"महाराष्ट्र में मुसलमान खौफ में हैं", एनआरसी के प्रभाव पर सामाजिक कार्यकर्ता इरफान इंजीनियर से बातचीत

15 अक्टूबर 2019
साभार : इरफान इंजीनियर
साभार : इरफान इंजीनियर

इस साल 31 अगस्त को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन अथॉरिटी ने असम में नागरिकों की अंतिम सूची प्रकाशित की जिसमें 19 लाख से ज्यादा लोगों को सूची से बाहर कर दिया गया. एनआरसी डेटा दर्शाते हैं कि बांग्लादेश के साथ  लगे सीमावर्ती जिलों की तुलना में, जहां मुख्य रूप से बंगाली मूल के मुसलमानों की बहुलता है, असम के हिंदू बहुसंख्यक क्षेत्रों में सूची से बाहर होने वालों का अनुपात ज्यादा है. इसके चलते राज्य की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इस परियोजना का ही खंडन कर दिया. इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि हिंदुओं को एनआरसी से बाहर होने के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जब केंद्र की बीजेपी सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक पारित करेगी तो उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी. विधेयक में भारत के तीन पड़ोसी देशों के छह गैर-मुस्लिम समुदायों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है. वास्तव में सरकार के निशाने पर असम के बंगाल मूल के मुसलमान हैं, जिन्हें लंबे समय से बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठी के रूप में देखा जाता रहा है.

बंगाल मूल के मुस्लिम समुदाय को ऐतिहासिक रूप से दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों द्वारा हिंदू वोटों को मजबूत करने के लिए निशाना बनाया जाता रहा है. मुंबई में 1990 के दशक के मध्य में, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने शहर की कई झुग्गी बस्तियों में रहने वाले "अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों" को निकाल बाहर करने का आह्वान किया था. शिवसेना ने आरोप लगाया था कि मुंबई में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों की संख्या चार करोड़ तक है.

कारवां की रिपोर्टिंग फेलो आतिरा कोनिक्करा ने अक्टूबर महीने में मुंबई में नागरिक-समाज संगठन सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म के निदेशक इरफान इंजीनियर से बात की. इंजीनियर एक एक्टिविस्टों की अगुवाई वाली उस फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी के सदस्य थे जिसने 1990 के दशक में देश निकाला अभियान के चरम पर मुंबई के बंगाली बहुल इलाकों का सर्वेक्षण किया था. इस साल जून में इंजीनियर ने एनआरसी अपडेशन से प्रभावित समुदायों की स्थिति का जायजा लेने के लिए असम का दौरा भी किया.

इस इंटरव्यू में उन्होंने बंगाली-मुस्लिम समुदाय को बांग्लादेशी के रूप में चिन्हित किए जाने, महाराष्ट्र से उन्हें खदेड़े जाने और एनआरसी को लागू किए जाने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में चर्चा की. मुंबई में बंगाल मूल के मुसलमानों के साथ अपनी बातचीत को याद करते हुए, इंजीनियर ने कहा, “हमने उन लोगों से भी बात की थी जिन्हें निर्वासित किया गया था और वे वापस आ गए. उन्होंने कहा, “हम भारतीय हैं. हम बांग्लादेश में किसी को नहीं जानते. हमारा कोई मूल स्थान नहीं है, कोई गांव नहीं है. हमें नहीं पता था कि कहां जाना है.''

आतिरा कोनिक्करा : क्या आप उस ऐतिहासिक संदर्भ को बता सकते हैं जिसमें बंगाल मूल के मुसलमानों को विदेशी या विशेष रूप से बांग्लादेशियों के रूप में चिन्हित किया जाने लगा?

आतिरा कोनिक्करा कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

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