केरल के इतिहास और वर्तमान को भगवा रंग में रंगने के हिंदू एक्य वेदी के प्रयास

1 दिसंबर 2022 को तिरुवनंतपुरम में हिंदू एक्य वेदी ने विरोध प्रदर्शन किया. केरल स्टोरी फिल्म की कहानी उन कई तरीकों में से एक है जिससे हिंदू एक्य वेदी केरल के अतीत और वर्तमान को गलत तरीके से पेश करने की कोशिश कर रहा है. एएनआई फोटो

30 अप्रैल को दक्षिणपंथी संगठन हिंदू एक्य वेदी के आधिकारिक प्रवक्ता आरवी बाबू ने एक करोड़ इनाम की पेशकश की. यह प्रस्ताव विवादास्पद हिंदी फिल्म द केरला स्टोरी से जुड़े तथ्यों को सामने लाने के बदले पुरस्कार देने के चलन से जुड़ा था. नवंबर 2022 में आए फिल्म के टीजर में अदाकारा अदा शर्मा एक बुर्का पहनी महिला के रूप में नजर आती हैं, जो खुद को शालिनी उन्नीकृष्णन बताती है. वह कहती है कि वह अब फातिमा बा है, जो एक आतंकवादी संगठन आईएसआईएस की एक आतंकवादी है और एक अफगान जेल में बंद है. वह बताती है, "केरल में सामान्य लड़कियों को खूंखार आतंकवादियों में बदलने के लिए खुले तौर पर एक घातक खेल खेला जा रहा है."

अदाकारा ने दावा है कि यह फिल्म उन 32000 लड़कियों की कहानी है, जिन्हें जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया और फिर आईएसआईएस में भर्ती किया गया. बिना किसी आधार के इस भयावह आंकड़े को बार-बार फिल्म से जुड़ी चर्चा में शामिल किया गया है. केरल स्टोरी के ट्रेलर से पता चलता है कि इस्लामी शासन स्थापित करने की एक बड़ी साजिश के तहत मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को शादी के बंधन में फंसा रहे हैं. यह कहानी लव जिहाद के हौवे के अनुरूप है, जिसे बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू-राष्ट्रवादी विचारों की आड़ में आगे बढ़ाते आए हैं.

इसके तुरंत बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की युवा शाखा मुस्लिम यूथ लीग की राज्य समिति ने अपने किसी भी जिला कार्यालय में आतंकवादी संगठन में भर्ती के लिए हिंदू महिलाओं के साथ हुए ऐसे किसी भी धर्मांतरण का सबूत देने के लिए एक पोस्टर निकाला. संस्था ने इनाम के तौर पर एक करोड़ रुपए देने की पेशकश की. बेहद बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए गए आंकड़ों के विरोध से फिल्म की टीम को अपने दावे से पीछे हटना पड़ा और ट्रेलर के कैप्शन में बदलाव किया कि यह कहानी तीन महिलाओं की कहानी है, न कि 32,000 की.

फिल्म निर्माताओं ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष इस संख्या को हटाने पर भी सहमति व्यक्त की. वेदी जैसे केरल के दक्षिणपंथी संगठन फिल्म की टीम की ओर से काम करते दिखाई दिए. तथ्यों के बदले इनाम की प्रवृत्ति के एक चक्कर में हिंदू-राष्ट्रवादी संगठन हिंदू सेवा केंद्रम के संस्थापक प्रतीश विश्वनाथ ने भी उस व्यक्ति को दस करोड़ रुपए देने की पेशकश की, जो यह साबित कर सके कि केरल से कोई भी आईएसआईएस में शामिल होने के लिए सीरिया नहीं गया है. बाबू ने यह दावा करते हुए जवाब दिया था कि न तो फिल्म के टीजर और न ही ट्रेलर में यह उल्लेख किया गया है कि केरल से आईएसआईएस द्वारा 32000 लड़कियों की भर्ती की गई थी. हालांकि मार्च 2022 में रिलीज हुए फिल्म के टीजर के कैप्शन में अभी भी उल्लेख है कि, "केरल की खूबसूरत वादियों के पीछे छिपी 32000 लापता महिलाओं की डरावनी कहानी है."

हिंदू एक्य वेदी को लगभग बीस साल पहले हिंदुओं को एकजुट करने और केरल में हिंदुओं से जुड़े मुद्दों को उठाने के लक्ष्य के साथ स्थापित किया गया था. हिंदू एकता को आगे बढ़ाने की अपनी कोशिश में वेदी ने कई ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया है, जिनके बारे में उनका दावा है कि वे हिंदुओं को खतरे में डालती हैं. 2018 में महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ लामबंदी करने में इस संगठन की केंद्रीय भूमिका थी. तब से संगठन हिंदुओं से जुड़ी घटनाओं के इर्द-गिर्द लामबंदी करने, इस्लामोफोबिक साजिश के सिद्धांतों को फैलाने और राज्य की वामपंथी नेतृत्व वाली सरकार पर हमला करने के लिए काम करता है.

वेदी ने अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में पुनर्जागरण की अवधि के बाद राज्य के इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास किया है, जब चार-स्तरीय वर्ण व्यवस्था से बाहर रहने वाले कई अवर्ण नेताओं ने राज्य की गंभीर जाति व्यवस्था के खिलाफ विरोध का नेतृत्व किया था. वेदी तर्क देते हैं कि जाति विविधता को दर्शाती है और इसकी श्रेणीबद्ध प्रकृति को नकारती है. संगठन ने इसके बजाय धर्म के खिलाफ संघर्षों को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए नवधनम के नेताओं का सहयोग करने और उन्हें हिंदू के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया है. 9 अप्रैल को त्रिशूर के थेकिंकडु मैदान में वेदी के सबसे हालिया सम्मेलन में बोलते हुए वेदी की राज्य अध्यक्ष केपी शशिकला ने कहा कि संगठन उन सभी पुनर्जागरण आंदोलनों को आगे बढ़ा रहा है जो हिंदुओं को जगाने के लिए अतीत में हुए हैं. उन्होंने कहा "जब वे कहते हैं कि इस भूमि पर भगवा की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, तो हमें जोर से और जोर से कहना चाहिए कि इस भूमि का रंग भगवा है."

उनके सामने बोलते हुए आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य राम माधव ने उनके साथ उन्हीं की भाषा में बात करने में असमर्थता के लिए माफी मांगी. माधव ने कहा, "दुर्भाग्य से केरल में हर जगह हिंदुओं को उनके हिंदू होने को लेकर और जिस धर्म से वह जुड़े हैं उसकी महानता के बारे में निरंतर अनुनय, निरंतर अनुस्मारक, निरंतर प्रोत्साहन की आवश्यकता है." उन्होंने कहा कि वेदी, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के साथ हिंदू चेतना को जगाने में उनकी मुख्य साथी थी. भारत को एक हिंदू राज्य के रूप में स्थापित करने के लिए आरएसएस-बीजेपी गठबंधन की खोज को पूरा करने में केरल अब तक दूर रहा है.

“अंग्रेजी में एक मजेदार कहावत है, 'रामा इज अ गुड बॉय. हिंदू ऐसे ही बन रहे हैं और वेदी हिंदुओं को एक सच्चे हिंदू की तरह जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करने का महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं." माधव के संबोधन ने पूरे वेदी के कामकाज में स्पष्ट कर दिया था कि हिंदू धर्म को प्रोत्साहित करने के लिए उप-महाद्वीप के अन्य धर्मों को लक्षित करना चाहिए. “हम अपने लिए खड़े हैं, हम पर सांप्रदायिकता और इस्लामोफोबिक का ठप्पा लगा दिया गया है. इस्लाम के कुछ पहलुओं के बारे में जो कुछ भी कहा जा रहा है वह भय नहीं है. यह हकीकत है."

वेदी सबरीमाला मंदिर पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है. अन्य रूढ़िवादी हिंदू समूहों की तरह संगठन का मानना ​​है कि मंदिर में मासिक धर्म की उम्र की महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि इसके देवता अय्यप्पा को शाश्वत अविवाहित माना जाता है. 2018 में शशिकला सबरीमाला कर्म समिति की सामान्य संयोजक बनीं, जो फैसले के कार्यान्वयन को रोकने के उद्देश्य से गठित दक्षिणपंथी समूहों की एक छतरी संस्था थी. फैसले के बाद के हफ्तों में समिति ने हिंदू धर्म पर हमले के रूप में फैसले का विरोध करने के लिए केरल के जिलों में हजारों समर्थकों को जुटाया. भीड़ ने मंदिर के रास्ते में वाहनों को यह सुनिश्चित करने के लिए रोक दिया कि उनमें कोई महिला न हो. विरोध प्रदर्शन को कवर करने वाली महिलाओं सहित पत्रकारों पर हमला किया गया.

17 नवंबर 2018 को केरल पुलिस ने शशिकला को सबरीमाला जाते समय गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि उन्हें संदेह था कि वह मंदिर परिसर में एक आंदोलन शुरू करने की योजना बना रही थी. गिरफ्तारी के कारण हिंदू समूहों द्वारा राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया गया. मंदिर में जाने का प्रयास करने वाली महिलाओं के खिलाफ हिंसा का खतरा इतना अधिक था कि बिंदू अम्मिनी और कनक दुर्गा, पहली और धार्मिक रूप से प्रतिबंधित आयु वर्ग से सबरीमाला में प्रवेश करने वाली एकमात्र महिलाओं को पुलिस एस्कॉर्ट्स और रिश्तेदार ने मिलकर सुरक्षा दी थी.

यहां तक ​​कि सम्मेलन में वेदी ने सबरीमाला लामबंदी में अपनी भागीदारी का भारी प्रचार किया. सम्मेलन से सटे एक अन्य स्थान पर केरल के इतिहास के बारे में संघ की धारणा का वर्णन करने वाली एक प्रदर्शनी में मंदिर जाने का असफल प्रयास करने वाली बिंदू अम्मिनी, कनक दुर्गा और रेहाना फातिमा को असफल महिलाएं बताया गया था. सम्मेलन की दोपहर में अय्यप्पा को समर्पित एक लोकप्रिय भक्ति गीत, हरिवारासनम का सामूहिक पाठ हुआ, जबकि मंच पर लगी एक स्क्रीन पर महिलाओं के अनैतिक प्रवेश के खिलाफ वेदी द्वारा सबरीमाला बचाओ आंदोलन की तस्वीरों को दिखाया गया. उसी स्थान पर माधव ने घोषणा की थी कि हिंदू धर्म महिलाओं को सशक्त बनाता है. उन्होंने कहा, हम ऐसा समाज नहीं हैं जो महिलाओं को बुर्का में रखता है. हिंदू महिलाओं के उदाहरणों का हवाला देने के लिए उन्होंने वेदी अध्यक्ष शशिकला और धर्मगुरु अमृतानंदमयी को चुना, जिनकी बीजेपी और आरएसएस से निकटता छुपी नही हैं.

2018 में हुआ हिंसक आंदोलन केरल में बीजेपी के लिए चुनावी लाभ में तब्दील नहीं हो सका. 2021 के केरल विधानसभा चुनावों में पार्टी ने अपनी एकमात्र सीट खो दी और उसके कुल वोट शेयर में गिरावट देखी गई. तब से वेदी जैसे संगठनों ने उन घटनाओं के लिए अपनी आंखें खुली रखीं, जो हिंदू मतदाताओं का एक मजबूत आधार बनाने का काम करती हैं, जो अपनी धार्मिक पहचान के कारण खुद को पीड़ित के रूप में देखते हैं. त्रिशूर सम्मेलन में माधव का भाषण इस पीड़ित समूह को खुश करने की एक कवायद थी.

संगठन ने हिंदू धर्म की रक्षा के बहाने कई तरह के मुद्दे उठाए हैं. इस साल मार्च में जब मलप्पुरम जिले के एक मंदिर ने अपनी दीवारों को हरे रंग से रंगा तो वेदी ने धमकी दी कि अगर रंग नहीं बदला गया तो उसके सदस्य दीवारों को फिर से रंग देंगे. मंदिर के अधिकारियों ने तनाव को कम करते हुए मंदिर की दीवारों को हाथीदांत के रंग में फिर से रंग दिया.

वेदी और उसके संघ परिवार के दोस्तों का ध्रुवीकरण को लेकर सबसे हालिया प्रयास 2 अप्रैल की रात को एक ट्रेन में आगजनी के हमले के चारों और केंद्रित था. जैसे ही ट्रेन कोझिकोड जिले के एलाथुर से गुजर रही थी, एक व्यक्ति ने यात्रियों पर एक ज्वलनशील तरल पदार्थ फेंक कर एक कोच में आग लगा दी थी. हमले में नौ लोग झुलस गए. एक महिला और एक बच्चे समेत तीन लोग पटरियों पर मृत मिले; आग लगने के दौरान मची भगदड़ में संभवत: वे या तो कूद गए या ट्रेन से गिर गए. इस घटना के दो दिन बाद एक शाहरुख सैफी नाम के व्यक्ति को महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने रत्नागिरी जिले से गिरफ्तार किया था. 18 सदस्यीय विशेष जांच दल ने सैफी से पूछताछ की. राष्ट्रीय जांच एजेंसी और खुफिया ब्यूरो ने हमले की कड़ियां आतंकियों से जुड़ी होने पर संदेह जताते हुए आरोप लगाया कि इसके पीछे का इरादा पूरे कोच में आग लगाना था. एनआईए ने 2 मई को सैफी को हिरासत में लिया था.

वेदी के अध्यक्ष वलसन थिलनकेरी और माधव ने इस आगजनी हमले की तुलना फरवरी 2002 में गुजरात में साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग से करने की कोशिश की, जिसमें अयोध्या से लौट रहे 59 हिंदू मारे गए थे. 2002 में दक्षिणपंथी समूहों ने आग लगाने में मुसलमानों की भूमिका होने को लेकर अफवाह फैलाई थी, जिसके बाद मुस्लिम विरोधी हिंसा को भड़काया और अंजाम दिया गया. माधव ने कहा, "हमने सोचा था कि गोधरा आखिरी बार था. लेकिन वे इसे कोझिकोड ले आए हैं." यह एक ऐसी घटना को एक खतरनाक मोड़ देता है जो अभी भी जांच के अधीन है.

त्रिशूर सम्मेलन में थिलनकेरी ने अपने भाषण मे लोगों से पूछा कि आरोपी ने केरल में ही हमले की योजना क्यों बनाई और किसी अन्य राज्य में नहीं. उन्होंने कहा, "आतंकवादियों के लिए हमले करने और आसानी से बचने के लिए केरल सबसे सुरक्षित जगह है." थिलनकेरी ने आरोप लगाते हुए कहा कि सैफी दिल्ली के शाहीन बाग इलाके का मूल निवासी था, वह इसे 2020 में शाहीन बाग में हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध से जोड़ रहे थे. उन्होंने शाहीन बाग को आतंकवादी गतिविधियों का अड्डा बताया. चिंताजनक रूप से इसके तुरंत बाद केरल पुलिस ने इसी तरह की भाषा का उपयोग करना शुरू कर दिया. मामले की जांच कर रही एसआईटी के प्रमुख, केरल पुलिस के  सहायक पुलिस महानिदेशक एमआर अजित कुमार ने 18 अप्रैल को मीडिया से कहा, "आप सभी जानते हैं कि वह किस तरह के क्षेत्र से आता है और आप जानते हैं कि वह क्षेत्र किस लिए प्रसिद्ध है."

सम्मेलन में लगभग एक घंटे तक चला थिलनकेरी का भाषण पूरी तरह से भय फैलाने पर टिका था, उन्होंने आरोप लगाया कि यदि हिंदू आबादी को 50 प्रतिशत से कम कर दिया गया तो केरल की धर्मनिरपेक्षता का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. अफगानिस्तान में तालिबान के अधिग्रहण और ईरान में महिलाओं के लिए हिजाब का विरोध करने वाले प्रदर्शनों का उदाहरण देते हुए थिलनकेरी ने पूछा, “क्या सऊदी अरब में लोकतंत्र है? या किसी इस्लामिक देश में?” उन्होंने कहा, "2047 तक इस राज्य को इस्लामिक राज्य में बदलने की योजना है." बढ़ती मुस्लिम आबादी के बारे में इसी तरह की आशंका जताना संघ की सदियों पुरानी चाल है.

केरल में मुख्य रूप से लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों को खतरे के तौर पर पेश करने में संघ को ईसाई पादरियों के रूप में एक सहयोगी मिल गया है. थिलनकेरी ने कहा, "एक समुदाय के रूप में ईसाई सतर्क हैं. हर रविवार वे अपने चर्चों में यह सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता बढ़ा रहे हैं कि एक भी लड़की जिहादियों के हाथों में न आए." उन्होंने दावा किया कि कन्नूर जिले के पैरिश की एक लड़की का हाल ही में एक जिहादी द्वारा अपहरण कर लिया गया था." उन्होंने कहा कि पैरिश के सदस्य 48 घंटे के भीतर उसे वापस ले आए. "निश्चित रूप से बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के सदस्य और संघ परिवार के कार्यकर्ता उसे वापस लाने के उनके प्रयासों में शामिल हुए."

केरल में सीपीआई (एम) और कांग्रेस दोनों से प्रतिस्पर्धा को देखते हुए, बीजेपी का मानना है कि वह पार्टी के लिए सामूहिक रूप से मतदान करने के लिए सिर्फ हिंदुओं के भरोसे नहीं रह सकती है. बीजेपी के शीर्ष नेता केरल के वरिष्ठ ईसाई पादरियों से मिल रहे हैं ताकि पार्टी के पक्ष में मुसलमानों के प्रति उनके विरोध को कम किया जा सके. अप्रैल की शुरुआत में सिरो-मालाबार कैथोलिक चर्च के आर्कबिशप मार जॉर्ज एलेनचेरी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक सच्चा नेता बताया था. उन्होंने तर्क दिया कि पड़ोसी राज्य कर्नाटक सहित बीजेपी शासित राज्यों में ईसाइयों के खिलाफ दक्षिणपंथी हिंसा की कई रिपोर्टों से बेखबर होने के कारण ईसाई भारत में असुरक्षित महसूस नहीं करते हैं.

हिंदू दक्षिणपंथ की सबसे बड़ी बाधा केरल की सामाजिक-न्याय आधारित राजनीति का इतिहास है, जो राज्य की अधिकांश अवर्ण आबादी को उच्च जातियों के नेतृत्व वाले हिंदू संगठनों से चौकस करती है. इस वर्ष केरल सरकार और राज्य के कई संगठन और दल वैकोम सत्याग्रह का शताब्दी समारोह मना रहे हैं. वैकोम सत्याग्रह 1924 से 1925 के बीच हुआ एक आंदोलन था, यह एक शिव मंदिर के आसपास की सड़कों पर अवर्णों को चलने देने की मांग को लेकर किया गया, जो उस समय तक अवर्ण जातियों के लोगों के लिए प्रतिबंधित था. वैकोम में आंदोलन ने मंदिर प्रवेश के लिए कई अन्य आंदोलन भी छेड़े.

सम्मेलन में वेदी ने वैकोम संघर्ष के इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास किया. केरल में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष कुम्मानम राजशेखरन ने तर्क दिया कि वैकोम सत्याग्रह हिंदू एकता के लिए किया गया एक आंदोलन था. उन्होंने कहा, "वैकोम सत्याग्रहम में भाग लेने वालों का क्या सपना था? उनके दिलों में क्या इच्छा रही थी? यह हिंदू एक्य वेदी है जो उस सपने को पूरा करेगी.” राजशेखरन ने तर्क दिया कि आंदोलन में नायर, एझावा और पुलाया नेताओं की भागीदारी दर्शाती है कि उनकी जातिगत पहचान से परे वे पहले हिंदू थे. उन्होंने और आंदोलन के बारे में बात करने वाले अन्य लोगों ने इस तथ्य को उजागर नहीं किया कि अवर्ण जातियों पर लगाए गए प्रतिबंध हिंदू धर्म की नींव पर ही आधारित थे. उन्होंने कहा कि कोई योग्य हो, विद्वान हो या सक्षम उनके सामाजिक स्थान की परवाह किए बिना अब मंदिरों के गर्भगृह में सभी को पूजा करने की अनुमति है. केरल में एक हजार से अधिक मंदिरों को नियंत्रित करने वाले एक वैधानिक निकाय, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने अपने प्रशासन के तहत मंदिरों में गैर-ब्राह्मण और दलित समुदायों के पुजारियों को नियुक्त किया है. लेकिन ऐसा करने वाले चुनिंदा मंदिर ही हैं. उदाहरण के लिए, सबरीमाला मंदिर में हाल के वर्षों में उम्मीदवारों को इस आधार पर खारिज कर दिया कि वे ब्राह्मण नहीं थे.

राजशेखरन ने पूछा, "अब इस शताब्दी वर्ष में हमें क्या चाहिए? मंदिर प्रशासन में दाखिल होने का ऐलान. अब हमें मंदिर प्रशासन में प्रवेश पाने की आवश्यकता है." केरल में मंदिरों को संचालित करने वाले पांच स्वायत्त बोर्ड हैं, जो राज्य के देवस्वोम (मंदिर मामलों) मंत्रालय से सहायता प्राप्त करते हैं. राज्य में वाम नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में होने के कारण बीजेपी और आरएसएस मंदिरों द्वारा राज्य के अनुचित हस्तक्षेप का सामना करने की कहानी गढ़ रहे हैं, जबकि धार्मिक अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों पर कोई हस्तक्षेप नहीं होता है. वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ​​ने इस कहानी पर विश्वास कर लिया था. उन्होंने तिरुवनंतपुरम में पद्मनाभस्वामी मंदिर की अपनी यात्रा के दौरान रिकॉर्ड किए गए एक वीडियो में कहा कि कम्युनिस्ट सरकारें राजस्व के कारण सभी हिंदू मंदिरों पर कब्जा करना चाहती हैं. संयोग से, इन्हीं मल्होत्रा ​​ने सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया था. पीठ में अन्य चार न्यायाधीशों के फैसले का विरोध करते हुए उन्होंने तर्क दिया था कि मासिक धर्म की उम्र की महिलाओं पर प्रतिबंध एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, जिसे बचाए रखना चाहिए.

सम्मेलन में राजशेखरन ने आरोप लगाया कि केरल के मंदिर सरकारी अफसरों के नियंत्रण में हैं. उन्होंने सरकार को वर्तमान समय का राजा बताया. राजशेखरन ने कहा कि मंदिरों के राजस्व को हासिल करने वाले लोग धर्मनिरपेक्षतावादी हैं. "हमें इस गुलामी को अस्वीकार करना चाहिए. हमें इस गुलामी की बेड़ियों को तोड़ देना चाहिए.” इसी तरह की कहानी सबरीमाला आंदोलन के दौरान फैलाई गई थी जब वेदी और अन्य संघ समूहों ने तर्क दिया था कि सबरीमाला में प्रवेश करने की इच्छुक महिलाएं वास्तविक भक्त नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्षतावादी थीं.

राज्य में मंदिर प्रवेश आंदोलनों के इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास करने के साथ-साथ वेदी उन्नीसवीं सदी के जाति-विरोधी प्रतीकों को सहयोजित करने का भी प्रयास कर रही है. अपनी वेबसाइट पर वेदी दावा करती है कि इसकी गतिविधियां श्री नारायण गुरु और महात्मा अय्यंकाली के नक्शेकदम पर चलती हैं, दोनों ने केरल में प्रचलित जाति प्रथाओं को चुनौती देने वाले संघर्षों का नेतृत्व किया. नारायण गुरु अवर्ण एझावा जाति से थे जबकि अय्यंकाली दलित पुलाया समुदाय से थे. लेकिन वेदी उन्हें हिंदू प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है.

हालांकि यहां भी वेदी ने मिलाजुला संदेश दिया है. वेदी की प्रदर्शनी ने दिखाया कि कैसे संघ परिवार केरल के इतिहास में खुद को हिंदुओं के रक्षक के रूप में रखता है. इसमें प्रदर्शित तस्वीरों में से एक आरएसएस के दूसरे प्रमुख एम.एस. गोलवलकर की थी, जो मन्नत पद्मनाभन की मृत्यु पर शोक जताने गए थे. पद्मनाभन को केरल की लोकप्रिय कल्पना में एक समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है, खासकर वैकोम सत्याग्रह में उनकी भागीदारी के कारण. लेकिन भाषणों के कई रिकॉर्ड हैं जहां उन्होंने खुले तौर पर जातिवादी बयान दिए हैं. 1957 में केरल में विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कहा था, "जन्म से एक एझावा, एक असफल नायर और एक भटका हुआ ईसाई कम्युनिस्ट बन जाता है." वह नायर सर्विस सोसाइटी के संस्थापक थे, जो उच्च-जाति के नायरों के हितों की पैरवी करने वाला राज्य में सबसे प्रभावशाली संगठन है. क्या पद्मनाभन प्रगतिशील सुधारक थे जैसा कि बताया जाता है, हालांकि यह एक गरमागरम बहस का मुद्दा है. लेकिन पद्मनाभन का आरएसएस के प्रति समर्थन इससे अधिक स्पष्ट नहीं हो सकता, जहां उन्होंने आरएसएस के मुखपत्र केसरी में संघ को हिंदुओं के समर्थन का स्तंभ बताया था. यह प्रदर्शनी अवर्ण जातियों के सुधारकों को विशेषाधिकार प्राप्त ब्राह्मणों और नायरों के साथ मिलाने का एक स्पष्ट प्रयास थी, साथ ही उन्हें एक अखंड हिंदू धर्म के नेताओं के रूप में चित्रित किया गया है. हालांकि वेदी जाति प्रथाओं के अस्तित्व से इनकार नहीं करते लेकिन अक्सर उन्होंने इसे सरकारी कार्रवाई के परिणाम के रूप में दिखाने का प्रयास किया है न कि हिंदू धर्म के एक अंतर्निहित तत्व के रूप में.

उदाहरण के लिए, केरल में विभिन्न मंदिर प्रवेश आंदोलनों को प्रदर्शनी में हिंदुओं और अधिकारियों के बीच संघर्ष के रूप दिखाया गया था. संघ से जुड़े समूह केरल में अपने हस्तक्षेप को सामाजिक न्याय के आंदोलन की तरह में देखते हैं. इस तरह के सामाजिक न्याय के नाम पर किया गया कार्य जिसपर प्रदर्शनी में काफी जोर दिया गया था, वह था आरएसएस का 1968 में पलक्कड़ और कोझिकोड के क्षेत्रों को मिलाकर मलप्पुरम जिले के गठन का विरोध करना. प्रदर्शनी में विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरों को प्रदर्शित कर और इस विचार का प्रचार किया गया कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र बनाने के लिए मलप्पुरम का गठन एक कम्युनिस्ट सांप्रदायिक एजेंडा था.

मुस्लिम समुदायों पर आरोप लगाकर जाति के समर्थन को लेकर अपनी आलोचना से ध्यान भटकाना, वेदी के काम करने का तरीका रहा है. जब मलयालम समाचार एंकर अरुण कुमार ने कहा कि शुद्ध शाकाहारी रेस्तरां में जाति कैसे काम करती है, तब शशिकला ने व्यंग्यात्मक टिप्पणी के साथ जवाब देते हुए कहा, "यदि आप मसाला डोसा खाते हैं, तो संविधान पीछे हट जाएगा. अगर आप हलाल बीफ कुज़ीमंथी खाते हैं तो संविधान आपके सामने खड़ा होगा!" कुझिमंथी केरल में बेहद लोकप्रिय यमनी चावल से बना व्यंजन है, जो राज्य में सांप्रदायिक बयानबाजी का विषय भी रहा है. जनवरी की शुरुआत में कई समाचार संगठनों ने बताया कि कसारगोड जिले के एक रेस्तरां से कुझिमंथी का सेवन करने के बाद एक 19 वर्षीय लड़की की फूड पोइजन से मृत्यु हो गई. स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ताओं ने तुरंत रेस्तरां के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. बाद में लड़की की मौत को आत्महत्या बताया गया.

वेदी के त्रिशूर सम्मेलन के एक हफ्ते से भी कम समय के बाद वही स्थल बीआर आंबेडकर की जयंती समारोह पर नीले झंडों से भर गया था. सर्वोच्च न्यायालय की राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के पूर्व निदेशक मोहन गोपाल का एक भाषण संघ की बयानबाजी का जवाब दिखाई पड़ा. उन्होंने पूछा, “वैश्य, ब्राह्मण या सवर्ण अगर कोई उच्च पद प्राप्त कर ले तो हम उससे क्या उम्मीद रखते हैं? हम खुश होंगे क्योंकि मैं एक हिंदू हूं और वह एक हिंदू है, कि मुझे विश्वास रहेगा कि कोई मेरा प्रतिनिधित्व करता है." गोपाल ने समझाया कि प्रत्येक जाति से जुड़ी विशिष्ट संस्कृतियों और मुद्दों को दबाने और एक जागरूकता पैदा करने के लिए एक ठोस प्रयास किया गया था कि हर कोई सिर्फ एक हिंदू है. "अगर सवर्णों को कुछ मिलता है तो यह संदेश देने की कोशिश की जाती है कि हम सभी ने इसे प्राप्त किया, पूरे भारत और हिंदुओं ने इसे प्राप्त किया."