झारखंड पुलिस ने तबलीगी जमात में शामिल बताकर 37 को किया क्वारंटीन, 27 ने कहा नहीं गए दिल्ली

31 मार्च को क्वारंटीन केंद्र में ले जाने के लिए आई बस की तरफ जाते जमाती. झारखंड पुलिस ने राज्य के 37 लोगों की सूची जारी कर कहा है कि ये सभी तबलीगी जमात में शामिल हुए थे लेकिन इनमें से 27 लोगों ने दावा किया है कि वे हाल में दिल्ली गए ही नहीं. मनीष स्वरूप/एपी फोटो

30 मार्च को झारखंड पुलिस की विशेष शाखा या स्पेशल ब्रांच ने 37 लोगों की एक सूची जारी की जिनके बारे में उसका दावा है कि ये लोग दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में आयोजित तबलीगी जमात के धार्मिक सम्मेलन में शामिल होकर बीते सात दिनों में झारखंड आए हैं. विशेष शाखा पुलिस अधीक्षक (आसूचना) के हस्ताक्षर वाली इस सूची में लिखा है, “प्राप्त सूचनानुसार संलग्न सूची में उल्लेखित व्यक्ति नई दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन में धार्मिक सम्मेलन/तबलीग जमात में शामिल होकर विगत 07 दिनों के अंदर लौटे हैं. सत्यापित कर उक्त व्यक्तियों की आवश्यक मेडिकल जांच पश्चात आवश्यक कार्रवाई अपेक्षित है.” सूची के साथ जारी पत्र में इन 37 लोगों के नाम के साथ उनके मोबाइल नंबर भी दिए गए हैं.

कारवां ने सूची में शामिल सभी 37 लोगों से संपर्क किया और 28 लोगों से बात की. इनमें से 27 लोगों के मुताबिक कोई दो, तो कोई एक-डेढ़ साल पहले दिल्ली गया था. कुछ को तो दिल्ली गए 4-5 साल गए. लेकिन झारखंड पुलिस की विशेष शाखा ने इन सभी को बीते हफ्ते ही लौटकर आने वाला बताया है.

स्पेशल ब्रांच ने इन लोगों (नाम, पता और फोन नंबर सहित) की सूची जिले के सभी उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक, वरीय पुलिस अधीक्षक रांची, धनबाद, जमेशदपुर, डीजीपी, एडीजी समेत संबंधित सभी वरीय अधिकारियों व पदाधिकारियों को भेजी है.

13 से 15 मार्च तक दिल्ली के निजामुद्दीन मकरज में तबलीगी जमात का धार्मिक सम्मेलन हुआ था जिसमें कई देशों से मुस्लिम शामिल हुए थे. इसी में कई कोविड-19 यानी नोवोल कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए. मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि तबलीगियों के संपर्क में आकर सैकड़ों लोग संक्रमित हो चुके हैं. झारखंड स्पेशल ब्रांच के मुताबिक जिस 37 लोगों को सूचीबद्ध किया है वे इसी धार्मिक सम्मेलन में शामिल होकर वापस झारखंड लौटे हैं.

सूची में नाम आए लोगों में झारखंड के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के 42 वर्षीय बेटे तनवीरुल हसन भी हैं, जिनके बारे में मंत्री समेत परिवार के अन्य सदस्यों का दावा है कि 1992 के बाद से वह दिल्ली गए ही नहीं हैं. इस बारे में हसन के भाई, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते, का कहना है, “मेरा भाई दिल्ली गया ही नहीं है, लेकिन उसका नाम दे दिया गया. किसने दिया कोई पता नहीं है. यह एक साजिश है हम लोगों के खिलाफ.”

फिलहाल हसन क्वारंटीन में हैं. मोबाइल पर उन्होंने मुझे बताया, “मैं आखिरी बार पढ़ाई के सिलसिले में 1992-93 दिल्ली गया था. तब मेरी उम्र करीबन 14 साल की थी. लोग मेरे बारे में कह रहे हैं मैं तबलीगी जमात में गया था. लेकिन सच्चाई यह है कि मैं आजतक जमात में कभी गया ही नहीं.

मंत्री हाजी हुसैन अंसारी को भी नहीं पता कि उनके बेटे का नाम सूची में कैसे आया. वह इस बात को लेकर काफी नाराज भी हैं. उन्होंने मुझसे कहा, “यह एक बड़ी लापरवाही है. जानबूझकर किसी परेशान नहीं करना चाहिए. मैंने मुख्यमंत्री से कहा है कि सभी लोगों की जांच कराइए. उनके मोबाइल नंबर का लोकेशन और डिटेल्स निकाला जाए. इससे साफ पता चल जाएगा, कौन, कहां गया था.”

इनके बेटा के अलावा देवघर जिला से एक और अन्य व्यक्ति का भी नाम आया है. इस मामले में देवघर डीसी ने कहा है कि दोनों की कॉल लोकेशन की डिटेल्स की जांच की जा रही है.

सूची में एक नाम गढ़वा जिले का भी है. इनकी उम्र 63 साल  है और एक अप्रैल से स्थानीय अस्पताल में इन्हें क्वारंटीन कर दिया गया है. इनका कहना है कि एक तो लॉकडाउन की परेशानी थी. फिर ऊपर से उन्हें उनके परिवार से अलग करके दोहरी परेशानी दी गई है. वह बताते हैं, “20 साल पहले दिल्ली गया था. रांची गए भी कई साल हो गए हैं. 30 मार्च को रंका थाना से आए थानेदार साहब को सब बताया. उनसे कहां कि गांव के मुखिया और अन्य लोगों से पूछ लीजिए. मैं गांव से कहीं नहीं निकला हूं. लेकिन फिर भी नहीं माने वे लोग.”

इनके मुताबिक इनकी एक किराना दुकान है, जो अब बंद है. थोड़ी बहुत खेती करते थें, लेकिन क्वारंटीन के बाद से वह भी ठप है.

60 वर्षीय गुमला निवासी अपने को पैर से मजबूर बताते हैं. वो कहते हैं घर में लोगों की मदद से लेट्रीन में बैठ पाता था. लेकिन यहां (क्वारंटीन की जगह) तो बहुत मुश्किल हो रही है. मुझसे जब वह मोबाइल पर बात कर रहे थे तो रोने लगे. वह कहते हैं, “पांच साल पहले  ही तबलीगी जमात से अलग हो गया था. अब तो घर ही में रहता हूं. मैं मुजरिम नहीं हूं, तो मुझे क्यों सजा दी जा रही है. घबराहट से रात भर नहीं सो पता हूं. मुझे मेरे घर पहुंचवा दीजिए, मैं वहां रूम में बंद हो जाऊंगा.”

इनके परिवार में इन्हें छोड़कर 11 लोग हैं जिसमें छह बेटियां हैं. इनका कहना है कि छोटा सा लकड़ी का करोबार है. इसी से परिवार का पालन-पोषण करते हैं. बताते हैं कि वह डेढ़ साल पहले अपने किसी काम से दिल्ली गए थे.

इनका यह भी कहना है कि पुलिस उनके कॉल का लोकेशन और बीते कई महीनों में वह दर्जनों बार बैंक, पेट्रोल पंप गए, जिसकी सीसीटीवी फुटेज चेक कर ले.

धनबाद जिले से 9 नाम हैं जो अन्य जिलों की तुलना में सबसे अधिक हैं. इनमें दो रेलवे के रिटायर्ड हैं, जिन्हें शुगर, ब्लड प्रेशर और घुटने में दर्द रहता है. मैं इन दोनों से मोबाइल पर बात की. उन्होंने बताया, “चार साल पहले दिल्ली गया था, लेकिन तब भी निजामुद्दीन नहीं गया था. कभी थाना से फोन, कभी अस्पताल से फोन कर-करके परेशान कर दिया गया है. इस मुसीबत से तो मेरा ब्लड प्रेशर, शुगर भी बढ़ जाएगा. जब मैं गया नहीं तो नाम क्यों दे दिया हमारा और फिर क्वारंटीन क्यों किया.”

दूसरे कहते हैं, “पुलिस प्रशासन से बोल बोलकर थक गया हूं कि दो साल पहले दिल्ली  गए थें. मैंने कहा आप जांच कर लीजिए, लेकिन कोई सुनता ही नहीं है. कह रहे हैं कि हम मजबूर हैं, क्या करें, ऊपर से आदेश है.”

यही परेशानी धनबाद के उन सात लोगों की भी है जिनका नाम दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज से हाल ही में लौटें लोगों की सूची में दर्ज है. इनकी भी मांग है कि जो मोबाइल नंबर सूची में दिया गया, उसका लोकेशन निकालकर जांच करे पुलिस, परेशान नहीं.

धनबाद के डीसी अमीत कुमार का इस बारे में कहना, “इस मामले में पुलिस जांच कर रही है. इसीलिए इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकते. बाकी जिन लोगों को क्वारंटीन किया गया, सिर्फ उनके स्वास्थ्य को देखते हुए ही उनकी निगरानी की जा रही है. सूची और सूची से अलग जितने भी मामले में हैं उन सभी की ट्रैवल हिस्ट्री देखी जा रही है.”

जामताड़ा जिले के भी 54 वर्षीय एक व्यक्ति का नाम भी सूची में दर्ज है. मामले के बारे में पूछने पर वह भड़क उठते हैं. वह कहते हैं, “एक साल पहले गए थे दिल्ली. पुलिसवाले कहते हैं कि मैं पिछले सप्ताह ही दिल्ली से आया हूं. मैंने उनसे कहा कि आप मुझे कोई भी प्रूफ दें, अगर साबित हो गया तो मैं थाने में ही फांसी लगाकर जान दे दूंगा.”

कुछ देर के बाद वह आगे कहते हैं, “आप ही बताइए. जिसने जिंदगी में कभी भी निजामुद्दीन मरकज में कोई भी जमात या प्रोग्राम में शिरकत नहीं की उसको निजामुद्दीन मरकज के तबलीगी जमात के शामिल होकर लौटा हुआ बताया जा रहा है.”

उन्होंने कहा कि उन्हें क्वारंटीन में रखा गया है. उनका कहना है कि कोरोना के खिलाफ आगे की लड़ाई में वह हर तरह के सहयोग के लिए तैयार हैं लेकिन गलत नाम देने से समाज में गलत संदेश जाएगा.

सरायकेला खरसांवा के 47 वर्षीय एक अन्य व्यक्ति मानहानी का केस करने की बात करते हैं. वह इसकी वजह बताते हैं, “गांव में जैसे ही यह पता चला कि मेरा नाम निजामुद्दीन मरकज जाने वालों में शामिल हैं. हर कोई हमसे दूरी बनाने लगा. मेरे घर के बगल वाले ने मुझे देख कर अपनी दुकान बंद कर ली. ऐसा लगता है मैं कोढ़ का मरीज हूं. पहले ऐसा व्यवहार कभी किसी ने नहीं किया मेरे साथ.”

इनका कहना है कि वह पांच साल पहले दिल्ली गए थे, लेकिन पुलिस ने गलत ढंग से नाम देकर उनके लिए समाजिक मुसीबत खड़ी कर दी है. फिलहाल वह होम क्वारंटीन में हैं और आगे वो मानहानी का केस करने के बारें में सोच रहे हैं.

सूची में चतरा के दो (दोनों बुजुर्ग हैं), पूर्वी सिंहभूम से दो, लोहरदग्गा, रामगढ़, सिमडेगा से एक एक लोगों का नाम है. इनका कहना है कि वे कई साल से दिल्ली ही नहीं गए हैं. हालांकि रांची के एक 44 वर्षीय व्यक्ति बताते हैं कि वह 7 मार्च को दिल्ली निजामुद्दीन गए थे और 10 मार्च को फ्लाइट से रांची आ गए. इसलिए उन्हें भी क्वारंटीन में रखा गया है.

हालांकि सभी लोगों ने यह भी स्वीकारा है कि वे तबलीगी जमात से पूर्व या वर्तमान में जुड़े तो थे, लेकिन जैसा बताया जा रहा वैसी उनकी कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं है. इन लोगों के मुताबिक इन सभी को शुरुआती जांच में फीट पाने के बाद क्वारंटीन कर दिया है.

इस पूरे मामले पर पक्ष जानने के लिए स्पेशल ब्रांच के एडीजी से संपर्क किया. लेकिन उन्होंने कहा, बाद में बात कीजिएगा वह मीटिंग में हैं. बाद में कॉल करने पर उधर से कॉल रिसीव नहीं हुआ.

मैंने झारखंड पुलिस के प्रवक्ता साकेत कुमार सिंह बात से की. उन्होंने इस पूरे मामले पर कहा, “कई बार इंफॉर्मेशन फॉर वेरिफिकेशन होता है. कई बार सूचना गलत भी होती है, तो कई बार सही भी. सूचना सही भी हो सकती है, गलत भी हो सकती है या सूचना पुरानी भी हो सकती है. जो सूचना आती है फिल्ड इसको वेरिफाई करता है. बहुत सारी सूचना हम लोगों को गलत भी मिली है.लेकिन जो भी सूचना मिलती है, उसे हमलोग छोड़ नहीं सकते हैं, उसे वेरिफाई करना होता है. अब ये सूचना विशेष शाखा को कहां से मिली है, वो वही बता सकते हैं.”

पहले से समाज में घुले सांप्रदायिक जहर को पुलिस-प्रशासन एक भी चूक ऐसे समय में एक बड़ी मुसीबत बन सकती है. झारखंड में इस तरह का माहौल देखने को मिलता रहा है. यहां सोशल मीडिया पर भी कोरोना जैसी अदृश्य बिमारी को लोग धर्म और जमात से जोड़कर देखने लगे हैं.

इधर पुलिस प्रशासन की लगातार अपील के बावजूद भी कई मीडिया प्लेटफॉर्म अपनी खबरों में इसे धर्म और जमात का नाम देने बाज नहीं आ रहे हैं. वहीं, कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए पार्टी के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता अजय राय की एक फेसबुक पोस्ट (“देश भर में कोरोना बम बन घूम रहे #तबलीगी जाहिल जमात # कानून को क्या करना चाहिए इनके खिलाफ?) पर भी लोगों ने आपत्ति जाहिर की है. हालांकि जल्द ही अजय राय ने अपनी इस पोस्ट को डिलीट कर लिया. उन्होंने इस पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “मेरी पोस्ट से किसी को भावना को ठेस पहुंचता है तो मैं खेद प्रकट करता हूं. मेरे पोस्ट का मकसद किसी धर्म या समुदाय को लेकर नहीं था, लेकिन फिर भी लोगों से इसे गलत दिशा में मोड़ दिया.” जबकि बड़े मीडिया हाउस की वेबसाइट ने स्पेशल ब्रांच की तरफ से जारी किए उन 39 लोगों का नाम, पता और उसकी कॉपी तक प्रकाशित कर दी है.

झारखंड में कोरोना पॉजिटिव के अब तक चार मामले आए हैं. पहला केस 31 मार्च को रांची में सामने आया था जब तबलीगी जमात की एक 22 वर्षीय मलेशियाई महिला में कोविड-19 पॉजिटिव पाया गया था. दूसरा केस हजारीबाग और तीसरा बोकारो में मिला था. खबर लिखे जाने तक चौथा मामला रांची में सामने आया है.