महाराष्ट्र चुनाव में दिखा 'जरांगे फैक्टर' का असर

27 जनवरी, 2024 को छत्रपति शिवाजी महाराज चौक, वाशी में जमा मराठा आरक्षण समर्थक. आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा सभी मांगों को मान लेने के बाद अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त किया था. बच्चन कुमार/एचटी फ़ोटो
21 November, 2024

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महाराष्ट्र में 20 नवंबर को सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में मराठा आरक्षण का मुद्दा केंद्र में रहा. पिछले साल भड़की आंदोलन की आग इस बार चुनाव परिणाम को कितना प्रभावित करेगी, यह देखने लायक़ बात होगी.

1 सितंबर 2023 को पुलिस ने छत्रपति संभाजीनगर से तकरीबन 75 किलोमीटर दूर बसे अंतरवाली सराठी गांव में प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया और आंसूगैस के गोले दागे थे. यह वही गांव है जहां इस आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल रहते हैं. प्रदर्शनकारी 29 अगस्त से मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे. पुलिस कार्रवाई ने मराठा आंदोलन को और तेज़ कर दिया और इसे ‘जरांगे फैक्टर’ के नाम से पहचाना जाने लगा.

स्थानीय पत्रकारों के अनुसार, लाठीचार्ज के बाद सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंचने वाले नेताओं में शरद पवार थे. उनके बाद कई दूसरे नेता जरांगे से मिलने पहुंचे. वरिष्ठ पत्रकार राजेभाऊ मोगल का मानना है कि अगर शरद पवार वहां न गए होते, तो शायद जरांगे पाटिल आज इतने प्रभावशाली न बनते.

मराठवाड़ा, महाराष्ट्र का सबसे अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र है. किसानों की आत्महत्याओं के लिए यह अक्सर सुर्खियों में रहता है. मूल रूप से कृषि प्रधान मराठा समुदाय राज्य की राजनीतिक शक्ति में हावी रहा है. महाराष्ट्र के 18 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से रहे हैं. हालांकि, इस समुदाय के भीतर भी गहरी असमानताएं हैं. अमीर ‘गडीवरचा मराठा’ और गरीब ‘गरीब मराठा’ के बीच बड़ा फासला है. मराठवाड़ा में मराठा आंदोलन और ओबीसी समुदाय की लामबंदी सबसे प्रमुख रही. 2024 के आम चुनाव में इस क्षेत्र की आठ में से सात लोकसभा सीटों पर मराठा उम्मीदवार जीते. केवल लातूर, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, पर गैर-मराठा उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी.

राजनीतिक शोधकर्ता संजय पाटिल के मुताबिक, मराठा आंदोलन को राज्य में चल रहे कृषि संकट के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. फरवरी 2023 में, राज्य सरकार ने 60 फीसदी क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित किया था. मराठवाड़ा का बीड जिला, जो अक्सर सूखे, किसानों की आत्महत्याओं और बड़े पैमाने पर पलायन का केंद्र रहता है, आंदोलन का मुख्य केंद्र बना. यहां से हर साल लगभग छह लाख लोग गन्ना काटने के लिए पश्चिमी महाराष्ट्र जाते हैं.

बीड जिले में विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा चरम पर रही. यहां एनसीपी के दो विधायकों, संदीप क्षीरसागर और प्रकाश सोलंके के घरों को आग के हवाले कर दिया गया. एनसीपी कार्यालय भी जलाया गया. इसके अलावा, बीजेपी नेता पंकजा मुंडे को एनसीपी (शरद पवार गुट) के बजरंग सोनवने के हाथों हार का सामना करना पड़ा. पंकजा मुंडे वंजारी समुदाय से आती हैं, जो महाराष्ट्र का एक मजबूत ओबीसी समुदाय है.

मोगल के मुताबिक, मराठा प्रदर्शनकारियों का गुस्सा उन नेताओं के ख़िलाफ़ अधिक था, जो मराठा समुदाय से आते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि राजनीतिक शक्ति होने के बावजूद उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ.

प्रदर्शन के बाद सरकार ने मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) के तहत 10 फीसदी आरक्षण दिया. लेकिन यह जरांगे पाटिल को संतुष्ट नहीं कर सका. उनकी मांग थी कि मराठा समुदाय को कुंभियों (जो ओबीसी में आते हैं) के रूप में मान्यता दी जाए. सरकार ने इसके लिए पैनल गठित किए और कुंभियों के प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया शुरू की.

बच्चन कुमार/एचटी फ़ोटो

यह मांग ओबीसी समुदाय के लिए एक बड़ा ख़तरा बन गई क्योंकि इससे उनके आरक्षण और प्रतिनिधित्व पर असर पड़ सकता था. ओबीसी और दलित समुदाय ने भी विरोध में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. मराठा प्रदर्शनकारियों ने ‘जो हमारे साथ नहीं, वह हमारे खिलाफ है’ जैसे आक्रामक नारे लगाए, जिससे हालात और बिगड़े.

जरांगे पाटिल ने चुनाव लड़ने या किसी उम्मीदवार का समर्थन करने से इंकार कर दिया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा, "समुदाय जानता है कि किसे चुनना है और किसे हराना है." बीड के परली विधानसभा क्षेत्र में एनसीपी (अजीत पवार गुट) ने एक मराठा उम्मीदवार को उतारा है. यह क्षेत्र 1990 के दशक से मुंडे परिवार का गढ़ रहा है. यहां धनंजय मुंडे का मुकाबला एक मराठा उम्मीदवार से है. धनंजय ने कहा कि इस बार ओबीसी के बीच एकजुटता का फायदा महायुति को होगा.

हालांकि, मोगल ने चेताया कि ‘जरांगे फैक्टर’ को ख़ारिज करना जल्दबाजी होगी. जरांगे से मिलने लगभग हर बड़ा नेता अंतरवाली सराठी गया था, यहां तक कि मुस्लिम नेता इम्तियाज जलील ने भी उनका समर्थन किया. मराठा, मुस्लिम और दलित समुदाय का एकजुट होना महायुति के लिए चुनावी नुकसानदायक साबित हुआ. इसी के जवाब में बीजेपी नेताओं ने विभाजनकारी बयानबाजी की. उदाहरण के लिए, ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ़ हैं’ जैसे नारे लगाए गए.

जरांगे ने हाल ही में एक साक्षात्कार में बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा, "जब मराठा आरक्षण की बात होती है, तो हिंदू हमारे ख़िलाफ़ हो जाते हैं. लेकिन जब मुसलमानों को निशाना बनाना होता है, तो मराठाओं को हिंदुओं के पीछे चलने के लिए कहा जाता है." बीड में कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि उनका प्रचार आरक्षण के मुद्दे पर आधारित नहीं है. मराठवाड़ा में कृषि संकट प्रमुख मुद्दा बना हुआ है. पंकजा मुंडे ने भी बीजेपी नेताओं की बयानबाजी की आलोचना की और कहा कि उनका एजेंडा केवल विकास है.

चुनाव के बाद ध्रुवीकरण और विभाजन को कम करने की उम्मीद जताई जा रही है. हालांकि, स्थानीय कांग्रेस नेताओं का मानना है कि यह विभाजन जल्द नहीं सुलझेगा. जरांगे पाटिल और उनके आंदोलन ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई धाराएं जोड़ दी हैं, जिनका असर आने वाले सालों तक देखने को मिल सकता है.

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