उन्नाव का आताताई

बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर के सामंती और जातीय प्रभुत्व का अंत

कुलदीप सिंह सेंगर 14 अप्रैल 2018 को अपनी गिरफ्तारी के बाद अदालत से बाहर निकलते हुए. पवन कुमार / रॉयटर्स
30 December, 2019

16 दिसंबर के दिन, जिस दिन 2012 में दिल्ली में एक फिजियोथेरेपी छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ था, दिल्ली की एक सत्र अदालत ने भारतीय जनता पार्टी के एक पूर्व नेता के खिलाफ बलात्कार के एक अन्य मामले में फैसला सुनाया. अदालत ने उत्तर प्रदेश के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को नाबालिग के साथ बलात्कार करने और डराने-धमकाने का दोषी पाया. अदालत ने सेंगर को भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण कानून (पोस्को) की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया. सेंगर के खिलाफ अपराध दर्ज करने सहित अन्य मामलों में अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को भी फटकार लगाई. अदालत ने कहा कि सीबीआई ने विधायक के खिलाफ मामले की प्रगति को इस बात की चिंता किए बिना रोक दिया था कि बलात्कार पीड़िता और उसके परिवार को इससे कितनी ​तकलीफ हुई. 20 दिसंबर को बीजेपी विधायक को उम्रकैद की सजा हो गई.

लगभग डेढ़ साल पहले, अप्रैल 2018 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सेंगर की तत्काल गिरफ्तारी का आदेश दिया था. सेंगर उस समय बीजेपी का सदस्य था. उन्नाव जिले में उसके पैतृक गांव माखी में एक नाबालिग ने उस पर जून 2017 में उसके साथ बलात्कार का आरोप लगाया था. उस नाबालिग ने यह भी आरोप लगाया था कि सेंगर के गुर्गों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया है.

इसके बाद के महीनों में, नाबालिग ने सेंगर और उसके सहयोगियों के खिलाफ शिकायद दर्ज कराने की कोशिशें की लेकिन स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने उसे डराया और धमकाया. फिर नाबालिग ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से संपर्क किया लेकिन सेंगर का प्रभाव इतना ज्यादा था कि मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा नाबालिग की शिकायत सुने जाने के बावजूद उन्नाव जिले के अधिकारियों ने विधायक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने अपने आदेश में लिखा : "इस मामले में विचलित करने वाली जो खास बात है वह यह कि कानून और व्यवस्था को कायम करने वाली मशीनरी और सरकारी अधिकारी सीधे इसमें शामिल थे और कुलदीप सिंह के प्रभाव में थे." अदालत ने कहा कि आरोपों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल की रिपोर्ट से पता चलता है, "कैसे पुलिसकर्मी और डॉक्टर कुलदीप सिंह के प्रभाव में थे, कैसे सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और कैसे उन्होंने आतंकित करने की कोशिश की और अभियोजन पक्ष और उसके परिवार के सदस्यों को धमकाया." अदालत ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह इन आरोपों पर गौर करे.

उच्च न्यायालय के आदेश से पहले सेंगर पर लगे आरोपों से जुड़े चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. 3 अप्रैल 2018 को माखी पुलिस ने नाबालिग के पिता को बिना लाइसेंस हथियार रखने के दो दशक पुराने मामले में गिरफ्तार कर लिया. स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से सेंगर के भाई अतुल और उसके गुर्गों ने हिरासत में लिए जाने से पहले नाबालिग के पिता को पीटा. 8 अप्रैल को नाबालिग ने अपने परिवार के लिए सुरक्षा की मांग करते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. अगले दिन पिटाई के जख्मों से उसके पिता की पुलिस हिरासत में मृत्यु हो गई. पोस्टमार्टम से पता चला कि उनके शरीर पर कई सारी बाहरी चोटें लगी थीं. 12 अप्रैल को सेंगर के निलंबन के लिए बढ़ती सार्वजनिक नाराजगी के बीच, छह विधायकों ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से सेंगर के समर्थन में पैरवी की, जिन्होंने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ इस मामले पर चर्चा की. इस बैठक के एक दिन बाद मीडिया ने इस खबर को खूब उछाला. शाम तक स्थानीय समाचार चैनल अनुमान लगा रहे थे कि सेंगर को उसी रात गिरफ्तार कर लिया जाएगा और मीडियाकर्मी उसकी खोज करने लगे.

इन सबके बीच सेंगर के रुतबे का नाटकीय प्रदर्शन हुआ. लगभग 10 बजे विधायक और उसके कुछ समर्थकों ने बाहुबली नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से लखनऊ में उनके निवास पर मुलाकात की. इस बैठक ने अफवाहों को हवा दी कि पुलिस के गिरफ्तार करने से पहले सेंगर आत्मसमर्पण कर देगा. उसके घर के बाहर पत्रकारों और मीडिया वैनों का रेला लग गया.

आधी रात से ठीक पहले, विधायक ने मीडिया के साथ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (जिला पुलिस प्रमुख) के आवास की ओर रुख किया. इस शक्ति प्रदर्शन में, चार ठाकुर विधायक सेंगर के साथ थे : राज्य विधान परिषद या एमएलसी सदस्य अक्षय प्रताप सिंह, उन्नाव जिले के पुरवा विधानसभा से विधायक अनिल सिंह, गेंसड़ी के विधायक शैलेश कुमार “शैलू”, जो सेंगर के बहनोई भी हैं, और पूर्व एमएलसी यशवंत सिंह.

चमचमाती रोशनी और टीवी कैमरों की चकाचौंध के बीच, सेंगर अंदर जाने के लिए एसएसपी कार्यालय के एक इंस्पेक्टर से भिड़ गया. सेंगर ने पुलिस अधिकारी से कहा, "चैनल के साथी मुझे भगोड़ा कह रहे हैं." परेशान इंस्पेक्टर ने विधायक को शांत करने की कोशिश की और उसे आश्वासन दिया कि चिंता की कोई बात नहीं है. "अगर प्रशासन आपको ढूंढ रहा है तो आपको पता चल जाएगा," उन्होंने कहा. सेंगर ने उन्हें कैमरे से ही संबोधित किया : "मैं मीडिया के माध्यम से एसएसपी साहब और हमारे दोस्तों से अनुरोध करने आया हूं कि जब आपको मेरी जरूरत होगी, मुझे बुलाओगे, मैं आ जाऊंगा." फिर सेंगर ने ढिटाई से कहा, "ठिक, नमस्ते!" और वहां से चला गया. सेंगर की तत्काल गिरफ्तारी के अदालती आदेशों के बावजूद पुलिस ने उसे अगले दिन गिरफ्तार ​किया. वह तब से जेल में है.

उसकी गिरफ्तारी से भी नाबालिग की परेशानियां खत्म नहीं हुईं. इसी साल 28 जुलाई को, वह अपनी दो चाचियों और अपने वकील के साथ अपने चाचा से मिलने जा रही थी. उसके चाचा सेंगर भाइयों द्वारा दायर कई मामलों में रायबरेली जेल में बंद हैं. उसी वक्त एक बिना नंबर प्लेट के ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मारी. दुर्घटना में उसकी चाचियों की मौत हो गई. दोनों इस मामले की महत्वपूर्ण गवाह थीं. लड़की और उसके वकील को पहले लखनऊ के एक अस्पताल ले जाया गया और बाद में दिल्ली के एम्स ट्रॉमा सेंटर लाया गया. वहां से उन्हें सितंबर में छुट्टी दे दी गई.

दुर्घटना के बाद, यह बात सामने आई कि जुलाई के मध्य में, नाबालिग की मां ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को एक पत्र लिखा कि सेंगर के साथी लगातार उनके परिवार को धमका रहे हैं. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने मामलों का संज्ञान लिया. 1 अगस्त को अदालत ने घटना से जुड़े चार मामलों को दिल्ली की एक अदालत को स्थानांतरित कर दिया. इन मामलों में सेंगर के खिलाफ बलात्कार करने और दुर्घटना का मामला शामिल था. सर्वोच्च अदालत ने दैनिक सुनवाई करने और 45 दिनों में मामले को निपटाने का निर्देश दिया. अदालत ने सीबीआई को एक पखवाड़े के भीतर दुर्घटना मामले की पूरी जांच करने का निर्देश दिया. सबसे पहले जांच एजेंसी ने सेंगर और उसके नौ सहयोगियों पर दुर्घटना के मामले में आपराधिक साजिश, हत्या और हत्या के प्रयास के आरोप लगाए. इस साल अक्टूबर में, सीबीआई ने मामले से हत्या का आरोप हटा दिया.

सेंगर चार बार का विधायक है. भारतीय राजनीति में दुर्लभ कारनामा करते हुए, सेंगर ने पिछले दो दशकों में तीन अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ा और उन्नाव जिले के चार अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के सबसे प्रभावशाली ठाकुर नेताओं में से एक राजा भैया अब तक केवल कुंडा विधानसभा क्षेत्र से ही छह बार विधायक रहे हैं. सेंगर ने पहले बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया. दोनों ही पार्टियां राज्य में दो मजबूत प्रतिस्पर्धी पार्टियां हैं. सेंगर ने 2017 में पिछला विधानसभा चुनाव उन्नाव जिले के मुस्लिम-बहुल निर्वाचन क्षेत्र बांगरमऊ से बीजेपी के उम्मीदवार के बतौर पर जीता था. बांगरमऊ में भगवा पार्टी की यह पहली जीत थी.

राज्य की राजनीति में सेंगर का बोलबाला और पुलिस और प्रशासन के साथ उसकी सांठगांठ को केवल उसके राजनीतिक संबंधों को जानने भर से नहीं समझा जा सकता. मैंने एक दर्जन से अधिक नेताओं और पुलिस अधिकारियों से बात की और अदालत के रिकॉर्ड से भी हवाला लिया. जो उभर कर आया, वह सेंगर की एक शक्तिशाली ठाकुर नेता की छवि बनाता है जिसके पास पंचायत-स्तरीय निकायों में वह मजबूत, सामंती पकड़ है, जो इस क्षेत्र से चुनाव जीतने की उम्मीद रखने वाले नेताओं के लिए राजनीतिक रूप से अपरिहार्य है. कहा तो यह भी जाता है सेंगर अपने भाइयों, अतुल और मनोज, के जरिए बाहुबल का इस्तेमाल करता था, जिससे जरिए वह न केवल जन आक्रोश पर नियंत्रण और राजनीतिक दबाव बनाता था बल्कि जेल के अंदर से भी अपनी धाक जमाए रखता था. साथ ही वह नाबालिग और उसके परिवार के खिलाफ किए गए अपने जघन्य अपराधों की जवाबदेही से भी बचता रहा.

सेंगर के रुतबे और उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों के बारे में उच्च न्यायालय की पीठ ने राज्य पुलिस द्वारा गठित एक एसआईटी की रिपोर्ट पर भरोसा किया था. नाबालिग के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद 10 अप्रैल को एसआईटी का गठन किया गया था और अगले दिन उसने अपनी रिपोर्ट दी थी.

नाबालिग ने एसआईटी को बताया कि सेंगर ने 4 जून 2017 को उसके घर पर उसके साथ बलात्कार किया. अदालत ने इस बात को चिन्हित किया कि उसने एसआईटी को बताया था कि, 11 जून से 20 जून के बीच सेंगर के लोगों ने उसका अपहरण किया. नाबालिग ने बताया कि उसके पड़ोसी शशि सिंह ने उसे नौकरी का लालच देकर गुमराह किया था. शशि के बेटे शुभम और अवधेश नाम के एक अन्य व्यक्ति ने उसके साथ बार-बार बलात्कार किया. जब उसने भागने की कोशिश की तो उसे पीटा गया और डराया गया. नाबालिग ने एसआईटी को बताया कि शुभम ने इस दौरान उसे अपने घर में बंधक बनाकर रखा, जहां उसके साथ कई बार बलात्कार किया गया. उसने आरोप लगाया कि उसे आगरा में एक व्यक्ति को 60000 रुपए में बेच दिया गया. 20 जून 2017 को पुलिस ने उसे ढूंढ लिया और उसे माखी पुलिस स्टेशन वापस ले आई. अदालत ने इसे ऐसे दर्ज किया है, "यह आरोप लगाया गया है रास्ते में उसे पुलिस अधिकारियों ने लगातार धमकाया कि जैसा कहा गया है वह वैसा करे वर्ना कुलदीप सेंगर का निर्देश है कि उसके पिता को मार दिया जाए.”

इसमें आगे कहा गया है, "डॉक्टर द्वारा उसकी जांच नहीं की गई बल्कि डॉक्टर ने उसे कुलदीप सिंह के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की सलाह दी." रिपोर्ट में कहा गया है कि नाबालिग ने एसआईटी को बताया कि माखी पुलिस ने उसकी शिकायत का संज्ञान नहीं लिया. इसलिए, हालांकि स्थानीय पुलिस ने शुभम और सेंगर के अन्य वफादारों के खिलाफ 11 जून और 20 जून के बीच नाबालिक से सामूहिक बलात्कार करने की एफआईआर दर्ज की लेकिन एफआईआर में विधायक का नाम दर्ज नहीं किया.

रिपोर्ट के अनुसार नाबालिग के परिवार ने जून 2017 में लखनऊ पुलिस से संपर्क किया लेकिन उसने मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया. नाबालिग ने फिर अगस्त में मुख्यमंत्री कार्यालय को लिखा. मुख्यमंत्री के एक विशेष सचिव ने स्थानीय पुलिस अधीक्षक के समक्ष शिकायत पहुंचाई और उसे एक सप्ताह के भीतर जांच करने और जांच रिपोर्ट देने का निर्देश दिया. तब भी सेंगर के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया. अदालत ने कहा, "मुख्यमंत्री के कार्यालय द्वारा उक्त शिकायत का समर्थन किए जाने के बावजूद कुछ नहीं किया गया. कुलदीप सिंह के इशारे पर, अभियोजन पक्ष और उसके परिवार के सदस्यों पर शिकायत को आगे न बढ़ाने के लिए जोर-जबरदस्ती की जा रही थी."

फरवरी 2018 में नाबालिग की मां ने शिकायत दर्ज कराने के लिए उन्नाव की एक जिला अदालत से अपील की. महीनों तक अदालत की कार्यवाही धीरे-धीरे आगे बढ़ी. रिपोर्ट में कहा गया कि हस्तक्षेप की अवधि में, "अभियोजन पक्ष के पिता और परिवार के सदस्यों के खिलाफ कई झूठे मामले दर्ज किए गए थे."

रिपोर्ट के अनुसार, जब जिला अदालत में सुनवाई जारी थी, माखी पुलिस ने नाबालिग के पिता को 3 अप्रैल 2018 को बिना लाइसेंस के हथियार रखने के दो दशक पुराने मामले में गिरफ्तार किया. रिपोर्ट के अनुसार, सेंगर के भाई अतुल सेंगर और उसके लोगों ने स्थानीय पुलिस को सौंपने से पहले नाबालिग के पिता की पिटाई की थी. विधायक और उसके लोगों की मिलीभगत से पुलिस ने पिता को हिरासत में रखा. 9 अप्रैल को उनका निधन हो गया. अदालत ने नोट किया, “मृतक-पिता की मृत्यु से एक दिन पहले, अभियोजन पक्ष ने मुख्यमंत्री और राज्य की कानून-व्यवस्था मशीनरी, खासकर उन्नाव जिला प्रशासन के हाथों परिवार को मिली निराशा के कारण मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह का प्रयास किया.”

11 अप्रैल को जिला अदालत के आदेश की प्रतीक्षा किए बिना पुलिस ने आखिरकार सेंगर के खिलाफ नाबालिग से बलात्कार का मामला दर्ज किया. एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर, पुलिस ने लड़की के पिता की मौत का मामला भी दर्ज किया. अगले दिन सरकार ने सिफारिश की कि तीन संबंधित मामलों को (सेंगर के आदमियों द्वारा कथित सामूहिक बलात्कार, नाबालिग के पिता की मौत और उनके खिलाफ हथियार का मामला) सीबीआई को सौंप दिया जाए.

अदालत ने इन मामलों के प्रति राज्य के अधिकारियों के दृष्टिकोण की स्पष्ट रूप से आलोचना की. सरकार ने अप्रैल 2018 में दर्ज तीन मामलों में ही सीबीआई जांच की सिफारिश की थी लेकिन सेंगर के खिलाफ बलात्कार के मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश नहीं की. अदालत ने कहा, “4 जून 2017 को कुलदीप सिंह द्वारा बलात्कार करने का आरोप लगाए जाने से शुरू होकर 11 अप्रैल 2018 को एफआईआर दर्ज होने तक जिस तरह से पूरी घटना घटी है, हम पाते हैं कि हर घटना आपस में जुड़ी हुई है." अदालत ने कहा,"पहली प्राथमिकी को अलग रखने के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है."

सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने तर्क दिया था कि जब तक कि सेंगर के खिलाफ विश्वसनीय सबूत नहीं मिलते तब तक अधिकारी केवल एफआईआर के आधार पर सेंगर को गिरफ्तार नहीं कर सकते थे. इस पर, अदालत ने कहा, "विद्वान महाधिवक्ता का दृष्टिकोण न केवल एक अप्रिय पक्ष को पेश करता है बल्कि उच्चतम स्तर पर पुलिस अधिकारियों की निष्ठा पर भी संदेह पैदा करता है." उच्च न्यायालय ने सेंगर और उसके लोगों की गिरफ्तारी का आदेश दिया और सीबीआई को गैंगरेप मामले को फिर से खोलने का आदेश दिया. एसएसपी आवास पर आधी रात के नाटक के बाद, सीबीआई ने 14 अप्रैल को सेंगर को गिरफ्तार कर लिया.

कुलदीप सिंह सेंगर ने 1987 में राजनीति में प्रवेश किया. अभी वह बीस साल का भी नहीं हुआ था जब पहली बार माखी का प्रधान या ग्राम प्रधान बना. वह गांव, जहां विधायक पला-बड़ा, उसका ननिहाल है. सेंगर से पहले उसके दादा कई दशकों तक माखी के प्रधान रहे. आजादी के बाद से केवल दो ही बार कोई सेंगर माखी का प्रधान नहीं रहा. सेंगर ने साल 2000 की शुरुआत में विधानसभा राजनीति में कदम रखा और ग्राम प्रधान का पद उसकी मां ने संभाल लिया. फिलवक्त उसके भाई अतुल की पत्नी अर्चना सेंगर गांव की प्रधान है.

उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता ने, जो सेंगर के दादा को जानते थे और जिन्होंने राजनीति में कुलदीप सेंगर के उदय को देखा है, नाम न छापने की शर्त पर मुझसे बात की. "शुरू-शुरू में कुलदीप अपने भाइयों के साथ यात्री बसों में वासूली करता था." यह वरिष्ठ नेता अब बीजेपी के सदस्य हैं और लंबे समय तक विधायक रहे हैं. उन्होंने सेंगर के व्यक्तित्व के बारे में शुरुआती दिनों की एक घटना सुनाई. “मैं तब विधायक था और उन्नाव के लोगों के कामों के सिलसिले में अदालत जाता रहता था. कुलदीप मुझसे कहता था कि मुझे उसके घर आना जाना चाहिए और जब भी मैं वहां से गुजरूं तो चाय पीकर जाउं.” वरिष्ठ नेता ने कहा कि "शुरू में मुझे समझ नहीं आया कि उसने हर बार मेरे आने पर इतना जोर क्यों दिया. बाद में स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि उसकी अवैध गतिविधियों के चलते पुलिस अक्सर उसके पीछे लगी रहती है और वह चाहता था कि आप उसके साथ बैठें और साथ दिखें."

वयोवृद्ध नेता गंगा बक्स सिंह जो दो बार हादा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक रहे- एक बार कांग्रेस से और एक बार बीजेपी से- सेंगर के संरक्षक समझे जाते हैं. चुनाव आयोग के परिसीमन योजना लागू करने के बाद, 2008 में हादा विधानसभा सीट का अस्तित्व समाप्त हो गया. सेवानिवृत्त सिंह अब भी बीजेपी के सदस्य हैं.

1990 के दशक के अंत में सेंगर युवा कांग्रेस का सदस्य बना. बक्स सिंह ने कहा, "सेंगर बहुत महत्वाकांक्षी था और विधायक बनने की जल्दी में था." बक्स सिंह उस समय उन्नाव जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे. "जब यूथ कांग्रेस ने सदस्यता अभियान चलाया और आंतरिक चुनाव हुए, तो कुलदीप अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य बनना चाहता था." यानी कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का सदस्य. "मैंने उससे कहा कि मैं यह निर्णय नहीं ले सकता और केवल कोई केंद्रीय नेता ही यह निर्णय ले सकता है. इसलिए मैंने अपने वरिष्ठ से बात की और उन्हें कुलदीप की इच्छा के बारे में बताया.”

बक्स सिंह ने कहा कि उनसे कहा गया कि सेंगर "एआईसीसी का सदस्य बनने के लिए अभी बहुत छोटा है." उसे अभी पीसीसी का नेता बनाते हैं.” पीसीसी यानी प्रदेश कांग्रेस कमेटी, राज्य स्तरीय निकाय. सेंगर ने इस फैसले को सहजता से नहीं लिया और पार्टी छोड़ दी.

2002 में सेंगर बसपा के सदस्य के रूप में पहली बार उन्नाव सदर से विधायक बना. 2002 और 2007 के बीच, यूपी की राजनीति बहुत उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रही थी. राज्य ने पांच साल के भीतर दो मुख्यमंत्रियों- बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को देखा था.

शशांक शेखर सिंह, जिनके पिता अजीत सिंह भी एक मजबूत ठाकुर नेता और सपा और बीजेपी से दो बार के एमएलसी रहे थे, ने मुझे बताया, “2002-2007 के दौरान, सपा बसपा के ठाकुर नेताओं को साधने की कोशिश कर रही थी. मेरे पिता ने बसपा से कई विधायकों को तोड़ने और सपा के पाले में लाने में मुलायम सिंह यादव की मदद की थी. शशांक यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में भगवंतनगर से बसपा के उम्मीदवार थे. वह चुनाव हार गए थे.

इस दौर में सेंगर भी सपा में शामिल हो गया. समाजवादी पार्टी के एक प्रभावशाली ठाकुर नेता अरविंद सिंह गोप उसे सपा में लाने के लिए जिम्मेदार थे. गोप 2003 में पड़ोसी हैदरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक और मुलायम सिंह के मंत्रिमंडल में एकमात्र ठाकुर नेता थे. गोप सेंगर के बहनोई हैं. शेखर ने कहा कि गोप के साथ सेंगर के पारिवारिक संबंध ने उसे 2007 से 2012 के बीच उन्नाव में एक ठाकुर नेता के रूप में उभरने में मदद की.

बक्स सिंह ने कहा कि अपने करियर की शुरुआत से ही सेंगर खुद को ठाकुर समुदाय के नेता के रूप में स्थापित करने की जल्दी में था. ठाकुर यूपी की राजनीति में एक शक्तिशाली जाति समूह है, राज्य के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी इसी जाति समूह से हैं. इससे पहले कि कोई और ठाकुर नेता ऐसा करे सेंगर क्षेत्र के सभी सवर्ण वोटों को हथियाने के लिए उत्सुक था - जिसमें ठाकुर और ब्राह्मण समुदाय शामिल थे. बक्स सिंह, जो खुद ठाकुर हैं, ने मुझे बताया कि उन्हें राजनीतिक रूप से "बाहुबली" न होने के चलते हुए बहुत कुछ झेलना पड़ा और आखिरकार अपने सवर्ण निर्वाचन क्षेत्रों से पकड़ खोनी पड़ी.

31 जुलाई 2019 को सेंगर के घर के दरवाजे पर चुनाव अभियान का स्टीकर लगा हुआ था. बलात्कार के आरोपों के बावजूद सेंगर को अगस्त 2019 तक बीजेपी ने पार्टी से नहीं निकाला था. दानिश सिद्दीकी / रॉयटर्स

मैंने कई नेताओं से बात की जिन्होंने कहा कि सेंगर के उदय ने उन्नाव की उच्च-जाति की राजनीति की खाई को भर दिया. सेंगर से पहले सपा के बाहुबली ठाकुर विधायक दीपक कुमार का उन्नाव पर एकछत्र शासन था. कुमार कुछ समय के लिए अस्वस्थ हो गए और 2014 में उनकी मृत्यु हो गई. उनसे पहले यहां शशांक के पिता अजीत सिंह का वर्चस्व था. अजीत सिंह की हत्या 2004 में उनके फार्म हाउस में कर दी गई. इन दोनों की गैरमौजूदगी ने हाल के वर्षों में सेंगर को उन्नाव का निर्विरोध ठाकुर नेता बना दिया.

दीपक कुमार की पत्नी मनीषा ने उन्नाव से 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा था. उन्होंने मुझे बताया कि उनके पति दीपक के जिंदा रहते सेंगर के लिए आगे बढ़ पाना असंभव था. इसी तरह की बात करते हुए, शशांक ने कहा कि सेंगर की तुलना में उनके पिता लोगों के बीच अधिक लोकप्रिय थे. शशांक ने कहा कि सेंगर इसलिए शक्तिशाली हो गया क्योंकि "उसका कोई विरोधी नहीं था. उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं था."

फिरौती और गैरकानूनी खनन में सेंगर के शामिल होने से उसके बारे में कई स्थानीय किस्से प्रचलित हो गए और समझा जाता है कि बसपा और सपा में रहने के दौरान उसने सत्ता और प्र​भुत्व के अपने फर्जी साम्राज्य को मजबूत किया. उन्नाव जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सूर्य नारायण यादव सेंगर को युवा कांग्रेस के दिनों से जानते हैं. यादव ने कहा कि गैरकानूनी खनन के लिए बदनाम गंगा कटारी क्षेत्र उन्नाव सदर और बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्रों में आता है, जहां से सेंगर विधायक रहा है. उन्नाव लोक सभा क्षेत्र के चार अनारक्षित विधानसभा क्षेत्रों में से तीन से सेंगर विधायक रहा है: उन्नाव सदर, बांगरमऊ और भगवंतनगर. चौथी सीट, पूर्वा का प्रतिनिधित्व उसके विश्वासपात्र और साथी ठाकुर नेता अनिल सिंह करते हैं. अनिल उन चार नेताओं में में एक हैं जो सेंगर की गिरफ्तारी से पहले उसके साथ आधी रात को लखनऊ में एसएसपी के आवास पर आए थे. सेंगर ने 2002 में बसपा के टिकट पर उन्नाव सदर से और फिर क्रमशः 2007 और 2012 में बांगरमऊ और भगवंतनगर से सपा के टिकट पर जीत दर्ज की. यादव ने कहा कि इस क्षेत्र से अपनी विधायकी के दौरान, सेंगर "शायद नए माफिया समूहों के संपर्क में आया और उन्हें संरक्षण देना शुरू कर दिया."

2016 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन बीजेपी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने राज्य लोकायुक्त (भ्रष्टाचार लोकपाल) के पास शिकायत दर्ज कराई. बाजपेयी ने हजारों करोड़ रुपए के अवैध खनन घोटाले में तत्कालीन राज्य मंत्री गायत्री प्रजापति सहित एक दर्जन से अधिक सपा विधायकों का नाम लिया. कथित तौर पर सेंगर भी आरोपियों में से था. उसने 125 करोड़ रुपए कमाए थे.

बाजपेयी ने अपने पार्टी सदस्यों के नाम सूची में शामिल होने की पुष्टि या खंडन नहीं किया. उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने 42 फाइलों में भ्रष्टाचार के मामलों को संकलित किया और इन्हें लोकायुक्त को दे दिया. उन्होंने कहा कि 2016 में अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद उन्होंने पार्टी कार्यालय में फाइलें छोड़ दी थीं और अब उनकी प्रतियां भी नहीं हैं. दैनिक भास्कर की एक वीडियो रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशासन और पुलिस के साथ उनकी निकटता के कारण किसी ने भी सेंगर के अवैध खनन में शामिल होने के बारे में शिकायत करने की हिम्मत नहीं की.

कई नेताओं ने मुझे बताया कि नाबालिग के पिता और चाचा ने सेंगर के लिए काम किया था और वे अवैध गतिविधियों में भी शामिल रहे थे. कई लोगों ने कहा कि नाबालिग के पिता और चाचा ने साल 2000 की शुरुआत में सेंगर के साथ काम करना बंद कर दिया क्योंकि गांव में उन्होंने प्रधानी के चुनाव में सेंगर को चुनौती दी थी. बाद में दोनों ने उन्नाव छोड़ दिया और दिल्ली में काम करने लगे.

2015 तक उन्नाव में सेंगर का साम्राज्य इतना मजबूत हो गया था कि अगर उसकी मर्जी के मुताबिक काम न हो तो वह अपनी पार्टी के नेतृत्व को भी धता बता देता था. जनवरी 2016 में जिला पंचायत चुनाव में सेंगर अपनी पत्नी संगीता को सपा के टिकट पर मैदान में उतारना चाहता था. हालांकि, पार्टी ने एक और ठाकुर विधायक जयप्रकाश रावत की पत्नी ज्योति रावत को नामित करने का फैसला किया. सेंगर ने पार्टी के फैसले पर ध्यान नहीं दिया. उसकी पत्नी ने चुनाव लड़ा और सेंगर ने पत्नी की उम्मीदवारी पर अपनी पूरी ताकत लगा दी. संगीता चुनाव जीत गईं और उन्नाव जिला पंचायत की जिला अध्यक्ष हैं.

यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि सेंगर के पास उन्नाव लोकसभा सीट जीतने की क्षमता है. यहां तक ​​कि वर्तमान यूपी विधानसभा स्पीकर हृदय नारायण दीक्षित, जो ब्राह्मण नेता हैं, को 2017 के चुनाव में सीट जीतने के लिए उसकी मदद लेनी पड़ी. 2012 और 2017 के बीच, सेंगर भगवंतनगर से विधायक रहा. उसने 2017 में चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और दीक्षित का समर्थन किया. शशांक के अनुसार, दीक्षित, जो तब तक लगातार चार विधानसभा चुनाव हार चुके थे, केवल इसलिए जीत पाए क्योंकि सेंगर ने उन्हें अपनी सीट से लड़ने दिया. शशांक ने कहा कि दीक्षित “स्थानीय राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं हैं, लेकिन उनके पास एक बड़ा पद है.” दीक्षित के लिए अपनी सीट खाली करने ने "सेंगर को शक्तिशाली बना दिया."

यह चुनाव सेंगर के राजनीतिक करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ बनकर आया. वह बीजेपी में शामिल हो गया और उसने बांगरमऊ से एक महत्वपूर्ण सीट जीती, जहां से वह पहले सपा के टिकट पर जीता था. उन्नाव के एक सांसद उम्मीदवार, जो 2019 में उन्नाव लोक सभा से बीजेपी उम्मीदवार साक्षी महाराज से हार गए थे, ने कहा कि सेंगर "किसी एक पार्टी से संबंधित नहीं है, वह पार्टी का इस्तेमाल करता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आने वाले भविष्य में राजनीतिक परिदृश्य में क्या होने जा रहा है … ऐसे लोग किसी एक विचारधारा के साथ नहीं रहते. ”

बीजेपी से जीतने के तुरंत बाद, अप्रैल 2017 में, सेंगर को मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, दीक्षित और राजा भैया के साथ एक पुस्तक विमोचन के मौके पर मंच साझा करते हुए देखा गया. फरवरी 2018 में उन्नाव में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली कैबिनेट में वित्त राज्य मंत्री रहे शिवप्रताप शुक्ला ने सेंगर को बीजेपी में शामिल करने के पीछे की कहानी सुनाई. हालांकि सेंगर के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी बाकी थी लेकिन उसके खिलाफ लगे आरोपों को सभी अच्छी तरह से जानते थे. फिर भी पूर्व मंत्री ने सेंगर के कसीदे पढ़े. शुक्ला ने बताया कि 2017 के विधानसभा चुनावों में जब नेता बीजेपी का टिकट लेने के लिए जूझ रहे थे, तब भी सेंगर ने बीजेपी में शामिल होने के लिए संपर्क नहीं किया. मंच पर बैठे सेंगर की ओर इशारा करते हुए शुक्ला ने कहा, “यह मैं ही था जो व्यक्तिगत रूप से उनके घर गया था और उन्हें पार्टी में शामिल होने के लिए कहा था. तभी वह सहमत हुए.”

सेंगर ने पार्टी को बहुमूल्य जीत दिलाई. इसमें अनिल सिंह की बड़ी भूमिका थी. मार्च 2018 में यूपी से राज्य सभा सीटों के लिए चुनाव में, बसपा के सदस्य अनिल ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था. अनिल ने बसपा के टिकट पर पुरवा सीट से 2017 का विधानसभा चुनाव जीता था. सेंगर ने अनिल को चुनाव में आगे कर दिया. अनिल का वोट बसपा से कम से कम एक सीट छीनने में महत्वपूर्ण था. उस चुनाव में राज्यसभा की 10 में से 9 सीटें बीजेपी ने जीतीं. बसपा अध्यक्ष मायावती ने अनिल को आधिकारिक रूप से निष्कासित कर दिया. अपने फैसले को सही ठहराते हुए अनिल ने पत्रकारों से कहा था, “एक क्षत्रिय से हमेशा सच और दूसरों की रक्षा करने के लिए लड़ने की उम्मीद की जाती है. यही मैंने किया है. मैंने यह उन लोगों के लिए किया जिन्होंने मुझे वोट दिया.”

उन्नाव में सीट जिताने की सेंगर की क्षमता पर उसके निर्दलीय विधायक होने या जेल में होने का असर नहीं पड़ता. उसने यह सुनिश्चित किया कि बीजेपी नेता साक्षी महाराज आम चुनावों में उन्नाव सीट जीत जाएं. चुनाव सेंगर को गिरफ्तार किए जाने के एक साल बाद हुए थे. मई 2019 में, उन्नाव में अपनी जीत की घोषणा के बाद, साक्षी महाराज सेंगर को धन्यवाद देने के लिए सीतापुर जेल में उससे से मिलने गए. उन्होंने पत्रकारों से कहा, "सेंगर सबसे लोकप्रिय विधायकों में से एक हैं इसलिए मैं चुनाव के बाद उनका शुक्रिया अदा करने आया हूं."

पार्टी से निकाले जाने के महीनों बाद 28 अक्टूबर 2019 को कुलदीप सेंगर अपने भाई मनोज सेंगर के अंतिम संस्कार में बीजेपी सांसद साक्षी महाराज के साथ. अंतिम संस्कार की रस्म के बाद सेंगर को वापस जेल ले जाया गया. हालिया आम चुनाव में साक्षी महाराज के उन्नाव सीट से जीतने में सेंगर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अपनी जीत के बाद, साक्षी महाराज धन्यवाद देने के लिए सीतापुर जेल में सेंगर से मिलने गए. पीटीआई

पुरवा के चार बार के विधायक उदयराज यादव, जिन्होंने 2017 में अनिल से चुनाव हार कर अपनी सीट खो दी थी, ने कहा कि सेंगर ने साक्षी महाराज के लिए प्रचार करने को कहा था. सेंगर की पत्नी “उन्नाव जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं. उन्होंने महाराज के लिए प्रचार किया. उन्होंने कुलदीप के निर्देश पर ऐसा किया होगा. उदयराज ने बताया, "तो अगर साक्षी महाराज उन्हें धन्यवाद देने गए तो यह कोई बड़ी बात नहीं है."

अगस्त 2019 में सेंगर को बीजेपी से निकाल दिए जाने के बाद, मीडिया ने यूपी विधानसभा में उसकी सदस्यता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए. दीक्षित ने एक अखबार को बताया कि सेंगर को अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा. दीक्षित ने कहा कि किसी पार्टी से निलंबन या निष्कासन, "स्वतः किसी विधायक की अयोग्यता का कारण नहीं बनता." उन्होंने कहा कि विधायकों को केवल तभी अयोग्य ठहराया जा सकता है जब वे स्वेच्छा से सदस्यता छोड़ दें या अपने पार्टी नेतृत्व के आदेश के खिलाफ वोट दें या किसी अदालत द्वारा आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाएं. बिना दोषसिद्धी के, सेंगर ने सलाखों के पीछे से भी अपना विधायक पद बचाए रखा.

गिरफ्तारी के एक साल बाद भी लखनऊ में सीबीआई अदालत में सेंगर का मुकदमा घिसट-घिसट कर चला. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, जुलाई 2018 के पहले दो हफ्तों में, सीबीआई ने तीन मामलों में, बलात्कार के आरोपों, गैंगरेप और नाबालिग के पिता की मौत के मामले में एक के बाद एक आरोपपत्र दायर किए. एजेंसी ने सेंगर पर भारतीय दंड संहिता के तहत अपहरण, आपराधिक साजिश, एक लड़की का अपहरण सहित अन्य आरोप लगाए. सेंगर पर पोस्को कानून के तहत एक नाबालिग का यौन उत्पीड़न करने का आरोप भी लगाया. पड़ोसी शशि सिंह, जो नाबालिग को सेंगर के घर ले गया था, को भी सहअपराधी के रूप में चार्जशीट किया गया. नाबालिग के पिता पर हमले के मामले में, एजेंसी ने सेंगर के भाई अतुल के साथ-साथ सेंगर के अन्य सहयोगियों को भी आरोपी बनाया.

अगस्त में, गवाहों में से एक, गांव में किराने की दुकान चलाने वाला यूनुस खान रहस्यमय तरीके से मर गया. खान नाबालिग के पिता पर हमले का गवाह था- अतुल और उसके लोगों ने नाबालिग के पिता को पूरे गांव के सामने पीटा था. नाबालिग के चाचा ने आरोप लगाया कि खान को जहर दिया गया था. अदालत ने निर्देश दिया कि खान के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा लेकिन उसकी विसरा रिपोर्ट में जहर का कोई निशान नहीं मिला.

हालांकि, नाबालिग के परिवार ने सेंगर की गिरफ्तारी के एक महीने बाद ही सीबीआई की निष्पक्षता पर सवाल उठाना शुरू कर दिया था. उसकी मां ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को एक हलफनामा दिया जिसमें कहा गया था कि एजेंसी उनके पति की मौत की निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है. अदालत ने सीबीआई को न्यायाधीशों को एक सीलबंद लिफाफ में स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा.

एक साल बाद, 12 जुलाई 2019 को, नाबालिग की मां ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखा कि सेंगर के लोग परिवार को लगातार डरा रहे हैं और उन्हें सुरक्षा की जरूरत है. उस महीने के अंत में, बिना नंबर प्लेट वाले ट्रक ने उस कार को टक्कर मार दी जिसमें नाबालिग, उसके परिवार के सदस्य और वकील रायबरेली जा रहे थे.

1 अगस्त को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने इस घटना का संज्ञान लिया और मां को पत्र भेजने में हुई देरी की जांच का आदेश दिया. दो अन्य न्यायाधीशों के साथ गोगोई ने भी सीबीआई को दुर्घटना मामले की जांच करने और दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट करने का आदेश दिया. उस समय लखनऊ में सीबीआई अदालत बलात्कार और उसके बाद की घटनाओं से संबंधित चार मामलों की सुनवाई कर रही थी. मुख्य न्यायाधीश ने इन सुनवाइयों को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया. शीर्ष अदालत ने जिला अदालत को कहा कि रिपोर्ट दर्ज होने के बाद दुर्घटना मामले की सुनवाई की जाए. अदालत ने सभी मामलों की सुनवाई पूरी करने के लिए 45 दिनों की समय सीमा तय की. शीर्ष अदालत ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को नाबालिग और उसके परिवार को सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ रायबरेली जेल से उसके चाचा को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया, यदि जेल प्रशासन उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित है तो. सितंबर 2019 में, एम्स ट्रॉमा सेंटर में अदालत बैठी और नाबालिग का बयान दर्ज किया गया. नाबालिग को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एयरलिफ्ट कर यहां लाया गया था. नाबालिग ने मीडिया को बताया, “मुझे पक्का यकीन है कि कुलदीप सिंह सेंगर ने ही मुझे रायबरेली राजमार्ग पर कार-ट्रक दुर्घटना में मारने की साजिश रची थी.”

उन्नाव के निर्वाचन क्षेत्रों में सेंगर की जीत के पीछे पंचायत-स्तरीय निकायों पर उसकी पकड़ को बताया जाता है. ये निकाय उसके वफादारों के कब्जे में हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दो हफ्ते बाद, उन्नाव जिले में, उंगू नगर पंचायत के अध्यक्ष अनुज दीक्षित ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक विज्ञापन निकाला जिसमें सेंगर को मोदी और आदित्यनाथ के साथ दिखाया गया था.

दीक्षित ने कहा कि उन्होंने अपने खर्चे पर विज्ञापन निकाला और जब तक सेंगर उनके विधायक हैं, तब तक वह ऐसा करते रहेंगे. उंगू बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र में आता है. अनुज ने मीडिया से कहा, "सेंगर हमारे क्षेत्र के विधायक हैं इसीलिए विज्ञापन पर उनकी फोटो है. जब तक वे हमारे विधायक हैं, तब तक उनकी तस्वीर लगाई जा सकती है. मैं किसी भी राजनीतिक दल का सदस्य नहीं हूं और कोई क्या कहता है इसकी मुझे परवाह नहीं. मैंने विज्ञापन में किसी भी पार्टी का जिक्र नहीं किया है.”

उसी महीने, भगवंतनगर नगर निगम की अध्यक्षा रिंकू शुक्ला की जेल कर्मचारियों को रिश्वत देते हुए तस्वीरें आईं, वह सीतापुर जेल में सेंगर से मिलने के लिए उन्हें रिश्वत दे रही थीं. उन्नाव जिले के एक गांव के ग्राम प्रधान राकेश मिश्रा को भी जेल कर्मचारियों से बात करते हुए कैमरे में कैद किया गया है.

शशांक के अनुसार, पंचायत निकायों के माध्यम से सेंगर का प्रशासनिक प्रबंधन 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में शशांक की हार का कारण था. चूंकि सेंगर की पत्नी ने उन्नाव में जिला पंचायत का नेतृत्व किया था, इसलिए सेंगर के पास "जिला अध्यक्ष की शक्ति थी.” विधायक "सभी कामों के लिए निविदाएं मंगाता है" - जो चुनाव से पहले मेरे निर्वाचन क्षेत्र भगवंतनगर से संबंधित था,” उन्होंने कहा. शशांक ने कहा कि सेंगर ने उन निविदाओं के लिए ठेकेदारों का भुगतान रोक दिया "ताकि वह पार्टी को टूटने से रोकने के लिए उन्हें और अन्य लोगों को यानी उम्मीदवार, कार्यकर्ता, नेताओं को भी नियंत्रित कर सके.” 

जिन नेताओं से मैंने बात की उनका मानना है कि कि उन्नाव में निर्विरोध साम्राज्य चलाने के लिए धन मुहैया कराने या प्रतिद्वंद्वियों को निपटने का काम सेंगर के भाइयों ने अवैध गतिविधियों को अंजाम देकर किया. विधायक के भाई अतुल पर 2004 में एक एक आईपीएस (अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक) रामलाल वर्मा पर गोली चलाने का आरोप है. वर्मा का कहना था कि अतुल अवैध रूप से रेत खनन कर रहा था. वर्मा को तीन गोलियां लगीं. हालांकि वह इस घटना में बच गए.

वर्मा पदोन्नत होकर डायरेक्टर इंस्पेक्टर जनरल के पद पर हैं. उन्होंने इस घटना की मुझसे पुष्टि की, लेकिन किसी का नाम लेने या सेंगर भाइयों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. अगस्त के पहले सप्ताह में, वर्मा ने एनडीटीवी से कहा था कि उन्हें अपने मामले के बारे में जानने के लिए आरटीआई दायर करनी पड़ी और स्थानीय पुलिस स्टेशन से केस डायरी चुरा ली गई थी. उस साक्षात्कार के तुरंत बाद, वर्मा ने सार्वजनिक रूप से बोलना बंद कर दिया. उन्होंने मुझसे कहा, "मैं अपने उच्च अधिकारियों की अनुमति के बिना आपको कोई जानकारी देने की स्थिति में नहीं हूं ... मुझे नहीं पता कि इस मामले का क्या हुआ?”

जोर देने पर वर्मा ने कहा, "आप समझ सकते हैं कि यह एक अनुशासनात्मक मामला हो सकता है." वर्मा की टिप्पणियों से पता चलता है कि उन्हें मीडिया से कुछ बोलने से परहेज करने के लिए कहा गया है.

कई स्थानीय नेताओं ने मुझे बताया कि कुलदीप के दोनों भाई, अतुल और मनोज सेंगर, भी अवैध खनन में शामिल थे. रेलवे के ठेके उठाने के लिए अवैध साधनों का उपयोग करते थे और परिवहन, होटल व्यवसाय और पार्किंग स्थल से जबरन वसूली करते थे. सभी पार्टियों के नेताओं ने मुझे बताया कि सेंगर के भाई अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए कुख्यात थे. कुछ का यह भी मानना ​​था कि सेंगर खुद किसी गलत काम में शामिल नहीं था लेकिन हो सकता है कि उसके भाई उसे इसमें खींच ले गए हों. लेकिन ऐसे कई लोग थे जिन्होंने कहा था कि उसके भाइयों को यह पसंद नहीं था कि सेंगर का संरक्षण उन्हें न मिले. नाम न छापने की शर्त पर, उन्नाव के एक दिग्गज नेता ने मुझे बताया कि हाल ही में सेंगर जेल में मिलने आए लोगों से कह रहा था कि वह अपने भाइयों की वजह से मुश्किल में फंसा. जब मैंने बक्स सिंह से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि सेंगर ने ऐसा नहीं कहा होगा क्योंकि “पहली या दूसरी बार परेशानी में पड़ने के बाद वह सार्वजनिक रूप से कह सकता था कि उसका इन लोगों से कुछ लेना-देना नहीं है. लेकिन उसने ऐसा कभी नहीं किया.”

मैं सेंगर के परिवार से बात नहीं कर सका लेकिन कुलदीप के बहनोई और गैंसड़ी के विधायक शैलेश सिंह “शैलू” ने दावा किया कि सेंगर और उनके भाइयों के खिलाफ आरोप सही नहीं हैं. उन्होंने मामलों को "एक राजनीतिक साजिश" बताया. इसके विपरीत, उच्च न्यायालय ने नोट किया है, "यह स्पष्ट है कि अभियुक्तों ने पीड़ितों के मन में आतंक पैदा करने के लिए पुलिस मिलीभगत से सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने से लेकर नाबालिग के पिता को मारने तक,वह सब कुछ किया जो किया जा सकता था.”

सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. पोस्को कानून के तहत, उसे सार्वजनिक पद पर रहते हुए एक बच्ची का यौन उत्पीड़न करने का अपराधी माना गया. सेंगर पर अभी चार अन्य मामले (नाबालिग के पिता की हत्या, सेंगर के लोगों द्वारा नाबालिग से सामूहिक बलात्कार, उसके पिता के खिलाफ अवैध हथियार का मामला बनाने और दुर्घटना कराने जिसमें नाबा​लिग की दो चाचियां और चालक की मौत हो गई) अभी भी चल रहे हैं. अदालत ने शशि सिंह को बरी कर दिया. उस पर इस में शामिल होने का आरोप लगाया गया था.

सेंगर ने दिल्ली की अदालत में कहा था कि बलात्कार के समय वह माखी में नहीं था. 16 दिसंबर के फैसले में अदालत ने कहा कि सेंगर की अन्यत्र उपस्थिति "संभावनाओं की पूर्ति द्वारा भी साबित नहीं हुई थी." अदालत ने कहा कि नाबालिग की गवाही ''बेदाग, सच्ची है और एक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए स्पष्ट साबित हुई है कि आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा उसका यौन उत्पीड़न किया गया था.”

अदालत ने यह भी कहा कि सीबीआई ने शिकायतकर्ता के मामले को कमजार दिखाने के लिए गवाहों के बयानों से “चयनित अंश” लीक किए. जज ने कहा, “लगता है कि मामले की जांच अपराध की पीड़िता और पीड़िता के परिजनों के लिए न्यायसम्मत नहीं थी. मेरा विचार है कि इस जांच में पित्रृसत्तावादी मानसिकता या ऐसा दृष्टिकोण हावी रहा जो नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध पर पर्दा डालता है और मानवता या मानवीय संवेदना से रहित है.”