उन्नाव का आताताई

बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर के सामंती और जातीय प्रभुत्व का अंत

30 दिसंबर 2019
कुलदीप सिंह सेंगर 14 अप्रैल 2018 को अपनी गिरफ्तारी के बाद अदालत से बाहर निकलते हुए.
पवन कुमार / रॉयटर्स
कुलदीप सिंह सेंगर 14 अप्रैल 2018 को अपनी गिरफ्तारी के बाद अदालत से बाहर निकलते हुए.
पवन कुमार / रॉयटर्स

16 दिसंबर के दिन, जिस दिन 2012 में दिल्ली में एक फिजियोथेरेपी छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ था, दिल्ली की एक सत्र अदालत ने भारतीय जनता पार्टी के एक पूर्व नेता के खिलाफ बलात्कार के एक अन्य मामले में फैसला सुनाया. अदालत ने उत्तर प्रदेश के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को नाबालिग के साथ बलात्कार करने और डराने-धमकाने का दोषी पाया. अदालत ने सेंगर को भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण कानून (पोस्को) की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया. सेंगर के खिलाफ अपराध दर्ज करने सहित अन्य मामलों में अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को भी फटकार लगाई. अदालत ने कहा कि सीबीआई ने विधायक के खिलाफ मामले की प्रगति को इस बात की चिंता किए बिना रोक दिया था कि बलात्कार पीड़िता और उसके परिवार को इससे कितनी ​तकलीफ हुई. 20 दिसंबर को बीजेपी विधायक को उम्रकैद की सजा हो गई.

लगभग डेढ़ साल पहले, अप्रैल 2018 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सेंगर की तत्काल गिरफ्तारी का आदेश दिया था. सेंगर उस समय बीजेपी का सदस्य था. उन्नाव जिले में उसके पैतृक गांव माखी में एक नाबालिग ने उस पर जून 2017 में उसके साथ बलात्कार का आरोप लगाया था. उस नाबालिग ने यह भी आरोप लगाया था कि सेंगर के गुर्गों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया है.

इसके बाद के महीनों में, नाबालिग ने सेंगर और उसके सहयोगियों के खिलाफ शिकायद दर्ज कराने की कोशिशें की लेकिन स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने उसे डराया और धमकाया. फिर नाबालिग ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से संपर्क किया लेकिन सेंगर का प्रभाव इतना ज्यादा था कि मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा नाबालिग की शिकायत सुने जाने के बावजूद उन्नाव जिले के अधिकारियों ने विधायक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने अपने आदेश में लिखा : "इस मामले में विचलित करने वाली जो खास बात है वह यह कि कानून और व्यवस्था को कायम करने वाली मशीनरी और सरकारी अधिकारी सीधे इसमें शामिल थे और कुलदीप सिंह के प्रभाव में थे." अदालत ने कहा कि आरोपों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल की रिपोर्ट से पता चलता है, "कैसे पुलिसकर्मी और डॉक्टर कुलदीप सिंह के प्रभाव में थे, कैसे सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई और कैसे उन्होंने आतंकित करने की कोशिश की और अभियोजन पक्ष और उसके परिवार के सदस्यों को धमकाया." अदालत ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह इन आरोपों पर गौर करे.

उच्च न्यायालय के आदेश से पहले सेंगर पर लगे आरोपों से जुड़े चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. 3 अप्रैल 2018 को माखी पुलिस ने नाबालिग के पिता को बिना लाइसेंस हथियार रखने के दो दशक पुराने मामले में गिरफ्तार कर लिया. स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से सेंगर के भाई अतुल और उसके गुर्गों ने हिरासत में लिए जाने से पहले नाबालिग के पिता को पीटा. 8 अप्रैल को नाबालिग ने अपने परिवार के लिए सुरक्षा की मांग करते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. अगले दिन पिटाई के जख्मों से उसके पिता की पुलिस हिरासत में मृत्यु हो गई. पोस्टमार्टम से पता चला कि उनके शरीर पर कई सारी बाहरी चोटें लगी थीं. 12 अप्रैल को सेंगर के निलंबन के लिए बढ़ती सार्वजनिक नाराजगी के बीच, छह विधायकों ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से सेंगर के समर्थन में पैरवी की, जिन्होंने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ इस मामले पर चर्चा की. इस बैठक के एक दिन बाद मीडिया ने इस खबर को खूब उछाला. शाम तक स्थानीय समाचार चैनल अनुमान लगा रहे थे कि सेंगर को उसी रात गिरफ्तार कर लिया जाएगा और मीडियाकर्मी उसकी खोज करने लगे.

इन सबके बीच सेंगर के रुतबे का नाटकीय प्रदर्शन हुआ. लगभग 10 बजे विधायक और उसके कुछ समर्थकों ने बाहुबली नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से लखनऊ में उनके निवास पर मुलाकात की. इस बैठक ने अफवाहों को हवा दी कि पुलिस के गिरफ्तार करने से पहले सेंगर आत्मसमर्पण कर देगा. उसके घर के बाहर पत्रकारों और मीडिया वैनों का रेला लग गया.

सागर कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

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