खाप का बुलावा

मुजफ्फरनगर मुस्लिम विरोधी दंगे के दस साल, हिंसा के लिए कैसे जुटाई गईं हिंदू जातियां

7 सितंबर 2013 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के लिसाढ़ गांव के पास त्रिशूल और तलवारों से लैस एक हिंदू भीड़.
गजेंद्र यादव /इंडियन एक्सप्रेस
7 सितंबर 2013 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के लिसाढ़ गांव के पास त्रिशूल और तलवारों से लैस एक हिंदू भीड़.
गजेंद्र यादव /इंडियन एक्सप्रेस

कुटबी एक साधारण गांव है. केवल छब्बीस सौ लोगों की आबादी वाला और किसी भी शहर से लगभग बीस किलोमीटर दूर. लेकिन, 5 नवंबर 2012 की सुबह भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई वहां एक हेलीपैड का निरीक्षण कर रही थी. कुछ घंटों बाद बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह अपने हेलीकॉप्टर से उतरे. उन्हें गन्ना किसान महापंचायत में शामिल होना था. जहां पंचायत गन्ना मूल्य निर्धारण, चीनी मिलों के चलने में देरी और जाट समुदाय के लिए आरक्षण की मांग के मुद्दों को संबोधित करने वाली थी.

लेकिन जैसे-जैसे बैठक आगे बढ़ी इसका प्राथमिक फोकस साफ होता गया: बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने जाट समुदाय के लिए अपने खुद के नेता, संजीव बालियान को पेश किया. बिना किसी खास राजनतीतिक अनुभव वाले एक 39 साल के नौजवान के लिए यह एक बड़ी उपाधि थी. बालियान का पड़ोसी राज्य हरियाणा में सरकारी पशु चिकित्सक के रूप में केवल एक छोटा सा कैरियर था. लेकिन बालियान ने महापंचायत का आयोजन किया था. कुटबी उनका पैतृक गांव था और उन्हें उस दिन कई मालाएं पहनाई गईं. वह पहले प्रमुख घरेलू नेता थे जिन्हें बीजेपी मुजफ्फरनगर के जाट समुदायों में आगे बढ़ा पाई थी.

एक साल से भी कम समय में कुटबी उत्तर प्रदेश के पहले से ही रक्तरंजित इतिहास में सबसे खराब अंतर-धार्मिक हिंसा का स्थल होने वाला था. 8 सितंबर 2013 को कुटबी के एकदम पड़ोसी गांव कुटबा में आठ मुसलमानों की हत्या कर दी गई और बाकी मुस्लिम समुदाय पलायन कर गया. मुजफ्फरनगर और शामली जिलों के कुटबी के आसपास के कई गांवों के हाल भी इसी तरह के थे. हिंसा ने पूरे इलाके को तहस-नहस कर दिया था. हिंसा में 62 लोग मारे गए और पचास हजार से ज्यादा अपनी जगहों से उजड़ गए. इनमें से ज्यादातर मुस्लिम थे. यह उस तरह का विनाश था जिसकी भविष्यवाणी बहुत कम लोग कर सकते थे, सिवाय उनके जो मेरी तरह चिंगारी भड़कने से पहले महीनों तक जमीन पर लामबंदी करते रहे थे.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावी रूप से महत्वपूर्ण यह क्षेत्र लोकसभा में 29 सांसद भेजता है. ऐतिहासिक रूप से बीजेपी का राजनीतिक प्रभाव यहां सीमित रहा था. 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंश के लिए बड़े पैमाने पर लामबंदी के बावजूद, पार्टी एक शहरी परिघटना बनी रही, जिसे मुख्य रूप से ब्राह्मणों और बनियों का समर्थन हासिल था जिनके दम पर वह केवल नगरपालिका चुनावों और शहरी विधायिका सीट में ही जीत के लिए आगे बढ़ पाए थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का विशाल ग्रामीण भीतरी इलाका, जहां जाट, गुर्जर, मुस्लिम और दलित जैसी कृषक जातियां रहती थीं, उनके दायरे से बाहर थे.

जाट पहले ही महेंद्र सिंह टिकैत और उनके भारतीय किसान संघ के बैनर तले एकत्र हो चुका था. उनके पास इतना समर्थन था कि एक लोकप्रिय जाट नेता चरण सिंह भारत के पांचवे प्रधानमंत्री बन सके. चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख थे. यह एक अवसरवादी संगठन है जो अक्सर मुसलमानों और जाटों दोनों के वोट हासिल करता है और जो भी पार्टी सत्ता में होती है, उससे गठबंधन कर लेता है. उदाहरण के लिए, 2009 के आम चुनाव में आरएलडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, लेकिन जल्द ही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में शामिल हो गया, जिससे अजीत सिंह नागरिक-उड्डयन मंत्री बन गए.

शिवम मोघा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम्स में रिसर्च स्कॉलर हैं. वह ट्रॉली टाइम्स के सह-संपादक हैं.

मोहम्मद कामरान जेएनयू में स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स में पीएचडी शोधकर्ता हैं. उनका पहला उपन्यास 2019 में साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित किया गया था.

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