नाक से बड़ी नथुनिया

सिमटते लोकतंत्र की कीमत पर जगमगाती नरेन्द्र मोदी की छवि

24 जनवरी 2023
दिसंबर 2016 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक घर के बाहर लगा नरेन्द्र मोदी का एक कट-आउट. जनता को यह यकीन दिला दिया गया है कि मोदी है तो मुमकिन है और अगर कुछ गलत होता भी है तो वह इसलिए क्योंकि हर काम अब मोदी खुद से तो नहीं कर सकते.
धीरज सिंह/ब्लूमबर्ग/गैटी इमेजिस
दिसंबर 2016 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक घर के बाहर लगा नरेन्द्र मोदी का एक कट-आउट. जनता को यह यकीन दिला दिया गया है कि मोदी है तो मुमकिन है और अगर कुछ गलत होता भी है तो वह इसलिए क्योंकि हर काम अब मोदी खुद से तो नहीं कर सकते.
धीरज सिंह/ब्लूमबर्ग/गैटी इमेजिस

हालिया गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सर्वेसर्वा छवि पेश करते हुए विपक्ष का सफाया कर दिया. बीजेपी ने मोदी के नाम पर दिल्ली नगरपालिका चुनाव लड़ा और जीतने के करीब पहुंची. मोदी की हद से ज्यादा बड़ी छवि पार्टी के लिए एक राजनीतिक फ्री पास बन गई है. यहां तक कि स्थिति यह है कि यह छवि अक्सर शासन की विफलताओं पर पर्दा डालने में सफल होती है.

हालांकि, ऐसा नहीं है कि जनता के मन में यह छवि स्थायी रूप से बैठ गई है. इसे लगातार पोसा जाता है. मोदी की राजनीतिक प्रतिभा इसी में है कि छवि को कायम रखने के लिए वह हमेशा नए तरीके खोजने की क्षमता रखते हैं. यहां तक कि ऐसे राज्यों में जहां हाल-फिलहाल चुनाव नहीं होने वाले हैं, मुमकिन है किसी आगंतुक का पहला सामना जी20 शिखर सम्मेलन में भारत के नेतृत्व का जश्न मनाने वाले पोस्टरों से झांकते आह्लादित मोदी से हो जाए. जी20 में भारत का नेतृत्व करना कायदे से कोई उपलब्धि नहीं है, यह एक नियमित प्र​क्रिया है. हर देश को बारी-बारी से यह मौका मिलता है. लेकिन यह तथ्य तब अप्रासंगिक हो जाता है जब लोगों तक जो पहुंचे वही देश में एकमात्र राजनीतिक वास्तविकता बन जाए.

वास्तविकता पर यह शिकंजा दशकों में कायम हुआ है. इसकी शुरुआत 2002 में गुजरात में मुस्लिम विरोधी हिंसा के साथ हुई थी. उस वक्त तक मोदी बीजेपी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे जो इस उम्मीद में एक टेलीविजन स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो तक दौड़ लगाते थे कि कोई उनसे बात कर ले. नफरत और हिंसा के कोलाहल में, उन्होंने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में तैयार किया जो हिंदुओं के लिए खड़ा था.

एक दशक बाद जब मैंने गुजरात की यात्रा की, मोदी बतौर मुख्यमंत्री तीसरे कार्यकाल के लिए प्रचार कर रहे थे. मैंने हर तरफ उनकी छवि में हुए इजाफे को देखा, जो अब सभी के लिए बहुत परिचित है. हिंसा के बाद उनकी अपार लोकप्रियता ने राज्य में हर तरह के विपक्ष को, संस्थागत और राजनीतिक, एक ​किनारे लगा दिया था. मीडिया सरकार का मुखपत्र बन चुका था. ओपन मैगजीन के लिए एक अंश में, मैंने लिखा था,

गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में मोदी के चुनाव अभियान करते हुए अरविंद वेगड़ा एक कलाकार के रूप में पेश आते हैं. वह मोदी की स्क्रिप्ट को निभाते हुए अपनी लाइनें कहते हैं,

कांग्रेस वोटर : मेरे पास घर है, सस्ती दवाई है, चीनी लैपटॉप है, मुफ्त की बिजली है. तुम्हारे पास क्या है?

बीजेपी वोटर : मेरे पास मोदी है.

हरतोष सिंह बल कारवां के कार्यकारी संपादक और वॉटर्स क्लोज ओवर अस : ए जर्नी अलॉन्ग द नर्मदा के लेखक हैं.

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