Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.
19 फरवरी 2012 को केरल पुलिस ने दो भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोप में दो इतालवी नौसैनिकों, मैसिमिलियानो लैटोर और सल्वाटोर गिरोन, को गिरफ्तार किया. उस साल 15 फरवरी को दोनों पर केरल तट के पास मछुआरों को गोली मारने का आरोप था. इसके कुछ महीने बाद, केरल उच्च न्यायालय की अनुमति के बगैर, कोच्चि शहर से बाहर न जाने की शर्त पर दोनों को जमानत मिल गई. फरवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत की शर्तों को हल्का करते हुए इटली के आम चुनावों में मतदान करने के वास्ते स्वदेश लौटने की इजाजत दे दी. उसके बाद इटली की सरकार के दोनों नाविकों को पुनः भारत भेजने से इनकार करने के चलते दोनों देशों के बीच कूटनीति विवाद उत्पन्न हो गया.
इटली सरकार के इस कदम के खिलाफ भारत ने इटली के राजदूत डेनियल मसीनी के भारत से बाहर जाने पर रोक लगा दी. उस साल के मार्च में दोनों नौसैनिक भारत वापस आ गए. उस वक्त भारतीय जनता पार्टी की ओर से 2014 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने नौसैनिकों के अल्प अवधि के लिए स्वदेश लौटने को राजनीतिक मुद्दा बनाया और कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर निशाना साधा. उस वक्त यूपीए की अध्यक्षता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कर रहीं थीं जिनकी इतालवी पहचान की दुहाई बीजेपी अपने राष्ट्रवादी आख्यान में बार-बार देती है.
31 मार्च 2014 के लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान मोदी ने अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, “वे कौन लोग हैं जिन्होंने इटली के हत्यारों को बचकर भाग जाने दिया”. फिर उन्होंने पूछा, “उन लोगों को किसके इशारे पर लौटने दिया गया? सत्ता में ऐसी कौन सी शक्ति है जिसने उन्हें इटली से वापस नहीं लाने दिया”.
अप्रैल में कासरगोड जिले में एक अन्य रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने मारे गए मछुआरे जालस्टाइन और अजीश बिनकी के मामले को उठाया और वादा किया, “मैं दोनों मछुआरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाऊंगा. मैं केरल के मछुआरों की लड़ाई लडूंगा”. मोदी को सत्ता में आए 5 साल हो गए हैं लेकिन इस मामले में कोई प्रगति होती दिखाई नहीं दे रही है. प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक मंचों से इस मामले पर कुछ नहीं कहा है और केंद्र सरकार ने नौसैनिकों के प्रति नरम रुख अख्तियार करते हुए भारत से बाहर जाने दिया है.
इस मामले में पहली एफआईआर केरल के कोल्लम जिले के नींदाकारा तटीय पुलिस स्टेशन में 2012 में दर्ज हुई थी. तत्कालीन कोच्चि पुलिस के आयुक्त अजीत कुमार के नेतृत्व में एक दल ने इस मामले की आरंभिक पड़ताल की थी. अप्रैल 2013 में यह केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया गया. तब से यह मामला भारत और इटली सरकार के बीच न्याय क्षेत्र को लेकर विवाद में फंस गया है. भारत का दावा है कि मछुआरों को गोली भारतीय जल क्षेत्र में मारी गई थी इसलिए नौसैनिकों पर भारतीय कानून के तहत मामला चलाया जाना चाहिए. इटली सरकार का कहना है कि यह घटना अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र में घटी थी इसलिए मछुआरों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून लागू किया जाना चाहिए.
सितंबर 2014 में, मोदी के सत्ता में आने के बाद, लैटोर ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दर्ज कर उपचार हेतु इटली जाने की अनुमति मांगी थी. लैटोर को हृदयघात हुआ था. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की राय मांगी. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहां कि “माननीय कारणों” के चलते सरकार लैटोर के निवेदन का विरोध नहीं करती है. इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने लैटोर को इटली जाने की अनुमति दे दी.
जुलाई 2015 में इटली सरकार यह मामला समुद्री कानून के लिए अंतर्राष्ट्रीय अधिकरण में ले गई. यह अधिकरण राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित स्वतंत्र न्यायिक संस्था है. अधिकरण ने यह मामला नीदरलैंड्स के द हेग में स्थित स्थाई मध्यस्थता अदालत में भेज दिया. इसके बाद इटली सरकार ने मध्यस्थ अदालत में अर्जी लगा कर दूसरे नौसैनिक सल्वाटोर गिरोन की जमानत शर्तों को हल्का किए जाने की अनुमति मांगी ताकि इस मामले में फैसला आने तक वह इटली में आ कर रह सके. अदालत ने आदेश दिया, “इस मामले में भारत और इटली सरकार सहकार्य करेंगे जो भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में जारी कार्यवाही के लिए भी होगा ताकि सार्जेंट गिरोन की जमानत शर्तों को हल्का किया जा सके, ताकि सार्जेंट गिरोन भारत की सर्वोच्च न्यायालय के अधीनस्थ रहते हुए जारी मध्यस्थता प्रक्रिया के दौरान इटली लौट सकें”. दोनों देशों ने अदालत के फैसले को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया. इटली का कहना था कि फैसले से मध्यस्था प्रक्रिया संपन्न होने तक नौसैनिकों के इटली लौट आने का “मार्ग खुल” गया है. भारत ने कहा कि अदालत ने जमानत की शर्तों को ढीला करने की सिफारिश की है लेकिन इस पर विचार और निर्णय लेने का अधिकार भारतीय सर्वोच्च न्यायालय पर छोड़ दिया है.
इस फैसले के बाद मई 2016 में गिरोन ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की और अनुरोध किया कि उनकी जमानत शर्तों को सरल करते हुए उन्हें भारत छोड़ने की इजाजत दी जाए. केंद्र सरकार ने मानवीय आधार पर इस अपील का समर्थन किया जिसके बाद सर्वोच्च अदालत ने गिरोन को भारत छोड़ने की अनुमति दे दी. फिलहाल दोनों नौसैनिक इटली में है. सितंबर 2016 को तत्कालीन एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सरकार को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है कि दोनों नौसैनिकों को इस मामले का फैसला आने तक इटली में रहने दिया जाए. सरकार की यह नरमी पूर्व में मोदी के सख्त रवैया से बिल्कुल उल्टी है. 2018 में जब इटली के प्रधानमंत्री ज्यूसेपे कॉन्टे भारत आए थे तब मोदी ने इस मामले को नहीं उठाया. यह मामला अभी भी मध्यस्थता अदालत में चल रहा है और सुनवाई की तारीख जुलाई 2019 है.
इस साल 1 मई को मैं कोल्लम के तटीय गांव मुथाकारा गई थी जो जालस्टाइन का गांव है. मैं यहां जालस्टाइन की विधवा डोरम्मा से मिली. डोरम्मा ने मुझे बताया कि इटली के अधिकारियों ने जो वादे किए थे उन्हें पूरा नहीं किया. वह कहती हैं, “उन लोगों ने मुझे कहा था कि वह मेरे बेटे को नौकरी देंगे और उसकी पढ़ाई का खर्च उठाएंगे. वह 1-2 बार क्रिसमस में आने के बाद फिर कभी नहीं आए”.
इस केस में याचिका वापस लेने के लिए इटली सरकार ने जालस्टाइन और कन्याकुमारी के अजीश बिनकी के परिवार को मुआवजे के रूप में एक-एक करोड़ रुपए दिए थे. इसके अलावा केरल सरकार ने डोरम्मा को राज्य कलेक्ट्रेट में पीअन की नौकरी दी है. डोरम्मा यहां नौकरी करती हैं और अपने दो बच्चों को पालपोस कर बड़ा कर रही हैं. जब मैंने बड़े बेटे डेरेक से पूछा कि जो वादा मोदी ने 2014 के अपने चुनावी भाषण में किया था उसके बारे में उसकी क्या राय है तो उसका कहना था, “मोदी सिर्फ बातें करते हैं, काम नहीं करते”. परिवार की यह मांग नहीं हैं कि नौसैनिकों पर भारत में मुकदमा चलाया जाए. डोरम्मा कहती हैं, “हमने दोनों को माफ कर दिया. जो हमारा था वह तो चला गया”.
केरल राज्य इकाई के बीजेपी अध्यक्ष श्रीधरण पिल्लई और इस इकाई के पूर्व अध्यक्ष कुमन्नम राजशेखरण ने मामले पर मोदी की नरमी पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस पार्टी के सांसद शशि थरूर कहते हैं, “मोदी के कामकाज का यही तरीका है. इस मुद्दे का राजनीतिक इस्तेमाल कर लेने के बाद मोदी ने न्याय दिलाने का कोई प्रयास नहीं किया और यूपीए सरकार के दौरान पकड़े गए दोनों नौसैनिकों को देश से भाग जाने दिया”. वह आगे कहते हैं, “हमने इस मामले पर प्रधानमंत्री या भारतीय सरकार से एक शब्द भी नहीं सुना है. इससे यह संदेश जाता है प्रधानमंत्री को भारतीय जानों की कोई परवाह नहीं है और कूटनीतिक सहजता की खातिर न्याय की बलि चढ़ाई जा सकती है”.