दिल्ली के संसद मार्ग में 30 सितंबर को देश के 10 से ज्यादा राष्ट्रीय मजदूर संगठनों, स्वतंत्र यूनियनों और फेडरेशनों ने केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ “श्रमिकों का राष्ट्रीय खुला अधिवेशन” आयोजित किया. इनमें इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी संगठन शामिल थे. अधिवेशन में केरल, तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश, पंजाब, बिहार, दिल्ली, हरियाणा सहित देश के कई राज्यों से हजारों मजदूरों और नेताओं ने भाग लिया. संगठन के नेताओं ने केंद्र सरकार पर श्रमिकों की अनदेखी करने, निजीकरण और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने जैसे आरोप लगाए और श्रम कानूनों में किए गए “श्रमिक विरोधी” बदलावों को रद्द करने की मांग की.
हिंद मजदूर सभा (एचएमएस) के राष्ट्रीय महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि केंद्र सरकार मजदूरों के खिलाफ काम कर रही है और नरेन्द्र मोदी के पास अपने देश के लोगों और मजदूरों से बात करने का वक्त तक नहीं है. उनका कहना था, “सरकार मजदूरों के 44 श्रम कानूनों को चार कोड में बदल रही रही जिससे मजदूरों के अधिकार सीमित हो जाएंगे.” सिद्धू ने दावा किया कि सरकार का “इरादा देश को पूंजीपतियों के हवाले करने कर देना है.”
अधिवेशन के मकसद के बारे में सिद्धू ने बताया कि यह लोगों को जनवरी में होने वाली वाली देशव्यापी हड़ताल के बारे में सूचित करने और उनका समर्थन मांगने के लिए है. “अब 8 जनवरी 2020 को हम पूरे देश में हड़ताल करेंगे,” सिद्धू ने कहा.
श्रमिकों के इस खुला अधिवेशन में श्रमिक संगठनों ने अपना घोषणा पत्र भी जारी किया जिसमें केंद्र सरकार पर अहंकारी होने, अलोकतांत्रिक तरीके से वेज कोड बिल (मजदूरी कोड कानून) पास करने, सूचना के अधिकार कानून को कमजोर बनाने, जम्मू-कश्मीर राज्य से कश्मीरियों की सहमति के बगैर अनुच्छेद 370 को हटाने, एनआरसी प्रक्रिया के जरिए लोगों को बेघर करने, कारपोरेट दोस्तों को फायदा पहुंचाने और मजदूरों के अधिकारों के खिलाफ काम करने जैसी सरकार की नीतियों की आलोचना की गई है.
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