मध्य प्रदेश: दलित अत्याचार पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों चुप

28 नवंबर को होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दलित और अगड़ी जातियों के लिए अनुसूचित जाति तथा जनजाति अत्याचार निवारण कानून पर राजनीतिक दलों की चुप्पी सबसे अहम मुद्दा है. BJP.ORG
27 November, 2018

We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing

अनुसूचित जाति तथा जनजाति अत्याचार निवारण कानून (अत्याचार कानून) के प्रावधानों को कमजोर बनाने वाले सर्वोच्च अदालत के फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल को हजारों की संख्या में दलितों ने देश भर में प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों पर पुलिस और हिंदुत्ववादी गुंडो की हिंसा में, कम से कम 9 लोगों की मौत हो गई. “दो अप्रैल के प्रदर्शन के बाद दलितों की हालत इतनी खराब हो गई है कि जब हम पुलिस के पास अपनी शिकायत लेकर जाते हैं तो वे लोग हमारी पृष्ठभूमि की जांच करने लगते हैं”, ग्वालियर के 30 वर्षीय निवासी महेश कुमार मंडेलिया ने मुझे बताया.

मंडेलिया गल्ला कोठार के रहने वाले जाटव है. चौहान प्याऊ के इर्द गिर्द बसे दलित मोहल्लों में से एक है गल्ला कोठार. इन मोहल्लों में रहने वाले लोगों का कहना है कि चौहान प्याऊ के राजपूत (तोमर और चौहान) ग्वालियर के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक है जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है. यहां रहने वाले लोगों ने बताया कि 2 अप्रैल की रैली में चौहान प्याऊ के राजपूतों ने पिस्तौल और रायफलों से गोलिया बरसाईं और नजदीकी दलित मोहल्लों- गल्ला कोठार और भीम नगर- में घुस आए. हिंसा में दोनों मोहल्लों के दो दलित आदमी मारे गए और दर्जन भर से अधिक गोलीबारी में घायल हो गए.

हिंसा के बाद राज्य पुलिस ने इलाके के दलित और राजपूत लोगों की शिकायतों के आधार पर कई एफआईआर दर्ज की. चौहान प्याऊ में मैंने राजा चौहान और महेन्द्र चौहान से बात की. इन दो राजपूतों पर प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आरोप है. राजा को गिरफ्तार होने से पहले अंतरिम जमानत मिल गई थी और उसका दावा है कि उसने “अपनी औरतों को बचाने के लिए” गोली चलाई थी. दलित निवासियों की हत्या के आरोपी महेन्द्र को तीन महीनों के भीतर जमानत पर रिहा कर दिया गया था. उसका दावा है कि उसने “आत्मरक्षा” में गोली चलाई थी. लेकिन राजपूतों की ओर से कोई क्षति नहीं हुई और न ही दलितों के पास से कोई हथियार जब्त किया गया.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के तथ्यों के अनुसार मध्य प्रदेश में 2014 से हर साल 1700 से अधिक मामले अत्याचार कानून के तहत दर्ज किए गए थे. ब्यूरो के तथ्यांक के अनुसार, 2014 से ही दलितों के खिलाफ अपराध के मामले बढ़े हैं और अन्य राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश में सबसे अधिक दलित विरोधी अपराध दर्ज किए गए हैं. राज्य में चंबल-ग्वालियर संभाग में सबसे अधिक दलितों की बसावट है जो संभाग की जनसंख्या का 20 और 25 प्रतिशत है. इस संभाग में छह जिले हैं और राज्य की 230 विधानसभा में से 34 सीट यहां हैं. इसके बावजूद इस क्षेत्र में अत्याचार कानून का सबसे जबरदस्त विरोध हुआ और 2 अप्रैल के प्रदर्शन में इस क्षेत्र के 7 दलित मारे गए.

इस साल अक्टूबर में मैंने ग्वालियर और मुरैना का दौरा किया. दोनों चंबल-ग्वालियर संभाग के महत्वपूर्ण शहर है. यहां मैंने अलग अलग समुदायों के लोगों से बात की. मैंने दलित, राजपूत, ब्राह्मण और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों से बात की. सभी समुदयों में 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अत्याचार निवारण कानून पर राजनीतिक पार्टियों की खामोशी सबसे महत्वपूर्ण विषय हैं. अगड़ी जातियों का मानना था कि यह कानून एक ऐसा अस्त्र है जिसे उन लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है. उन लोगों को आशा थी कि बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर इस कानून का साफ विरोध करेगी. इन लोगों ने इस मामले में केन्द्र सरकार की दोहरे चरित्र की आलोचना की. राजा चौहान ने कहा, “मान लो कि एक दलित गुजर रहा है और उसी वक्त मैंने थूक दिया. वह मेरे खिलाफ एसीसी/एसटी कानून के तहत मामला दायर करा देगा और मैं तो गया छह महीने के लिए अंदर.”

दूसरी ओर यहां रहने वाले दलितों को दो अप्रैल के बाद पुलिस और अगड़ी जातियों के पड़ोसियों की हिंसा और दुश्मनी के मद्देनजर राजनीतिक दलों से आश्वासन चाहिए. इसके बावजूद न तो इस कानून पर विवाद और न ही दलित की सुरक्षा बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनावी मुद्दा है. चंबल-ग्वालियर संभाग के दलित संकेत देते हैं कि इस उदासीनता का असर चुनाव परिणाम में दिखाई देगा. “वोट देते वक्त जो एक बात हम याद रखेंगे वह यह कि 2 अप्रैल के बाद किस राजनीतिक दल या नेता ने हमें समर्थन दिया और कौन हमें हमारे हाल पर छोड़ कर चला गया”, भीम नगर के निवासी मंगल तमोटिया ने मुझे बताया. मंगल के भाई राकेश की हिंसा में मौत हो गई थी.

कांग्रेस और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और अमित शाह ने चंबल-ग्वालियर संभाग सहित प्रदेश भर में चुनावी रैलियों को संबोधित किया लेकिन किसी ने भी इन मामलों पर बात नहीं की. यहां तक कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अपनी संपूर्ण जन आशीर्वाद यात्रा में दलितों के खिलाफ उत्पीड़न को नजरअंदाज किया. जुलाई के मध्य से चौहान ने प्रदेश भर में जन आशीर्वाद नाम से रोड शो और चुनाव रैलियां की थीं. 24 अक्टूबर को चौहान ने चौहान प्याऊ से रोड शो निकाला और जिस जगह दलितों की हत्या हुई थी वहां से बस तीन किलोमीटर की दूरी पर जनसभा को संबोधित किया जिसमें उन्होंने एक बार भी हत्या की बात नहीं की.

अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शनों के बाद सरकार ने संसद में अत्याचार कानून पर संशोधन कर उन प्रावधानों को पुनः स्थापित कर दिया जिसे सर्वोच्च अदालत ने कमजोर कर दिया था. इसमें उस धारा को भी पुनः लागू कर दिया गया जिसके तहत इस कानून के तहत अत्याचार के आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान है. उस वक्त बीजेपी और कांग्रेस सहित अधिकांश पार्टियों ने इस विधेयक का सर्मथन किया था. हालांकि दोनों पार्टियों के राज्य स्तरीय नेताओं ने मीडिया के जरिए यह संकेत दिया था कि तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी. सितंबर में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बयान दिया कि इस कानून के तहत किसी को भी फर्जी तरीके से पकड़ा नहीं जाएगा और मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि बिना पड़ताल कोई गिरफ्तारी नहीं होगी. निजी साक्षत्कारों में दोनों नेताओं ने सवर्ण मतदाताओं को खुश करने वाली उनकी अभिव्यक्तियां दी हैं लेकिन चुनावी रैलियों में दोनों ही इस मामले से बचे हैं.

दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के ग्वालियर स्थित कार्यालयों में जिस तरह का माहौल है वह संविधान से अधिक सामंती जातीय ऊंच-नीच को तवज्जो देता दिखता है. यहां तक कि संसद में जब अत्याचार कानून में संशोधन को पारित किया जा रहा था तो भी उनका व्यवहार इसी तरह का था. स्थानीय नेता और पार्टी कार्यकर्ता पुरातन जाति आधारित सामाजिक ढांचे- “सामाजिक व्यवस्था”-की बात करते हैं जो उनके विचार में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है. उनका कहना है कि दलित दावेदारी के खिलाफ अगड़ी जातियों का हिंसक प्रतिशोध सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए न्यायोचित उपाय है जो पुरातन धर्मग्रंथों द्वारा स्वीकृत है.

20 अक्टूबर को ग्वालियर के कांग्रेस भवन में मैंने कांग्रेस पार्टी के जिला अध्यक्ष देवेन्द्र शर्मा से मुलाकात की. दीवार पर बड़ा सा पोस्टर टंगा था. जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया और राहुल गांधी के दोनों तरफ राजीव गांधी और माधवराव सिंधिया हैं. 50 से ऊपर के छह सात लोग शर्मा को घेरे बैठे थे और 30 वर्ष के आसपास का नौजवान कार्यकर्ता शर्मा की हर बात में अपना कथन जोड़ रहा था.

ब्राह्मण जाति के शर्मा ने बताना शुरू किया, “मेरे पड़ोस में दो एससी/एसटी, दो ओबीसी और सवर्ण रहते हैं. “रामराज का अर्थ है सभी पड़ोसियों में राम का स्वरूप देखना... धर्म तो एक ही है न, सनातन.” जब मैंने शर्मा से बार बार अत्याचार कानून पर उनकी पार्टी के स्टैंड के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “हमने संशोधन बिल नहीं लाया इसलिए स्पष्ट करने को हमारे पास कुछ नहीं है.” सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने संसद में यह विधेयक पेश किया था. शर्मा का मानना है कि कानून को पुनः बहाल करने की कोई आवश्यकता नहीं थी और सरकार को विरोध को अपने आप ठंडा हो जाने देना चाहिए था.

कांग्रेस कार्यालय में मेरी मुलाकात एक और ब्राह्मण कार्यकर्ता धमेन्द्र शर्मा से हुई. धमेन्द्र का दावा है कि अत्याचार कानून में संशोधन होने से दो समुदायों को नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा, ”देखिए हमारे एससी/एसटी भाईलोग दिहाड़ी करने वाले मजदूर लोग हैं और अब इस कानून के कारण ठेकेदारों ने उन्हें काम देना बंद कर दिया है क्योंकि वे मानते हैं कि इस कानून को उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जाएगा. पारंपरिक तौर पर समाज में एक सामाजिक व्यवस्था थी. उसे इसी तरह बने रहना चाहिए.” देवेन्द्र ने उनके विचारों पर सहमति जताते हुए कहाः “क्या जरूरत थी एससी/एसटी मुद्दे को छेड़ने की. और क्या जरूरत थी उसको बाद में सही करने की. चाहे एससी/एसटी हो या सवर्ण हो, हम किसी के साथ अन्याय होने नहीं देंगे.” यह तर्क सभी समुदाय को बराबर का पीड़ित बताता है और अत्याचार कानून के दुरुपयोग के व्यापक भ्रम को मान्यता देता है जबकि एनसीआरबी का डेटा कहता है कि भारत में दोषसिद्धि की दर 2006 और 2016 के बीच दो प्रतिशत घट कर 26 प्रतिशत रह गई है.

कांग्रेस कार्यलय में मीटिंग करने से पहले मैंने गल्ला कोठार का भ्रमण किया. मैंने यहां रहने वाले 20 दलित लोगों से मुलाकात की जो दीपक जाटव की याद में एक वृक्ष के नीचे जमा हुए थे. दीपक की 2 अप्रैल के दिन हिंसा में मौत हो गई थी. इलाके में व्याप्त जातीय हिंसा के बारे में चर्चा करते हुए वहां मौजूद कईयों ने मुझे पार्षद चतुर्भुज धनोलिया पर हाल में हुए हमले के बारे में बताया. 50 वर्षीय रामअवतार सिंह ने उन परिस्थितियों के बारे में बताया जिसकी वजह से हमला हुआ था. सिंह ने बताया 10 सितंबर को एक राजपूत मोहल्ले से गुजर रहा था जब उसकी मोटरसाइकल का पहिया गड्डे में फंस गया. वह गड्डा पार्षद के घर के सामने था. वह आदमी पार्षद के पास गया और उस गड्डे को साफ करने और ढकने को कहने लगा. मंडेलिया ने बताया कि वह आदमी चाहता था कि पार्षद खुद गड्डे को साफ करे जिसके बाद दोनों के बीच बहस होने लगी. राजपूत आदमी चला गया और 20 मिनट के अंदर दूसरे लोगों के साथ वापस आया और धनोलिया के घर को घेर लिया.

धनोलिया ने मुझे बताया कि कम से कम 20 राजपूत आदमियों ने उनके घर को घेर लिया और परिवार पर पथराव किया. उन्होंने नाला साफ करने वाली बात नहीं की और इसे “बस जातीय नफरत” करार दिया. धनोलिया ने बताया कि उनकी शिकायत के बाद पुलिस ने एक राजपूत को हिरासत में लिया था लेकिन बाद में उसी दिन राजपूतों की भीड़ ने थाने में जाकर जबरदस्ती उसे छुड़ा लिया. “हालांकि मैंने परिवार पर हमला करने वाले कुछ राजपूतों का नाम लिया था लेकिन पुलिस ने अज्ञात लोगों पर एफआईआर दर्ज की.” धनोलिया ने आगे बताया, “पुलिस ने मेरे खिलाफ हमला करने और सार्वजनिक अशांति फैलाने का केस लगा दिया और मुझे जमानत लेनी पड़ी.”

अत्याचार कानून पर बीजेपी के नेताओं के विचार कांग्रेस के नेताओं के ही जैसे हैं. ग्वालियर विधानसभा सीट के लिए बीजेपी के तीन इंचार्ज में से एक रमेश चंद्र सेन ने मुझसे कहा कि दलित वर्ग को अत्याचारों के बारे में भूल कर प्रशासन पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि दलित और आदिवासी अब चुनाव लड़ सकते हैं और राजनीति में आ सकते हैं. “आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी सरकार सत्ता में आई तब आरएसएस प्रमुख देवरस ने (तीसरे सरसंघचालक मधुकर दत्तात्रेय देवरस) उन लोगों को एक लाइन का संदेश दिया थाः पुरानी बातों को भूल कर शासन करो.” “तुम पर अत्याचार हुआ था, पाप हुआ. इन लोगों को पुलिस या जेल भेजने के काम में मत उलझो बल्कि खुद को बड़ा बनाने और अपनी लाइन को इनसे बड़ा बनाने की सोचो.”

सेन ने भी 2 अप्रैल की हिंसा के लिए दलितों को दोषी ठहराया. उन्होंने अनुसूचित जाति तथा जनजाति की ओर इशारा करते हुए कहा, “वह वर्ग साक्षर नहीं है.” सेन ने कहा कि इन समुदायों के पास “संसाधनों की कमी है और इसलिए इन लोगों ने गलत विश्वासों के चलते दंगे किए” कि फैसले से कानून कमजोर हो गया है.

ग्वालियर में बीजेपी के घर घर जाकर प्रचार कार्यक्रम को सेन देखते हैं. जब मैंने उन से सवाल किया कि दलितों के लिए उनके पास बताने को क्या है तो उनका कहना था कि वे लोग मुख्यमंत्री की लाई विकास योजनाओं का हवाला देंगे जिसमें बिजली के बिल में छूट वाली योजना भी शामिल है. उन्होंने कहा कि वोटों के लिए प्रचार में वह अत्याचार कानून को सामने नहीं लाएंगे. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी कहा कि वे लोग अत्याचार कानून और दलित सुरक्षा के विषय को स्थानीय प्रचार प्रयासों में शामिल नहीं करेंगे. देवेन्द्र ने कहा, “हमारी प्राथमिकता महिला सुरक्षा, किसानों के मुद्दे और युवा लोगों के लिए रोजगार हैं.” दोनों ही पार्टियों के घोषणापत्रों से अत्याचार कानून गायब है. बीजेपी ने ओबीसी समुदायों के लिए वादे किए हैं और कांग्रेस ने वकीलों और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की बात की है.

दोनों पार्टियों के राष्ट्रीय नेता भी अन्य मुद्दों पर केन्द्रित हो कर प्रचार कर रहे हैं. राहुल गांधी के मुख्य चुनावी मामलों में फ्रांस के साथ 36 राफेल विमानों का सौदा, महिला सुरक्षा, बेरोजगारी और किसानों की पस्त हालत है. अमित शाह ने घुसपैठियों के खतरे और चौहान के नेतृत्व में विकास कार्य को चुनावी मुद्दा बनाया है.

प्रदेश में ऑल इंडिया फॉरर्वड ब्लॉक की किसान शाखा अखिल भारत अग्रगामी किसान सभा के उपाध्यक्ष जयंत वर्मा ने मुझे बताया कि दोनों राष्ट्रीय पार्टियां अत्याचार कानून वाले मामले को इसलिए संबोधित नहीं कर रहीं क्योंकि यह मामला केवल शहरी इलाकों में रहने वालों की चिंता का विषय है. वर्मा बताते हैं कि पार्टी नेताओं को लगाता है कि इससे उनके दलित वोट प्रतिशत को नुकसान नहीं होगा.” ग्वालियर-चंबल संभाग की डबरा सीट से चुनाव लड़ रहे बहुजन समाज पार्टी के नेता पीएस मंडेलिया वर्मा से असहमति जताते हैं. मंडेलिया के अनुसार बीजेपी और कांग्रेस के नेता इस मामले में इसलिए खामोश हैं क्योंकि “दोनों पार्टियों का नेतृत्व उच्च जाति के लोग कर रहे है. दोनों अपने वोटरों को नाराज नहीं करना चाहते. उनकी चुप्पी से उन लोगों को फायदा होगा.”

निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के हिसाब से 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी को 36 और 44 प्रतिशत वोट मिला था. उस चुनाव में बसपा को 6.3 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था जिसका अर्थ है कि वह चुनाव मुख्य रूप से इन दो राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ही था. लेकिन चंबल क्षेत्र में बसपा की मजबूत पकड़ है जहां उसे 2003, 2008 और 2013 के चुनावों में क्रमशः 13.7, 20.4, और 15.6 प्रतिशत वोट मिला था. मंडेलिया ने बताया कि 28 नवंबर को होने वाले चुनावों में बसपा दलितों और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अत्याचार का मामला उठा रही है. मंडेलिया ने कहा, “हम 2 अप्रैल को भूलने नहीं देंगे”.

Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute