एक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक के. एन. गोविंदाचार्य ने कथित तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी को, जब वह प्रधानमंत्री थे, बीजेपी का मुखौटा बताया था. उनका आशय था कि भारतीय जनता पार्टी के मुख्य नेता तो कट्टर हिंदुत्ववादी एल. के. आडवाणी हैं. हालांकि, बाद में गोविंदाचार्य ने अपने इस कथन से इनकार कर दिया था लेकिन यह एक स्थापित सत्य है कि उस जमाने में संघ परिवार को अलग-अलग भूमिका खेलने के लिए दो अभिनेताओं की आवश्यकता थी. लेकिन अब दोनों ही भूमिका एक ही कलाकार खेलता है. वह कलाकार है नरेन्द्र मोदी जिसके दो चेहरे हैं. एक झूठा और एक सच्चे नेता का चहरा. एक नाटक गांधी को सामने रख कर विदेशी मेहमानों के आगे खेला जाता है, जबकि उनकी पार्टी के ही लोग भारत में गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की जय जयकार करते हैं.
घर में गोडसे और बाहर गांधी, यह ऐसा मंत्र था जो अभी हाल तक मोदी की सफलता का अचूक हथियार साबित हो रहा था. यह खेल जी20 शिखर सम्मेलन में अपने चरम पर तब पहुंचा जब मोदी जी20 देशों के नेताओं को एक फोटोऑप आयोजन के तहत गांधी की समाधी राजघाट लेकर गए. राजघाट के उस आयोजन में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भी शामिल हुए थे. उस नाटकीय भ्रमण के आठ दिन बाद ही ट्रूडो ने भारत सरकार पर ऐसा आरोप लगाया कि मोदी सरकार के चेहरे से मुखौटा उतर गया. ट्रूडो ने यह आरोप अपने देश की संसद के विशेष सत्र में लगाया. उन्होंने दावा किया कि सरकारी जांच में कनाडा के नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय सरकार के एजेंटों का हाथ होने की संभावना सामने आई है.
भारत में मुख्यधारा की मीडिया में जिस तरह से इस मामले को दिखाया जा रहा है उसके विपरीत कनाडा के सहयोगी देशों ने भारत के खिलाफ लगे इन आरोपों का खंडन नहीं किया है और न ही सार्वजनिक रूप से भारत का समर्थन किया है. शुरुआत में कनाडा के आरोप के बाद कनाडा के समर्थन में सहयोगी देशों के बयान हल्के दिख रहे थे लेकिन 21 सितंबर को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन, जो भारत के सरकार के साथ अमेरिका के मजबूत रिश्तों के कट्टर हिमायती हैं, ने व्हाइट हाउस की एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि "कनाडा के मसले पर भारत को कोई विशेष छूट नहीं मिलेगी." उन्होंने जोर देकर कहा कि कानूनी और कूटनीतिक प्रक्रियाओं में अमेरिका कनाडा जैसे अपने नजदीकी सहयोगियों के साथ परामर्श करेगा. इसके कुछ दिन बाद अमेरिका के विदेश मंत्री एंथोनी ब्लिंकेन ने जो वक्तव्य दिया उससे अमेरिका की स्थिति और स्पष्ट हो गई. ब्लिंकेन ने भारत को कनाडा की जांच में सहयोग करने की सलाह दी और कहा कि "हम अंतरराष्ट्रीय दमन जैसे मामलों के प्रति अत्यधिक सतर्क हैं और हम ऐसे मामलों को बहुत-बहुत गंभीरता से लेते हैं." इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि बाइडेन प्रशासन चीन को घेरने के अपने उद्देश्य के लिए भारत का साथ देने से अधिक वफादारी कनाडा के साथ अपने साझा मूल्यों के प्रति दिखाएगा.
बहुसंख्यक भारतीयों को लगता है कि कनाडा एक "कमजोर देश" है और वैश्विक शक्ति संतुलन में उसकी भूमिका निर्णायक नहीं है. लेकिन ऐसे लोग भूल जाते हैं कि कनाडा उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो का संस्थापक सदस्य देश है और साथ ही वह जी7 का सदस्य है. इसके अतिरिक्त वह इस मामले में महत्वपूर्ण फाइव आइस इंटेलिजेंस एलाइंस का भी हिस्सा है. ओटावा की एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार कनाडा फाइव आइस इंटेलिजेंस एलाइंस का वह देश है जो गुप्तचर सूचना देने से अधिक प्राप्त करता है. कनाडा की एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा को निज्जर की हत्या में भारत सरकार का हाथ होने की गुप्तचर सूचना एलायंस के एक सदस्य देश ने ही दी थी. इस सूचना को देने का शक अमेरिका पर जाता है क्योंकि ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड के पास इस तरह की जानकारी हासिल करने की क्षमता नहीं है.
यदि यह सच है तो इससे साफ दिखाई पड़ता है कि मोदी सरकार ने स्थिति का सही-सही अध्ययन नहीं किया था. मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले बीजेपी ने अक्सर पूर्व की सरकारों पर भारत को "सॉफ्ट स्टेट" बना देने का आरोप लगाया था. मोदी के हिंदुत्ववादी समर्थक की हमेशा यह चाहत होती है कि विदेशी भूमि में सक्रिय देश के शत्रुओं को भारत भी इजरायल की तरह खत्म करे. यह इन लोगों की मोसाद को लेकर एक फेंटेसी का हिस्सा है. लेकिन इजरायल ने कभी जी7 या फाइव आइस देशों में राजनीतिक हत्याओं को अंजाम नहीं दिया है. वह ऐसा अक्सर ईरान जैसे उन देशों के भीतर ही करता है जिन्हें पश्चिम की शब्दावली में "रोग नेशन" अथवा दुष्ट राष्ट्र कहा जाता है.
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