लेस्टर में दशकों की दक्षिण एशियाई एकता टूटने से हिंदू और मुसलमान दोनों को नुकसान

16 नवंबर 2022
प्रधानमंत्री को एक याचिका पेश करने से पहले सांसदों की पैरवी करने के लिए में लंदन में हाउस ऑफ कॉमन्स के रास्ते पर ग्रुनविक हड़ताल में भाग लेने वाले कार्यकर्ता. नस्लवाद और आर्थिक शोषण के खिलाफ अश्वेत और एशियाई कार्यकर्ताओं द्वारा इस तरह की एकजुट कार्रवाई की कहानियां इतिहास के पाठ्यक्रम से पूरी तरह से गायब हैं और बड़े पैमाने पर सामुदायिक स्मृति के मौखिक रूपों में भी खत्म होने लगी हैं.
पीए इमेजि​ज / अलामी स्टॉक फोटो
प्रधानमंत्री को एक याचिका पेश करने से पहले सांसदों की पैरवी करने के लिए में लंदन में हाउस ऑफ कॉमन्स के रास्ते पर ग्रुनविक हड़ताल में भाग लेने वाले कार्यकर्ता. नस्लवाद और आर्थिक शोषण के खिलाफ अश्वेत और एशियाई कार्यकर्ताओं द्वारा इस तरह की एकजुट कार्रवाई की कहानियां इतिहास के पाठ्यक्रम से पूरी तरह से गायब हैं और बड़े पैमाने पर सामुदायिक स्मृति के मौखिक रूपों में भी खत्म होने लगी हैं.
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भले ही इंग्लैंड के लेस्टर शहर का हाल का इतिहास नस्ली दुश्मनी का इतिहास रहा हो लेकिन सितंबर में जिस बर्बरता के साथ यह शहर सांप्रदायिक हिंसा की आंधी में बह गया उसने पुलिस, प्रेस और स्थानीय समुदायिक नेताओं को सकते में डाल दिया. यह हिंसा 28 अगस्त को एक मैच के बाद क्रिकेट प्रशंसकों के बीच हल्की सी झड़प के साथ शुरू हुई लेकिन अगले कुछ हफ्तों तक बेचैनी की हालत बनी रही. समाचार पत्र दि गार्जियन ने पूर्वी लेस्टर में सात सांप्रदायिक गड़बड़ियों की रिपोर्ट दी है.

इसके बाद 17 सितंबर तक स्थिति बदल जाती है. ऐसा तब हुआ जब 300 युवा हिंदुओं की हथियारबंद भीड़ ने मास्क पहन कर मुस्लिम-बहुल ग्रीन लेन रोड से "जय श्रीराम" और "वंदे मातरम" के नारे लगाते हुए मार्च निकाला. यह ऐसा नजारा था जिसे आधुनिक भारत का जानकार कोई भी इनसान तुरंत पहचान सकता था. वहां मौजूद पुलिसबल इतना नहीं था कि होने वाली हिंसा को रोक सके. इसके बाद भीड़ मेल्टन रोड तक गई, जहां इतनी ही तादाद में दक्षिण एशियाई मुस्लिम नौजवानों ने भी जवाबी जुलूस निकाला. दोनों समुदायों के बीच हाथापाई के बाद आखिरकार पुलिस वहां पहुंची और दोनों समूहों को अलग-अलग करने में कामयाब हुई.

तीन दिन बाद, यह तनाव बर्मिंघम के स्मेथविक इलाके में फैल गया जहां कुछ 200 नकाबपोश मुस्लिम मर्द दुर्गा भवन मंदिर में हिंदुओं से टकराए. अफवाहें जोरों पर थीं कि उग्रवादी हिंदू समूह दुर्गा वाहिनी की संस्थापक निशा ऋतंभरा मंदिर में भाषण देने जा रही है. आयोजकों ने ऋतंभरा की खराब तबीयत का हवाला देते हुए उनके दौरे को रद्द कर दिया लेकिन तब तक सांप्रदायिक झड़पें दुनिया भर में सुर्खियां बटोर रही थीं और उनके कार्यक्रम रद्द हो रहे थे. संयुक्त राज्य अमेरिका में उनके होने वाले भाषण दौरे रद्द हो गए. एक हफ्ते की झड़प और तोड़फोड़ के बाद पुलिस ने 55 लोगों को गिरफ्तार किया.

लेस्टर में सांप्रदायिक तनाव के बारे में ज्यादातर रिपोर्टिंग यह मानती है कि धार्मिक विभाजन ब्रिटेन में दक्षिण एशियाई समुदायों के प्राकृतिक पहलू हैं. इन समुदायों के इतिहास अधिक भिन्न नहीं हो सकते. भले ही दक्षिण एशियाई प्रवासी लेस्टर में विभाजन के क्रूर भाईचारे की छाया में पहुंचे, इन समुदायों ने एक गहरी क्रॉस-धार्मिक, क्रॉस-महाद्वीपीय एकता साझा की, खासकर नस्लवाद और गरीबी के सामान्य अनुभवों के विरोध में. लेकिन ब्रेक्सिट के बाद यानी युरोपीयन संघ से ब्रिटेन के बाहर हो जाने के बाद से ही ब्रिटेन में गरीबी और नस्लवाद फिर से बढ़ रहा है, ताजातरीन वाकए बताते हैं कि आर्थिक और सांस्कृतिक ठहराव का सामना करने के लिए दक्षिण एशियाई अलग-अलग रास्ते अपनाते हैं. लेस्टर में भीड़ ब्रिटिश सरकार की दशकों की नीति और हिंदू दक्षिणपंथ की लामबंदी का नतीजा थी जिसने धीरे-धीरे एक ऐसे समुदाय के जख्मों को उघाड़ दिया था जो पहले खुद को धार्मिक आधार पर परिभाषित नहीं करता था.

एशियाई कामगारों ने पाया कि उन्हें गोरों के स्वामित्व वाली फैक्ट्री में उनके समकक्ष गोरों की तुलना में काफी कम वेतन दिया जा रहा था और मई 1974 में वे हड़ताल पर चले गए. उन पर नस्लवादियों द्वारा हमला किया गया और कई स्ट्राइकरों को गिरफ्तार किया गया लेकिन अंततः हड़ताल सफल रही. नस्लवाद और आर्थिक शोषण के खिलाफ इस तरह की एकजुट कार्रवाई की कहानियां इतिहास के पाठ्यक्रम से पूरी तरह गायब हैं और इस क्षेत्र में सामुदायिक स्मृति के मौखिक रूपों में भी काफी हद तक खत्म होने लगी हैं.

सुकांत चंदन लंदन स्थित एक विश्लेषक और नस्लीय लोगों, वैश्विक दक्षिण के समुदायों और पश्चिम में प्रवासियों के अधिकारों के पैरोकार हैं. वह मैल्कम एक्स मूवमेंट के समन्वयक हैं.

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