झारखंड चुनावों में पड़ेगा सीएए और एनआरसी का असर

राजेश कुमार सिंह/एपी फोटो

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“मियां लोग को हमारे नीचे रहना होगा, नहीं तो मारेंगे साला लोग को. ऐ देश हिंदू का है.” बीस साल के अमित कुमार ने बड़े गर्व के साथ मुझे बताया. कुमार झारखंड के दुमका जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य हैं.

12 दिसंबर को मैंने झारखंड के संथाल परगना संभाग के अंदरूनी गांवों का दौरा किया. इससे ठीक एक दिन पहले राज्यसभा ने विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया था. इसमें कहा गया है कि 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को अवैध आवज्रक नहीं माना जाएगा. इस कानून के जरिए ऐसे लोग भारत की नागरिकता पा सकेंगे. लेकिन यह कानून इन देशों के मुस्लिम आवज्रकों को नागरिकता नहीं देता.

शुरू में कुमार मुझे बता रहे थे कि क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम विवाद नहीं है और दोनों समुदाय शांति से रहते हैं. राज्य में लगभग 14 प्रतिशत मतदाता मुसलमान हैं. लेकिन कुछ घंटे की यात्रा और स्थानीय लोगों से बात करने के बाद, जब उन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के बारे में मुस्लिम समुदाय की विरोधी राय सुनी, तो कुमार गुस्सा हो गए. जल्द ही वह बताने लगे कि मुस्लिम उनके जैसे हिंदू को छूने की हिम्मत नहीं कर सकते.

झारखंड में इस समय पांच चरणों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. अंतिम चरण का मतदान 20 दिसंबर को है. मुस्लिम मतदाताओं से बातचीत करने से पता चला कि सीएए के पारित होने से समुदाय नाराज है और मुस्लिम लोगों में डर और चिंता बढ़ गई है. पहले भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करने वाले मुस्लिम मतदाता अब पार्टी के खिलाफ मतदान करने की बात कह रहे हैं. झारखंड के दुमका जिला मुख्यालय से करीब पचास किलोमीटर दूर रानेश्वर ब्लॉक है. यह ब्लॉक शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है और इसकी सीमा पश्चिम बंगाल राज्य से लगती है. गांवों में जाती सड़कें टूटी हुईं हैं और और ज्यादातर घर मिट्टी के बने हैं. मैंने ब्लॉक के एकतला गांव के मुस्लिम मोहल्ले का दौरा किया. मैंने एक छोटे किसान 67 वर्षीय नूर इस्लाम खान से सीएए के बारे में बात की.

खान ने इस कानून के बारे में बताया, "जो मुसलमान बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से यहां आए हैं, उन्हें अब हिंदुस्तान में रहने नहीं दिया जाएगा." खान अपने पास स्मार्टफोन नहीं रखते और उनकी सूचनाओं के स्रोत टेलीविजन, रेडियो और हिंदी समाचार चैनल हैं.

खान ने बताया, "शायद इसके बाद, बीजेपी हमें देश से बाहर निकालने के लिए एक और कानून लाए. हम झारखंड के मूल निवासी हैं और बांग्लादेश या पाकिस्तान के मुसलमानों से हमारा कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन बीजेपी हिंदुस्तान को हिंदू राष्ट्र बनाने और मुसलमानों पर जुल्म ढाने के लिए नए-नए कानून लाती रहेगी.” ऐसा मानने वाले खान अकेले नहीं हैं. राज्य भर के मुसलमान इसी तरह से सोच रहे हैं.

दुमका विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के परसिमला गांव में अल्पसंख्यक समुदाय के सभी लोगों ने बताया की सीएए के पास हो जाने के बाद उनके गांव के मुसलमान अपना वोट बदल देंगे. झारखंड विधान सभा में कार्यरत 38 वर्षीय अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "इस एक विधेयक के पारित होने से रातों-रात हमारी पसंद बदल गई है. यह बिल मुस्लिमों के साथ फर्क करता है और हमारे ऊपर बड़ा खतरा मंडरा रहा है."

परसीमला गांव के निवासियों ने मुझे बताया कि गांव में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने 2014 और 2019 के आम चुनावों में बीजेपी को वोट दिया था. बहुमत ने कांग्रेस या झारखंड मुक्ति मोर्चा को वोट दिया था. बगल के गांव के 44 वर्षीय ईंट व्यवसायी अब्दुल अंसारी ने बताया, "कल तक, इस गांव और आसपास के मुस्लिम गांवों के कई घरों में बीजेपी के झंडे लगे रहते थे, रातोंरात सब गायब हो गए."

दुमका विधानसभा क्षेत्र में 64 वर्षीय जोहट मियां ने मुझे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल होने की तस्वीरें दिखाईं. मियां एक चूड़ी की दुकान चलाते हैं. राज्यसभा में सीएबी पेश किए जाने के बाद, उन्होंने पार्टी छोड़ दी और झामुमो में शामिल हो गए.

दुमका के सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय में अरबी के प्रोफेसर 55 वर्षीय प्रोफेसर तबरेज आलम ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीजेपी में शामिल होने या समर्थन करने के अलग-अलग कारण हैं. "जब मोदी जी ने कहा कि वह मुसलमानों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर देखना चाहते हैं, तो मुसलमानों का एक हिस्सा उनका समर्थन करने लगा. लेकिन अब वह आधार कमजोर हो रहा है.

16 दिसंबर को हुए पंद्रह विधानसभा क्षेत्रों के लिए चौथे चरण के चुनाव पर सीएए का प्रभाव पड़ सकता है. पांचवें चरण के तहत 16 सीटों के लिए 20 दिसंबर को होने वाले चुनाव पर भी इसका निश्चित प्रभाव पड़ेगा. जामताड़ा, पोरैयाहाट, शिकारीपाड़ा, गोड्डा, पाकुड़, सिंदरी और मधुपुर जैसे विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी काफी अधिक है. अगर इन निर्वाचन क्षेत्रों में आदिवासी और मुस्लिम समुदायों के वोट बीजेपी के खिलाफ पड़ते हैं, तो विपक्ष के लिए यह फायदेमंद हो सकता है. लेकिन इसके चलते बीजेपी के पक्ष में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की भी मजबूत संभावना है.

विधानसभा चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल का गठबंधन है. झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन का चेहरा हैं. सोरेन ने सीएए के बारे में कहा, "बीजेपी गांधी की बात करती है और हिटलर का काम करती है." उन्होंने कहा, "अगर हम सत्ता में आए तो हम सीएबी को पढ़ेंगे, विश्लेषण करेंगे और समीक्षा करेंगे कि यह राज्य के लाभ में है या नहीं. इसके अलावा, हम पहले कुछ करने की स्थिति में नहीं थे, लेकिन राज्य में इस कानून को निश्चित रूप से चुनौती दी जा सकती है. "

इस बीच, राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने मुझे बताया कि वे एक प्रभावी राजनीतिक नेतृत्व की तलाश कर रहे हैं जिसके माध्यम से वे सीएए के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर सकें. इसके अलावा, मुस्लिम समुदाय के शहरी और ग्रामीण लोगों के बीच एक अलगाव दिखाई दिया.

झारखंड में मैंने जिन शहरी मुसलमानों से बात की उससे लगता था कि राज्य के गांवों में रहने वालों को सीएए या एनआरसी की जानकारी नहीं होगी. सिकरीपाड़ा निर्वाचन क्षेत्र के सरकारी सहायता प्राप्त एमजी डिग्री कॉलेज के प्रमुख एआर खान ने कहा, "खेतीहर समुदाय या उन गांवों में रहने वाले लोगों को ज्यादा पता नहीं है. वे सीएबी या एनआरसी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं समझते या जानकारी नहीं जुटा सकते हैं."

हालांकि, मुझे दुमका जिला मुख्यालय और शिकारीपाड़ा निर्वाचन क्षेत्र के बीच पचास किलोमीटर क्षेत्र के कई गांवों में बात उलट नजर आई. हर गांव के किसान सीएए के बारे में जानते थे. वे इसे नए नागरिकता कानून के रूप में देखतें हैं, जो पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए "मुस्लिम आव्रजकों" को भारतीय नागरिकता नहीं देगा. वे इस कानून को आगे आने वाली चीजों के लिए ट्रेंड सेट करने वाला मानते हैं. कई लोगों का मानना ​​था कि सीएए एनआरसी लागू करने की पूर्व तैयारी है. कई लोग भविष्य के लिए आशंकित थे और सोच रहे थे कि झारखंड जैसे राज्य में मुसलमानों का क्या होगा जहां समुदाय के कई लोगों के पास जमीन और शिक्षा तक पहुंच नहीं है. रनिश्वर ब्लॉक के 48 वर्षीय निवासी मोतिबल खान ने कहा, "मेरे पास जमीन है और इसलिए मैं यह साबित करने के लिए दस्तावेज दिखा सकता हूं कि मैं भारतीय हूं. लेकिन मेरे समुदाय के कई लोगों के पास जमीन नहीं है और वे अनपढ़ हैं, जिनको मतदाता पहचान पत्र जैसे सरकारी दस्तावेजों के बारे में भी जानकारी नहीं है."

दुमका में सीएए और एनआरसी पर चर्चा करते हुए, आलम ने अपने दो मंजिला घर की तरफ इशारा किया. जिसे भारतीय झंडे के तिरंगे के रंग में रंगा गया था. उन्होंने कहा, "हमारे गृह मंत्री चाहते हैं कि मुसलमान साबित करें कि हम भारतीय हैं. इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है?" उन्होंने अचानक अपनी छोटी बेटी सदफ को बुलाया और उस दिन को याद करने के लिए कहा जिस रात भारत क्रिकेट विश्व कप 2019 का सेमीफाइनल हार गया था. "मैं और मेरी बहन रोने गले और उस रात हमने खाना भी नहीं खाया,” बेटी ने बताया. कुछ दिनों पहले, सदफ की बड़ी बहन सनवर ने परिवार के वंश की एक सूची तैयार की. परिवार अब इसे संभाल कर रखता है. उन्होंने कहा कि उन्होंने सभी दस्तावेजों को संभालना शुरू कर दिया है ताकि जब कभी उन्हें यह साबित करने की जरूरत पड़े कि वे भारतीय हैं, इन्हें पेश कर सकें.