नरेन्द्र मोदी ने चुनावी हलफनामे में क्यों छिपाई जमीन की जानकारी?

साल 2012 में गुजरात के गांधीनगर में नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली. सैम पंथकी/एएफपी/गैटी इमेजिस
17 April, 2019

सुप्रीम कोर्ट में 15 अप्रैल को दायर जनहित याचिका में दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी जमीन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी अपने चुनावी हलफनामे में छिपाई है. स्वतंत्र संचार और मारकेटिंग कन्सलटेंट और पूर्व पत्रकार साकेत गोखले ने यह याचिका दायर की है. 2007 के अपने चुनावी हलफनामे में मोदी ने घोषणा की थी कि वह गुजरात के गांधीनगर के सेक्टर-1 के प्लॉट नं- 411 के मालिक हैं. इसके बाद 2012 और 2014 के हफलनामों में और प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइट पर हर साल दिए जाने वाले ब्यौरे में इस प्लॉट का जिक्र नहीं है. सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध अंतिम रिकार्ड में मोदी को प्लॉट 411 का एकमात्र मालिक बताया गया है.

2012 से दायर हलफनामों और दस्तावेजों में मोदी ने स्वयं को इसी सेक्टर के “प्लॉट 401/ए” का “एक चौथाई” स्वामी बताया है. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक गुजरात राजस्व विभाग के गांधीनगर के भू-रिकार्ड में ऐसे किसी भी प्लॉट का नाम नहीं है.

दिलचस्प बात है कि इसी प्लॉट का उल्लेख वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने चुनावी हलफनामे में किया है. 2006 के अपने चुनावी हलफनामे में जेटली ने स्वयं को गांधीनगर के सेक्टर-1 के प्लॉट 401 का मालिक बताया था. उसके बाद के जेटली के हलफनामों में इस प्लॉट का कहीं जिक्र नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव के हलफनामे में और मोदी के कैबिनेट मंत्री के रूप में अपनी सार्वजनिक घोषणाओं में जेटली ने स्वयं को उपरोक्त “प्लॉट 401/ए” का “एक चौथाई” हिस्से का मालिक बताया है. जेटली ने अपने हलफनामे में बताया है कि उनको यह प्लॉट गांधीनगर के जिला कलेक्टर कार्यालय के अंतर्गत आने वाले भू-रिकार्ड कार्यालय अथवा मामलातदार ने उन्हें आवंटित किया है. सार्वजनिक रिकार्ड से पता चलता है कि जेटली प्लॉट 401 के वर्तमान और एकमात्र मालिक हैं.

कई हफ्तों से कारवां द्वारा 2007 से मोदी के चुनावी हलफनामों और सार्वजनिक घोषणाओं में दिए गए संपत्ति विवरण की सत्यता का पता लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं. खासकर इस बात की खोज की जा रही है कि कैसे प्लॉट 411 का मालिकाना अधिकार उनके पास आया और “प्लॉट 401/ए” कहां है. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में गांधीनगर में सरकारी जमीन पर मोदी के मालिकाने अधिकार पर सवाल उठाए गए हैं. कारवां के पास उपलब्ध दस्तावेज न केवल मोदी के हलफनामे में दर्ज भूमि की जानकारी की सत्यता पर सवाल उठाते हैं बल्कि यह भी सवाल खड़ा होता है कि मोदी कैसे सांसदों और विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों को राज्य सरकार द्वारा आवंटित की जाने वाली जमीन के मालिक बन गए. 2012 में, जब सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार के कर्मचारियों को गुजरात में भूमि आवंटन से संबंधित याचिका की सुनवाई कर रही थी, तब भारतीय जनता पार्टी की नेता मीनाक्षी लेखी, जो उस वक्त राज्य की ओर से वकील थीं, ने सर्वोच्च अदालत को बताया था कि साल 2000 के बाद राज्य सरकार ने भूमि आवंटन नहीं किया है. मोदी, 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने और फरवरी 2002 में राजकोट-2 से उपचुनाव जीत कर विधानसभा में निर्वाचित हुए थे.

पत्रकार और कार्यकर्ताओं ने पिछले सालों में, दिल्ली विश्वविद्यालय से 1978 में पास हुए ग्रजुऐट छात्रों की जानकारी हासिल करने के प्रयास किए हैं. मोदी ने उस साल यहां से ग्रेजुएशन करने का दावा किया है. इस प्रसास को विश्वविद्यालय सहित अन्य स्तरों पर रोका गया. विश्वविद्यालय ने इसकी जानकारी देने से इनकार कर दिया. मोदी की जमीन से जुड़ी जानकारी पता लगाने के हमारे प्रयास के साथ भी यही किया गया जबकि यह सार्वजनिक जानकारी का हिस्सा होनी चाहिए. गांधीनगर के कलेक्टर कार्यालय, उप रजिस्ट्रार कार्यालय और मामलातदार कार्यालय सहित, जन प्रशासन विभागों ने या तो इन प्लाटों से जुड़े रिकार्ड के होने से इनकार कर दिया या हमारे किसी भी सवाल का जवाब देने से मना कर किया. जबकि हमने इस खबर के प्रकाशित होने से हफ्तों पहले उन्हें सवाल भेज दिए थे.

15 दिन पहले हमने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को सवालों की विस्तृत सूची भेजी थी पर कोई जवाब नहीं आया.

हलफनामा और सार्वजनिक घोषणाएं

गांधी नगर का सेक्टर-1, गुजरात की राजधानी का पॉश इलाका है. यहां प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के अलावा अमित शाह और उनके पूर्ववर्ति, पूर्व कानून मंत्री जन कृष्णमूर्ति के भी प्लॉट हैं. कृष्णमूर्ति का निधन 2007 में हुआ था.

2007 में, गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले मोदी ने हफलनामा दायर कर बताया था कि सेक्टर-1 का प्लॉट 411 उनका है. मोदी ने इस प्लॉट का क्षेत्रफल 326.22 वर्ग मीटर और इसकी खरीद कीमत एक लाख 30 हजार रुपए बताई थी. गांधीनगर में जमीन के बाजार मूल्य के हिसाब से आज इस प्लॉट की कीमत एक करोड़ 18 लाख रुपए है. उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने घोषणा की थी कि उन्होंने जमीन में निर्माण कार्य में 30 हजार 363 रुपए खर्च किया है. आने वाले दिनों में मोदी की जमीन से संबंधित घोषणाएं 2007 की उनकी घोषणाओं से मेल नहीं खातीं और सार्वजनिक भू-रिकार्ड में भी यह दर्ज नहीं है.

इसके बाद मोदी ने गुजरात में 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में हलफनामा दर्ज किया. इस हलफनामे में प्लॉट 411 का जिक्र नहीं है. मोदी ने इस बार स्वयं को “प्लॉट 401/ए” का मालिक बताया. उन्होंने अपने हिस्से की जमीन का क्षेत्रफल 326.11 वर्ग मीटर दर्शया. यह घोषणा कारवां के पास उपलब्ध भू-रिकार्ड से मेल नहीं खाती. भू-रिकार्ड में प्लॉट 411 की बिक्री या हस्तांतरण का रिकार्ड नहीं है और रिकार्ड अब भी मोदी को ही इस प्लॉट का मालिक दर्शाता है. मोदी ने अपना दूसरा हलफनामा 2014 के लोक सभा चुनावों में भरा. इस हलफनामे में भी प्लॉट 411 का उल्लेख नहीं है. इस हलफनामे में “401/ए” का जिक्र है जो पिछले हलफनामे से मेल खाता है.

जबसे मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, मोदी और उनकी कैबिनेट के मंत्री हर साल प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइट, पीएमइंडिया, में अपनी सम्पत्ति और दायित्व की घोषणा करते हैं. 2014 से लेकर 2018 तक की तमाम घोषणाओं में मोदी ने प्लॉट 401/ए के एक चौथाई स्वामित्व का उल्लेख किया है. उन्होंने प्लॉट का क्षेत्रफल 14125.80 फीट अथवा 1312.3 वर्ग मीटर दर्शाया है जो सेक्टर-1 के मानक प्लाटों से चार गुना बड़ा है. मोदी ने इस प्लॉट में अपना हिस्सा, 3531.45 वर्ग फीट यानी 328.08 वर्ग मीटर दर्शाया है. उन्होंने घोषणा की है कि प्लॉट में उन्होंने 2 लाख 40 हजार रुपए का निवेश किया है. घोषणा के तहत उनके हिस्से की जमीन की कीमत लगभग एक करोड़ रुपए है.

मोदी ने अपने हलफनामे में बताया है कि उन्होंने यह जमीन अक्टूबर 2002 में, गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के तकरीबन एक साल बाद, 1.3 लाख रुपए में खरीदी थी. वह यह नहीं बताते कि इस भूमि को उन्होंने कैसे हासिल किया.

कारवां, 2007 से मोदी के चुनावी हलफनामों और सार्वजनिक घोषणाओं में दी गई संपत्ति का सत्यापन करने का प्रयास कर रहा है. खासकर इस बात की खोज कर रहा है कि कैसे प्लॉट 411 का मालिकाना अधिकार उनके पास आया और “प्लॉट 401/ए” कहां है.

मोदी ने एक चौथाई हिस्से का जो ब्यौरा दिया है उसकी जानकारी जेटली की दी जानकारी से मेल नहीं खाती. वित्त मंत्री को 2014 में मोदी की कैबिनेट में शामिल किया गया था. उस वक्त से लेकर अब तक की घोषणाओं में जेटली स्वयं को “प्लॉट 401/ए” का “एक चौथाई” मालिक बताते रहे हैं. अपनी प्रत्येक घोषणा में जेटली में बताया है कि उन्हें यह प्लॉट गांधीनगर के मामलातदार कार्यालय से 2003 में हासिल किया था. उस वक्त वह गुजरात से राज्यसभा के सदस्य थे. जेटली ने 2014 और उसके बाद की घोषणाओं में बताया है कि प्लॉट का कुल क्षेत्रफल 14240 वर्ग फीट या 1322.9 वर्ग मीटर है. जेटली ने बताया है कि उन्होंने अपने 3560 वर्ग फीट या 330.7 वर्ग मीटर के हिस्से के लिए 2 लाख 45 लाख रुपए का भुगतान किया है. वह यह भी बताते हैं कि जमीन पर निर्माण कार्य के लिए उन्होंने 1 लाख 90 हजार रुपए का निवेश किया है. गांधीनगर में हाल के बाजार भाव में उनके हिस्से की जमीन का मूल्य 1 करोड़ 19 लाख रुपए है.

दरअसल, यह रिकार्ड भारतीय निर्वाचन आयोग के समक्ष जेटली की पूर्व घोषणाओं से मेल नहीं खाता. 2006 के हलफनामे में जेटली ने घोषणा की थी कि इसी सेक्टर के प्लॉट 401 में 326.22 वर्ग मीटर जमीन उनके नाम पर है. इसके स्वामित्व का उल्लेख 2014 के लोकसभा चुनाव के समय दायर हलफनामे और बाद की घोषणाओं में नहीं है.

सार्वजनिक रूप से उपलब्ध गुजरात राजस्व विभाग के भू-रिकार्ड में मोदी को प्लॉट 411 का एकमात्र स्वामी और जेटली को प्लॉट 401 का एकमात्र स्वामी दर्शाया गया है. इस रिकार्ड में “प्लॉट 401/ए” का कोई उल्लेख नहीं है.

यह रिकार्ड भारतीय निर्वाचन आयोग के समक्ष जेटली की पूर्व घोषणाओं से मेल नहीं खाता. 2006 के हलफनामे में जेटली ने घोषणा की थी कि इसी सेक्टर के प्लॉट 401 में 326.22 वर्ग मीटर जमीन उनके नाम पर है. जबकि इसके स्वामित्व का उल्लेख 2014 के लोकसभा चुनाव के समय दायर हलफनामे और बाद की घोषणाओं में नहीं है.

हमारी रिर्पोटिंग से मोदी और जेटली की प्लॉट संबंधी घोषणाओं पर कई सवाल उठे हैं. मार्च में हमने गांधीनगर सेक्टर-1 का भ्रमण किया. 400 अंकों वाले प्लॉट में बड़े-बड़े बंगले और घर बने हुए हैं जिनके आगे चौड़ी सड़कें हैं और दोनों तरफ पेड़ लगे हैं. एक मोड़ में हमें “प्लॉट 407 से 411” और “401, 403, 405” का साइन बोर्ड दिखाई दिया. साइन बोर्ड की दिशा में तफरी करते हुए हमने पाया कि रास्ते के प्लॉटों पर स्पष्ट नंबर नहीं हैं. हालांकि प्लॉट 411 या “401/ए” कहां है वह कोई नहीं बता पाया लेकिन हमने जल्दी ही एक खाली प्लॉट देखा लिया इसके चारों ओर दीवार और एक गेट लगा था. यह प्लॉट अपने आसपास के प्लॉटों से कई गुना बढ़ा दिखाई दे रहा था. इसकी दीवार पर “410” लिखा हुआ था. इस बड़े प्लॉट के बीच में छोटा सा निर्माण कार्य हुआ था. इस इलाके की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि इसे प्लॉटों को “जोड़ कर बड़ा” किया गया है.

410 प्लॉट के बगल में एक बंगला है. बंगले के सामने वाली सड़क के उस पार ऐसा ही एक बड़ा खाली प्लॉट है. जैसे ही हम लोग बंगले के गेट के पास पहुंचे, ताकि वहां रहने वालों से बात कर सकें, तभी एक मध्य आयु के आदमी ने हमें परिसर के अंदर आने को कहा. जब हमने उसे बताया कि हम लोग पत्रकार हैं तो उसने हमें पहचान पत्र और फोन दिखाने को कहा. हमारे फोन और आइडेंटिटी कार्ड दिखाने पर भी उसने हमें अपना नाम नहीं बताया. इसके बाद उसने पुलिस को फोन किया और बार-बार कहने लगा कि यह लोग “साहब” का प्लॉट देखने आए हैं. हमने उससे पूछा कि वह “साहब” किसे बोल रहा था. हमारे कई बार पूछने के बाद उसने बताया कि साहब का मतलब “नरेंद्रभाई मोदी” हैं. उसने बगल वाले प्लॉट की ओर इशारा करते हुए बताया कि 410 नंबर प्लॉट के मालिक साहब हैं.

राजस्व विभाग की रिकॉर्ड सूची में प्लॉट 410 के मालिक प्रफुल द्वारकादास गोरडिया हैं. गोरडिया, गुजरात से बीजेपी के पूर्व राज्यसभा सांसद हैं.

जब हम लोग उस क्षेत्र से बाहर जा रहे थे तब हमें एक फोन आया. फोन करने वाले ने अपनी पहचान हमें नहीं बताई लेकिन दावा किया कि वह स्थानीय पुलिस स्टेशन से बोल रहा है और हमसे आक्रमक अंदाज में सवाल पूछने लगा. उसने हमसे पूछा कि क्या हम लोग “मोदी जी” के बंगले में आए हैं और यह भी कि हम लोग कहां रहते हैं. जब हमने उसे समझाया कि हम लोग पत्रकार हैं तो उसने हमसे पूछा कि हम लोग क्या खोज रहे हैं. फिर उसने कहा कि क्या हम लोगों ने खबर करने की अनुमति ली है. उसने दावा किया कि हमें पुलिस को इस बारे में जानकारी देनी चाहिए थी. उसने कहा, “यदि तुम पत्रकारों को कोई जानकारी चाहिए तो ऐसा करने से पहले तुम्हें पुलिस को सूचना देनी चाहिए”.

411, 401 और “401/ए” के मालिकों का इतिहास

कारवां ने प्लॉट 411, 401 और “401/ए” के मालिकों के इतिहास का पता लगाने के प्रयास किए. यदि सुप्रीम कोर्ट में मीनाक्षी लेखी का कथन कि गुजरात में 2000 के बाद से सरकारी कर्मचारियों को जमीन का आवंटन नहीं किया गया है, सही है, तो यह कैसे हुआ कि मोदी, जो 2001 में मुख्यमंत्री बने थे, जमीन के मालिक बन गए.

1969 से ही गुजरात सरकार ने प्रस्ताव पारित किए हैं जो राज्य सरकार के कर्मचारी, संसद सदस्य और विधानसभा सदस्य को किए जाने वाले भू-आवंटन की प्रक्रिया के बारे में बताते हैं. 1982 में पारित तीसरे प्रस्ताव में राज्य ने निर्णय किया था कि सांसद और विधायक को बिना नीलामी के 45 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से 200 से 330 स्क्वायर मीटर आवासीय प्लॉट आवंटित किए जाएंगे. कई सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक संस्थाओं ने जब जमीन के लिए आवंटन का आवेदन किया तो गुजरात सरकार ने अपनी भू-आवंटन नीति में संशोधन करते हुए 29 जून 1988 को एक दूसरा प्रस्ताव पास किया.

1988 में पारित प्रस्ताव में 6 साल पहले के प्रस्ताव में विभिन्न शर्तें जोड़ दी गई. उदाहरण के लिए जिस सरकारी कर्मचारी को प्लॉट आवंटित किया गया है उसे 2 साल के भीतर प्लॉट में आवास का निर्माण करना होगा और उस घर में “अनिवार्य रूप से रहना” होगा. इसके अतिरिक्त, ऐसे प्लॉटों के हस्तांतरण पर रोक लगा दी गई एवं जिन प्लॉटों में निर्माण कार्य हो चुका है उनका हस्तांतरण सरकार की अनुमति लेकर ही किया जा सकता था.

जब सरकारी कर्मचारियों ने गांधीनगर से बाहर स्थानांतरण को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त की तो इस आदेश को हलका कर दिया गया. 1999 और 2000 में गुजरात सरकार ने अन्य प्रस्ताव पारित किए जिनमें पूर्व की नीति में उल्लेखित प्रस्तावों को और आसान बना दिया गया. इसमें सरकार की अनुमति लेकर प्लॉटों को किराए पर देने का प्रावधान शामिल कर लिया गया. हालांकि दोनों प्रस्तावों में व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए प्लॉट को किराए पर देने पर रोक थी लेकिन 1988 में इस नीति पर दी गई छूट के कारण आवंटित जमीन का दुरुपयोग होने लगा. 2000 में आवंटन प्रक्रिया में अनियमित्तता के आरोप के बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने सरकार के इन प्रस्तावों पर संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू कर दी.

अप्रैल 2001 में गुजरात हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए, सरकार के 1999 और 2000 के प्रस्तावों पर अस्थाई रोक लगा दी. साथ ही अदालत ने सरकार को, अनुमति के बिना किराए पर दिए प्लॉटों पर किराए की उगाही करने का निर्देश दिया और प्लॉटों पर निर्माण और उनके हस्तांतरण पर रोक का आदेश जारी कर दिया. इसके तुरंत बाद गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी और नवंबर 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी. परिणामस्वरूप, 1999 और 2000 के सरकार के प्रस्ताव लागू रहे. इसका मतलब यह हुआ कि सरकार द्वारा आवंटित प्लॉटों को अनुमति लेकर बेचा जा सकता था. गुजरात हाईकोर्ट का संज्ञान लेकर प्रस्तावों को चुनौती देने का मामला अदालत में लंबित रहा. अप्रैल 2001 में, उस वक्त राज्य सरकार के उप सचिव रहे, एनके पटेल ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर जानकारी दी की सरकारी प्रस्ताव के अंतर्गत 14000 प्लॉट आवंटित किए गए हैं जिसमें से 1100 प्लॉटों को बेचने की अनुमति दी गई है.

1999 और 2000 के गुजरात सरकार के प्रस्तावों पर संज्ञान से संबंधित मामला सालों तक लंबित रहा. इसी बीच 2010 में युवा वकील मौलीन बरोट ने गुजरात उच्च अदालत के सामने रिट याचिका दायर की जिसमें सरकारी प्रस्ताव के अंतर्गत प्लॉटों के आवंटन को चुनौती दी गई. लेकिन अदालत ने बरोट की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें “गैर कानूनी आवंटन का कोई स्पष्ट आरोप नहीं है” और “याचिका में किसी भी प्रकार का जन हित प्रकट नहीं होता”. 2 साल बाद हाई कोर्ट के निर्णय को बरोट ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. नवंबर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि वह जल्द से जल्द संज्ञान मामले को निपटाए.

कोर्ट ने यह भी कहा कि “हम यह भी निर्देश देते हैं कि जब तक हाई कोर्ट संज्ञान मामले को नहीं निपटा लेती तब तक कोई भी ताजा आवंटन नहीं किया जाएगा और सरकार के प्रस्तावों के अंतर्गत आवंटित किए गए प्लॉटों का हस्तांतरण नहीं हो सकेगा. इसी फैसले में अदालत ने सरकारी वकील और बीजेपी की नेता मीनाक्षी लेखी का वह महत्वपूर्ण दावा दर्ज किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार ने वर्ष 2000 के बाद कोई भी ताजा आवंटन नहीं किया है और आवंटन से संबंधित संपूर्ण प्रक्रिया की पुनः जांच की जा रही है.

अगस्त 2017 तक संज्ञान मामले पर सुनवाई लंबित रही क्योंकि एक के बाद एक जजों ने खुद को इस केस से मुक्त कर लिया. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अपने पास हस्तांतरित कर लिया और बरोट की अपील के साथ इसकी सुनवाई की जाने लगी. यह केस फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

कथित अनियमित्तता पर अदालत में जारी लड़ाई का मतलब है कि 2001 से लेकर 2012 तक जिन सरकारी कर्मचारियों को गांधीनगर में जमीन का आवंटन किया गया था वे सरकार की अनुमति लेकर प्लॉटों को बेच या हस्तांतरित कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार 2012 के बाद किसी भी प्लॉट की बिकवाली या हस्तांतरण हाईकोर्ट की अनुमति लेकर ही हो सकती है. गांधीनगर के सेक्टर 1 के प्लॉटों से संबंधित राजस्व विभाग के रिकॉर्ड भी बताते हैं कि यह प्लॉट “K-4” के तहत आते हैं. “K-4 सरकारी दिशानिर्देश हैं जिनमें बताया गया है कि प्लॉटों की बिक्री और हस्तांतरण, जिला कलेक्टर की अनुमति लेकर ही हो सकता है.”

इससे कई सारे सवाल पैदा होते हैं. यदि मोदी, जो 2001 तक सरकारी कर्मचारी नहीं थे और 2002 तक विधायक नहीं थे और उन्हें सरकारी जमीन आवंटित नहीं की गई थी, तब क्या उन्होंने यह जमीन खरीदी थी? प्लॉट 411 का क्या हुआ? प्लॉट “401/ए” उन्होंने कैसे हासिल किया? क्या कलेक्टर ने इसकी अनुमति दी थी?

यह जानने के लिए कि प्रधानमंत्री ने सरकारी जमीन कैसे हासिल की हमने गांधीनगर के कई संबंधित कार्यालयों का भ्रमण किया और अन्य कार्यालयों को अपने सवाल भेजे. हमें प्लॉट “401/ए” से संबंधित कोई रिकॉर्ड नहीं मिला.

30 मार्च को हमने भू-रिकॉर्ड निदेशक के कार्यालय का भ्रमण किया जो गांधीनगर के सेक्टर 14 में स्थित है. वहां उपस्थित अधिकारियों ने हमें बताया कि भूमि आवंटन दस्तावेजों के संबंध में वे लोग हमारी कोई मदद नहीं कर सकते. उन लोगों ने हमें गांधीनगर शहरी विकास प्राधिकरण में पता लगाने को कहा.

गांधीनगर शहरी विकास प्राधिकरण कार्यालय के एक अधिकारी ने हमें बताया कि भूमि आवंटन से संबंधित दस्तावेज और जानकारी 5 साल पहले तक वहां रखी जाती थी. उसने कहा, “इसके बाद के सभी दस्तावेज मामलातदार कार्यालय को सौंप दिए गए हैं.

मामलातदार कार्यालय कलेक्ट्रेट का हिस्सा है और उसी भवन में स्थित है जहां कलेक्टर कार्यालय है. हमने मामलातदार के. ए. शिकारी से मुलाकात की. उन्होंने बताया कि उन्होंने हाल ही में ऑफिस का कार्यभार संभाला है और वे चुनाव संबंधी काम में व्यस्त हैं और हमारी भूमि आवंटन से संबंधित जानकारी हासिल करने में मदद नहीं कर सकते.

हमने उप रजिस्ट्रार कार्यालय का भ्रमण किया जहां से लोग, सरकार द्वारा आवंटित जमीन के लिए सर्च रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं. यह रिकॉर्ड किसी भी प्लॉट के वर्तमान और पूर्व के स्वामियों की जानकारी देते हैं और यह बताते हैं कि किसी के एवज में कर्ज दिया गया है. प्लॉट 411 और 401 की सर्च रिपोर्ट में केवल एक वाक्य लिखा है : “किसी भी प्रकार का डाटा उपलब्ध नहीं है”. पूछताछ करने से पता चला कि सर्च रिपोर्टों को 2007 में डिजिटल किया गया है और इससे पहले का डाटा उपलब्ध नहीं है.

डाटा का उपलब्ध न होना यह बताता है कि कारवां को प्राप्त रिकॉर्ड सही हैं जिसमें मोदी ने 2007 के हलफनामे में प्लॉट 411 का खुद को स्वामी बताया था. यदि मोदी ने यह प्लॉट बेचा होता या इसे किसी के हवाले किया होता तो इस लेनदेन का पता सर्च रिपोर्ट में चल जाता.

शहर के सर्वेयर कार्यालय के एक अधिकारी ने हमें बताया कि राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में कलेक्टर द्वारा दिए गए प्राधिकार को देखा जा सकता है. उस अधिकारी ने बताया कि “कार्ड” का न होना यह संकेत देता है कि कलेक्टर ने इन प्लॉटों पर प्राधिकार नहीं दिया है.

28 मार्च को हमने कलेक्टर कार्यालय को सवालों की विस्तृत सूची भेजी और जानना चाहा कि प्लॉट 411, 401 के स्वामित्व का इतिहास क्या है? साथ ही हमने 401/ए के बारे में भी जानना चाहा और यह भी पूछा कि क्यों संपत्ति के कार्डों में इसका उल्लेख नहीं है? 31 मार्च को हमें कलेक्टर एस. के. लांगा का जवाब मिला जिसमें उन्होंने हमारे ईमेल मिलने की बात स्वीकारी और कहा कि जल्दी ही आवश्यक जवाब भेज दिया जाएगा. हमने अप्रैल की शुरुआत में लांगा से फिर संपर्क किया तो हमें जवाब के लिए 8 अप्रैल तक इंतजार करने को कहा गया. 8 अप्रैल के बाद हमने उनसे फिर संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वह अभी व्यस्त हैं और हमें 25 अप्रैल तक इंतजार करने को कहा. दिलचस्प बात यह है कि 26 अप्रैल को वाराणसी में मोदी की रैली होने वाली है जहां वे ताजा चुनाव हलफनामा दायर करेंगे.

गोखले की जनहित याचिका में उठाए गए सवाल, जेटली और मोदी के हलफनामों और सार्वजनिक घोषणाओं में दिखाई पड़ने वाली अनियमित्तता और उनकी स्वामित्व वाली जमीन पर कारवां की रिपोर्टिंग को एक साथ कर देखा जाए तो इससे प्रधानमंत्री के चुनावी हलफनामे पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. लोक प्रतिनिधि कानून के अनुसार संसदीय चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवार को अपनी संपत्ति और दायित्व की सूची देनी होती है. इस कानून के तहत चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने के लिए सजा का प्रावधान है जिसमें नामांकन खारिज भी हो सकता है.