16 फरवरी को पंजाब के संगरूर जिले की मालेरकोटला तहसील की दाना मंडी में नागरिकता संशोधन कानून, 2019 और प्रस्तावित एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ राज्य के 14 जन संगठनों ने संयुक्त रूप से रैली आयोजित की. रैली में हजारों की संख्या में महिलाओं, छात्रों, नौजवानों, किसानों और खेत मजदूरों ने भाग लिया. लोग जोशीले नारों वाली तख्तियां हाथों में थामे हुए थे. वहां मौजूद एक किसान की तख्ती पर लिखा था, “भाई-भाई नूं लड़न नहीं देणा, सन 47 बणन नहीं देणा” (भाई-भाई को लड़ने नहीं देंगे, सन 47 बनने नहीं देंगे.) एक अन्य नौजवान के प्लेकार्ड पर लिखा था, “जरूरतमंद विद्यार्थी को किताब दान करो, विद्यार्थी का नाम : अमित शाह, किताब : भारत का संविधान”. लोग जोरों से नारे लगा रहे थे, “हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई”. शामिल होने आए लोगों ने केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की. वक्ताओं के जोशीले भाषणों को श्रोताओं की तालियों का समर्थन मिलता रहा. रैली में शामिल लोगों ने केंद्र सरकार द्वारा देश में सांप्रदायिक विभाजन कराने और अंधराष्ट्रवाद के जरिए लोगों को धर्म के नाम पर लड़वाने की निंदा की.
इस रैली के मुख्य वक्ता थे मानव अधिकार कार्यकर्ता और लेखक हर्ष मंदर. मंदर ने लोगों से अपील की, “जब अधिकारी आपके दरवाजे पर नागरिकता के दस्तावेज देखने आएं, आप न दिखाएं. मैं भी अपने कागज नहीं दिखाऊंगा और खुद को मुसलमान बताऊंगा, फिर चाहे मुझे डिटेंशन सेंटर में ही क्यों न भेज दिया जाए.” मंदर ने मौजूद लोगों से कहा, “आप ‘हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में हैं बहन-भाई’ का नारा लगाओ क्योंकि इस आंदोलन की अगुवाई बहनें कर रही हैं. महिलाओं की भूमिका को हम कम करके नहीं आंक सकते.”
मंदर ने कहा कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ लड़ाई मोहब्बत, इंसानियत और बराबरी की लड़ाई है और इसमें पंजाब के लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. अपने संबोधन में मंदर ने पंजाब के किसानों द्वारा शाहीन बाग के संघर्ष के साथ दिखाई एकजुटता को भी याद किया.
पिछले कई दिनों से मुस्लिम बहुल मालेरकोटला सीएए विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र बना हुआ है. मालेरकोटला में सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ 9 जनवरी से लगातार आंदोलन जारी है. इस आंदोलन की शुरुआत 72 सामाजिक और धार्मिक संगठनों की संयुक्त एक्शन कमेटी ने की थी. पिछले दिनों यहां कई बड़ी सभाएं हुई हैं. इनमें छात्रों-नौजवानों और औरतों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. 16 फरवरी की रैली की अगुवाई भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां), भारतीय किसान यूनियन (एकता ढकौंदा), नौजवान भारत सभा (ललकार), किसान संघर्ष कमेटी, पंजाब खेत-मजदूर यूनियन, पंजाब स्टूडेंट यूनियन (ललकार), इंकलाबी नौजवान विद्यार्थी मंच, पंजाब स्टूडेंट यूनियन (शहीद रंधावा), टैक्सटाइल हौजरी कामगार यूनियन, इंकलाबी मजदूर केंद्र, मोल्डर एंड स्टील वर्कर्स यूनियन, कारखाना मजदूर यूनियन, टीएसयू और नौजवान भारत सभा ने की.
इस अवसर पर पंजाब खेत-मजदूर यूनियन के लक्ष्मण सिंह सेवेवाला ने कहा, “पंजाब के लोग बीजेपी की फासीवादी व हिंदुत्ववादी नीतियों को लागू नहीं होने देंगे. हम अपनी मुहिम को जारी रखेंगे. 24 से 29 फरवरी तक पंजाब भर में विरोध सप्ताह मनाया जाएगा.” सेवेवाला ने पंजाब सरकार को भी चेतावनी देते हुए कहा कि यदि उसने राज्य में एनपीआर लागू करने की कोशिश की, तो उसे लोगों के विरोध का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा.
पंजाब लोक सभ्याचारक मंच के नेता अमोलक सिंह ने अपनी तकरीर में कहा, “हाअ का नारा देने वाली मालेरकोटला की धरती पर आज दोबारा नए इतिहास का पन्ना लिखा जा रहा है. आज जलियांवाला बाग और शाहीन बाग दोनों एक-दूसरे को गले लगाकर मिल रहे हैं. इस जनसमूह ने साबित कर दिया है यह देश उन लोगों, सभी धर्मों व संप्रदायों का है जिन्होंने भाईचारा और एकता के लिए आजादी के संग्राम में कुर्बानियां दी थीं. भाईचारे की विरासत की जो आवाज बुल्ले शाह, नानक और सोहन सिंह भकना ने दी थी वही आवाज आज मालेरकोटला की धरती पर गूंज रही है. हम मुल्क को दोबारा 1947 नहीं बनने देंगे. मालेरकोटला की धरती ‘अज्ज आख्खां वारिस शाह नूं, किते कबरां विच्चों बोल’ दोहरा रही है.”
शहीद भगत सिंह के भानजे और राजनीतिक कार्यकर्ता जगमोहन ने कहा, “देश के मौजूदा शासक सांप्रदायिक माहौल बनाकर सत्ता पर बने रहना चाहते हैं. आरएसएस और बीजेपी ने देशभक्ति के मायनों को बदल दिया है. हमें देशभक्ति के सही अर्थ शहीद भगत सिंह और उनके साथियों, गदरी बाबों और जलियांवाला बाग से सीखने पड़ेंगे.” जगमोहन ने आगे कहा कि अक्सर देखा गया है कि नागरिकों को कानून के उल्लंघन करने या संविधान की आलोचना करने पर सजा दी जाती है लेकिन अब अमित शाह और मोदी जैसे हुक्मरान ही देश के संविधान और लोगों का अपमान कर रहे हैं.”
मंच से जहां सीएए रद्द करने, एनआरसी व एनपीआर वापिस लिए जाने की मांग हो रही थी, वहीं आंदोलनरत लोगों पर दर्च झूठे केसों को रद्द करने, गिरफ्तार किए गए बुद्धिजीवियों को रिहा करने, जेएनयू, जामिया व अन्य स्थानों पर बर्बरता करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने, शाहीन बाग और जामिया में गोली चलाने वालों, नजरबंदी (डिटेंशन) कैंपों को खत्म कर सभी नजरबंदियों को रिहा करने और औरतों के गुप्तांगों पर वार करने वाले पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांगें भी की गई.
मंच पर सिर्फ जन संगठनों के नुमाइंदों और बाहर से आए मेहमानों को बिठाने के प्रबंधकों के फैसले के कारण रैली में शामिल होने पहुंचे तख्त दमदमा साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी केवल सिंह को भी आम लोगों के बीच ही बैठना पड़ा.
प्रबंधकों ने मुझे बताया कि रैली में एक लाख से ज्यादा लोग पहुंचे हैं. मालेरकोटला के स्थानीय लोगों में इतना उत्साह था कि वे अपने घरों व दुकानों को ताले लगाकर रैली में शामिल हुए. रैली में पहुंचे रहमदीन का कहना था, “आज मालेरकोटला के हर घर का व्यक्ति अपने घर से निकलकर यहां पहुंचा है क्योंकि यदि हम एकजुट नहीं हुए तो तमाम अल्पसंख्यकों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो सकता है. इस रैली में प्रधानमंत्री मोदी के एक छोटे-से पुतले के साथ आए छठी कक्षा के दो बच्चे रसीद और नवेज ने बताया कि दोनों मोदी सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने आए हैं. जालंधर से यहां पहुंची एक वामपंथी छात्रा का विचार था कि इस रैली में वामपंथी संगठनों की भागीदीरी इस बात का सुबूत है कि वामपंथी लोग और चिंतक देश के बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के मन में उपजे भय को समझने की कोशिश कर रहे हैं.
मालेरकोटला के रहने वाले विनय ने मझे बताया कि वह रैली में शामिल होने के लिए अपनी दुकान बंद करके आए हैं. उन्होंने कहा, “मैं बेशक हिंदू धर्म से संबंध रखता हूं लेकिन केंद्र सरकार के सीएए जैसे काले कानून के विरुद्ध अपने मुसलमान भाइयों के साथ खड़ा हूं क्योंकि यह एक धर्म की नहीं बल्कि हम सबकी साझी लड़ाई है.”
बठिंडा से रैली में भाग लेने आए अधेड़ उम्र के नाजर सिंह ने कहा, “मैं मालेरकोटला की धरती का कर्ज चुकाने के लिए यहां पहुंचा हूं. 300 साल पहले जब मेरे गुरु के छोटे बच्चों को सरहिंद के नवाब ने दीवारों में चिनवाने का हुक्म दिया था तो मालेरकोटला के नवाब ने मेरे गुरु के बच्चों के हक में ‘हाअ का नारा’ लगाया था (आह भरी थी).”
नाजर सिंह जिस ‘हाअ का नारा’ की बात कर रहे थे उसका संबंध 18वीं सदी में यहां के नवाब शेर मोहम्मद खां से है. मालेरकोटला की नींव रखने वाले बायाजिद खान के पोते शेर मोहम्मद ने 1704 में चमकौर की लड़ाई के बाद सिख गुरु गोबिंद सिंह के दो बेटों की हत्या का विरोध किया था. इसे ही सिख मालेरकोटला नवाब के ‘हाअ के नारे’ के रूप में याद करते हैं. मालेरकोटला में इस याद में ‘हाअ दा नारा गुरुद्वारा’ भी है. 1843 में प्रकाशित संतोख सिंह की गुर प्रताप सूरजग्रंथ में लिखा है, “दषम् गुरु जी ने फरमाया है ‘इक मलेरियन की जड़ हरी’” यानी मालेरकोटला और इसके लोग सदा बसते रहेंगे.
यही कारण है कि सन 1947 के सांप्रदायिक कत्लेआम में मालेरकोटला में एक भी मुसलमान की हत्या नहीं हुई. यहां तक कि पंजाब के अन्य गांवों से जो मुसलमान यहां आ गए उनकी जान भी बच गई. इतिहास में बहुत सारी कड़वी घटनाएं हुईं लेकिन मालेरकोटला में भाईचारे की विरासत बनी रही.
रैली में अर्थशास्त्री नवशरन ने औरतों की भारी उपस्थिति के बारे में कहा, “औरत ने समझ लिया है कि यदि समाज में विभाजन होता है और नफरत की सियासत चलती है तो इसकी सबसे ज्यादा कीमत औरत को ही चुकानी पड़ती है. मालेरकोटला की धरती पर औरतों का बाहर खुलकर आना एक नया अध्याय है.”
मालेरकोटला की सुलताना व नजमा ने अपने दिल की बात बताते हुए कहा, “हम इस काले कानून के विरोध में इसलिए आए हैं क्योंकि हमें अपने बच्चों के भविष्य की फिक्र है. जब औरत जागती है तो पूरा परिवार जाग जाता है. मालेरकोटला की औरतें भी अपने हकों के लिए जाग चुकी हैं.”
रैली में दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी और कारवां-ए-मोहब्बत के प्रतिनिधी भी शामिल हुए. दिल्ली से आए जामिया के एक छात्र ने मुझे बताया, “मैं सीएए के खिलाफ देश की अनेक जगहों में हुईं रैलियों में गया हूं लेकिन यहां कमाल की बात यह है कि यहां किसी एक धर्म के लोग नहीं बल्कि पंजाब के हर धर्म और हर विचारधारा के लोग शामिल हुए हैं. असल में इस रैली में सचमुच पंजाबियत का रंग झलक रहा है और यह पंजाबियों के एका का भी सबूत है.”
प्रबंधकों में से एक लक्ष्मण सिंह सेवेवाला ने मुझे बताया कि रैली को सफल बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी. “सबसे पहले तो हमारे संगठनों ने सीएए, एनआरसी और एनपीआर को समझाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं की ही जिला स्तरीय बैठकें बुलाईं. फिर हमनें गांवों के सार्वजनिक स्थलों पर चर्चाएं कीं, हम गांवों के घर-घर तक पहुंचे. कानून की बारीकियां समझाने के लिए पंजाबी में 135000 पर्चे छापे और बांटे गए. इसके साथ ही, पंजाब में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों के लिए 48 हजार पर्चे हिंदी में छापकर वितरित किए गए. आयोजक संगठनों ने 25 हजार पोस्टर छपा कर लगाए. नौजवान कार्यकर्ता विक्रम और मलकीत ने बताया कि उन्होंने मोगा जिला के बहुत सारे गांवों में सीएए कानून के बारे में लोगों को जागरूक किया है.
रैली में जगह-जगह से आने वाले लोगों के लिए लंगर लगाया गया था. मालेरकोटला के मुसलमान, सिख और हिंदुओं के अलावा संघर्षशील संगठनों के कार्यकर्ता भी लंगर परोसने में मदद कर रहे थे. लंगर के प्रबंध के बारे में नौजवान भारत सभा के नेता पावेल कुस्सा ने बताया, “तमाम जन संगठनों ने मालेरकोटला के गांवों के लोगों से अपील की कि वे लंगर में अपना योगदान करें और आस-पास के 162 गांवों ने लंगर में अपना योगदान किया. मालेरकोटला शहर के लोगों ने अपनी तरफ से अलग से योगदान किया.” इस रैली में किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ मालेरकोटला के नौजवान मुस्तैद थे.