकट्ठा हो गए. उन्होंने पुलिस से मांग की कि उन्हें बंदियों को कानूनी और चिकित्सीय सहायता प्रदान करने दी जाए. लेकिन दो घंटे से भी ज्यादा वक्त तक पुलिस ने उन्हें भीतर नहीं जाने दिया.
करीब 10.30 बजे एक डॉक्टर और एक वकील को हिरासत में रखे गए लोगों से मिलने की इजाजत दी गई. प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम (पीएमएसएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष 33 वर्षीय डॉक्टर हरजीत सिंह भट्टी ने बंदियों से मुलाकात की. पीएमएसएफ देश भर के लगभग सौ डॉक्टरों का एक समूह है जिसकी शुरूआत छद्म विज्ञान और अंधविश्वासों से लड़ने के लिए की गई है. पुलिस स्टेशन के अंदर, भट्टी ने पाया कि हिरासत में लिए गए लोग, जिनमें नाबालिग भी शामिल थे, "दर्द से कराह रहे थे" और उन्हें चिकित्सा सहायता की जरूरत थी.
देश भर में चल रहे सीएए विरोधी में पुलिस कार्रवाई के चलते हजारों लोग घायल हुए हैं. दिसंबर के दूसरे सप्ताह के बाद से, दिल्ली पुलिस- जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीनस्थ है- ने विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए लाठी, वाटर केनन और आंसू गैस सहित अन्य तरह के बर्बर हमलों का इस्तेमाल किए है. बीजेपी शासित राज्यों में भी स्थिति ऐसी ही है. बावजूद इसके कानून का विरोध लगातार जारी है.
27 वर्षीय अजय वर्मा उस वक्त दरियागंज पुलिस स्टेशन में मौजूद थे. उन्होंने कहा, “हम देख सकते थे कि विरोध स्थलों पर हिंसा की आशंका थी इसलिए हमने सहजता से चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने की योजना बनाई. पीएमएसएफ ने विरोध स्थलों पर ही चिकित्सा शिविर लगाए. तब से पीएमएसएफ के सदस्य प्रदर्शनकारियों की चोटों, जख्मों, जलने के घावों, लाठीचार्च की वजह से आई सूजन और यहां तक कि उनका भी इलाज कर चुके हैं जिनके टखनों पर पुलिस से बच कर भागते वक्त मोच आ गई थी.''
वर्मा ने कहा, "प्राथमिक चिकित्सा देना और फिर घायलों को उन अस्पतालों में स्थानांतरित करना महत्वपूर्ण है जहां आगे चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है." उनके अनुसार, पुलिस ने कई बार अस्पतालों के कामकाज में भी हस्तक्षेप किया. वर्मा ने कहा, "यह स्वीकार्य नहीं है. अस्पताल पवित्र स्थान हैं, जहां मरीज बिना किसी डर के जा सकते हैं."
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