उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 'हिंदुत्व' से उसके मुसलमान नेता नाखुश

बहुत से कांग्रेस नेता, उत्तर प्रदेश में पार्टी के अपने दम पर चुनाव लड़ने के फैसले से नाराज हैं. अमित दवे/रॉयटर्स
16 April, 2019

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अक्टूबर 2018 में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने लखनऊ में उपस्थित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के ओल्ड बॉयज एसोसिएशन को संबोधित किया. ओल्ड बॉयज एसोसिएशन, एएमयू के पूर्व छात्रों की संस्था है. आजाद 1973 में अपने करियर की शुरुआत से ही एक कांग्रेसी रहे हैं. उन्होंने वर्तमान राजनीतिक स्थिति की तुलना 1857 के बाद के दौर से की “जब अंग्रेज हिंदू-मुसलमानों को विभाजित कर रहे थे.” उन्होंने कहा कि पिछले 4 सालों में वे खुद “विभाजन की राजनीति का शिकार” हुए हैं.

आजाद ने याद किया कि यूथ कांग्रेस के नेता के रूप में वह कांग्रेस के अन्य नेताओं के लिए देश भर में प्रचार किया करते थे. उन्होंने कहा, “जो उन्हें चुनाव अभियान के लिए बुलाते थे उनमें से 95 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू भाई और नेता होते थे, जबकि पांच प्रतिशत मुसलमान होते थे. लेकिन पिछले चार सालों में यह प्रतिशत 95 से गिरकर 20 रह गया है.”

आजाद ने कहा कि उनकी अपनी पार्टी के नेताओं ने उन्हें बुलाना बंद कर दिया है क्योंकि वे डरते हैं कि मुस्लिम चेहरे की वजह से उनके वोट कम हो सकते हैं. “आज डरता है आदमी बुलाने से ... पता नहीं इसका वोटरों पर क्या असर होगा.”

छह महीने बाद, जब प्रियंका गांधी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रभारी का पद संभाला और प्रयागराज में बड़े हनुमान मंदिर समते राज्यभर में दौरे किए तो कई दूसरे अल्पसंख्यक नेताओं को भी आजाद की बात ठीक लगने लगी. राज्य में प्रियंका की रैली और दौरों के दौरान उनके साथ कोई भी बड़ा मुसलमान नेता नहीं दिखा. यह तब है जब कांग्रेस में कई बड़े मुस्लिम नेता, जैसे पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, जो इंदिरा गांधी के ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) रह चुके है, पांच बार सांसद रह चुके सलीम शेरवानी, अल्पसंख्यक विभाग के प्रमुख नदीम जावेद और राशिद अल्वी आदि मौजूद हैं. राज्य से राज बब्बर एकमात्र ऐसे सांसद है जो इन दिनों गांधी परिवार के पास दिख रहे हैं.

कांग्रेस के कई मुस्लिम नेताओं और कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि कैसे वे इन दिनों पार्टी में खुद को हाशिए पर देख रहे हैं. उन्होंने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि कैसे उनकी पहचान की वजह से उनके नेतृत्व को कमतर आंका जा रहा है. मैंने लगभग दर्जनभर मुस्लिम नेताओं से बात की जो चाहते थे कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़े. उनमें से कई नेताओं ने मुझे बताया कि राज्य में मतदाताओं से जुड़ने के लिए कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के पास संगठन ही नहीं है.

शेरवानी ने राज्य में प्रियंका गांधी की रैली के दौरान किसी भी मुस्लिम चेहरे के न होने की बात स्वीकारी. उन्होंने मुझे बताया, "मैंने पार्टी के सामने यह बात रखी है. मैंने कहा कि एक समय सभी समुदायों के बड़े नेता कांग्रेस पार्टी का हिस्सा होते थे. मौजूदा दौर में यह कांग्रेस की सबसे बड़ी कमी है और मुझे लगता है कि राहुल गांधी ने यह बात समझी है और उन्होंने इस समस्या के समाधान और सभी समुदायों के नेताओं को साथ लाने का भरोसा दिया है."

शेरवानी 2019 लोकसभा चुनावों के लिए बदायूं सीट से पार्टी के उम्मीदवार हैं. उन्होंने 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद पार्टी छोड़ दी थी. उस समय नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर कार्रवाई न करने के आरोप लगे थे. शेरवानी 2009 में दुबारा पार्टी में शामिल हो गए. उन्होंने मुझे बताया कि राज्य की कुल जनसंख्या में 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को तब वोट देंगे जब वे गांधी के पास मुस्लिम नेताओं को खड़ा देखेंगे.

हालांकि, कांग्रेस की खुद को मुस्लिम पार्टी दिखाने में झिझक, मुस्लिम नेताओं और काडर के लिए प्राथमिक मुद्दा नहीं है. उन्हें इस बात की ज्यादा चिंता है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ रही है. जनवरी में गठबंधन का ऐलान करते हुए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस के लिए रायबरेली और अमेठी सीट छोड़ी थी. बदले में कांग्रेस ने पहले कहा कि वह अकेले 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बाद में पार्टी ने कहा कि वह 73 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और सात सीटें सपा-बसपा गठबंधन के लिए छोड़ दी. नेताओं का मानना है कि इससे मुसलमानों का वोट सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच बंट जाएगा. उनका मानना है कि कांग्रेस को मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा जीतते हुए गठबंधन में कम सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए थे. इससे मुसलमान मतदाताओं के सामने भ्रम की स्थिति नहीं रहती.

एक मुस्लिम युवा नेता और चार जिलों की लोकसभा के संयोजक ने नाम उजागर न करने की शर्त पर मुझसे बात की और कहा कि जमीनी स्तर पर काम करने के बाद उन्हें लगता है कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद यह पहली बार होगा, जब उत्तर प्रदेश के मुसलमान कांग्रेस पर भरोसा करेंगे. इससे पहले बाबरी विध्वंस पर पार्टी की चुप्पी से वे नाराज चल रहे थे. संयोजक ने सपा-बसपा गठबंधन से कांग्रेस की ज्यादा सीटों की चाहत पर निराशा प्रकट की.

एक नेता ने मुझे बताया, मुसलमान इनको माफ कर चुके हैं. लेकिन आप उसको आपनाने के बजाए सपा-बसपा की तरफ धकेल रहे हैं. हैसियत है नहीं फिर भी सीटें मांग रहे हैं."

2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने राज्य में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारे बिना 80 में से 71 सीटें जीती थीं. इस लड़ाई में उतरीं दूसरी पार्टियों के 55 उम्मीदवारों को भी जीत नहीं मिली थी. बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित चुनाव के बाद के एक विश्लेषण के मुताबिक, "मुसलमान भ्रमित थे और उनका वोट कांग्रेस, सपा- बसपा और तब की नई आम आदमी पार्टी के बीच बंट गया. उन्हें यह नहीं पता था कि उत्तर प्रदेश में किस उम्मीदवार का बीजेपी के खिलाफ अच्छा मौका है." दूसरी तरफ हिंदुओं का वोट पूरी तरह बीजेपी को गया.

उत्तर प्रदेश से पार्टी के एक सदस्य औबेदुल्ला नसीर ने मुझे बताया कि पार्टी काडर के बीच यह सहमति थी कि गठबंधन में जाना उनके लिए ठीक रहेगा. पर उन्हें यह भी भरोसा है कि राज्य के मुसलमान मोदी सरकार से छुटकारा पाने के लिए किसी क्षेत्रीय पार्टी की बजाए राष्ट्रीय विपक्षी पार्टी को वोट देंगे.

नसीर ने कहा कि पार्टी के बड़े नेताओं ने लखनऊ के एक होटल में अल्पसंख्यक नेताओं के विचार जानने के लिए एक 'खुली चर्चा' की. उन्होंने कहा, "बैठक में कई सदस्यों ने कहा कि अगर आपको लगता है तो हमें टिकट मत दीजिए. हमारे लिए कुछ मत कीजिए, लेकिन एक ऐसी रणनीति बनाइए जिससे ध्रुवीकरण रुके और बीजेपी को हराया जा सके."

इसी बैठक में एक ऐसा मुद्दा भी उठा, जिस पर बैठक की अध्यक्षता कर रहे एक नेता के जवाब को पार्टी सदस्य 'अपमानजक' मान रहे हैं. पार्टी संयोजक ने कहा, "किसी ने यूपीए के शासन के दौरान मुस्लिम युवाओं को हिरासत में लिए जाने का मुद्दा उठाया." इस पर उस बैठक में शामिल एक जूनियर सदस्य ने उन्हें बताया कि बैठक की अध्यक्षता कर रहे एक बड़े नेता ने कहा, "आप पाकिस्तान में होते तो यह सवाल भी नहीं उठा सकते थे." संयोजक ने कहा कि "ब्राह्मण नेतृत्व" में "पाकिस्तान सिंड्रोम" एक "क्लासिक प्रॉब्लम" है और आमतौर पर ऐसा दिखाया जाता है मानो मुसलमानों के खिलाफ हिंसा उनके अपने कामों की वजह से हो रही हो.

फर्रुखाबाद से पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार सलमान खुर्शीद ने मुझे बताया कि गठबंधन को लेकर पार्टी के भीतर दो राय थीं. सपा-बसपा-रालोद के साथ गठबंधन की बात करते हुए उन्होंने कहा, "यह सही-गलत हो सकता है, लेकिन एक राय यह है कि हमें कोई नुकसान नहीं होगा. कई लोग मानते हैं कि इन क्षेत्रीय पार्टियों के खिलाफ अभी भी सत्ता विरोधी लहर जारी है." उन्होंने कहा, "कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अगर हम साथ जाते तो एक लहर सी होती, एक स्वीप सा होता." खुर्शीद समेत कांग्रेस के कई नेता मानते हैं कि गठबंधन की जिम्मेदारी सपा और बसपा की भी थी और अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है तो सपा और बसपा भी इसके लिए बराबर जिम्मेदार होंगे.

मैंने एक ऐसे नेता से भी बात की जिनके विचार में कांग्रेस को राज्य में अकेले चुनाव लड़ना चाहिए. उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के उप-प्रमुख सिराज मेहंदी ने मुझे बताया कि उन्होंने राहुल गांधी को पत्र लिखकर राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की सलाह दी थी. उन्होंने कहा कि अगर पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ती तो पूरे राज्य में इसकी उपस्थिति महसूस नहीं होती. उन्होंने मुझे बताया, "अगर वह 12-15 सीटें दे देते तो हमारे पास 65-70 सीटों पर पार्टी के झंडे नहीं होते. तब हमारे कार्यकर्ता क्या करते? इसलिए हमें हमारे कार्यकर्ता बचाने हैं और सगंठन भी."

लेकिन पार्टी के संयोजक इस बात से सहमत नहीं है. उन्होंने मुझे बताया कि जो मुस्लिम नेता चुनाव में पार्टी के अकेले दम पर उतरने की बात का समर्थन कर रहे हैं उन्हें पार्टी के भविष्य से ज्यादा अपने पद की चिंता है. उन्होंने कहा कि कुछ सीटों पर पार्टी की मौजूदगी खोने की बात में इसलिए दम नहीं है क्योंकि उन सीटों पर जमीनी स्तर पर संगठन ही नहीं है.

साथ ही पार्टी की अल्पसंख्यक सेल के उत्तर प्रदेश राज्य प्रमुख का पद पिछले साल मई से खाली है. इससे पहले मेहंदी के पास यह पद था, लेकिन नियमों के मुताबिक एक व्यक्ति एक साथ दो पदों पर नहीं रह सकता. हालांकि, संयोजक ने मुझे बताया कि मेहंदी ने नदीम जावेद की वजह से इस्तीफा दिया था. नदीम भी मेहंदी के लोकसभा क्षेत्र जौनपुर से आते हैं. संयोजक ने बताया कि मेहंदी इस पद पर खुद की नियुक्ति देख रहे थे, लेकिन उसी महीने नदीम को नियुक्त कर दिया गया. लेकिन अहंकार के टकराव के कारण मेहंदी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया.

शहला अहरारी को पिछले साल सितंबर में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश (पूर्वी जोन) महिला सेल की प्रमुख नियुक्त किया था. उन्होंने बताया कि उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी के संगठन की कमी देखी है. अहरारी ने मुझे बताया, "जब मुझे जिम्मेदारी दी गई, तब हमारे पास संगठन नहीं था. 15 सितंबर से लेकर आज तक मैंने जिला, वार्ड और शहर के स्तर पर संगठन तैयार किए हैं. जब तक पार्टी जमीनी स्तर पर काम नहीं करेगी, कांग्रेस हो या दूसरी कोई भी पार्टी, सफल नहीं हो सकती."

खाली पदों पर बात करते हुए शेरवानी ने कहा, "अगर ऐसी चीजें नहीं हो रही हैं तो यह हमारी पार्टी की कमजोरी है." उन्होंने आगे कहा, "पार्टी को तुरंत ये पद भरने चाहिए ताकि लोगों तक पार्टी की एक अच्छी छवि और संदेश पहुंचे."

मैंने पार्टी नेताओं से पूछा कि अल्पसंख्यक विभाग में कोई मुखिया नहीं होने के चलते फैसले कौन करता है. ऑन-रिकॉर्ड बोलने वालों ने मुझे बताया कि या तो संयोजक या दिल्ली से एक टीम राज्य में अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों पर नजर रखती है, लेकिन गोपनीयता की शर्त पर बोलने वालों ने कहा, "सब कुछ हाईकमान से बनके आता है. हम लोग सिर्फ फॉलो करते हैं."

पार्टी के मुस्लिम काडर ने मुझे बताया कि अब तक केवल खुर्शीद ने अल्पसंख्यकों के मामलों पर चर्चा करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ लखनऊ के क्लार्क्स अवध होटल में बैठक रखी है. खुर्शीद राज्य में लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की पांच सदस्यीय चुनावी रणनीति और योजना समिति की अध्यक्षता कर रहे हैं.

पार्टी के संयोजक के मुताबिक अल्पसंख्यकों के मामलों को लेकर कांग्रेस में योजना के स्तर पर नहीं बल्कि संगठनात्मक स्तर पर समस्या है. उन्होंने कहा, "80 प्रतिशत हिंदू आबादी होने के बावजूद भी कांग्रेस की वजह से देश धर्म निरपेक्ष बना रहा." उन्होंने आगे कहा, "इसलिए कांग्रेस मुस्लिमों के लिए स्वाभाविक पार्टी है.लेकिन कांग्रेस में ऐसे दक्षिणपंथियों का उभार हुआ जिन्होंने राहुल गांधी को "नरम-हिंदुत्व" की राजनीति करने को राजी कर लिया.

मैंने जिन कांग्रेस नेताओं से बात की उनमें से कई नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व के राम मंदिर निर्माण आदि मुद्दों पर स्टैंड को लेकर निराशा जाहिर की. उन्हें इस बात की निराशा है कि कांग्रेस की स्थिति बीजेपी की लाइन पर चलती दिख रही है. कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांगों का विरोध नहीं किया. संयोजक ने इसे लेकर कांग्रेस के बड़े नेता के बयान की तरफ इशारा किया. पिछले साल नवंबर में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के मुखिया राज बब्बर ने कहा था, "कांग्रेस ने कभी राम मंदिर निर्माण का विरोध नहीं किया और न ही भविष्य में कभी करेगी." इसी महीने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव सीपी ने कहा था कि केवल कांग्रेस का प्रधानमंत्री ही राम मंदिर का निर्माण करवा सकता है. इनमें से कुछ नेताओं ने बीजेपी की राजनीति का जवाब देने के लिए कांग्रेस के "नरम-हिंदुत्व" स्टैंड को अपना लिया है, वहीं कुछ का मानना है कि बाबरी विध्वंस के बाद से ही पार्टी की यह रणनीति असफल हो रही है.

इन बयानों के अलावा, गायों को लेकर राज्य में हुई हत्याओं की घटनाओं पर गांधी परिवार की चुप्पी भी मुस्लिम नेतृत्व को असहज कर रही है. संयोजक ने कहा कि यह चुप्पी आगे चलकर मुस्लिम वोट कम करवा सकती है.

कांग्रेस पार्टी की मीडिया और प्रचार समिति के सदस्य सैफ अली नकवी और संयोजक समिति के सदस्य सोहेल अंसारी ने मुझे बताया कि पार्टी नेतृत्व ने अपनी रैलियों में मॉब-लिंचिंग पर इसलिए बात नहीं की क्योंकि पार्टी "जाति और धर्म" की राजनीति में विश्वास नहीं करती.

खुर्शीद ने राम मंदिर आदि मुद्दों पर पार्टी के सार्वजनिक स्टैंड का बचाव करते हुए कहा, "पार्टी की विचारधारा और रणनीति में फर्क हो सकता है." उन्होंने संकेत दिया कि कांग्रेस का हिंदुत्व अवतार उसकी विचारधारा न होकर केवल बीजेपी को जवाब देने के लिए बनाई गई रणनीति है. "राजनीति का मकसद कुछ और है और विचारधारा का कुछ और. इसे लेकर हमारी समझ बिल्कुल साफ है."

कुछ नेताओं का मानना है कि मतदाता इन बारीकियों को नहीं समझते हैं इसलिए इस रणनीति का नुकसान भी हो सकता है. संयोजक ने कहा, "सच्चाई यह है कि हमारे यहां वोटिंग मुसलमानों के खिलाफ होती है." अभी तक कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 47 उम्मीदवार घोषित किए हैं, जिनमें से केवल 8 टिकटें मुसलमानों की दी हैं.

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