केरल में चल रहा राज्य सरकार का स्वास्थ्य सर्वे असल में कनाडा की कंपनी पापुलेशन हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीएचआरआई) द्वारा संचालित और तैयार किया गया है. इस बात का खुलासा स्वास्थ्य अधिकारियों और इस प्रोजेक्ट में शामिल शोधकर्ताओं के आपसी ईमेलों और पत्रों से हुआ है. हैरानी की बात यह है कि जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार ने ऐसे ही एक प्रोजेक्ट के लिए पीएचआरआई से साझेदारी का प्रस्ताव किया था तो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीएम ने इसका जबरदस्त विरोध किया था और इस प्रोजेक्ट को बंद करना पड़ा था. जब मीडिया में ये खबरें आईं कि उसी से मिलते-जुलते प्रोजेक्ट को वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार ने दोबारा चालू किया है तो राज्य सरकार ने दावा किया कि वह पीएचआरआई के साथ किसी तरह का डेटा शेयर नहीं कर रही है. लेकिन कारवां के पास उपलब्ध ईमेलों और पत्रों से लगता है कि सरकार झूठ बोल रही है.
ये ईमेल केरल सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों, पीएचआरआई और प्रोजेक्ट में शामिल अन्य मेडिकल संस्थाओं के हैं. इन्हें भेजने वालों में राजीव सदानंद जैसे शीर्ष स्वास्थ्य नौकरशाह हैं, जिन्होंने एलडीएफ और यूडीएफ सरकारों में काम किया है. इसी तरह पीएचआरआई के प्रमुख और कनाडा की मैकमास्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सलीम युसूफ, तिरुवनंतपुरम के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर के विजयकुमार और अच्युता मेनन सेंटर फॉर हेल्थ साइंस स्टडीज संक्षेप में अच्युता मेनन सेंटर के एमिरेट्स प्रोफेसर केआर थनकप्पन के ईमेल भी हैं. ये पत्र और ईमेल कारवां को एक विसलब्लोअर ने उपलब्ध कराए हैं. इनसे पता चलात है कि पीएचआरआई को डेटा उपलब्ध कराने, परियोजना से संबंधित मीडिया और राजनीतिक सवालों को संबोधित करने की तैयारी किस तरह की गई और परियोजना में जबरदस्त वित्तीय निवेश किया गया है.
इसके अलावा जो सबसे बड़ी बात सामने आई है वह यह कि पिनाराई विजयन कि एलडीए सरकार ने यूडीएफ सरकार के 2013 के केरला हेल्थ ऑब्जर्वेटरी एंड बेसलाइन सर्वे (खोब्स) की रिब्रांडिंग कर फिर लॉन्च करने से ज्यादा कुछ नहीं किया है. दिसंबर 2018 में सत्ता में आने के दो साल बाद एलडीएफ सरकार ने घोषणा की थी कि वह केरला इंफॉर्मेशन ऑफ प्रेसिडेंट आरोग्यम नेटवर्क (किरण) सर्वे शुरू कर रही है. लेकिन नई सरकार गठन के चंद हफ्तों में ही विजयकुमार ने पूर्व सरकार की परियोजना को दोबारा शुरू करने के संबंध में परामर्श जारी कर दिया. विजयकुमार हेल्थ एक्शन बाय पीपल (हेप) नाम की गैर लाभकारी संस्था के सचिव हैं. यह संस्था दोनों सर्वेक्षणों में शामिल थी और इसी ने परियोजना को दोबारा शुरू करने की सिफारिश की थी.
यूडीएफ सरकार में सदानंद उस वक्त स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव थे जब खोब्स परियोजना चल रही थी. उन्हें 2013 में, परियोजना बंद हो जाने के बाद, केंद्र सरकार में डिप्यूट कर दिया गया था. इसके बाद मई 2016 में वह स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव बनकर राज्य सरकार में लौट आए और 3 जून को विजयकुमार ने पीएचआरआई के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर सुमति रंगराजन को लिखा, “श्री राजीव सदानंद ने चार्ज ले लिया है. मैदान खाली है. फिर क्या हम आगे बढ़ने की तैयारी करें?
Health Survey Resumption (June 2016) by Tanvi Mishra on Scribd
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