परिवार से मिलने के लिए कश्मीरी वकील ने लगाई याचिका, सुप्रीम कोर्ट ने दी कश्मीर जाने की इजाजत

सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जे को हटा दिया है. दानिश इस्माईल/रॉयटर्स

दिल्ली में रहने वाले मोहम्मद आलिम सैयद की 4 अगस्त से परिवारवालों से बात नहीं हो पा रही थी. छह दिन बाद कानून में स्नातक 24 वर्षीय सैयद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने परिवार की जानकारी और उनके पास जाने की अनुमति मांगी. वह 14 अगस्त को कश्मीर जाना चाहते थे लेकिन श्रीनगर की फ्लाइट रद्द हो गई. दो सप्ताह के इंतजार के बाद सर्वोच्च अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई की. 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सैयद को परिवार से मिलने के लिए कश्मीर जाने की अनुमति दे दी और निर्देश दिया कि वापस आने के तत्काल बाद वह शपथपत्र के साथ “अदालत को रिपोर्ट दे”.

सैयद को डर था कि उनका परिवार हिरासत में है इसलिए उन्होंने याचिका दायर की थी. 5 अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में घोषणा की थी कि सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जे को हटा दिया है. इस घोषणा के साथ ही राज्य में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती, संचार संपर्क निषेध और बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लिया गया. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों– उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती- सहित ढेरों राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी कैद कर लिया गया और राज्य में कर्फ्यू लगा दिया गया.

सैयद का परिवार जिसमें उनके मां-बाप और दो बड़ी बहनें हैं, अनंतनाग में रहता है. उनकी फ्लाइट रद्द हो जाने के बाद एयरलाइन ने उन्हें दूसरी फ्लाइट में बुकिंग करने का प्रस्ताव दिया था लेकिन अनिश्चितता के मद्देनजर सैयद ने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया. उनका दावा है, “श्रीनगर के मुकाबले अनंतनाग अधिक विस्फोटक इलाका है. श्रीनगर से वहां तक जाने में दो घंटे लगते हैं. मेरे लिए वहां पहुंचना मुश्किल होता क्योंकि पूरी घाटी में लॉकडाउन है. अगर मेरी बात अपने परिवार से हो पाती तो मैं उनसे बोलता कि कर्फ्यू पास लेकर मुझे लेने एयरपोर्ट आ जाएं. चूंकि उन लोगों को पता नहीं था कि मैं कब आ रहा हूं तो मेरे लिए अमली तौर पर नामुमकिन होता कि मैं वहां जाऊं.”

सैयद की याचिका के अलावा भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, एसए बोबडे और अब्दुल नजीर वाली खंडपीठ ने जम्मू-कश्मीर से जुड़ी 13 अन्य याचिकाओं पर सुनवाई की. इन याचिकाओं में अनुच्छेद 370 को हटाने, संपर्कहीन हुए लोगों से संपर्क स्थापित करने और कश्मीर में लगी पाबंदी को ढीला करने से जुड़ी याचिकाएं थीं.

सैयद की याचिका के साथ सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने अदालत को बताया था कि जम्मू-कश्मीर के पार्टी के राज्य सचिव मोहम्मद यूसुफ तारीगामी को गलत तरीके से हिरासत में लिया गया है. येचुरी ने कहा था कि तारीगामी के बारे में सूचना का अभाव है. इस 9 अगस्त को सीताराम येचुरी और सीपीआई महासचिव डी. राजा ने कश्मीर जाने का प्रयास किया था लेकिन उन्हें एयरपोर्ट पर हिरासत में लेकर दिल्ली वापस भेज दिया गया.

येचुरी के वकील शादान फरासत ने अदालत को बताया, “तारीगामी को गलत तरीके से हिरासत में रखा जा रहा है और उनके बारे में कोई सूचना नहीं है.” फरासत ने अदालत को यह भी बताया कि तारीगामी की “हालत ठीक” नहीं है. अदालत ने येचुरी को भी कश्मीर जा कर तारीगामी का पता लगाने और उनकी हालत को जानने की इजाजत दे दी है. अदालत ने वापस आकर “शपथपत्र के साथ रिपोर्ट दायर करने” को कहा है. साथ ही अदालत ने कहा है कि येचुरी अन्य किसी कारण से राज्य का भ्रमण नहीं कर सकते. फरासत और येचुरी 29 अगस्त को श्रीनगर जाएंगे.

सैयद और फरासत ने बंदी प्रत्यक्षीकरण (हेबियस कॉर्पस) के तहत याचिका दायर की थी जिसके तहत अदालत राज्य को हिरासत में रखे गए व्यक्ति को पेश करने का निर्देश दे सकती है. याचिकाकर्ताओं को कश्मीर जाने और वापस आकर रिपोर्ट करने को कह कर अदालत ने ऐसे मामलों में नई नजीर पेश की है.

अन्य 13 याचिकाओं में नौ ऐसी याचिकाएं थी जिसमें अनुच्छेद 370 को हटाए जाने और राज्य को बांट कर दो केन्द्र शासित प्रदेश बना दिए जाने को चुनौती दी गई थी. एक याचिका दिल्ली के वकील मनोहर लाल शर्मा ने दायर की थी. शर्मा ने मुझे बताया, “अनुच्छेद 370 किसी प्रकार का उपहार नहीं है. यह संवैधानिक गारंटी है जो कश्मीर को विलय के वक्त दी गई थी. अब भारत ने अनुच्छेद 370 रद्द कर दिया है जिसका मतलब है कि विलय करार भी समाप्त हो गया है. यह नरेन्द्र मोदी का सबसे खराब काम है.”

जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट के अध्यक्ष शाह फैसल और इस पार्टी की महासचिव शहला रसीद ने याचिका दायर कर अदालत से कहा है कि केंद्र के कदम से संघीयता के सिद्धांत और राज्य की स्वायत्ता का उल्लंघन हुआ है. रसीद ने मुझे बताया, “यह प्रक्रिया और संघीयता का सवाल है क्योंकि यदि सरकार जम्मू-कश्मीर में ऐसा कर सकती है तो अन्य राज्यों में भी यही कर सकती है. हमने दिसंबर 2018 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के आदेश को भी चुनौती दी थी.”

इसी प्रकार नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य मोहम्मद अकबर लोन, वकील शाकिर शब्बीर, अवकाश प्राप्त जज मुजफ्फर इकबाल खान और व्यवसायी फारुक दार ने भी याचिका दायर की है. राज्य का विशेष दर्जा हटाए जाने से संबंधित याचिकाओं को अदालन ने संवैधानिक पीठ को सौंपा है और इन पर अक्टूबर में सुनवाई होगी.

दो याचिकाओं में संचार का अवरोध करने को चुनौती दी गई है. कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने मीडिया की आजादी पर सवाल उठाए हैं और अदालत से मांग की है कि वह पत्रकारों को अपना काम करने की आजादी देने का निर्देश दे. सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला ने कर्फ्यू और अन्य “दमनकारी उपायों” जैसे फोन लाइन, इंटरनेट और कश्मीर के समाचार चैनलों को अवरुद्ध करने के खिलाफ याचिका दायर की है. इन दोनों याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को सात दिनों के अंदर जवाब देने को कहा है.

पूनावाला कहते हैं, “मैंने याचिका तब दायर की जब दिल्ली के कश्मीरी वकील, पंडित और मुस्लिम दोनों ही, कश्मीर में जारी हालात के चलते अपने परिजनों से संपर्क नहीं कर पा रहे थे. वे लोग ईद और रक्षाबंधन अपने परिवार वालों के साथ मनाना चाहते थे.”

भसीन ने मुझसे कहा, “बंधन और संचार पर लगी रोक को तत्काल संबोधन करने की जरूरत है. तीन हफ्ते गुजर चुके हैं और हमें उम्मीद है कि यह मामला जल्द हल हो जाएगा. फिलहाल सच की हत्या करने का प्रयास किया जा रहा है.”