16 जुलाई को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की जेल में बंद 121 आदिवासियों को दंतेवाड़ा जिले की एनआईए कोर्ट ने यूएपीए समेत अन्य गंभीर धाराओं में दोषमुक्त करार दिया, और फिर अगले दिन 17 जुलाई को झारखंड के रामगढ़ से आदिवासियों के मुद्दों पर रिपोर्ट करने वाले स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) समेत अन्य धाराओं में दर्ज एक पुराने मामले में गिरफ्तार किया गया. दोनों ही मामलों का संबंध माओवाद से जुड़े होने से है.
24 अप्रैल 2017 को सुकमा जिले के बुरकापाल में हुए एक माओवादी हमले में, जिसमें 25 सीआरपीएफ जवान मारे गए थे, शामिल होने के आरोप में बीते पांच सालों से भी अधिक समय से उपरोक्त 121 आदिवासी समाज के लोग जेल में बंद थे. वहीं रूपेश की गिरफ्तारी का कारण सरायकेला खरसांवा जिले के कांड्रा थाने में नवंबर 2021 में दर्ज मुकदमा रहा, जिसमें पिछले साल 13 नवंबर को एक करोड़ के रुपए के इनामी नक्सली प्रशांत बोस और उनकी पत्नी शीला मरांडी गिरफ्तार हुए थे.
16 जुलाई को रिहा हुए 121 आदिवासी उन हजारों आदिवासियों में से हैं जिनकी जिंदगी यूएपीए जैसे सख्त कानून की धाराओं के तहत लगाए गए मुकदमों के चलते सालों साल सलाखों के पीछे बीत जाती है.
गुजरे सालों में इस कानून के दुरुपयोग पर होने वाली बहासों के केंद्र में झारखंड राज्य प्रमुखता से रहा है क्योंकि यहां आदिवासियों की एक बड़ी संख्या है जो खुद के ऊपर लगे माओवाद के आरोप से मुक्ति की न्यायिक लड़ाई लंबे समय से लड़ रहे हैं.
यूएपीए के प्रावधान के दुरुपयोग की बातें जिन नेताओं ने मुखर होकर उठाई, उनमें झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी हैं. 84 वर्षीय चर्चित सोशल एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी की भीमा कोरेगांव मामले में 9 अक्टूबर 2020 को यूएपीए की धाराओं के तहत हुई गिरफ्तारी को लेकर हेमंत सोरेन कहा था, “गरीबों, वंचितों और आदिवासियों की आवाज उठाने वाले 83 वर्षीय वृद्ध स्टेन स्वामी को गिरफ्तार कर केंद्र की बीजेपी सरकार क्या संदेश देना चाहती है? अपने विरोध की हर आवाज को दबाने की यह कैसी जिद्द?” सोरेन का निशाना केंद्र सरकार पर था क्योंकि मुंबई से रांची आई राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की टीम ने स्टेन स्वामी को गिरफ्तार किया था. उनके वकील उनकी लगातार गिरती सेहत का हवाला देकर जमानत की गुहार लगाते रहे लेकिन जमानत नहीं मिली. कई बीमारियों से ग्रासित स्वामी की तबीयत इतनी बिगड़ी कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया और आखिरकार, करीब नौ महीना मुंबई की तलोजा जेल में बंद रहने के बाद 6 जुलाई 2021 को उन्होंने मुंबई के भदरा अस्पताल में आखिरी सांस ली.
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