एजाज अशरफ : महाराष्ट्र में शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाया है. कांग्रेस और एनसीपी को सेकुलर पार्टियां माना जाता है. क्या आपको लगता है कि शिवसेना हिंदुत्व से दूर जा रही है?
कुमार केतकर : शिवसेना ऐसा नहीं मानती. वह एक ऐसा संगठन है जो तुरंत प्रतिक्रिया देता है. उसके पास कोई योजना या रणनीति नहीं होती. सेना का जन्म धर्मनिरपेक्षता की बहस के दौरान हुआ जिसे हमारे जन-जीवन में सहज स्वीकार्य था. बहुत कम लोगों को याद होगा कि समाजवादी नेता मधु दंडवते 1967 में सेना के साथ आ गए थे. हालांकि एक साल बाद वह अलग हो गए. 1976 में जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द जोड़ा तो सेना ने इसका विरोध नहीं किया था.
जनता पार्टी के गठन के बाद धर्मनिरपेक्षता राजनीतिक मुद्दा बन गया. जनता पार्टी में जनसंघ शामिल थी, जो बाद में बीजेपी बन गई. शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा गरमा गया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 1985-86 में राजीव गांधी ने पलट दिया और बीजेपी ने राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू किया.
सच तो यह है कि शिवसेना का जन्म युवाओं की नाउम्मीदी और आक्रोश के चलते हुआ था.
एजाज : युवा लोग किस बात से नाउम्मीद और आक्रोशित थे?
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