नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ट्रॉमा सेंटर के इमरजेंसी वार्ड में स्ट्रेचर पर लेटे 25 साल के जामिया मिलिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रहूल बांका की नाक पर पट्टी बंधी थी. खून थूकते हुए बांका ने मुझे बताया, “मैं लाइब्रेरी में था और घुटनों पर बैठकर पुलिस से मिन्नते कर रहा था, ‘भगवान के लिए छोड़ दो’ लेकिन पुलिस मुझे मारती रही.” बांका ने बताया कि पुलिसवालों ने उनसे कहा, “अल्लाह का नाम क्यों नहीं लेता” और मारने लगी. ट्रॉमा सेंटर में इलाज के लिए आए छात्रों के चहरों में पुलिस की बर्बरता की कहानी को आसानी से पढ़ा जा सकता था.
दिल्ली पुलिस ने बांका सहित दो दर्जन से ज्यादा लोगों को विश्वविद्यालय से गिरफ्तार किया और न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी (एनएफसी) पुलिस थाने ले गई. 15 दिसंबर को नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 के खिलाफ छात्रों के प्रदर्शन का तीसरा दिन था. उस दिन पुलिस विश्वविद्यालय परिसर में जबरदस्ती घुस आई. छात्रों को लाठियों से पीटा और उन पर आंसू गैस के गोले दागे. पुलिस ने लगातार दूसरी बार ऐसा किया था. आधी रात को एनएफसी पुलिस थाने से 16 लोगों को इलाज के लिए एम्स में भर्ती कराया गया.
छात्रों ने मुझे बताया कि वे परिसर के अंदर शांतिपूर्ण तरीके से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे जबकि पुलिस दावा कर रही है कि प्रदर्शनकारियों ने उन पर पथराव किया जिसके बाद वह परिसर के भीतर घुसी और छात्रों के खिलाफ बल प्रयोग किया. विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे कहा, “जाकर सीसीटीवी फुटेज देखिए. उसकी जल्दी जांच होनी चाहिए.” उन्हें डर है कि पुलिस फुटेजों को मिटाने का प्रयास करेगी.
जामिया में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों और ऐसे लोगों में जो अन्य काम से विश्वविद्यालय आए थे, फर्क नहीं किया. दिल्ली पुलिस ने अभी तक औपचारिक रूप से यह नहीं बताया है कि उसने कितने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया लेकिन छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि पुलिस ने 50 से ज्यादा लोगों को जबरन गिरफ्तार किया है. इसके बाद पुलिस ने जानबूझकर लोगों को भ्रमित करने और छात्रों, उनके दोस्तों व परिवारवालों को डराने का प्रयास किए.
छात्रों को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने क्या किया, इस बारे में लोग अलग-अलग बयान दे रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि पुलिस गिरफ्तार लोगों को समूहों में बांटकर अलग-अलग जगह ले गई थी. एक समूह को एनएफसी पुलिस स्टेशन लाया गया और दूसरे को कालकाजी पुलिस स्टेशन. जिन छात्रों से मैंने बात की उनका कहना था कि पुलिस की कार्रवाई में घायल प्रदर्शनकारियों को एम्स, होली फैमिली हॉस्पिटल, अल शिफा हॉस्पिटल और सफदरजंग हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. एनएफसी और कालकाजी पुलिस स्टेशनों से घायल प्रदर्शनकारियों को, वहां जुटे नागरिक समाज कार्यकर्ताओं, वकीलों, दोस्तों और परिवारवालों के दबाव में आधी रात बाद, एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया.
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