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कारवां के इस अंक मेंप्रकाशित सुनील कश्यप की कवर स्टोरी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की जीत को सही परिप्रेक्ष्य में रखती है. 2024 लोक सभा चुनाव के परिणामों की जांच राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, अल्पसंख्यकों के प्रति सहिष्णुता या संविधान के प्रति अधिक सम्मान के दांवों में निहित नहीं है. यदि यह सच होता,तो परिणाम पूरे हिंदी भाषी क्षेत्र में एक जैसे होते.फिर भी इस सच्चाईको स्वीकार करने में ऊंची जाति केउदारवादी हिंदुओं में इतनी झिझक क्यों है?
मेरे "ख़ान मार्केट मानसिकता" कहने पर उसी आरोप को वजन देने का ख़तरा है जो उन लोगों पर लगाया जाता है जो पहले से ही सताए जा रहे हैं, और ये वही लोग हैं जो आज भी हमारे संविधान के महत्व को समझते हैं. ठीक इसी कारण से मेरे लिए और ज़रूरी हो गया है कि हम मोदी के ख़ान मार्केट "गैंग"शब्द के इस्तेमाल को समझें.
2014 में मोदी की जीत के बाद, जबनैतिक और अनैतिक का भेद एकदम स्पष्ट हो चुका है, और जब अच्छे और बुरे का फ़र्क साफ़ है, ऐसे में भीमैंने महसूस किया कि लोग अपनी ही कमज़ोरियों पर से नज़र चुराए हुए हैं. जब मोदी हम पर हमला करते हैं और हम बिना अपनी कमज़ोरियों पर ग़ौर किए या बिना अपने अंदर झांके, उस हमले को अपने लिए सम्मान मानने लगते हैं, तो इससे मोदी का ही फ़ायदा होता है.
"ख़ान मार्केट गैंग" को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इतनी तवज्जो क्यों देता है? इस बात को ठीक से समझने के लिए पिछले तीन दशकों के देश के राजनीतिक इतिहास को समझना ज़रूरी है. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद ऊपरी जातियों का देश पर जो वर्चस्व बना हुआ था, उसे आज़ादी के बाद पहली बार चुनौती मिली. जब ऐसा हुआ तो ऊपरी जातियों का एक छोटा सा हिस्सा, जो धर्म धर्मनिरपेक्ष प्रोजेक्ट का हिस्सा था, तब भीबीजेपी का विरोधी बना रहालेकिन अधिकांश ने बीजेपी का साथ दिया क्योंकि उसे लगा कि बीजेपी उसके ही हिंदू महानताबोध की प्रतिनिधि पार्टी है.
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