खान मार्केट मानसिकता क्या है और कैसे काम करती है?

17 अप्रैल 2022
जब तक पुराना एलीट अपने कुकर्मों से अनजान बना रहेगा और खुद को दुरुस्त करने की कोशिश नहीं करेगा तब तक उसकी खान मार्केट मानसिकता उत्तर प्रदेश और देश को नहीं समझ सकेगी, और निश्चित ही तब तक वह हमारे चारों तरफ फैली घृणा को चुनौती दे सकने लायक कुछ नहीं कर सकेगा.
डेनियल बेरेहुलाक / गैटी इमेजिस
जब तक पुराना एलीट अपने कुकर्मों से अनजान बना रहेगा और खुद को दुरुस्त करने की कोशिश नहीं करेगा तब तक उसकी खान मार्केट मानसिकता उत्तर प्रदेश और देश को नहीं समझ सकेगी, और निश्चित ही तब तक वह हमारे चारों तरफ फैली घृणा को चुनौती दे सकने लायक कुछ नहीं कर सकेगा.
डेनियल बेरेहुलाक / गैटी इमेजिस

हाल में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले मैंने उत्तर प्रदेश की एक संक्षिप्त यात्रा की थी. मैं वहां से इस बात को मान कर लौटा था कि भारतीय जनता पार्टी आसानी से विधानसभा चुनाव जीत रही है. लेकिन मैं यह देख कर हैरान रह गया कि लोग मेरे अनुभव स्वीकार करने को तैयार नहीं थे. दिल्ली के पत्रकार ही नहीं, बल्कि ऐसे लोग भी जो दो दशकों से दिल्ली से बाहर नहीं निकले हैं, बीजेपी की तय हार का पाठ मुझे पढ़ा रहे थे.

साफ है कि हमारे चारों ओर जो घटित हो रहा है उसे समझना, ऐसे पत्रकारों के लिए भी, जिनका मैं सम्मान करता हूं, मुश्किल होता जा रहा है. भारत आज अभूतपूर्व रूप से बंटा हुआ है और दो पक्षों के बीच संवाद मुश्किल होता जा रहा है. इन हालात में यदि हम दिल्ली से निकल कर उत्तर प्रदेश जाएं और ठीक उन्हीं लोगों से मिलें जो हमें वही सुनाते हैं जो हम सुनना चाहते हैं तो स्वाभाविक ही है कि हम गच्चा खा जाएंगे.

खान मार्केट मानसिकता कहने पर उसी आरोप को वजन देने का खतरा है जो उन लोगों पर लगाया जाता है जो पहले से ही सताए जा रहे हैं, और ये वही लोग हैं जो आज भी हमारे संविधान के महत्व को समझते हैं. ठीक इसी कारण से मेरे लिए और जरूरी हो गया है कि हम मोदी के खान मार्केट गैंग के बिल्ले का सामना करें.

2014 में मोदी की जीत के बाद, जबकि क्या नैतिक है और क्या अनैतिक यह बात इतनी स्पष्ट हो गई है, और जब अच्छे और बुरे का फर्क साफ हो चुका है, मैंने महसूस किया कि ऐसे वक्त में लोग अपनी ही कमजोरियों पर से नजर चुराने लगते हैं. जब मोदी आप पर हमला करते हैं और आप बिना अपनी कमजोरियों पर गौर किए या बिना अपने अंदर झांके, उस हमले को अपने लिए सम्मान मानने लगते हैं तो इससे मोदी का ही फायदा होता है.

खान मार्केट गैंग को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इतनी तवज्जो क्यों देता है? इस बात को ठीक तरह से समझने के लिए पिछले तीन दशकों के देश के राजनीतिक इतिहास को समझना जरूरी है. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद ऊपरी जातियों का देश पर जो वर्चस्व बना हुआ था, उसे आजादी के बाद पहली बार चुनौती मिली. हालांकि ऐसा होने के बाद भी ऊपरी जातियों का एक छोटा सा हिस्सा, जो धर्म धर्मनिरपेक्ष प्रोजेक्ट का हिस्सा था, बीजेपी का विरोध करता रहा, लेकिन अधिकांश ने बीजेपी का स्वागत किया क्योंकि उसे लगा कि बीजेपी उसके ही हिंदू महानताबोध को प्रतिबिंबित करती है.

हरतोष सिंह बल कारवां के कार्यकारी संपादक और वॉटर्स क्लोज ओवर अस : ए जर्नी अलॉन्ग द नर्मदा के लेखक हैं.

Keywords: Caravan Columns Uttar Pradesh Elections 2022 inter-caste marriage elite
कमेंट