"पर्यावरण संकट और बाहरी लोगों की बेलगाम आवाजाही लद्दाख की नई चुनौती", सोनम वांगचुक

25 अक्टूबर 2019
टेड अलजाइब/एएफपी/गैटी इमेजिस
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नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार का जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 खत्म करना, जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा समाप्त करना और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील करने का फैसला लद्दाख के लोगों के लिए एक झटका था. आधिकारिक तौर पर 31 अक्टूबर को इस पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया जाएगा. चीन की सीमाओं से सटा यह उच्च हिमालयी क्षेत्र दशकों से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा था. लद्दाखियों की आम सोच है कि इस बार लद्दाख भाग्यशाली रहा. हालांकि, शुरुआती खुशी ने धीरे-धीरे इस दूरस्थ क्षेत्र के लोगों के बीच कई चिंताओं को जन्म दिया है.

स्थानीय लोगों का मानना है कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के तहत मिले संरक्षण के खत्म हो जाने के बाद, बाहर के लोगों के लिए यह खुला चारगाह होगा और वे जमीन खरीदेंगे, निवेश करेंगे और व्यवसाय शुरू करेंगे. उन्हें डर है कि इस क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी, लद्दाख की विशिष्ट संस्कृति और जिंदगी जीने का तरीका, सभी खत्म हो जाएंगे. हाशिए पर धकेल दिए जाने के डर ने लद्दाखी समाज को विभाजित कर दिया है, जो इस हालात के नफा-नुकसान पर उत्साह के साथ बहस कर रहा है. यहां तक कि बाहरी लोगों की आमद की अफवाहें भी उनके बीच हैं. नए प्रशासनिक तौर-तरीकों के तहत विधायिका की गैरमौजूदगी भी उनकी चिंता का एक अहम कारण है. अब मुख्य मांग यह है कि लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा दिया जाए. भारत के संविधान की छठी अनुसूची आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लिए सुरक्षा उपाय प्रदान करती है.

शिक्षाविद और लद्दाख नागरिक समाज की प्रमुख अवाज, सोनम वांगचुक पेशे से इंजीनियर और लद्दाख में हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स के संचालक हैं. कारवां के स्टाफ राइटर, प्रवीण दोंती के साथ बातचीत में, वांगचुक ने लद्दाख के लिए आगे की चुनौतियों पर चर्चा की.

प्रवीण दोंती : 5 अगस्त को सरकार के फैसले के बाद, यहां हर तरफ खुशी थी. दो महीने बाद 31 अक्टूबर को औपचारिक रूप से राज्य के दो हिस्से हो जाएंगे लेकिन ऐसा लगता है कि उस खुशी ने कुछ चिंता और परेशानियां भी पैदा की हैं.

सोनम वांगचुक : जश्न लगभग अविश्वास में था. लद्दाखियों ने 70 वर्षों तक केंद्र-शासित प्रदेश का दर्जा पाने के लिए संघर्ष किया और 30 साल तक बहुत सक्रियता से ऐसा किया लेकिन इस मुकाम को हासिल करना असंभव लग रहा था. कई चुनावों में यह मुद्दा भी बना. अब तो इसे ऐसे वादे की तरह देखा जाता था जो कभी पूरा नहीं हो सकता. हर पार्टी कहती है "हम आपको केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिलाएंगे," और फिर एक दिन ऐसा हो गया. कोई भी इसकी उम्मीद नहीं कर रहा था. यह लोगों की चिंताओं का कारण हो सकता है क्योंकि बिना संघर्ष के ही यह उन्हें मिल गया. 20 या यहां तक की 30 साल पहले भी एक संघर्ष था, लेकिन पिछले दस वर्षों में केंद्र शासित प्रदेश के लिए शायद ही कोई संघर्ष हुआ. जो हुआ वह सिर्फ दिखावटी था.

प्रवीण दोंती कारवां के डेप्यूटी पॉलिटिकल एडिटर हैं.

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