2014 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के हिंदू-गुज्जर नेता हुकुम सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना क्षेत्र से चुनाव जीते थे. 1998 के बाद पार्टी इस सीट पर पहली बार जीती थी. फरवरी 2018 में सिंह का निधन हो गया जिसके बाद इस क्षेत्र में उपचुनाव कराने पड़े. विपक्षी पार्टियां जिनमें समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस शामिल थीं ने मिलकर एक अनौपचारिक गठबंधन बना लिया और तबस्सुम हसन को अपना प्रत्याशी बनाया. हसन एक मुस्लिम-गुज्जर होने के अलावा आरएलडी के टिकट पर कैराना की पूर्व सांसद रह चुकी हैं. तीन महीने बाद हुए उपचुनाव में हसन ने बीजेपी उम्मीदवार और हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को 40 हजार वोटों से हरा दिया.
कई बातें मिलकर हसन की जीत का कारण बनीं. जाट वोटों पर पकड़ वाली आरएलडी ने कैराना के गन्ना किसानों की दुर्दशा पर ध्यान दिया. उस महीने तक क्षेत्र की 6 चीनी मिलों का गन्ना किसानों पर कथित तौर पर 777 करोड़ रुपया बकाया था. बीजेपी के नेताओं ने अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की दीवार पर मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगाए जाने का विरोध किया था जिससे विवाद पैदा हो गया. इसका सहारा लेकर आरएलडी ने चुनाव को गन्ना-बनाम जिन्ना बना दिया. इसके अलावा आरएलडी द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार को दिए गए समर्थन से जाट और मुस्लिम वोट साथ आ गया.
कैराना लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा हैं- शामली, थाना भवन, शामली जिले का कैराना और इसके अलावा सहारनपुर जिले के गंगोह और नाकुर. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुमान के आधार पर इस क्षेत्र में 16.6 लाख वोट है, इसमें से 5.5 लाख मुसलमान , 2.5 लाख दलित और 1.7 लाख जाट वोट हैं. इस साल आरएलडी, एसपी और बीएसपी लोकसभा चुनाव के लिए फिर से गठबंधन के तहत साथ आ गए हैं. कैराना में हसन इस गठबंधन की प्रत्याशी हैं, वहीं बीजेपी ने प्रदीप चौधरी को मैदान में उतारा है. चौधरी गंगोह विधनसभा क्षेत्र से विधायक हैं.
गन्ना के बकाये के अलावा कैराना के किसानों के लिए एक नई समस्या खड़ी हो गई है. एक तरफ गोरक्षक गायों को यहां से वहां ले जाए जाने का विरोध करते हैं, दूसरी तरफ राज्य सरकार ने भी गैरकानूनी बूचड़खानों पर रोक लगाई है. इसकी वजह से आवार जानवर क्षेत्र में छुट्टा घूम रहे हैं और फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं. शामली में गन्ने की खेती करने वाले एक जाट किसान ने बताया, “पिछले साल गन्ने की चली. इस साल गन्ना और गाय बीजेपी को चलता कर देंगे.” मृगांका को टिकट नहीं दिए जाने की वजह से हिंदू-गुज्जरों में भी बीजेपी को लेकर नाराजगी है.
फिर भी बीजेपी के शामली जिला यूनिट के अध्यक्ष मनोज शर्मा कहते हैं कि पार्टी “राष्ट्रवाद” के सहारे जीत जाएगी. क्षेत्र के एक पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक धीरेश सैनी ने मुझसे कहा कि विपक्ष का गठबंधन भी बैकफुट पर है क्योंकि ये “राष्ट्रवाद” के खिलाफ माहौल नहीं तैयार कर पाया. शर्मा कहते हैं कि बीजेपी को “गैर-प्रमुख” अन्य पिछड़े वर्ग का समर्थन हासिल है. लेकिन वे इस बात से सहमत दिखे कि जाति आधारित गणित की वजह से बीजेपी “संघर्ष” कर रही है और ये विपक्ष के पक्ष में है. उन्होंने कहा, “ये चुनाव आसान नहीं है.”
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 22 मार्च तक गन्ने का बकाया 10074.98 करोड़ रुपए था. इनमें से 4547.97 करोड़ रुपए का एरियर भी बकाया है. ये बकाया उन 6 लोकसभा सीटों से जुड़ा है जिन पर आम चुनाव के दौरान पहले फेज में 11 अप्रैल को वोटिंग होनी है. इनमें कैराना, मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और सहारनपुर शामिल हैं.
इस साल 16 जनवरी को लगभग 100 गन्ना किसानों ने ऊपरी दोआब गन्ना मिल पर धावा बोल दिया. यह “शामली मिल” के नाम से भी मशहूर है जो कैराना क्षेत्र में आता है. उस समय तक किसानों का मिल पर कथित तौर पर 200 करोड़ का बकाया था. विरोध में किसानों ने मिल पर 10 दिनों के लिए कब्जा कर लिया. शामली मिल गन्ना समिति, मिलों और किसानों के बीच के माध्यम के तौर पर काम करती है, इसके देशपाल राणा प्रदर्शन के नेताओं में शामिल थे. राणा कहते हैं कि मिल पर अभी भी उनका चार लाख बकाया है. बीजेपी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “उन्होंने स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू नहीं किया है, उन्होंने जिस 15 लाख का वादा किया था वह भी हमें नहीं दिया, उन्होंने दो करोड़ नौकरियां भी पैदा नहीं कीं. कोई वादा पूरा नहीं किया गया.”
राणा जाट समुदाय से आते हैं और गन्ने, गेहूं और सरसों की खेती करते हैं. शामली के लीलॉन जिले में उनके पास 8 एकड़ खेत है. गन्ने की खेती पर लगने वाले खर्च और उससे होने वाले फायदे को लेकर राणा ने एक बीघा के प्लाट पर जल्द तैयार हो जाने वाली फसल की खेती की प्रक्रिया को समझाया. उन्होंने कहा कि एक बीघा की फसल तैयार करने की प्रक्रिया में 10-11 महीनों का समय लग जाता है और इस पर 14000 का खर्च आता है. इससे 45 से 60 क्विंटल गन्ना पैदा होता है जिसे वे राज्य द्वारा सुझाए गए 325 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत से गन्ना मिलों को बेचते हैं.
राणा ने मुझसे कहा, “बीजेपी किसानों या किसानी की परवाह नहीं करती.” वैसे वे हर बात पर बीजेपी के विरोध में नहीं थे. 1978 में जब राणा 18 साल के थे तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए. उन्होंने दावा किया कि 14 साल बाद उन्हें बीजेपी में भेजा गया. उन्होंने ये भी बताया कि वह हुकूम सिंह के करीब थे. राणा कहते हैं कि उन्होंने इस साल जनवरी में बीजेपी को त्याग दिया क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि पार्टी “किसान विरोधी” है. उन्होंने कहा, “वे किसानों की परवाह करने का नाटक करते हैं लेकिन पर्दे के पीछे वे सिर्फ बनियों का फायदा देखते हैं.” ये बताने के दौरान वह खेत के उस हिस्से पर इशारा कर रहे थे जिसे आंशिक तौर पर आवारा जानवर खा गए.
लिलॉन से कुछ किलोमीटर दूर बमनोली गांव में राजगोपाल शर्मा किसान हुआ करते थे. 55 साल के राज अपने घर के सामने गन्ना उगाते थे. दो जून 2018 को सुबह 5 बजे वह अपने घर से लगे शौचालय का इस्तेमाल करने निकले थे. लेकिन जैसे ही वे इसमें घुसने वाले थे तभी एक अवारा सांड ने उन पर हमला कर दिया और मौत के घाट उतार दिया. राजगोपाल के भतीजे दीपक शर्मा ने मुझे बताया कि वह अब रात को खेत में तैनात रहता है ताकि आवारा जानवरों को खदेड़ सके. गांव के बाकी किसानों ने भी मुझे बताया कि ये अब उनकी दिनचर्या का हिस्सा हो गया है. शर्मा ने कहा, “सरकार कहती है कि गाय हमारी मां है लेकिन उन्होंने हमारी मां और हमारे बीच संघर्ष पैदा कर दिया है.”
गन्ने के बकाए और आवारा पशुओं के मुद्दे आंतरिक रूप से आपस में जुड़े हुए हैं. शामली के मुंडेत गांव के एक जाट किसान राजवीर सिंह मुंडेत ने मुझसे कहा, “जैसा कि हमारे गन्ना का बकाया है, पैसों की कमी की वजह से हम अपने जानवरों की देखभाल नहीं कर सकते.” मुंडेत के पास 10 एकड़ जमीन है जिस पर वह गन्ना उगाते हैं. उनके मुताबिक राज्य में 2017 में बीजेपी के आने से पहले एक उन्नत दुधारु गाय की कीमत एक लाख होती थी. अब इसकी कीमत 20000 हो गई है. एक दिन में वे दूध देने वाले जानवर के चारे पर 200-250 रुपए खर्च करते हैं जबकि इससे होने वाला फायदा 200-250 का है. उन्होंने कहा, “हमारे पास अपने जानवरों को छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.”
मुंडेत ने कहा, “चौधरी चरण सिंह के समय से जाट-मुसलमान साथ वोट करते आए हैं. उसे तोड़ने को संघ और बीजेपी ने 2013 के दंगे करवाए.” सिंह पूर्व प्रधानमंत्री हैं जिनके बेटे अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी है. वे उन दंगों की बात कर रहे थे जो 2013 के मध्य में मुजफ्फरनगर और शामली में हुए थे. इसकी वजह से हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए थे जिनमें खास तौर पर मुसलमान थे. बीजेपी के उन सांसदों में जिनके ऊपर मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा भड़काने का मामला दर्ज हुआ था उनमें दिवंगत हुकूम सिंह का भी नाम शामिल था. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो दंगे की वजह से जाट वोट बीजेपी के पक्ष में आ गए जिसकी वजह से पार्टी ने 2014 के आम चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सीटें जीतीं. सहारनपुर स्थित एक पत्रकार रियाज हाशमी ने मुझसे कहा कि दंगों से दोनों समुदायों पर आर्थिक प्रभाव पड़ा. हाशमी कहते हैं, “जाट जमीदार थे और मुसलमान उनके खेतों में काम करते थे. दंगें ने इस सिस्टम को प्रभावित किया. जाटों और मुसलमानों दोनों को ही महसूस हुआ कि वे आर्थिक रूप से एक-दूसरे से बंधे हैं.”
हालांकि, ऐसा लगता है कि जाट समुदाय का बीजेपी से मोह भंग हो गया है बावजूद इसके इस चुनाव में उनका वोट तीन दिशाओं में जा सकता है. हाशमी कहते हैं, “बुजुर्ग जाट चरण सिंह की विरासत और आरएलटी के मुख्य वोटर हैं, जबकि खेती से दूर युवा जाट बीजेपी के समर्थक हैं.” वहीं, इस सीट से कांग्रेस हरेंद्र मलिक को मैदान में उतार रही है. वे राज्य स पूर्व में विधायक रह चुके हैं और जाट समुदाय से आते हैं. सैनी के मुताबिक, “इससे गठबंधन को मिलने वाले बीजेपी विरोधी वोटों का नुकसान होगा.” हाशमी के मुताबिक हसन की राजनीतिक वफादारी में आए बदलाव से भी जाट वोट बंट सकते हैं. हसन 2009 में पहली बार बीएसपी के टिकट पर कैराना से सांसद बनी थी, इसके बाद वे एसपी में चली गईं और 2018 का पिछला उपचुनाव आरएलडी के टिकट पर लड़ा. हाशमी कहते हैं, “इससे वोटरों के दिमाग में पक्का शक पैदा होगा.”
अगर बीजेपी को वोटों के तीन तरफ बंटने से फायदा होता है, पार्टी के हाथ से गुज्जर समुदाय द्वारा मिलने वाला समर्थन फिसल गया है, ये कैराना में बेहद प्रभावशाली हैं. 2016 में हुकूम सिंह ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि कैराना से हिंदू परिवारों को “जबरदस्ती पलायन” करवाया जा रहा है क्योंकि उन्हें “मुस्लिम अपराधी” निशाना बना रहे हैं. इस दावे को खोजी रिपोर्टों द्वारा खारिज किया गया था. बीबीसी हिंदी की वेबसाइट पर लगी एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक इस विवाद से मुस्लिम-गुज्जर दूर चले गए. मेरी रिपोर्टिंग के दौरान कैराना के कई लोगों ने भी यही बात कही. उस साल बीजेपी कैराना विधानसभा सीट पर तबस्सुम हसन के बेटे और एसपी के कैंडिडेट नाहिद हसन से हार गई. पार्टी ने मृगांका सिंह को खड़ा किया था.
2019 आम चुनाव के लिए एक हिंदू गुज्जर प्रदीप चौधरी को कैराना लोकसभा सीट से खड़ा करके बीजेपी ने मृगांका के समर्थकों को भी नाराज किया है. उनके परिवार और यहां तक की हसन का भी कलस्यान खाप से संबंध है. ये एक प्रभावशाली गुज्जर समुदाय है. कैराना शहर में मैं चौधरी रामपाल से मिला. मृगांका के चचेरे भाई पाल कलस्यान खाप के प्रमुख हैं. उन्होंने मुझसे कहा, “मैं हुकूम सिंह के साथ था और अब मैं उनकी बेटी मृगांका के साथ हूं.” राम पाल शाम की एक दरबार लगा रहे थे. ये कलस्यान चौपाल पर लगाया जा रहा था जोकि समुदाय के लोगों का एक सामुदायिक भवन है. उनके आस-पास हिंदू और मुसलमान गुज्जर बैठे थे. रामपाल ने कहा कि बीजेपी हुकूम सिंह की विरासत मिटाने की कोशिश कर रही है. राम पाल ने कहा, “हम या तो वोट नहीं करेंगे या नोटा दबाएंगे.” उन्होंने आगे कहा कि समुदाय बीजेपी के लिए प्रचार नहीं कर रहा. अगर पार्टी ने मृगांका को टिकट दिया होता तो उनके लिए प्रचार किया जाता. राम पाल ने दावा किया, “इससे कैराना, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मेरठ में वोटिंग पर असर पड़ेगा.”
कैराना शहर में बीजेपी की बूथ लेवल कमिटी के अध्यक्ष जिन्होंने अपना नाम नहीं बताने को कहा और मुझसे ये भी कहा कि मृगांका को नकारना पार्टी को भारी पड़ेगा. उन्होंने कहा, “हिंदू गुज्जर बीजेपी से नाराज हैं और ऐसा संभव है कि एक हिस्सा हमारे लिए वोट नहीं करेगा.” जबकि पिछले चुनाव में उन्होंने इन वोटों के लिए खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी. इस चुनाव में बीजेपी वाले हिंदू गुज्जरों को मनाने के लिए हर दरवाजे तक जाकर अभियान चला रहे हैं. यहां तक कि मनोज शर्मा ने भी कहा कि गुज्जर पार्टी से नाराज हैं और यहां तक की जाटों का भी पार्टी से मोह भंग हो गया है लेकिन उन्हें पता है कि राज्य में गन्ने की पेमेंट “हमारे सरकार में बेहतर रही है.”
बूथ-लेवल अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी ने 21-28 जनवरी के बीच 200 ऐसे घरों का सर्वे किया था जो इस बूथ में पड़ते हैं. वे कहते हैं, “हमने पाया कि ज्यादातर लोगों ने ये नहीं बताया कि वे किसे वोट करेंगे. 2014 के तुलना में ये बिल्कुल अलग है क्योंकि तब लोग खुलकर बीजेपी को वोट देने की बात करते थे.” उनके मुताबिक सर्वे इस ओर इशारा करता है कि विपक्ष का जाति आधारित गणित लोगों के बीच पैठ बना रहा है.
लेकिन कंडेला में मामला कुछ और है. ये कैराना के पास एक गुज्जर बहुल गांल है. कंडेला गांव के चौक पर ऐसा लगा जैसे केंद्र सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कदम वोटिंग को प्रभावित कर सकते हैं. जसबीर सिंह एक गुज्जर किसान हैं जिनके पास गांव में एक शराब की भी दुकान है, वे अपने चार दोस्तों के साथ बैठकर हुक्का पी रहे थे. जसबीर ने कहा, “तो क्या हुआ अगर उन्होंने मृगांका को टिकट नहीं दिया, उन्होंने एक और गुज्जर को टिकट देकर सम्मान बरकरार रखा.” वे हाल ही में भारतीय एयरफोर्स द्वारा पाकिस्तानी जमीन पर किए गए एयरस्ट्राइक का भी जिक्र करते हैं. इसके बाद दोनों देशों में हुए हवाई युद्ध और इसके दौरान पकड़े गए भारतीय पायलट के तुरतं छोड़ दिए जाने का भी. उन्होंने मोदी की तारीफ कि क्योंकि उन्होंने “पाकिस्तान को सबक सिखाया” और “हमारे पायलट” को वापस ले आए. जसबीर कहते हैं कि अगर कांग्रेस की सरकार होती तो उन्होंने जवाबी हमला नहीं किया होता. उन्होंने कहा, “मोदी जी के सत्ता में होने की वजह से भारत-इजरायल की तरह एक्शन ले रहा है और हम उनके लिए वोट करेंगे. गुज्जरों के लिए देश सबसे पहले हैं.” उनके दोस्त ने भी “हां” में सिर हिलाया.
सैनी ने मुझसे ये भी कहा कि चुनाव “विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा” क्योंकि “बीजेपी विपक्ष के जातिगत गणित को तोड़ने के लिए राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता पर पूरा जोर दे रही है.” उन्होंने कहा कि जब मोदी ने क्षेत्र के मेरठ में अपना चुनाव अभियान शुरू किया था, “चाहे जमीन हो, आसमान हो या अंतरिक्ष हो, चौकीदार ने सर्जिकल स्ट्राइक करने का साहस दिखाया है.” सैनी के मुताबिक विपक्ष क्षेत्र में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों के मामले में बीजेपी का मुकाबला नहीं कर पा रहा है. उन्होंने कहा, “ये राफेल और भ्रष्टाचार जैसे अहम मुद्दों को अनदेखी कर रहा है ...और उल्टे फिर जातिगत गठबंधन करने की कोशिश कर रहा है जिसके बूते बीते चुनावों में इसे जीत मिली.”
सैनी आगे कहते हैं, “सैनी जैसे छोटे ओबीसी जाति वाले पहले कांग्रेसी थे लेकिन अब बीजेपी के साथ हैं.” कैराना में सात एकड़ जमीन के मालिक नीरज सैनी नाम के किसान ने मुझसे कहा, “90% सैनी वोट बीजेपी को मिलेंगे.” यहां तक की मनोज शर्मा ने भी कहा कि बीजेपी इन समुदायों के वोट के भरोसे है. उन्होंने कहा, “हम गैर-प्रभावी ओबीसी समूहों के बूते कैराना जीतने को लेकर आशन्वित हैं. इनमें- कश्यप, सैनी, प्रजापति, जोगी, बाल्मीकि और खटीक शामिल हैं. ये बीजेपी से फेविकॉल की तरह चिपके हैं.”