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15 दिसंबर को जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने लगातार तीसरे दिन नागरिकता संशोधन कानूनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. दिल्ली पुलिस जबरदस्ती कैंपस में घुसी और लाठी और आंसू गैस का इस्तेमाल करते हुए छात्रों पर बेरहमी से हमला किया. प्रत्यक्षदर्शियों ने कारवां को बताया कि पुलिस, पुस्तकालय, कैंटीन और मस्जिद में घुस गई और उन छात्रों पर भी उसने हमला किया जो विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं थे.
जिस वक्त जब पुलिस पुस्तकालय में घुसी उस वक्त अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और जामिया में एलएलएम द्वितीय वर्ष के छात्र मोहम्मद मिन्हाजुद्दीन वहीं मौजूद थे. मिन्हाजुद्दीन ने बताया कि वह विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं थे, लेकिन पुलिस ने फिर भी उन्हें बहुत पीटा. इस पिटाई से उनकी बाईं आंख में गहरी चोट लगी जिससे उनकी आंखों की रोशनी चली गई और उसकी दाहिनी आंख संक्रमण की चपेट में आ गई. सोशल मीडिया पर वाइरल हुए वीडियो में, मिन्हाजुद्दीन को जामिया में एक बाथरूम के फर्श पर अपनी खून बहती आंख को पकड़े बैठे देखा जा सकता है. उन्हें अभी तक अपनी चोटों की कानूनी मेडिकल रिपोर्ट नहीं मिली है. 18 दिसंबर को कारवां के फोटो संपादक शाहिद तांत्रे और फैक्ट चेकर अहान पेनकर, मिनहाजुद्दीन से मिले. उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे पुलिस ने उन्हें पीटा और उनकी आंख को हमेशा के लिए बर्बाद कर दिया. उन्होंने कहा, "बेशक डर और कठिनाइयां हैं, लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारूंगा, ... मैं अपने काम में पीछे नहीं रहूंगा."
15 दिसंबर की दोपहर लगभग 12 या 1 बजे, मैं केंद्रीय पुस्तकालय पहुंचा. दर्शनशास्त्र के छात्रों के लिए एक अलग खंड है और मैं वहीं बैठा था. मैं और मेरे दोस्त काम कर रहे थे. बाहर जो विरोध हो रहा था उससे मेरा कोई लेना-देना नहीं था. मैं किसी भी संगठन या छात्र संघ से नहीं जुड़ा हूं. मेरा कोई राजनीतिक जुड़ाव नहीं है और न ही मेरे परिवार में किसी का राजनीति से कोई संबंध है. मैं बस अपना काम कर रहा था.
यह घटना शाम करीब 7 बजे शुरू हुई. लगभग बीस या पच्चीस पुलिसवालों ने केंद्रीय पुस्तकालय भवन में तोडफ़ोड़ की. उन्होंने मुख्य द्वार का शीशा तोड़ दिया और अंदर आ गए. जब हमने महसूस किया कि पुलिस इमारत में घुस गई है, तो कुछ छात्रों ने एमफिल अनुभाग के दरवाजे को बंद कर दिया. लेकिन पुलिस ने ताला तोड़ा और अंदर घुस गई. पूरा कमरा दहल गया. छात्र इधर-उधर भागने लगे.
पुलिस छात्रों को पीटने के लिए पूरी तरह तैयार होकर आई थी. कमांडो पूरी तरह से डंडों से लैस थे. उन्होंने किसी से पूछताछ नहीं की और न कोई सवाल पूछा कि हम लोग कौन हैं, कहां से हैं, कब से यहां बैठे हैं. उन्होंने बस अंधाधुन डंडे बरसाने शुरू कर दिए. मैं खुद को बचाने के लिए दरवाजे की तरफ भागा. पहला डंडा मेरे हाथ पर पड़ा और मैरी कलाई टूट गई. जैसे ही भागने को हुआ दूसरा डंडा मेरी आंख पर आकर लगा. मैं बेहोश होने लगा.
पुलिस को जो लोग दिखाई पड़ रहे थे उन्हें पकड़ कर पीट रही थी. पुलिस पूरी बिल्डिंग में हर जगह, हर माले पर तैनात थी. ऐसा कोई रास्ता नहीं बचा था जहां हम जान बचाने के लिए भाग सकें. उनके पास छह या आठ फुट के डंडे थे. एक-एक छात्र को तीन-तीन पुलिसवाले घेर कर बेरहमी से पीट रहे थे. खुद को बचाने के लिए, मैं बाथरूम की तरफ भागा. मुझे बाद में पता चला कि कुछ लोगों ने मेरे चेहरे से खून गिरते हुए का एक वीडियो भी बनाया था. आधे घंटे तक पुलिस का हमला जारी रहा, सब कुछ तहस-नहस कर दिया- फर्नीचर, शीशे, सब कुछ बर्बाद कर दिया.
बाथरूम में मैं सचमुच बेहोश होने लगा. एक विकलांग छात्र ने मेरी मदद की. वह मुझे पीछे से, अल्लामा इकबाल छात्रावास में ले गया. अंदर, कुछ छात्रों ने मुझे प्राथमिक चिकित्सा देने की कोशिश की, लेकिन उन्हें लगा कि चोट बहुत गंभीर है. वे मुझे एम्बुलेंस में अलशिफा अस्पताल ले गए. वहां बताया गया कि मामला गंभीर है और मेरे साथ आए लोगों को मुझे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के ट्रामा सेंटर ले जाने के लिए कहा. हमने फिर एम्स के लिए एक निजी एम्बुलेंस ली.
एम्स में इलाज में काफी समय लगा. बहुत सी जांच-पड़ताल और कागजी कार्यवाही की गई. यह लगभग 12 या 1 बजे तक हो गया था. फिर उन्होंने मुझे एम्स में राजेंद्र प्रसाद आई सेंटर भेज दिया. सेंटर में एक डॉक्टर ने मुझे बताया कि मामला संगीन है और मेरी आंख का ऑपरेशन करना पड़ेगा. 17 दिसंबर, मंगलवार को मेरा ऑपरेशन हुआ.
मेरा एमएलसी- मेडिको-लीगल केस- ट्रॉमा सेंटर के पास एक स्टेशन पर बनाया गया था. इसमें मेरा फोटो और मेरी मेडिकल कंडीशन का विवरण दर्ज है. पुलिस वाले मरीज की फोटो और जिस हालत में मरीज को लाया जाता है, उसे दर्ज करते हैं. उसका विवरण मेडिकल भाषा में लिखा जाता है, ताकि बाद में उसे अदालत में ठीक से पेश किया जा सके.
लेकिन यह एमएलसी मुझे नहीं दी गई - पुलिस ने इसे अपने पास ही रखा. उन्होंने कहा कि यह कानूनी मामला है, वे इसे जामिया पुलिस स्टेशन या न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी स्टेशन भेज सकते हैं. इस विवाद में, उन्होंने इसे अपने पास रखा. उन्होंने कहा कि वे मुझे बाद में इसके बारे में बताएंगे, लेकिन उन्होंने अभी तक इस बारे में मुझे कुछ नहीं बताया है. मुझे लगता है कि एमएलसी अभी भी उस स्टेशन में ही है.
ट्रॉमा सेंटर के पास भी मेरा बयान दर्ज किया गया था. वहां वे दिक्कत कर रहे थे. जब मैं अपना बयान दे रहा था, वे इसे नहीं लिख रहे थे. वे उलटा मुझसे ही सवाल-जवाब करते रहे- ''तुम वहां क्यों थे, यह कैसे हुआ.'' मैंने कहा, ''मैं अपना बयान दे रहा हूं आप पहले उसे दर्ज करें. बाद में, तथ्यों की जांच करें.” लेकिन मैं जो बता रहा था उसे दर्ज करने का उनका मन नहीं था.
मैं जानना चाहता हूं कि जामिया का प्रशासन क्या कर रहा था. क्या वह सुरक्षा के लिए जिम्मेदार नहीं है? क्या कोई अंदर आकर किसी को भी मार कर जा सकता है? सभी छात्रों को चुना-चुनकर पीटा गया. मैं कैसे इस बेइंसाफी के हाल में जिंदा रहूंगा? अब तो लाइब्रेरी में जाना भी खौफनाक हो गया है.
हमारे लिए जो भी कानूनी सहारा मौजूद है, हम उसका इस्तेमाल करेंगे. 16 दिसंबर को, वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. मेरी याचिका भी इसका हिस्सा है. हमें कानून पर भरोसा है. मैं एक वकील हूं, इसलिए जो भी कानूनी उपाय मेरे लिए मौजूद हैं, मैं उनका इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश करूंगा.
इन सब को देखते हुए कहा जा सकता है कि सरकार अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है. ऐसा पिछले कुछ समय से हो रहा है. जामिया में, इम्तेहान टाल दिए गए हैं, और पूरे परिसर को खाली कर दिया गया है. इसी तरह, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में, पूरे छात्रावास को खाली कर दिया गया है. वहां भी इम्तेहान टाल दिए गए हैं. ऐसा लगता है कि हर उस विश्वविद्यालय को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है जिनका मुसलमानों से कोई ताल्लुक है. एक खास समुदाय, खास लोगों को निशाना बनाया जा रहा है.
मेरे माता-पिता, बिहार के समस्तीपुर में रहते हैं. वे यहां आने की सोच रहे हैं. टिकट मिलना आसान नहीं है लेकिन वे आएंगे. अब तक, न तो प्रशासन और न ही सरकार ने मेरे चिकित्सा खर्च के लिए मदद की पेशकश की है. मुझे जो भी पैसा मिला वह मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों ने दिया. प्रशासन की तरफ से तो कोई मुझसे मिलने भी नहीं आया.
मेरी एक आंख चली गई. डॉक्टर की सलाह है कि इस आंख से फिर कभी देख नहीं पाउंगा और इस तरह के मामलों में संक्रमण फैलने का डर होता है. मुझे डर है कि मेरी दूसरी आंख भी जा सकती है. बेशक डर और कठिनाइयां हैं, लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारूंगा... प्रशासन मदद कर भी सकता है और नहीं भी, सरकार मदद कर भी सकती है और नहीं भी, लेकिन मेरी ओर से, मैं उम्मीद नहीं खोऊंगा. मैं अपनी पढ़ाई जारी रखूंगा. रद्द हुए सेमेस्टर परीक्षाएं जब भी फिर से होंगी, मैं बेशक उसमें शामिल होउंगा. मैं पीएचडी प्रवेश परीक्षा भी दूंगा. मैं अपने काम में पीछे नहीं रहूंगा. मैं इसे करता रहूंगा और अपना भविष्य बनाऊंगा.
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