एम्स में भर्ती जामिया प्रदर्शन के घायलों से पुलिस और डॉक्टरों का शर्मनाक बर्ताव

अहान पेनकर
18 December, 2019

नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ट्रॉमा सेंटर के इमरजेंसी वार्ड में स्ट्रेचर पर लेटे 25 साल के जामिया मिलिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रहूल बांका की नाक पर पट्टी बंधी थी. खून थूकते हुए बांका ने मुझे बताया, “मैं लाइब्रेरी में था और घुटनों पर बैठकर पुलिस से मिन्नते कर रहा था, ‘भगवान के लिए छोड़ दो’ लेकिन पुलिस मुझे मारती रही.” बांका ने बताया कि पुलिसवालों ने उनसे कहा, “अल्लाह का नाम क्यों नहीं लेता” और मारने लगी. ट्रॉमा सेंटर में इलाज के लिए आए छात्रों के चहरों में पुलिस की बर्बरता की कहानी को आसानी से पढ़ा जा सकता था.

दिल्ली पुलिस ने बांका सहित दो दर्जन से ज्यादा लोगों को विश्वविद्यालय से गिरफ्तार किया और न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी (एनएफसी) पुलिस थाने ले गई. 15 दिसंबर को नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 के खिलाफ छात्रों के प्रदर्शन का तीसरा दिन था. उस दिन पुलिस विश्वविद्यालय परिसर में जबरदस्ती घुस आई. छात्रों को लाठियों से पीटा और उन पर आंसू गैस के गोले दागे. पुलिस ने लगातार दूसरी बार ऐसा किया था. आधी रात को एनएफसी पुलिस थाने से 16 लोगों को इलाज के लिए एम्स में भर्ती कराया गया.

छात्रों ने मुझे बताया कि वे परिसर के अंदर शांतिपूर्ण तरीके से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे जबकि पुलिस दावा कर रही है कि प्रदर्शनकारियों ने उन पर पथराव किया जिसके बाद वह परिसर के भीतर घुसी और छात्रों के खिलाफ बल प्रयोग किया. विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे कहा, “जाकर सीसीटीवी फुटेज देखिए. उसकी जल्दी जांच होनी चाहिए.” उन्हें डर है कि पुलिस फुटेजों को मिटाने का प्रयास करेगी.

जामिया में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों और ऐसे लोगों में जो अन्य काम से विश्वविद्यालय आए थे, फर्क नहीं किया. दिल्ली पुलिस ने अभी तक औपचारिक रूप से यह नहीं बताया है कि उसने कितने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया लेकिन छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि पुलिस ने 50 से ज्यादा लोगों को जबरन गिरफ्तार किया है. इसके बाद पुलिस ने जानबूझकर लोगों को भ्रमित करने और छात्रों, उनके दोस्तों व परिवारवालों को डराने का प्रयास किए.

छात्रों को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने क्या किया, इस बारे में लोग अलग-अलग बयान दे रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि पुलिस गिरफ्तार लोगों को समूहों में बांटकर अलग-अलग जगह ले गई थी. एक समूह को एनएफसी पुलिस स्टेशन लाया गया और दूसरे को कालकाजी पुलिस स्टेशन. जिन छात्रों से मैंने बात की उनका कहना था कि पुलिस की कार्रवाई में घायल प्रदर्शनकारियों को एम्स, होली फैमिली हॉस्पिटल, अल शिफा हॉस्पिटल और सफदरजंग हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. एनएफसी और कालकाजी पुलिस स्टेशनों से घायल प्रदर्शनकारियों को, वहां जुटे नागरिक समाज कार्यकर्ताओं, वकीलों, दोस्तों और परिवारवालों के दबाव में आधी रात बाद, एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया.

यहां पर भी पुलिस ने चालाकी दिखाई. घायल प्रदर्शनकारियों को वह पीछे के दरवाजे से अस्पताल ले गई जबकि उनके परिवार वाले और दोस्त कड़ी ठंड में बाहर खड़े उनका इंतजार कर रहे थे. बांका के साथ जामिया में पढ़ने वाली 26 साल की शीतल शाम 7:30 बजे एनएफसी पुलिस थाने पहुंच गई थीं. जब बांका एम्स में भर्ती हो चुके थे उस वक्त भी पुलिस उनको यही बताती रही कि वह थाने में ही है.

एम्स ट्रॉमा सेंटर में उस रात कड़ी सुरक्षा की गई थी. वहां तैनात गार्ड पत्रकारों को भी भीतर जाने नहीं दे रहे थे. हिरासत में लिए गए लोगों पर कड़ी निगरानी की जा रही थी. वहां मौजूद पुलिस वाले घायलों का माखौल उड़ा रहे थे और उन्हें गद्दार और देशद्रोही बोल रहे थे.

मैंने एम्स में भर्ती 8 घायल प्रदर्शनकारियों से बात की. इनमें से 4 ऐसे थे जो उस दिन हुए प्रदर्शन का हिस्सा नहीं थे. बावजूद इसके पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. जामिया से पढ़े, 26 साल के आशुतोष कुमार दोस्त से मिलने परिसर में गए थे. उन्होंने बताया, “मैं प्रदर्शन में भाग लेने वहां नहीं गया था. मेरा प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं था.” कुमार ने मुझे अपने पैरों की गहरी चोटें भी दिखाई. जब कुमार का इलाज करने आए डॉक्टर को पता चला कि वह विश्वविद्यालय के छात्र नहीं हैं तो डॉक्टर उन्हें ‘देशद्रोही’ और बेरोजगार कहकर ताने मारने लगा और हंसने लगा कि कुमार जामिया के पढ़े हैं. पुलिस भी डॉक्टर की मसखरी हरकतों में साथ देने लगी.

19 साल के शकीब खान के साथ भी ऐसा ही हुआ. जब पुलिस उनकी जानकारी दर्ज कर रही थी तो एक पुलिस वाले ने उनसे पूछा, “आप पढ़ते हो?” फिर वहां खड़े कई पुलिस वाले यह कहते हुए हंसने लगे, “यह पढ़ाई होती है क्या?” मैंने कई डॉक्टरों और पुलिस वालों को बार-बार छात्रों को देशद्रोही कहते सुना. बांका ने मुझे बताया कि वे लोग मुझे इसलिए ताने दे रहे थे क्योंकि “मैं मुसलमान होने के साथ एक कश्मीरी भी हूं.” ऐसा कहते हुए बांका रोने लगे और कहा, “काश मैं कुछ और होता.”

पुलिस ने हिरासत में लिए गए लोगों को डराने की कोशिश भी की. नाम न छापने की शर्त पर एक ने बताया कि पुलिस से उसने पूछा था कि मेडिकल चेकअप के बाद उसके साथ क्या किया जाएगा तो पुलिस अधिकारी ने कहा कि उसे तिहाड़ ले जाया जाएगा.

गिरफ्त में लिए गए लोगों को समूह में बांटने के कारण परिवारवाले उनसे संपर्क नहीं कर पा रहे थे. जब मैं एम्स ट्रॉमा सेंटर में था तो कारवां के अन्य पत्रकार, जो न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस थाने के सामने खड़े थे, उनसे लोग अपने घायलों का हाल पूछ रहे थे. मैंने ऐसे ही एक मामले में जामिया के छात्र आमिर सोहेल की दोस्त 22 साल की पूर्व छात्र समद फारूकी से बात की. फारूकी ने मुझे बताया, “पहले हम होली फैमिली अस्पताल गए क्योंकि हमने सुना था कि कई छात्रों को वहां भर्ती किया गया है. फिर हमें बताया गया कि कुछ लोगों को कालकाजी पुलिस स्टेशन ले जाया गया है तो हम लोग वहां चले गए. उसके तुरंत बाद हम लोग न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस स्टेशन आए लेकिन वहां भी हमें कुछ पता नहीं चला.”

सोहेल के एक मित्र सैयद शारिक आमीन रिजवी जो पहले जामिया के छात्र थे, उनको अंततः पता चला कि सोहेल सफदरजंग अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती हैं. रिजवी ने बताया कि पुलिस वालों ने हमसे कहा, “इस पर देशद्रोही का आरोप लगने वाला है, यह सबसे आगे-आगे था.” रिजवी ने मुझे बताया कि पुलिस सोहेल पर दबाव डाल रही थी कि वह बयान दे कि पुलिस ने उसे नहीं पीटा बल्कि जामिया के छात्रों ने उसकी पिटाई की है. पुलिस अधिकारियों ने सोहेल को बताया कि उसे तिहाड़ जेल ले जाया जाएगा. अपनी पहचान गुप्त रखने का अनुरोध करने वाले प्रोफेसर ने भी मुझे ऐसी ही बात बताई. “बहुत कठीन है. कई लोगों को अपनी चोटें छुपानी पड़ी ताकि उन्हें पुलिस हिरासत में न रहना पड़े. अगर वे लोग अपनी चोटें दिखाते तो पता चल जाता कि उन्हें लंबे समय तक हिरासत में रखा गया था.”

प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिए जाने के बाद जामिया के दो प्रोफेसरों एनएफसी, कालकाजी और सुखदेव विहार पुलिस स्टेशन और कम से कम तीन अस्पतालों में गए ताकि गिरफ्तार किए गए छात्रों का पता लगा सकें. जब पता चला कि अधिकांश छात्रों को एनएफसी और कालकाजी पुलिस स्टेशन ले जाया गया है तो दोनों प्रोफेसरों को एक-एक थाने का जिम्मा दे दिया गया ताकि सुनिश्चित हो सके कि छात्रों की ठीक से देखभाल हो रही है.

एनएफसी और बाद में एम्स पहुंचे प्रोफेसर ने मुझे बताया, “ ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई युद्ध क्षेत्र है. एक वक्त ऐसा आया जब मुझे बहुत से छात्र फोन करने लगे. ये छात्र डरे हुए थे और कहीं छुपे हुए थे. मुझे ऐसी छात्राओं ने भी फोन किया जो केमिस्ट्री लैब में फंसी थी.” प्रोफेसर ने मुझे बताया कि वह अस्पताल और पुलिस स्टेशन से मिली सूचनाओं को हिरासत में लिए गए लोगों के दोस्तों और परिवार वालों को दे रहे थे. वह गिरफ्तार लोगों की बात परिवार वालों से कराते क्योंकि उनके फोन छीन लिए गए थे. पुलिस ने कोई मदद नहीं की. यहां तक कि छात्रों की जानकारी देने से भी इनकार कर दिया और यह भी नहीं बताया कि एम्स में कितने छात्र भर्ती हैं.

रात 9 बजे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ ने आईटीओ पर दिल्ली पुलिस के पूर्व मुख्यालय के सामने जामिया के समर्थन में आपातकालीन प्रदर्शन की अपील की. रात 2.30 तक वहां कई लोग पहुंच चुके थे. इसके बाद ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एम्स ट्रॉमा सेंटर पहुंचे. जब मैंने एक पुलिस अधिकारी से पूछा कि क्या हो रहा है तो उसने कहा, “देखो कुछ तो होने वाला है. आपको दिख रहा है कि सीनियर लोग आ गए हैं.”

सुबह तकरीबन 4 बजे जब हिरासत में लिए लोगों को लगा कि उन्हें छोड़ा जा सकता है तो मैंने एक से पूछा कि क्या वह देश छोड़ने की सोच रहा है और क्या उसका भरोसा व्यवस्था से उठ गया है. उसने कहा, “डूबते जहाज से सिर्फ चूहे भागते हैं.”