23 मई की शाम को जैसे ही यह साफ हो गया कि लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 300 से अधिक सीटों के साथ बड़ी जीत हासिल हो गई है तो निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में विजयी भाषण दिया. जनादेश को “नया नैरेटिव” करार देते हुए मोदी ने देश की निर्धनतम जनता को बीजेपी की शानदार जीत का श्रेय दिया. इसके बाद मोदी ने अपनी बात को और आगे बढ़ाते हुए कहा, “अब इस देश में सिर्फ दो जाति बची हैं, दो जाति ही रहने वाली हैं और देश इन दो जाति पर ही केंद्रित रहने वाला है.” फिर मोदी ने व्याख्या की, “भारत में एक जाति गरीबी और दूसरी जाति देश को गरीबी से मुक्त करने के लिए अपना कुछ न कुछ योगदान देने वालों की है.” उनके भाषण को मुख्यधारा के सभी समाचार चैनलों ने सीधा प्रसारित किया. इसके बाद के दिनों में रिपब्लिक और टाइम्स नाउ जैसे मोदी और बीजेपी के करीब माने जाने वाले चैनलों ने मोदी के इस “नए नैरेटिव” को बार-बार दुहराया.
मोदी ने अपने भाषण में उन लोगों पर भी निशाना साधा जो “जाति के नाम पर खेल खेलते” हैं. मोदी ने आर्थिक आधार पर समाज को पुनः परिभाषित करने की वकालत की. उन्होंने हिंदू जाति व्यवस्था के सामाजिक पिछड़ेपन और छुआछूत के बारे में कुछ नहीं कहा जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग जैसे हाशिए के समुदायों पर थोपी गई है. मोदी ने इस बात की खूब तारीफ की कि वे नेता जो खासकर हाशिए के समुदाय से आते हैं और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर चुनाव लड़ते हैं अब से अपने प्रचार अभियान में आरक्षण जैसे जाति केंद्रित मुद्दे नहीं उठा पाएंगे. मोदी ने जातिवादी राजनीति करने के लिए विपक्षी दलों और उनके नेताओं पर हमला किया और अपनी जीत को जाति को आधार न मानने वाली कल्याणकारी कार्यक्रमों की स्वीकृति करार दिया. एक प्रकार से मोदी ने दावा किया कि भविष्य के चुनावों में जाति कोई कारक नहीं रह जाएगी.
चुनाव के जनादेश और जाति केंद्रित राजनीति में बीजेपी के रिकार्ड को समझने के लिए मैंने हिंदी पट्टी के विभिन्न दलों के दर्जन भर नेताओं से बात की. इनमें से अधिकांश नेता हाशिए के समुदाय से आते हैं. इन सभी नेताओं ने मोदी के दावे को खारिज किया और बताया कि बीजेपी ने अलग-अलग जाति समूहों को लोकसभा क्षेत्रों में संगठित किया और इस नए गठजोड़ को वोटों में बदल लिया. इन नेताओं का कथन था कि बीजेपी की चुनावी रणनीति में जाति उतनी ही महत्वपूर्ण थी जितनी अन्य पार्टियों के लिए और बिना जातीय समीकरण के बीजेपी चुनाव नहीं जीत सकती थी. इन नेताओं का मानना था कि बीजेपी का नेतृत्व, जाति को ऊंची जाति के चश्मे से देखता है जिससे ये लोग जाति के अस्तित्व को अस्वीकार तो करते हैं लेकिन इसकी समाज में उपस्थिति का लाभ भी उठाते हैं.
धनंजय यादव बिहार के नालंदा जिले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के महासचिव हैं. वह ओबीसी समुदाय से आते हैं. उन्होंने मुझे बताया कि प्रधानमंत्री के भाषण ने उनके दोहरे चरित्र को उजागर किया है और वह सामाजिक न्याय की राजनीति को समझने में असफल रहे हैं. यादव ने बिहार में मोदी की चुनावी रैलियों का संदर्भ दिया जहां उन्होंने ऊंची जातियों के अर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण की नीति के नाम पर अपना प्रचार किया था. यह आरक्षण उनकी सरकार ने लागू किया था.
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