आदिवासी छात्रों, वकीलों, कार्यकर्ताओं को निशाना बनाती तेलंगाना पुलिस

इस साल जुलाई के बाद से ही तेलंगाना पुलिस आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ रही आवाजों को खामोश करने की कोशिश में आदिवासी कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, वकीलों और छात्रों को परेशान कर रही है. इन व्यक्तियों में शामिल हैं (बाएं से दाएं, ऊपर से नीचे) कनका वेंकटेश, माडवी रमेश, सिडाम जंगुदेव, गंता सत्यम, चंदा महेश्वर राव, सुमन डब्बकटाला, वेडमा बोज्जू, कोसिंगा वेंकटेश, विवेकानंद सिडाम, सोयम चिन्नय्या, आत्राम सुगुना और आत्राम बुजंगाराव, और रमानाला लक्ष्मैया. इलस्ट्रेशन/सुकृती एना स्टेनले

इस साल जुलाई से तेलंगाना पुलिस राज्य के आदिलाबाद और कोमाराम भीम आसिफाबाद जैसे उत्तरी जिलों में आदिवासियों पर लगातार अत्याचार कर रही है. 29 अगस्त को आदिलाबाद में पुलिस अधीक्षक विष्णु वारियर ने “माओवाद से सहानुभूति रखने” वालों की एक सूची जारी की. सूची में कई आदिवासी छात्र और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के नाम हैं. आदिवासी अधिकारों के लिए विभिन्न आंदोलन में सक्रिय स्कूल शिक्षक मदवी रमेश ने कहा, “पुलिस बेवजह आदिवासी छात्रों को फंसा रही है. मेरे जैसे लोग जिनकी सरकारी नौकरी है, वे तो फिर भी किसी तरह झेल लेंगे लेकिन छात्र क्या करेंगे?”

कोमाराम भीम आसिफाबाद को 2016 में विस्तृत असिफाबाद जिले से अलग कर बनाया गया था. हाल के महीनों में दो उत्तरी जिलों में छात्रों और कार्यकर्ताओं पर पुलिस की ज्यादतियां बढ़ गई हैं और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत उन पर मामले दर्ज किए जा रहे हैं. वास्तव में ऐसा इन दो जिलों तक ही सीमित नहीं है. राज्य के दो पूर्वी जिलों मुलुगु और भद्रादि कोठागुडेम में भी स्थानीय आदिवासियों के खिलाफ पुलिस की दुश्मनी बढ़ी है. इसके साथ ही पुलिस की प्रेस विज्ञप्ति और समाचार रिपोर्टों के मुताबिक पिछले दो महीनों में पुलिस के साथ "आमने-सामने की गोलाबारी " की कई घटनाओं में दस से अधिक लोगों मौत हुई है लेकिन इन मुठभेड़ों में तेलंगाना पुलिस का एक भी जवान घायल नहीं हुआ है. ऐसा लगता है कि आदिलाबाद में आदिवासी कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, वकीलों और छात्रों के उत्पीड़न और धमकी के मामले, तेलंगाना सरकार द्वारा आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाली आवाजों को खामोश करने की कोशिश का हिस्सा हैं.

जुलाई में तेलंगाना पुलिस ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में तलाशी अभियान तेज करने के बाद उत्पीड़न शुरू किया. 17 जुलाई को तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक एम महेंदर रेड्डी ने कोमाराम भीम आसिफाबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पांच सदस्य “शांति और खुशहाली के लिए पहचाने जाने वाले आदिवासी गांवों में तनाव फैला रहे हैं." रेड्डी ने दावा किया कि समूह का नेतृत्व मेलरेपु अडेलु ने किया था, जिन्हें  आमतौर पर भास्कर के रूप में जाना जाता है, जो माओवादियों की तेलंगाना राज्य समिति के सदस्य हैं. तेलंगाना टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिलाबाद में पांच सदस्यीय माओवादी टीम की मौजूदगी के चलते पुलिस ने "अभियान चलाकर 25 विशेष दस्तों सहित 60 पुलिस टीमों को तैनात किया ताकि जंगलों में सघन तलाशी अभियान चलाया जा सके."

रेड्डी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दो दिन बाद की जब भास्कर के नेतृत्व में माओवादियों के एक समूह ने कोमाराम भीम आसिफाबाद जिले के थोककुगुड़ा गांव में पुलिस के साथ "मुठभेड़" की. आदिलाबाद के अधीक्षक वारियर ने मीडिया को बताया कि माओवादियों ने "पुलिस दल पर गोलियां चलाईं और जवाबी गोलाबारी के बाद वे भाग निकले." कथित रूप से भाग निकलने के बाद, पुलिस ने माओवादियों को खाना और रहने की व्यवस्था करने और उन्हें भागने में मदद करने के लिए भारतीय दंड संहिता, शस्त्र अधिनियम और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत ठोककुगुड़ा के मूल निवासी कोवा वसंत राव को गिरफ्तार किया.

16 जुलाई को डेक्कन क्रॉनिकल के पत्रकार पिल्लमरी श्रीनिवास ने बताया कि थोककुगुड़ा के ग्रामीणों ने मुठभेड़ होने के दावे का खंडन किया और तर्क दिया कि "पुलिस की इस कहानी का मकसद आदिवासियों और गांववालों के बीच आतंक पैदा करना है." श्रीनिवास ने बताया कि ग्रामीणों के अनुसार, " पुलिस वालों ने 14 जुलाई की रात हमें डराने के लिए हवा में गोलीबारी की" राव की पत्नी कोवा सत्तूबाई ने श्रीनिवास से कहा कि उसी रात, एक पुलिस पार्टी ने खाना पकाने के लिए उनके बर्तन ले लिए और "परिवार को बचा-खुचा खाना खाने को दे दिया." देर रात उन्होंने कहा, एक अन्य पुलिस पार्टी ने दौरा किया और उनके दरवाजे पर दस्तक दी. सत्तूबाई ने कहा कि देर रात होने के कारण दरवाजा खोलने में देरी हो गई, जिससे पुलिस ने यह मान लिया कि उन्होंने माओवादियों को भागने में मदद की है. उन्होंने कहा कि पुलिस राव के साथ घर से बर्तन भी ले गई और अब "खाना बनाने के लिए बर्तन नहीं है."

यह घटना पूरे दंडकारण्य क्षेत्र में, जिसमें छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र और तेलंगाना के कुछ हिस्से आते हैं, तलाशी अभियान की प्रकृति को दर्शाती है. यहा सुरक्षा बल आदिवासियों से खाना लेते हैं, और यहां तक ​​कि आदिवासियों के घरों खाना लूटते भी हैं, लेकिन माओवादियों को खाना देने के आरोप में इन्हीं आदिवासियों को फंसाते हैं. घटना के बारे में बताते हुए शिक्षक रमेश ने मुझसे कहा, “आदिवासियों की यह प्रथा है कि जो कोई भी उनके घर या गांव में आता है तो वे चाय-पानी की पेशकश कर उसकी मेहमाननवाजी करते हैं.”

इसके अगले महीने वारियर ने माओवादियों से सहानुभूति रखने वालों की सूची जारी की और दावा किया कि पुलिस को कोमाराम भीम आसिफाबाद के गुंडला गांव में माओवादी नेता भास्कर द्वारा छोड़ी गई एक डायरी मिली है. राज्य पुलिस ने जुलाई में माओवादी समूह और तेलंगाना पुलिस के बीच हुई गोलाबारी के बाद डायरी का कोई जिक्र नहीं किया. वारियर ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि "ऑपरेशन के दौरान कुछ बैगों में संगठन का साहित्य, वर्दी, डेटोनेटर, कॉर्डेक्स वायर और कुछ इलेक्ट्रॉनिक गैजेट जब्त किए गए थे." वास्तव में पुलिस ने कभी भी मीडिया के सामने डायरी नहीं दिखाई और न ही उन्होंने इसमें सहानुभूति रखने वालों की सूची जारी की.

वारियर ने कहा कि डायरी पर आधारित सूची एक महीने बाद जारी की गई क्योंकि पुलिस इसकी जांच कर रही थी. माओवादियों से सहानुभूति रखने वालों के रूप में जिनकी पहचान की गई उनके बारे में उन्होंने मुझे बताया,  "हमारे पास अभियुक्त व्यक्तियों के दस्तावेजी सबूत हैं और सबूतों के आधार पर हम कार्रवाई करेंगे. यह (हमारा) स्टैंड है. लेकिन चीजें अभी विचाराधीन हैं और हम दस्तावेजी सबूतों में विश्वास करते हैं. हमारे पास संभावित सबूत और जब्त किया सामान भी है. हमारे मन में कोई दुविधा नहीं है. चीजें एकदम साफ हैं. हम इसे अदालत में साबित करेंगे.”

पुलिस द्वारा जारी की गई सूची में दस नाम हैं. इनमें मुख्य रूप से आदिवासी छात्र और कार्यकर्ताओं के नाम हैं. इनमें से अधिकांश आदिवासी छात्र संघ और आदिवासी अधिकार संगठन “आदिवासी हक्कुला पोराटा समिति” के सदस्य हैं जिन्हें आमतौर पर राज्य में तुडुम देब्बा के रूप में जाना जाता है. स्कूल के शिक्षक और कार्यकर्ता रमेश ने मुझे बताया, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि युवा छात्रों को निशाना बनाया जा रहा है." पिछले कुछ महीनों में कई आदिवासी छात्रों को निगरानी में रखा गया है और कइयों को नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप या फेसबुक स्टेटस के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया जाता है. "अगर पुलिस इन युवाओं को परेशान करना जारी रखती है, तो वे कहां जाएंगे? जब हमारे क्रांतिकारी कोमाराम भीम और बिरसा मुंडा हमारे अधिकारों के लिए लड़े थे, तो क्या वे माओवादी थे?"

पुलिस सूची में रमेश के अलावा शिक्षा में डिप्लोमा कर रहे छात्र और आदिलाबाद के मथिगाडु गांव के आदिवासी नेता के बेटे सिदाम जंगुदेव, असिफाबाद के बेज्जुर ब्लॉक की बीजेपी की इकाई के अध्यक्ष सोयम चिनैय्या और एक आदिवासी वकील सिडाम विवेकानंद का नाम शामिल है. विडंबना यह है कि जब जुलाई 2018 में जंगुदेव के पिता सिडाम शंभू की मृत्यु हुई थी, तो वारियर ने शोक सभा में भाग लिया था और कथित तौर पर कहा था, "आदिवासी अधिकारों को प्राप्त करने के लिए शंभू का प्रयास कभी नहीं भुलाया जाएगा." उन्होंने परिवार को 10,000 रुपए दिए और परिवार को पुलिस विभाग से सहायता का आश्वासन दिया. दो साल बाद वारियर ने जंगुदेव पर माओवादियों से सहानुभूति रखने का आरोप लगाया और उसके चार महीने बाद पुलिस ने जंगुदेव को गिरफ्तार कर लिया.

चिनैय्या ने आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, "मैं यह सोचकर कि बार-बार होने वाले उत्पीड़न से कुछ सुरक्षा मिलेगी, 2018 में बीजेपी में शामिल हो गया था," उन्होंने मुझे बताया. "जब वे पहले ही मुझे इस तरह के झूठे आरोपों पर गिरफ्तार कर चुके थे, तो वे फिर से मुझ पर किसी चीज का आरोप कैसे लगा सकते हैं?" उन्होंने कहा, "जितने मामले आपको लगाने हैं, लगाओ, मैं जेल जाने के लिए तैयार हूं. हम अपने समुदाय के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं, वे हमें माओवादियों के साथ संबंध रखने के नाम पर कैसे फंसा सकते हैं.” चिनैय्या ने कहा कि उन्होंने वॉरियर को बताया था कि "मेरी कोई गलती नहीं है, मैं निर्दोष हूं, मेरा नाम उसमें कैसे हो सकता है?"

28 वर्षीय वकील विवेकानंद हैदराबाद में उस्मानिया विश्वविद्यालय से पहली पीढ़ी के एलएलएम स्नातक हैं. वह आदिवासियों के मुद्दों को उठाने वाले संगठन आदिवासी छात्र संघ के पूर्व सदस्य भी हैं. विवेकानंद ने मुझे बताया कि उन्हें पुलिस द्वारा फंसाया गया हैं और अब वह अपने और अन्य छात्रों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि अगस्त में पुलिस द्वारा सूची में नाम दिए जाने के बाद से वह पुलिस निगरानी में हैं. विवेकानंद ने कहा, "पुलिस तीस साल पहले मौजूद उस स्थिति बनाने की कोशिश कर रही है जब माओवादी आंदोलन चरम पर था. आदिवासी युवाओं में डर पैदा करने के लिए उत्पीड़न और धमकियों का इस्तेमाल किया जा रहा है."

उन्होंने मुझे बताया कि तेलंगाना उच्च न्यायालय में लगभग 15-20 वकील हैं जिन पर इसी तरह के आरोप हैं. उन्हें आदिवासियों के भूमि अधिकार के लिए लड़ने के लिए सताया गया. “मैं भूमि अधिकार मुद्दे के बारे में बात कर रहा हूं. मैं आदिवासी युवाओं में जागरूकता पैदा कर रहा हूं, इसलिए वे निशाना बना रहे हैं. वे जानते हैं कि अगर आदिवासी युवा जागरूक हो गए तो वे किसी को परेशान नहीं कर सकते इसलिए पुलिस आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को निशाना बना रही है." विवेकानंद के अनुसार, जब कोई गैर-आदिवासी, आदिवासी भूमि पर कब्जा करता है तो जमीन से जुड़े ऐसे मामलों में दखल देने का तेलंगाना पुलिस का इतिहास है. संविधान की पांचवीं अनुसूची आदिवासी भूमि संरक्षित करती है. यह भूमि अधिकारों के संबंध में आदिवासी समुदायों को विशेष सुरक्षा प्रदान करती है. विवेकानंद ने कहा, "गैर-आदिवासी अधिकांश आदिवासी भूमि पर कब्जा कर चुके हैं. तेलंगाना के पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा लगभग सत्तर से अस्सी प्रतिशत आदिवासी भूमि पर कब्जा कर लिया गया है."

उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा कथित हमदर्द, विवेक, जंगुदेव और महेश की सूची जारी करने के दस दिन बाद - सूची में नामांकित दस लोगों में से तीन ने आरोपों को लेकर आदिलाबाद के उदनूर कस्बे में प्रेस भवन में एक प्रेस वार्ता आयोजित की. वारियर ने उन्हें प्रेस वार्ता के दौरान फोन किया मां की गाली दी और दुर्व्यवहार किया. आदिवासी कार्यकर्ता ने कहा कि वारियर ने उससे फोन पर कहा, "तुमको लगता है कि तुम राजनीतिक नेता हो और हमारे बारे में इस तरह की बात कर सकते हो?" आदिवासी कार्यकर्ता ने बताया कि उस कॉल के बाद,  "डायरी के मामले में फंसे कई लोगों ने डर के मारे प्रेस से कुछ नहीं कहा."

मैंने वारियर से जिले में आदिवासी कार्यकर्ताओं को परेशान करने वाले पुलिस के आरोपों के बारे में पूछा. उन्होंने कहा, "आप इस बारे में और लोगों से भी पता कर सकते हैं. हम कुछ भी नहीं कहेंगे और उन लोगों ने जो कुछ कहा है वह बना कर कहा है. यहां अगर आप रैंडम सर्वेक्षण करें, तो आप पूछ सकते हैं और जांच कर सकते हैं तथा अपनी रिपोर्ट लिख सकते हैं. हम बहुत अच्छी तरह से व्यवस्था कर रहे हैं.”

सूची में आदिवासी छात्र संघ के राज्य अध्यक्ष वेडमा बोज्जू का भी नाम है. सूची में शामिल अन्य लोगों में रमनमाला लक्ष्मैया, गंटा सत्यम और कोसिंगा वेंकटेश के नाम हैं. सूची में नामित दस व्यक्तियों में से तीन का नाम हाल ही में मुलुगु में दर्ज एक प्राथमिकी में था और चार व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था. इनमें से एक अभी भी जेल में है.

सितंबर तक तेलंगाना पुलिस कथित माओवादियों की मुठभेड़ में हत्याओं की एक श्रृंखला शुरू कर चुकी थी. 3 सितंबर को भद्राद्री कोठागुडम पुलिस ने एक "मुठभेड़" में एक माओवादी को मारने का दावा किया. जिला पुलिस अधीक्षक सुनील दत्त ने मीडिया को बताया, " गुरुवार को लगभग 4.15 बजे, वाहन चेकिंग के दौरान एक पुलिस टीम ने दो बाइक सवार पुरुषों को देखा और उन्हें रोकने की कोशिश की." दत्त ने कहा कि दोनों लोगों ने भागने की कोशिश करते हुए पुलिस पर गोलीबारी की, जिससे जवाबी गोलाबारी में उनमें से एक की मौत हो गई.

अगले दिन भद्राद्री कोठागुडम-पूर्वी गोदावरी इकाई के भाकपा (माओवादी) के मंडल समिति सचिव आजाद ने मारे गए माओवादी की पहचान डूडी देवलु के रूप में की. देवलु को आमतौर पर शंकर के रूप में जाना जाता है, जो छत्तीसगढ़ के कोंटा क्षेत्र से थे और तेलंगाना में एक क्षेत्रीय समिति के सदस्य और कमांडर के रूप में सक्रिय थे. 4 सितंबर को जारी एक बयान में आजाद ने आरोप लगाया कि देवलु को पिछले दिन एक अस्पताल से गिरफ्तार किया गया था और भद्राद्री कोठागुडम के गुंडाला ब्लॉक में देवरलागुडेम के जंगलों में उनकी हत्या करने से पहले पुलिस ने उन्हें प्रताड़ित किया था.

भद्राद्री कोठागुडम पुलिस ने 7 सितंबर को एक और "मुठभेड़" में पुलिस ने भाकपा (माओवादी) के दो सदस्य कोवासी चंदू और मडकाम ईथू को मारने का दावा किया. घटना के बाद भाकपा (माओवादी) तेलंगाना स्टेट कमेटी के एक प्रवक्ता जगन ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि दोनों "निहत्थे" थे और उन्हें पुलिस ने “मुठभेड़ की आड़ में” गिरफ्तार कर हत्या कर दी." भाकपा (माओवादी) ने एक दिन के बंद का आह्वान किया और कथित फर्जी मुठभेड़ का विरोध करने के लिए एक खाली खंड पर बारूदी सुरंग विस्फोट किया. द वीक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने कहा कि यह सूचना मिलने के बाद कि माओवादी "सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने और जान को खतरा पहुंचाने के लिए" इस क्षेत्र में घूम रहे थे. यह घटना 7 सितंबर को चेरला में दोपहर करीब 3 बजे जंगल में गश्त के दौरान घटी थी.

सितंबर में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पुलिस की एक विशेष उग्रवाद-रोधी शाखा, ग्रेहाउंड सहित लगभग 400 सुरक्षाकर्मियों को कथित तौर पर कोमाराम भीम आसिफाबाद जिले में तलाशी अभियान के लिए तैनात किया गया. 18 सितंबर को पुलिस ने जिले में दो माओवादियों- चुक्कालु और बाजी राव-की हत्या कर दी और दावा किया कि यह घटना "मुठभेड़" के दौरान हुई थी. द ट्रिब्यून ने बताया कि सुरक्षा बलों ने जिले के कदंबा के जंगल में भास्कर के नेतृत्व में एक माओवादी समूह को देखा, उसे आत्मसमर्पण करने के लिए कहा और माओवादियों ने उन पर गोलीबारी शुरू कर दी, जो एक घंटे तक चली. तेलंगाना टुडे की रिपोर्ट में एक माओवादी के शव को ले जाने वाले पुलिसकर्मियों की तस्वीर प्रकाशित हुई थी जिसमें वह सादे कपड़े पहने हुए थे. प्रवक्ता जगन ने 25 सितंबर को एक बयान जारी कर दावा किया कि दोनों माओवादियों को "उस समय उठाया गया जब वे आम लिबास में ग्रामीणों से मिलने गए थे," और बाद में कदंबा वन में मार दिया गया. उन्होंने कहा, "माओवादियों को पकड़ने के बाद सरकार ने उन्हें नियमों के अनुसार जेल भेजने के बजाय मार दिया."

23 सितंबर को भद्राद्री कोठागुडम पुलिस ने चेन्नापुरम के जंगल में एक अन्य कथित "मुठभेड़" के दौरान दो महिलाओं सहित तीन संदिग्ध माओवादियों को मार डाला. पुलिस ने फिर दावा किया कि आत्मसमर्पण करने के लिए कहने पर माओवादियों ने पुलिस पर गोलीबारी की और जवाबी कार्रवाई में वे मारे गए. पुलिस ने दो महिलाओं सहित मृतक व्यक्तियों की पहचान सोडी जोगिया, मडकाम मंगी और मडकाम मल्ली के रूप में की थी. ये सभी कोइतुर या गोंड जनजाति के थे. हालांकि, माओवादी पार्टी ने 25 सितंबर को जारी बयान में केवल जोगिया के माओवादी होने को स्वीकार किया है.

मुठभेड़ के बाद सिविल लिबर्टीज कमेटी नामक गैर-लाभकारी संगठन के तेलंगाना राज्य के अध्यक्ष गद्दाम लक्ष्मण ने तेलंगाना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की जिसमें आरोप लगाया गया कि मुठभेड़ "अवैध" थी. लक्ष्मण ने आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज करने का दबाव बनाया जो हत्या से संबंधित है. 24 सितंबर को उच्च न्यायालय ने राज्य को तीन व्यक्तियों की "पुन: पोस्टमार्टम जांच" के निर्देश दिया और दूसरे पोस्टमार्टम की तस्वीरों और वीडियोग्राफ को एक सीलबंद लिफाफे में देने के लिए कहा.

लक्ष्मण के वकील वी रघुनाथ ने कहा, "अदालत ने पुलिस को फॉरेंसिक विशेषज्ञों से फिर से पोस्टमार्टम करने और राज्य को जवाब दायर करने का निर्देश दिया था लेकिन आज तक उन्होंने जवाब दर्ज नहीं किया है. पुलिस ने जानबूझकर उन गांवों का दौरा करने में देरी की जो दूरदराज के क्षेत्रों में हैं और जब तक वे वहां पहुंचते, तब तक शवों का कफन-दफन कर दिया गया था." उन्होंने कहा कि सिविल लिबर्टीज कमेटी के सदस्यों को पुलिस ने तथ्य जांच की अनुमति नहीं दी है और कुछ कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में भी लिया है.

18 अक्टूबर को मुलुगु पुलिस ने जिले के मंगापेट मंडल में तलाशी अभियान के दौरान दो और माओवादियों को "जवाबी गोलाबारी" में मारने का दावा किया. द ट्रिब्यून ने बताया कि छह माओवादियों द्वारा सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति के सदस्य और वेंकटपुरम में उर्वरक की दुकान के मालिक माधुरी भीमेश्वर राव की हत्या के एक सप्ताह बाद मुठभेड़ हुई थी .

आदिलाबाद के कम से कम तीन कार्यकर्ताओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां पुलिस ने खुलेआम आदिवासी कार्यकर्ताओं से “मुठभेड़” कर देने की धमकी दी लेकिन किसी ने भी इस पर विस्तार से चर्चा नहीं की. इन परिस्थितियों में पुलिस के "मुठभेड़" के दावे जमीनी हकीकत के बारे में कई सवाल उठाते हैं. कानूनी लड़ाई के लिए तैयार कार्यकर्ता डर के कारण मृतकों के परिवारों से मिलने और यह सत्यापित करने में भी सक्षम नहीं हैं कि क्या ये बयान सच हैं.

अक्टूबर के अंत में तेलंगाना के मुलुगु जिले में तड़वई पुलिस स्टेशन ने डबकटला सुमन, चंदा महेश्वर राव, तातिपमुला रमेश और सिडाम जंगुदेव को माओवादियों से सहानुभूति रखने के आरोपों में को गिरफ्तार किया. इनका नाम अगस्त में पुलिस द्वारा जारी की गई सूची में था. आपराधिक प्रक्रिया के अनुसार व्यक्तियों को हिरासत में लिए जाने के 24 घंटे के भीतर अदालत में पेश किया जाना चाहिए लेकिन इन चारों को 3 नवंबर को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया.

मजिस्ट्रेट ने आदेश में लिखा है, “पूछताछ में अभियुक्त ए-1 से लेकर ए-4 ने स्वेच्छा से अपने वकील और पुलिस की मौजूदगी में कहा कि पुलिस ने 28 अक्टूबर को उन्हें अवैध रूप से हिरासत में लिया और 2 नवंबर की प्रेस मीटिंग के बाद अदालत के समक्ष पेश किया गया ताकि 24 घंटे के भीतर रिमांड दिखाई जा सके." 3 दिसंबर को अदालत ने चारों को सशर्त जमानत दे दी. उनमें से दो, जंगुदेव और सुमन, को 7 दिसंबर को जेल से रिहा किया गया और रमेश को 16 दिसंबर को रिहा कर दिया गया. राव एक अन्य एफआईआर के कारण जेल में हैं.

यूएपीए, भारतीय दंड संहिता और तेलंगाना सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत 21 लोगों के खिलाफ तड़वई पुलिस ने मामला दर्ज किया था जिनमें से चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. ये चारों विश्वविद्यालय में स्नातक के छात्र हैं और विभिन्न छात्र संगठनों के सदस्य हैं. इनमे से तीन कोइतुर जनजाति से हैं और आदिवासी छात्र संगठन के नेता हैं, जबकि ततिपमुला रमेश वड्रांगी समुदाय से हैं, जिसे एक पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है. पुलिस ने दावा किया कि चार व्यक्ति "पार्टी फंड" के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे थे और युवाओं को माओवादियों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे. पुलिस ने कहा कि चारों माओवादी नेताओं, हरिभूषण, दामोदर, कंकनाला राजिरेड्डी और मायलराप्पु अडेलु को माओवादी साहित्य सौंपने के लिए छत्तीसगढ़ जाने का इंतजार कर रहे थे. इन माओवादी नेताओं का नाम भी एफआईआर में लिया गया है.

हालांकि यह कानून का एक सुव्यवस्थित सिद्धांत है कि माओवादी साहित्य रखना कोई अपराध नहीं है. हाल ही में सितंबर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान केरल उच्च न्यायालय ने यूएपीए के तहत आरोपी दो व्यक्तियों को जमानत दी. अदालत ने टिप्पणी की, “कम्युनिस्ट विचारधारा, माओवाद, वर्ग संघर्ष आदि पर साहित्य और पठन सामग्री रखने आदि से आरोपितों पर कुछ भी साबित नहीं होता है. माओवादी होना (कोई) अपराध नहीं है, हालांकि माओवादियों की राजनीतिक विचारधारा हमारी संवैधानिक मानसिकता के साथ मेल नहीं खाती है.”

तड़वई पुलिस स्टेशन ने एक तस्वीर जारी की जिसमें चेहरा ढके चार गिरफ्तार लोगों को पुलिस के साथ खड़ा दिखाया गया था. इसकी केस डायरी में, जिसकी एक प्रति मैंने देखी है, पुलिस ने चार पुरुषों से जब्त 39 माओवादी साहित्य और पर्चे सूचीबद्ध किए हैं लेकिन इसमें से किसी को भी मीडिया को नहीं दिखाया गया. डायरी में आगे कहा गया है कि "यह आपराधिक साजिश का मामला है, जिसमें क्रांतिकारी साहित्य रखा गया और प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) को समर्थन और सहायता दी गई." विभिन्न नागरिक-समाज संगठनों, जैसे टुडुम देबा, आदिवासी छात्र संघ, मानवाधिकार मंच और सिविल लिबर्टीज कमेटी के पचास से अधिक सदस्यों का नाम सूची में है, जिनकी पहचान "खुले संगठनों" के रूप में की गई है और उन पर भाकपा (माओवादी) का समर्थन करने का आरोप लगाया गया है. पिछले वर्ष अक्टूबर में हैदराबाद पुलिस आयुक्त ने इनमें से कई संगठनों को माओवादी मोर्चा नाम दिया था.

प्राथमिकी में चार सरकारी स्कूल शिक्षकों के नाम भी हैं. उनमें से दो, आत्राम भुजंगा राव और आत्राम सुगुना शादीशुदा हैं और 1998 में मानवाधिकार कार्यकर्ता के. बालगोपाल द्वारा स्थापित ह्यूमन राइट्स फोरम के राज्य उपाध्यक्ष और आदिलाबाद जिला अध्यक्ष हैं. सुगुना आदिवासी महिला संघ की अध्यक्ष भी हैं. भुजंगा राव ने कई बार तथ्य-खोज अभियान के लिए मुठभेड़ स्थलों का दौरा करने की कोशिश की लेकिन पुलिस द्वारा अनुमति दिए जाने से इनकार कर दिया गया. दोनों ही सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध की सक्रिय आवाज रहे हैं. सूची में शामिल तीसरा नाम स्कूल शिक्षक कनक वेंकटेश्वर राव का है जो  एचआरएफ के कोमाराम भीम आसिफाबाद जिला के अध्यक्ष हैं.

वारियर ने इस बात से इनकार किया कि एचआरएफ कार्यकर्ताओं को गलत तरीके से फंसाया गया. "मुलुगु मामले के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के बयानों और पुलिस के दस्तावेजों और सबूतों के अनुसार वे इसमें शामिल हैं." यह तर्क देते हुए कि यह कोई फर्जी मामला नहीं है, वारियर ने उल्लेख किया कि जिले में बहुत सारे शिक्षक हैं लेकिन इस मामले में केवल कुछेक का नाम आया है. "बिना किसी सबूत के, बिना किसी कारण के हम किसी को फंसा नहीं रहे हैं. हम प्रक्रिया के अनुसार, कानून के अनुसार काम करेंगे. और पूरे विश्वास के साथ अदालत में जाएंगे.”

मुलुगु पुलिस के अधीक्षक संग्राम सिंह पाटिल गणपतराव ने यूएपीए मामले से अनभिज्ञ होने का दावा किया, जिसमें 21 लोगों को दर्ज किया गया था. उन्होंने कहा कि इन लोगों पर "माओवादियों को रसद पहुंचाने" का मामला दर्ज किया गया है. उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि मैं किस मामले की बात कर रहा हूं. गणपतराव ने कहा, “नेटवर्क माओवाद प्रभावित क्षेत्र से होकर गुजर रहा है. आदिलाबाद माओवादियों के गढ़ों में से एक है जिसके चलते वहां उनका कैडर है और मिलिशिया का जाल है जो आपूर्ति और रसद पहुंचा रहा है. "

जारी हिंसा को इस पृष्ठभूमि के साथ यह देखा जाना चाहिए कि तेलंगाना के आदिवासी क्षेत्र राज्य की कोयला खनन बेल्ट है और यह बेल्ट आदिलाबाद, करीमनगर, खम्मम और वारंगल तक फैली हुई है. इस क्षेत्र में गुत्ती कोया रहते हैं, जो कोइतुर जनजाति का एक उप-समूह है. गुत्ती कोया सबसे कमजोर समूहों में से हैं और विभिन्न सरकारी नीतियों के तहत प्रदान की जाने वाली बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश तेलंगाना के प्रवासी हैं. वास्तव में वे अपनी ही पैतृक भूमि में शरणार्थी बन गए हैं. गुत्ती कोया समुदाय भी हाल के महीनों में बढ़ी हुई पुलिस कार्रवाई का शिकार हो रहा है.

जुलाई में तेलंगाना के हरिता हरम कार्यक्रम के तहत 80 गुत्ती कोया परिवारों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया. हरिता हरम कार्यक्रम वृक्षारोपण के लिए राज्य सरकार की पहल है. 29 अगस्त को तेलंगाना के जयशंकर भूपालपल्ली जिले में महामुथाराम पुलिस ने माओवादियों का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए गुत्ती कोया समुदाय के पांच पुरुषों को गिरफ्तार किया. पुलिस ने दावा किया कि "प्रतिबंधित माओवादियों से संबंधित दो डेटोनेटर, दो जिलेटिन की छड़ें, दो स्टील के बक्से और दस पर्चे जब्त किए गए हैं." लेकिन अन्य मामलों की तरह ही बरामद वस्तुओं को भी मीडिया के सामने पेश नहीं किया गया.

1981 में एक घटना में पुलिस की गोलीबारी में सौ से अधिक निर्दोष आदिवासी मारे गए थे. इस गोलीकांड को इंद्रावली नरसंहार के रूप में जाना जाता है. इन नृशंश हत्याओं के बाद आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटी रामाराव ने इस समुदाय को माओवादियों के प्रभाव में न आने देने के लिए बड़े पैमाने पर आदिवासी शिक्षकों की भर्ती की. विडंबना यह है कि चालीस साल बाद उन्हीं स्कूली शिक्षकों की असंतोष की आवाज को "माओवाद" बताकर फंसाया जा रहा है.

रमेश ने मुझे बताया, "मामले गढ़े गए हैं और अदालत में टिकते भी नहीं. अगर मैंने कुछ गलत नहीं किया तो मैं भला क्यों डरुंगा? आदिवासी इस अन्याय को कैसे समझे? कभी-कभी मैं इस अन्याय के बारे में सोच सोच कर रात में सो नहीं पाता. यह ऐसा है जैसे देश को हम नजर ही नहीं आते. मानो हम आदिवासियों का अस्तित्व ही नहीं हैं.”