“देश के लिए मर-मिटने वाले कारगिल के लोगों को मुसलमान होने की कीमत चुकानी पड़ रही है”, असगर अली करबलाई

30 अक्टूबर 2019
फोटो : प्रवीण दोंती
फोटो : प्रवीण दोंती

कारगिल के लोग बाहरी लोगों को पहली बात यही बताते हैं कि लद्दाख क्षेत्र दो अलग जिलों, कारगिल और लेह से मिलकर बना है और यह भी कि लद्दाख में बस मठ या बौद्ध भिक्षु ही नहीं हैं बल्कि यहां कि बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम है. दशकों से दोनों जिले अनुदान और राजनीतिक शक्ति पाने के लिए होड़ करते रहे हैं. हालांकि लेह हमेशा से जम्मू और कश्मीर राज्य से अलग होना चाहता था लेकिन कारगिल किसी भी तरह के विभाजन का विरोधी रहा. 5 अगस्त को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने के बाद लेह के लोगों ने इस फैसले के स्वागत में जश्न मनाया पर कारगिल में लोगों ने इसका विरोध किया. यहां के लोगों ने इसे अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग भी की. भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय इकाई को छोड़कर कारगिल में सभी राजनीतिक और धार्मिक संगठनों ने इन मांगों के लिए लड़ने के लिए एक संयुक्त कार्रवाई समिति का गठन किया. 

 जब मैंने अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में कारगिल का दौरा किया तो मुझे स्थिति सामान्य लग रही थी लेकिन मोबाइल फोन पर इंटरनेट बंद था. लोग 31 अक्टूबर को लेकर कशमकश में थे. इस दिन कारगिल औपचारिक रूप से लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश का हिस्सा बन जाएगा. कारगिल के रहने वाले लोग केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा लेह को तमाम सुविधाएं दिए जाने और उन्हें नजरअंदाज किए जाने से नाखुश थे. वे अपनी आवाज बुलंद करने के लिए लंबे संघर्ष की तैयारी कर रहे थे. 

 मैंने कारगिल के कांग्रेसी नेता और प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता असगर अली करबलाई से बात की. बातचीत में मैंने समझना चाहा कि जम्मू और कश्मीर राज्य के पुनर्गठन ने कारगिल को किस तरह प्रभावित किया है. करबलाई कारगिल निर्वाचन क्षेत्र से पूर्ववर्ती राज्य की विधानसभा के सदस्य थे. वह लद्दाख क्षेत्र के प्रशासन के लिए 1995 में बनाए गए एक स्वायत्त जिला परिषद, लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद के अध्यक्ष भी थे.

प्रवीण दोंती : कारगिल को नए केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा बनाए जाने के बारे में आपकी क्या राय है?

असगर अली करबलाई : अगर आप नस्लीय, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से लेह और कारगिल को देखें तो हमारे बीच किसी भी तरह का अंतर नहीं है. लेकिन कारगिल व्यापार और वाणिज्य और राजनीतिक रूप से श्रीनगर के करीब है. सिर्फ कारगिल ही नहीं बल्कि पूरा लद्दाख भी ऐसा ही है. हम कभी भी लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के हक में नहीं रहे हैं. हम धार्मिक या भाषाई, किसी भी आधार पर राज्य को दो या तीन भागों में बांटने के खिलाफ हैं. राज्य जैसा है, हम उसे वैसा ही देखना चाहते हैं. 1947 के विभाजन के वक्त हमें सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा. 7000 से अधिक परिवार नियंत्रण रेखा के दोनों और बंट गए. हम जुदाई का दर्द जानते हैं. 

प्रवीण दोंती कारवां के डेप्यूटी पॉलिटिकल एडिटर हैं.

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