मुजफ्फरनगर में 2013 को दोहरने की कोशिश में पुलिस और हिंदुत्ववादी गुट

20 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के महमूद नगर और खालापार में पुलिस और हिंदुवादी गुटों ने हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया. यहां मुजफ्फरनगर से कांग्रेस पार्टी के पूर्व सांसद एस सईदुज्जमान की दो गाड़ियों को आग लगा दी गई. तुषार धारा
02 January, 2020

20 दिसंबर को, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान संपत्ति को नष्ट करने वालों के खिलाफ "बदला लेने" की धमकी दी और इसके बाद राज्य पुलिस की कार्रवाई ने मुजफ्फरनगर को दहला दिया. उस दिन और रात शहर के दो मुस्लिम बहुल इलाकों- महमूद नगर और खालापार- में यूपी पुलिस जघन्य हिंसा पर उतर आई. वहां के निवासियों के अनुसार, पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े, लाठीचार्ज किया और स्थानीय मुस्लिम लोगों पर गोलियां चलाईं. खालापार के रहने वाले युवा नूर मोहम्मद को सिर पर गोली लगी और उनकी मौत हो गई.

पुलिस ने गोलियां चलाने से इनकार किया और दावा किया कि उसने केवल हिंसक प्रदर्शन करने वाले पर ही हमला किया. लेकिन पड़ोस के इन दोनों इलाकों के कई लोगों ने अलग कहानी बताई. कई निवासियों ने बताया कि जैसे-जैसे प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती गई, पुलिस विरोध मार्च को शांत करने के लिए क्रूरता का प्रदर्शन करने लगी. उनके साथ कुछ लोग सादे कपड़ों में थे जिनकी पहचान भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों के रूप में हुई है. स्थानीय लोगों ने कहा कि पुलिस और हिंदुत्ववादी संगठनों के सदस्यों ने रात में इन दो मुस्लिम इलाकों में आतंक मचाया और यहां के निवासियों पर हमला करने, उनके सामानों को नष्ट करने और उनके पैसे और गहने लूटने के लिए सीधे उनके घरों में घुस आए.

उस दोपहर मुजफ्फरनगर के रहने वाले डॉक्टर निसार, शहर के मुख्य मार्गों में से एक मेरठ रोड स्थित अपने क्लिनिक पर थे. उन्होंने भीड़ को वहां से गुजरते देखा. भीड़ पल-पल बढ़ते हुए उत्तर की ओर मीनाक्षी चौक की तरफ जा रही थी. निसार ने बताया, "यह जुम्मे की नमाज के बाद दोपहर 2.30 बजे के आसपास का समय था." निसार ने मुझसे अपना पूरा नाम न छापने का भी अनुरोध किया. उन्होंने बताया, "भीड़ में ज्यादातर मुस्लिम युवा ही थे और उन्होंने नागरिकता (संशोधन) कानून और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध करने का फैसला किया था." मैंने पत्रकार आरिफ से भी बात की. उन्होंने मुझसे उनके संगठन या उनका पूरा नाम जाहिर न करने का निवेदन किया. आरिफ उस वक्त मीनाक्षी चौक से रिपोर्टिंग कर रहे थे. उन्होंने कहा, "भीड़ नेतृत्व विहीन थी और युवाओं में स्थानीय लोगों के साथ-साथ आसपास के शहरों और गांवों के लोग भी शामिल थे. लोगों ने जिला मजिस्ट्रेट से मिलने और उनको पत्र सौंपने का फैसला किया था, जिसमें बताया गया था कि वे सीएए के विरोध में हैं, लेकिन उनका इरादा इसे शांतिपूर्ण तरीके से अंजाम देने का था."

स्थानीय निवासियों के अनुसार, दोपहर के दौरान भीड़ तेजी से बढ़ गई और दसियों हजार प्रदर्शनकारी इकट्ठा हो गए जो एक किलोमीटर दूर महावीर चौक की ओर बढ़ने लगे. आरिफ ने कहा, "उनका उद्देश्य डीएम के कार्यालय में इकट्ठा होना था." दैनिक प्रभात में कार्यरत मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पत्रकार भारत भूषण अरोड़ा ने बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश अन्य शहरों की तरह, इस शहर में भी हिंदू-मुस्लिम आबादी अलग-अलग रहती आई हैं और पिछले तीस वर्षों से ऐसा ही है. खालापार की सीमा पर स्थित मीनाक्षी चौक, मुस्लिम बहुल इलाकों में से एक है जबकि महावीर चौक जाट कॉलोनी के किनारे पर स्थित हिंदू बहुल इलाका है. जैसे ही प्रदर्शनकारियों ने जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय के लिए मार्च करना शुरू किया, मुजफ्फरनगर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद संजीव बालयान मीनाक्षी चौक पर दिखाई दिए. कुछ ही घंटों में इलाके में हिंसा भड़क गई.

बालयान पर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का आरोप है. इन दंगों में दसियों हजार निवासियों को जिनमें मुख्यतः मुस्लिम थे, अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा था. अरोड़ा ने मुझे बताया, "संजीव बालयान और उनके लोगों ने निश्चित रूप से स्थिति को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की. मुस्लिम भीड़ का इरादा शांतिपूर्ण ढंग से मीनाक्षी चौक को पार करना, प्रशासन के अधिकारियों से मिलकर अपना विरोध दर्ज कराना और वापिस चले जाने का था, लेकिन भीड़ में शामिल युवाओं को एहसास नहीं था कि जैसे ही वे लोग मीनाक्षी चौक पार करेंगे जाट समेत हिंदुओं की भीड़ वहां इकट्ठा होगी. जैसे ही यह हुआ, बजरंग दल के लोगों सहित कई हिंदू इकट्ठा हो गए. पुलिस वैसे भी हिंदुओं के साथ खड़ी थी." अरोड़ा ने कहा, "हिंदुओं और पुलिस ने मुसलमानों को ठीक करने का फैसला किया था."

पुलिस ने मुस्लिम भीड़ को वापस खालापार धकेलने के लिए आंसू गैस और लाठीचार्ज का इस्तेमाल किया. यहां के निवासियों ने मुझे बताया कि पुलिस ने गोलियां चलाईं. मीनाक्षी चौक के पास 25 वर्षीय ड्राइवर और मजदूर नूर मोहम्मद को बाईं कनपटी पर गोली लगी. उन्हें स्थानीय अस्पताल ले जाया गया और वहां से मेरठ भेज दिया गया. मेरठ में उनकी मौत हो गई. उनके परिवार ने मुझे बताया कि मुजफ्फरनगर प्रशासन ने कहा कि उन्हें लाश को शहर में वापस लाने की इजाजत नहीं मिलेगी. आखिरकार, मजबूरन उन्हें नूर को मेरठ में ही दफ्न करना पड़ा. नूर मोहम्मद की पत्नी शन्नो ने खालापार में अपने जर्जर घर पर मुझसे बात की. उन्होंने कहा, ''मुझे नहीं पता कि किसने गोली चलाई, लेकिन मुझे इंसाफ चाहिए.'' शन्नो सात महीने की गर्भवती हैं और उनकी दो साल से भी कम उम्र की एक बच्ची है. "हमने पुलिस में प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई है. अब कोई भी नहीं बचा जो हमारा खर्चा उठाए," उन्होंने कहा. पुलिस ने गोलियां चलाने से साफ इनकार किया और आरोप लगाया कि खालापार के स्थानीय मुस्लिम लोगों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई थी.

मीनाक्षी चौक पर फैली अराजकता में वाहनों और इमारतों को आग के हवाले कर दिया गया. खालापार के निवासियों ने कहा कि एक हिंदू भीड़ ने देना बैंक की एक स्थानीय शाखा को आग लगाने की कोशिश की और एक स्थानीय मस्जिद के बाहर कुछ दुकानों को जला दिया. मीनाक्षी चौक के पास स्थित एक गैराज में भी पांच वाहनों को आग लगा दी गई. पांच में से दो वाहन कांग्रेस पार्टी के पूर्व सांसद एस सईदुज्जमान के थे. मैंने सईदुज्जमान के बेटे सलमान सईद से बात की.

सईद ने कहा, "जो भीड़ मुस्लिम भीड़ का विरोध करने के लिए इकट्ठा हुई थी उसमें हिंदुत्ववादी लोग और आरएसएस-बीजेपी के कार्यकर्ता शामिल थे. उन्होंने यह कहते हुए कि वह मुसलमान की संपत्ति है, मेरे गैराज में तोड़-फोड़ की और मेरी रेनॉल्ट डस्टर और महिंद्रा स्कॉर्पियो के साथ-साथ वहां खड़ी तीन अन्य गाड़ियों को आग लगा दी." उन्होंने मुझे बताया कि उस दिन सीएए और प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में दसियों हजार मुस्लिम युवा इकट्ठा हुए थे. “पुलिस ने मुस्लिम युवाओं पर लाठीचार्ज की और इसके बाद भीड़ आक्रामक हो गई. पुलिस ने सांप्रदायिक तत्वों की मदद भी ली और उन लोगों ने भीड़ में गोलीबारी की और संपत्ति और कारों को नुकसान पहुंचाया. इसमें मेरी संपत्ति भी थी. वे इसे हिंदू-मुस्लिम दंगे में बदलना चाहते थे और सांप्रदायिक आधार पर लोगों को ध्रुवीकृत करने के लिए 2013 के दंगों की याद दिलाकर उकसा रहे थे.”

कई निवासियों का मानना था कि बालयान और उनके लोगों ने 2013 की तरह ही दंगे भड़काने के लिए खालापार में उकसाने की कोशिशें की. जाट कॉलोनी में मेरी मुलाकात बीजेपी के एक कार्यकर्ता और यूपी के बड़ौत विधानसभा क्षेत्र से पार्टी विधायक कृष्णपाल मलिक के भतीजे अमित तोमर से हुई. जब मैंने उनसे पूछा कि क्या बालयान ने पुलिस को मुस्लिम प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर गोली चलाने के लिए उकसाया था तो तोमर ने इससे इनकार किया. उन्होंने कहा, "बालयान वहां थे क्योंकि शहर जल रहा था और वह सांसद हैं. उन्होंने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस से कहा." बातचीत करते-करते तोमर ने दावा किया कि "संजीव बालयान और उनके लोग क्षेत्र में थे, परेशानी पैदा करने के लिए नहीं बल्कि रामकथा का उद्घाटन करने के लिए." तोमर ने कहा, "मुसलमानों ने पहले ही महमूद नगर के पास मदीना चौक पर दंगा शुरू कर दिया था और 'अल्लाह-उ-अकबर’ चिल्ला रहे थे." यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने क्यों माना कि यह अरबी वाक्य, जिसका मतलब है कि "अल्लाह सबसे बड़ा है" पुलिसिया हिंसा को जायज ठहराता है.

तोमर ने कहा, "जिस पल मुस्लिम भीड़ ने बालयान को देखा, उन्होंने पथराव शुरू कर दिया. बहुत कम पुलिस वाले थे इसलिए मैंने कुछ हिंदू दुकानदारों इकट्ठा किया और हमने पुलिस को जाट कॉलोनी के हमारे इलाके की ओर बढ़ती मुस्लिम भीड़ को पीछे धकेलने में मदद की." तोमर ने यह भी दावा किया कि मुस्लिम भीड़ को खालापार में खदेड़ दिया गया. वहां उन्होंने पुलिस पर गोलीबारी की. "मुसलमानों ने देना बैंक के बाहर वाहन जलाए इसलिए एक हिंदू भीड़ ने मस्जिद के बाहर एक मोबाइल की दुकान जला दी," उन्होंने कहा. मैंने उनसे पूछा कि हिंसा का कारण क्या था? तोमर ने कहा, "कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां फर्जी खबरें फैला रही हैं कि सीएए के चलते मुसलमानों को अपनी नागरिकता खोनी होगी. इसके चलते सारी गड़बड़ियां हो रही हैं." उन्होंने आगे बताया, "झगड़ा मुस्लिम युवाओं और पुलिस के बीच शुरू हुआ. मुसलमान हिंदुओं से लड़ने की मानसिकता के साथ नहीं आए थे.”

खालापार और मीनाक्षी चौक कोतवाली पुलिस स्टेशन में पड़ते हैं यहां के उप-निरीक्षक विनय शर्मा ने घटना की अलग ही कहानी सुनाई. शर्मा ने मुझे बताया, "मुस्लिम भीड़ सीएए को निरस्त करने को लेकर संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के इरादे से आई थी. उन्होंने खालापार से गोलियां चलाई और नूर मोहम्मद की मृत्यु हो गई. पुलिस ने गोली नहीं चलाई थी." शर्मा ने यह भी दावा किया कि पुलिस ने इलाके से हथियार बरामद किए थे लेकिन जब मैंने पूछा कि किस तरह के हथियार बरामद हुए हैं और इन हथियारों के संबंध में कितनी प्राथमिकी दर्ज की गई हैं तो उप-निरीक्षक ने कहा कि वह इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकते.

तोमर ने इस बात से इनकार नहीं किया कि पुलिस ने भी गोलियां चलाईं थी. जब मैंने उनसे पूछा कि क्या बालियान या उनके लोगों ने भीड़ में गोलीबारी की थी तो तोमर का जवाब था, "गोलीबारी या तो पुलिस की तरफ से हुई या मुसलमानों ने खालापार के अंदर से चलाई." शर्मा ने दावा किया कि न तो बालियान और न ही पुलिस मुस्लिम इलाकों में हुई हिंसा और तोड़फोड़ के लिए जिम्मेदार थी. "घरों और दुकानों के मालिकों ने खुद ही तोड़फोड़ की ताकि हम पर आरोप लगाया जा सके और मीडिया में पुलिस की नकारात्मक छवि पेश की जा सके," उन्होंने कहा.

बालयान को मैंने कई बार फोन किया. जिस व्यक्ति ने उनका फोन उठाया उसने खुद को सांसद का निजी सहायक बताया और मुझसे कहा कि उनसे अभी बात नहीं हो सकती. जिला मजिस्ट्रेट, जे सेल्वाकुमारी ने मुझे सवाल ईमेल करने को कहा. लेख प्रकाशित होने तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक यादव को मैंने कई बार फोन किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

मीनाक्षी चौक के उत्तर में लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर महमूद नगर नामक क्षेत्र में, इसी तरह की हिंसक घटना हुई थी. महमूद नगर मुस्लिम बहुल इलाका है और सीएए के विरोध में यहां भीड़ जमा हो गई थी. पत्रकार आरिफ के अनुसार, पुलिस ने महमूद नगर में भीड़ पर लाठीचार्ज किया, जिसके बाद चार पुलिस वाहनों और 11 मोटरसाइकिलों को आग के हवाले कर दिया गया. दोनों इलाकों के निवासियों ने कहा कि तभी से दोनों इलाकों में स्थिति तनावपूर्ण है.

यहां के कई निवासियों के अनुसार, उस रात पुलिस ने हिंसक कार्रवाई की थी. रात के लगभग 11.30 बजे, वर्दी में सैकड़ों पुलिसकर्मी और सादे कपड़ों में लोग झुंड बनाकर महमूद नगर और खालापार आए. उनके हाथों में हथौड़े और स्टील की छड़ें थीं. वे मुस्लिम घरों में घुस आए और देखते ही देखते सब कुछ तबाह कर दिया. उन्होंने रेफ्रिजरेटर, टीवी, एयर कंडीशनर, फर्नीचर, बल्ब और पंखे तहस-नहस कर दिए. स्थानीय लोगों ने बताया कि सड़कों पर पुलिस बल के पहुंचने के बाद, उन्होंने कार की खिड़कियां तोड़ दीं, मुस्लिमों की दुकानों में तोड़फोड़ की. प्रत्येक उदाहरण में, निवासियों ने मुझे बताया, उन्होंने सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिए और अपनी पहचान के हर सबूत को मिटाने के लिए सुरक्षा वीडियो स्टोर करने वाले डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर को साथ ले गए. अधिकांश लोगों के अनुसार, ये कार्रवाई लगभग तीन घंटों तक चली.

महमूद नगर निवासी 72 वर्षीय हाजी हामिद हसन उन लोगों में शामिल हैं जिनके घर को निशाना बनाया गया था. हसन दिल के मरीज हैं. उन्होंने मुझे बताया कि वह रात को सो रहे थे जब अचानक लगभग 11.30 बजे उन्होंने सुना कि कोई उनके दरवाजे को जोर-जारे से पीट रहा है. जब उन्होंने दरवाजा खोला तो उन्होंने पचास से अधिक पुलिसकर्मियों को बाहर खड़ा पाया. उन्होंने कहा, ''हमें आपके घर की तलाशी लेनी है. इसके बाद वे हथौड़ों और लाठियों सहित हमारे घर में घुस आए और सब तबाह कर दिया,” हसन ने हांफते हुए कहा, उनकी सांस फूल रही थी. “उन्होंने 14 साल के मेरे पोते साजिद की पिटाई की और आलमारियों को तोड़ना शुरू कर दिया. उन्होंने मुझे गाली दी और मेरी पोती रुकैया को सिर पर मारा.''

उन्होंने कहा कि उनका परिवार चुपचाप इस आतंक को देखते रहने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता था. देखते ही देखते उन्होंने पूरे घर को तबाह कर दिया. उन्होंने बताया, "उन्होंने गहने, नकदी और कुछ कलाई घड़ियां चुराईं." उनके घर की हालत से वह मंजर साफ झलक रहा था. भूतल पर, एक रेफ्रिजरेटर और एक कपड़े धोने की मशीन सहित सभी घरेलू सामान, हर जगह टूटे-बिखरे हुए पड़े थे. अलमारियां जमीन पर बिछी पड़ी थी, उनकी खिड़कियां टूटी हुई थीं और स्विचबोर्ड, लाइट और पंखे नष्ट हो गए थे. ऊपर की रसोई में भी हालत ऐसी ही थी. बाहर पड़ी चार में से दो खाटों के पाये टूटे हुए थे और एक वॉशबेसिन इस्तेमाल न हो सकने की हालत में पड़ा था. घर के बाहर के एक गलियारे में दो स्कूटी किनारे पड़ी हुई थीं जिन पर हथौड़ों की मार के साफ निशान थे.

महमूद नगर में मुख्य सड़क के साथ मोहम्मद शहजाद सिद्दीकी की सरताज मेडिकल्स के नाम से एक दुकान थी. सिद्दीकी ने मुझे बताया, "जुम्मे की नमाज के बाद भीड़ जमा हो गई और पुलिस ने उन्हें खदेड़ने के लिए बल प्रयोग किया. भीड़ में कुछ तत्वों ने पथराव किया. मैं घर गया लेकिन सुना कि इस इलाके में फ्लैग मार्च के लिए उस रात 50 पुलिस वाहन वापस आए हैं. फिर उन्होंने मेरी दुकान तोड़ डाली. “उन्होंने दुकान का ताला तोड़ दिया और स्टोर में लगे सीसीटीवी कैमरे और मुख्य मेडिकल काउंटर को नष्ट कर दिया. जब मैं अगले दिन वापस आया तो मुझे अपनी दुकान पूरी तरह से तबाह मिली. दवाएं फर्श पर पड़ी थीं.” शहजाद का अनुमान है कि कुल एक लाख रुपए का नुकसान हुआ है.

सिद्दीकी ने कहा, "महमूद नगर में लोग उस रात से आतंक में जी रह रहे हैं और हम सब एक भेदभावपूर्ण कानून का विरोध कर रहे हैं जिसका इस्तेमाल हमारी नागरिकता छीनने के लिए किया जा सकता है. मेरा अपना नाम दस्तावेजों में अलग-अलग है और मुझे दस्तावेज बनाने में मुश्किल होगी. मुझे लगता है कि वे अब मुसलमानों को नागरिकता के बहाने घेर कर मारना चाहते हैं. यदि कोई भी मुस्लिम संतोषजनक कागजात देने में असमर्थ होगा तो उसे सजा दी जाएगी.”

जब मैं शहजाद से बात कर रहा था, तब एक महिला हमारे पास आई और हमें अपना हाथ दिखाया. शबाना, जिन्होंने अपना पूरा नाम बताने से इनकार कर दिया, ने कहा कि वह अपने पति नौशर के साथ रात 11 बजे महमूद नगर में घूम रही थी तभी उन पर सादे कपड़ों में पुलिस और अन्य लोगों ने हमला कर दिया. शबाना ने कहा, "उन्होंने हमें लाठी से पीटना शुरू कर दिया और मेरे दाहिने हाथ पर चोट आई. उन्होंने पहले नौशर को मारा फिर उन्होंने मुझे मारना शुरू कर दिया. मुझे नहीं पता कि वे कौन थे?”

जब भी मैंने निवासियों से पूछा कि क्या उन्होंने पुलिस हिंसा के खिलाफ शिकायत दर्ज की है, तो उन्होंने न में जवाब दिया. "क्या फायदा है, हम किससे शिकायत करें?" सिद्दीकी ने बेबस नजरों से देखते हुए मुझसे पूछा.

महमूद नगर के रहने वाले अफजल ने मुझे अपना पूरा नाम नहीं बताया. उन्होंने कहा कि पुलिस की कार्रवाई के बाद से इलाके में भय का माहौल है. अफजल की स्कॉर्पियो, जो घर के बाहर गली में खड़ी थी, पर हमला किया गया और उसकी खिड़कियां टूट गईं. जैसे ही उन्होंने हंगामा सुना, अपने सामने के दरवाजे को बंद कर लिया और छिपने के लिए ऊपर की ओर दौड़ पड़े. अफजल ने कहा, ''मैं पिछले चार दिनों से अपने घर से बाहर नहीं निकला हूं.''

शायद सबसे ज्यादा नुकसान खालापार में हाजी नसीम इलाही ने झेला था. इलाही जूता व्यापार में लगा एक समृद्ध मुस्लिम परिवार है. वे थोक दरों पर आगरा से तैयार जूते खरीदते हैं और उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बेचते हैं. परिवार के मुखिया इलाही की उम्र 70 वर्ष से ज्यादा है. वे मधुमेह और दिल की बीमारी से पीड़ित हैं. इलाही ने मुझे बताया कि उस रात वह अपनी दो बेटियों के साथ घर पर थे जब पुलिस ने घर में तोड़फोड़ की और उनके साथ बर्बरता की. उन्होंने सारे फर्नीचर और बिस्तर तोड़ दिए, रसोई को उलट-पलट कर दिया और घरेलू सामानों को तबाह कर दिया. उन्होंने 3.25 लाख रुपए नकद और 8 लाख रुपए के गहने चुरा लिए.

इलाही की 24 साल की बेटी हुमैरा परवीन ने मुझे बताया कि जब उन्होंने पुलिसकर्मियों को अंदर आते देखा तो वह और उनकी बहन फौरन छत पर चली गईं. हुमैरा ने बताया, "हमने तय किया था कि अगर वे हमसे बदतमीजी करेंगे तो हम छत से कूदकर अपनी जान दे देंगे."