मोदी ने खुद के नाम की थी सरकारी जमीन, चुनावी हलफनामे में मानी बात

26 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी सीट से लोकसभा उम्मीदवार के तौर पर नामांकन भरा. नामांकन के साथ दायर हलफनामे में दी गई जानकारी और हालकी उनकी सार्वजनिक घोषणाओं से इस बात की पुष्टि होती है कि बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांधीनगर के एक पॉश इलाके में खुद को जमीन उपहार में दी थी. इस जमीन की कीमत आज एक करोड रुपए से ज्यादा है जो इसके लिए चुकाई गई कीमत से तकरीबन 100 गुना अधिक है. इसके अलावा प्रधानमंत्री ने जो वक्तव्य दिए हैं उसमें इस बात का संकेत है कि 2007 में राज्य की ओर से सुप्रीम कोर्ट को दी गई जानकारी में मीनाक्षी लेखी ने इस तथ्य को सुप्रीम कोर्ट से छुपाया था. लेखी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि साल 2000 के बाद गुजरात सरकार ने इस प्रकार का भू आवंटन नहीं किया है. जमीन पाने की पात्रता मोदी को 2001 में मिली जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री नियुक्त हुए. फरवरी 2002 में राजकोट दो निर्वाचन क्षेत्र से उपचुनाव जीत कर मोदी राज्य विधानसभा में चुने गए थे.

इस महीने कारवां में प्रधानमंत्री की जमीन संपत्ति से संबंधित रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जो उन्होंने 2007 के हलफनामे में कही थी और PMINDIA वेबसाइट पर दर्ज है. हमारी रिपोर्ट में बताया गया था कि हाल में एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है जिसमें मोदी द्वारा जमीन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने का आरोप है. यह जनहित याचिका पूर्व पत्रकार और स्वतंत्र संचार और मार्केटिंग सलाहकार साकेत गोखले ने दायर की है.

कारवां ने अपनी उस रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 2007 में दायर चुनावी हलफनामे में मोदी ने घोषणा की थी कि वह गांधीनगर के सेक्टर 1 में प्लॉट 411 के एकमात्र मालिक हैं.

इसके बाद दायर किए गए हलफनामों में इस प्लॉट की जानकारी गायब है और प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइट में प्रकाशित जानकारियों में भी इसके बारे में नहीं बताया गया है. बल्कि मोदी ने प्लॉट 401/ए के “एक चौथाई हिस्से” का मालिक होने का दावा अपने शपथपत्रों में किया है. यह प्लॉट उसी सेक्टर में स्थित है. मोदी ने प्लॉट का क्षेत्रफल 14125.80 वर्ग फीट बताया है जो सेक्टर 1 के मानक प्लॉटों से 4 गुना अधिक बड़ा है. मोदी ने इस प्लॉट में अपनी हिस्सेदारी 3531.45 वर्ग फीट बताई है जो 328.08 वर्ग मीटर के बराबर है.

हमारी रिपोर्टिंग से पता चला है कि प्लॉट 401/ए का कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. गुजरात राजस्व विभाग के गांधीनगर के भू रिकॉर्ड से यह प्लॉट गायब है. हमने इस बारे में विभिन्न जिला प्रशासनिक विभाग सहित कलेक्टर ऑफिस, उपरजिस्ट्रार ऑफिस एवं मामलातदार ऑफिस से भी पता लगाने की कोशिश की. अधिकारियों ने हमें बताया कि इन प्लॉटों के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं या उन्होंने हफ्तों पहले पूछे गए हमारे सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया. सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध रिकॉर्ड बताते हैं कि मोदी प्लॉट 411 के वर्तमान और एकमात्र मालिक हैं.

दिलचस्प बात है कि प्लॉट 401/ए वित्त मंत्री अरुण जेटली के चुनावी शपथपत्र और सार्वजनिक घोषणा में दिखाई देता है. हाल में अपनी सार्वजनिक घोषणा में जेटली ने बताया है कि वह प्लॉट 401/ए के एक चौथाई हिस्सेदार हैं. गांधीनगर के मामलातदार ने जेटली को यह प्लॉट आवंटित किया था. सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार जेटली, प्लॉट 401/ए के वर्तमान एवं एकमात्र मालिक हैं.

कारवां की पूर्व प्रकाशित रिपोर्ट में कई सवाल उठाए गए थे कि कैसे प्रधानमंत्री द्वारा घोषित जानकारी और सार्वजनिक तौर पर गांधीनगर के उपलब्ध रिकॉर्ड मेल नहीं खाते. गांधीनगर के सेक्टर 1 में संसद सदस्य, विधानसभा सदस्य तथा सार्वजनिक कर्मचारियों को सरकारी प्रस्तावों के अनुरूप जमीन आवंटित की जाती है. हमने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि यह स्पष्ट नहीं है कि प्लॉट नंबर 411 और प्लॉट नंबर 401/ए दो अलग अलग इकाई हैं और यह भी कि मोदी ने स्पष्ट नहीं किया है कि वह इस जमीन के मालिक कैसे बने.

उस रिपोर्ट के प्रकाशित होने से तकरीबन 2 सप्ताह पहले हमने प्रधानमंत्री को सवालों की एक विस्तृत सूची भेजी थी लेकिन उन्होंने हमारे द्वारा उठाए सवालों का स्पष्टीकरण नहीं दिया. लेकिन तब से लेकर हाल तक प्रधानमंत्री ने अप्रत्यक्ष तौर पर ही सही लेकिन हमारे सवालों का जवाब दिया है. 24 अप्रैल को अभिनेता अक्षय कुमार के साथ अपने इंटरव्यू में इस बारे में मोदी ने थोड़ा जिक्र किया है.

कारवां में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद बीजेपी ने एक अनौपचारिक नोट प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का जीवन: साधारण जीवन और उच्च विचार की मिसाल. इस नोट में प्रधानमंत्री की बड़ी-बड़ी प्रशंसाए हैं और उन्हें देश के लिए अपना संपूर्ण जीवन अर्पण कर देने वाला आदमी कहा गया है और यह भी कहा गया है कि उनकी एकमात्र नीति है “अंत्योदय” यानी समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति का उत्थान. इस नोट में मोदी और जेटली के शपथपत्रों में सूचित 401/ए प्लॉट से संबंधित भ्रम के बारे में भी बताया गया है. नोट कहता है कि 25 अप्रैल 2008 को चार अलग-अलग लोगों द्वारा खरीदे गए 4 प्लॉटों को एक बना दिया गया तो जाहिर है कि अलग अलग प्लॉटों को मिलाकर बनाए गए एक प्लॉट का नंबर उन चारों प्लॉट के नंबरों से अलग ही होगा”. इसी प्रकार का बचाव मोदी के ताजा हलफनामे में भी दिखाई देता है. इस हलफनामे में मोदी ने घोषणा की है कि वे प्लॉट 401/ए के मालिक हैं. वह यह भी बताते हैं कि प्लॉट का ओरिजिनल सर्वे नंबर 411 है जो प्लॉट 401/ए को मिलाने के बाद दिया गया है.

बीजेपी द्वारा प्रकाशित इस अनौपचारिक नोट में ऐसी बहुत सी घटनाओं का जिक्र है जिनमें बताया गया है कि मोदी ने अपने निजी संपत्ति सामाजिक कल्याण के लिए दान में दी है. उदाहरण के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद नरेन्द्र मोदी ने अपनी बचत का 21 लाख रूपए गुजरात सरकार के स्टाफ की बेटियों की शिक्षा के लिए दान दे दिया.

अक्षय कुमार ने भी अपने “गैर राजनीतिक” साक्षात्कार में मोदी की उदारता का उल्लेख किया है. अक्षय कुमार कहते हैं, “मोदी जी मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि मैंने सुना है, जब आप मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बने तब आपके बैंक में 21 लाख रूपए थे और आपने इस रकम को स्टाफ सदस्यों की बेटियों के लिए दान कर दिया.

मोदी ने स्पष्ट किया कि वह 21 लाख रुपए उनकी बचत का एक हिस्सा था न कि उनकी पूरी पूंजी. इसके बाद उन्होंने अपनी जमीन संपत्ति के बारे में चर्चा की जो उन्होंने कार्यकाल में प्राप्त की थी. उन्होंने कहा कि गुजरात में सरकार की तरफ से एमएलए को प्लॉट दिया जाता है. उन्होंने कहा कि प्लॉट को खरीदना पड़ता है लेकिन वह रियायती दर में मिलता है. मोदी कहते हैं, “मैंने पार्टी को बताया कि यह जमीन मैं पार्टी को देना चाहता हूं क्योंकि मुझे इसकी जरूरत नहीं है”. मोदी आगे कहते हैं कि पार्टी को सौंपने की प्रक्रिया चल रही थी जब उन्हें पता चला कि सुप्रीम कोर्ट में राज्य में जमीन के आवंटन से संबंधित सुनवाई चल रही है. “वहां कुछ मामला है जिसमें जमीन को दिए जाने पर रोक लगी हुई है. मुझे नहीं पता यह मामला क्या है क्योंकि मैं ऐसे विषयों पर ध्यान नहीं देता. लेकिन जैसे ही यह मामला निपट जाएगा मैंने निर्णय किया है कि मैं यह जमीन पार्टी को दे दूंगा”. सरकारी भू रिकॉर्ड में यह बताया गया है कि यह भूमि आवासीय या चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए है.

यहां यह बात जानना जरूरी है जब मोदी यह बताते हैं कि उन्हें एमएलए बनने पर सरकारी जमीन आवंटित की गई थी तब सरकार उनकी थी. वह 2001 के आखिर में मुख्यमंत्री बने थे और फरवरी 2002 में एमएलए बने. 2007 के अपने शपथपत्र में मोदी ने प्लॉट 411 की खरीद की तारीख 25 अक्टूबर 2002 बताई है. यही जानकारी प्लॉट 401/ए के बारे में उनके ताजा हलफनामे में है. मोदी ने बताया है कि उन्होंने इस प्लॉट को 1 लाख 30000 रुपए में खरीदा था और उस पर 2 लाख 47000 रुपए निर्माण कार्य कराया था. मोदी ने हलफनामे में बताया है कि इस प्लॉट की वर्तमान कीमत 1 करोड़ 30 लाख है.

अक्षय कुमार के साथ अपने साक्षात्कार में मोदी ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह किसी भी तरह की जमीन की हकदारी नहीं चाहते. यदि ऐसा है तो यह स्पष्ट नहीं है कि मोदी ने वह जमीन खरीदी ही क्यों? आगे वह कहते हैं कि वह जमीन को बीजेपी को सौंपना चाहते हैं. यदि ऐसा ही था तो वह जमीन को अन्य प्लाटों से मिलाने के लिए क्यों तैयार हो गए?

इससे पहले कारवां ने अपनी रिपोर्ट में बताया था गुजरात में सरकारी जमीन की आवंटन प्रक्रिया 2001 में अदालतों के जांच के दायरे में उस वक्त आ गई जब गुजरात हाई कोर्ट ने ऐसी जमीन के दुरुपयोग और सरकारी प्रस्ताव में आवंटन की शर्तों के उल्लंघन से जुड़ी शिकायतों पर स्वयं संज्ञान लेते हुए सुनवाई चालू की. 2001 में कोर्ट ने सरकार द्वारा आवंटित प्लाटों की बिक्री और हस्तांतरण पर रोक लगा दी लेकिन बाद में इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दे दिया. इसके अगले कुछ सालों तक गुजरात हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इस विवाद से संबंधित अपील और नए केस दर्ज होते रहे. अगस्त 2017 में इस बात का जिक्र करते हुए की इस मामले में निर्णय लेने में हाई कोर्ट असफल हुई है सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अपने पास हस्तांतरित कर लिया. जैसा कि प्रधानमंत्री ने अक्षय कुमार को बताया है, यह मामला अभी लंबित है.

इन मामलों में अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण बात कही है. 2012 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया है कि गुजरात सरकार की वकील और बीजेपी नेता मीनाक्षी लेखी ने अदालत को बताया था कि 2000 से किसी भी प्रकार का ताजा भू आवंटन नहीं किया गया है और आवंटन प्रक्रिया की पुनः जांच कराई जा रही है. प्रधानमंत्री ने अक्षय कुमार को बताया था कि उन्हें एमएलए बनने के बाद 2002 में यह प्लॉट दिया गया था. यदि यह सही है तो इससे गंभीर चिंताएं सामने आती हैं. सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट से यह सच को क्यों छुपाया गया. हमने मीनाक्षी लेखी को फोन किया और उन्हें ईमेल के जरिए सवाल भेजे लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

सेक्टर 1 के राजस्व रिकॉर्ड बताते हैं यह प्लॉट सरकारी दिशानिर्देश के-4 के अंतर्गत आते हैं और इन प्लॉटों की बिक्री और हस्तांतरण जिला कलेक्टर की अनुमति लेकर ही हो सकता है. हमने अपनी पिछली रिपोर्टिंग के दौरान जिला कलेक्टर एस. के. लांगा से संपर्क किया था और उनसे प्लॉट नंबर 411, 401 और 401/ए के मालिकाना अधिकार के इतिहास के बारे में पूछा था. हमने उनसे बार-बार संपर्क किया लेकिन उन्होंने हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया. प्रधानमंत्री द्वारा हाल की स्वीकृति के बाद हमने लांगा से फिर संपर्क किया और इस जानकारी और मीनाक्षी लेखी के दावे में भेद के बारे में पूछा. लांगा ने कहा कि वह चुनाव ड्यूटी में व्यस्त हैं. उन्होंने बताया कि इन प्लॉटों से संबंधित रिकॉर्ड जिला प्रशासन के सड़क एवं भवन विभाग के पास हैं और वह यह रिकॉर्ड बाद में किसी दिन उपलब्ध करा देंगे.