सिंधिया फैक्टर, एक हत्या और बुलडोजर ने बिगाड़ा नरेंद्र सिंह तोमर का चुनावी गणित

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए. तोमर को उनकी पार्टी ने मध्य प्रदेश विधान सभा चुनावों में मैदान में उतारा है. वह खुद को चंबल क्षेत्र की उथल-पुथल वाली जाति की राजनीति और क्षेत्र के पूर्व शाही परिवार के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव के बीच झूलता पाते हैं. एएनआई

एक जमाना ऐसा भी था जब इस रास्ते पर चलना खतरे से खाली नहीं था. अब, राजस्थान के धौलपुर को पीछे छोड़ने, चंबल नदी को पार करने और बीहड़ों को काटते राजमार्ग से मुरैना तक पहुंचने में मुश्किल से आधा घंटा लगता है. डकैत अब केवल ओटीटी प्लेटफॉर्म और बॉलीवुड में ही दिखते हैं.

मुरैना के ठीक पीछे, एक सड़क दिमनी निर्वाचन क्षेत्र से होकर गुजरती है जहां से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर 20 साल बाद राज्य विधान सभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं. वह उन सात लोकसभा सांसदों में एक हैं जिन्हें भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में उतारा है. इन सात में कम से कम तीन केंद्रीय मंत्री हैं.

तोमर के निर्वाचन क्षेत्र में लोग मजाक-मजाक में कहते हैं कि जनाब आए तो थे चंबल क्षेत्र के उम्मीदवार तय करने लेकिन खुद ही मैदान में उतरना पड़ गया. यह निर्वाचन क्षेत्र चुनावी रूप से महत्वपूर्ण उत्तरी क्षेत्र माना जाता है. तोमर समर्थक इस विचार के पक्ष में हैं कि अगर पार्टी योन-केन-प्रकारेण बीजेपी की सरकार बनाती है तो उन्हें शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर मुख्यमंत्री पद के लिए चुना जाएगा. लेकिन इसमें एक पेंच है. शिवराज सिंह की जगह प्रह्लाद पटेल, जो अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं, या फग्गन सिंह कुलस्ते, जो अनुसूचित जनजाति के नेता हैं, ले सकते हैं. ये दोनों सांसद भी विधान सभा चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन बीजेपी नहीं चाहेगी कि वह चार बार के ओबीसी मुख्यमंत्री की जगह तोमर जैसे किसी ठाकुर को लाए, खासकर ऐसे समय में जब राष्ट्रीय जाति जनगणना का मुद्दा प्रमुखता हासिल कर रहा है.

इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि जिन सात सीटों पर सांसदों को उतारा गया है, उनमें बीजेपी की हार तय थी लेकिन अब लड़ाई टक्कर की हो गई है. इसके साथ ही बीजेपी ने सांसदों को टिकट दे कर इनके रिश्तेदारों को टिकट मिलने की संभावना को ही कुंद कर दिया है. उदाहरण के लिए पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर उनके बेटे की टिकट काट दी गई. उनका बेटा एक नगर निगम कर्मचारी को क्रिकेट बैट से पीटने के लिए सुर्खियों में आया था.

खबरों के मुताबिक तोमर खुद अपने बेटे देवेंद्र के लिए टिकट मांग रहे थे, जो एक बड़े विवाद का केंद्र भी बन गया है. कथित तौर पर एक खनन से संबंधित लेनदेन का देवेंद्र का एक वीडियो वायरल हो गया है. जैसा कि अनुमान था, कांग्रेस ने जांच की मांग की और देवेंद्र ने दावा किया कि वीडियो फेक है. मामले की सच्चाई जो भी हो, मैंने उनके पिता के निर्वाचन क्षेत्र में जिन लोगों से बात की उनमें से कई लोग टेप की बातों को लेकर हैरान नहीं थे.

हालांकि, यह तोमर की चिंताओं की शुरुआत भर है. उनके चुनावी क्षेत्र की एक बड़ी संख्या उनकी अपनी तोमर उपजाति से आती है और एक अन्य बड़ा समूह गुज्जरों से बना है. हाल ही में हुई एक हत्या के बाद दोनों ही समाज तोमर से नाराज हैं.

यह कहानी मुझे तोमर के निर्वाचन क्षेत्र के मुस्लिम बहुल गांव काजी बसई के हरिओम कुशवाह ने बताई. अपने ही समुदाय के लोगों से घिरे हुए, उन्होंने सबसे पहले इस कहानी से संबंधित पूर्वाग्रह के किसी भी संदेह को दूर किया, "यह आसान है. चंबल में हमारे जैसे पिछड़े कुशवाह, गैर-प्रमुख ओबीसी, बीजेपी के पाले में गिने जाते हैं भले ही एक-दो लोग इधर-उधर वोट कर दें, जैसे कि बसपा के साथ जाटव हैं.''

उन्होंने 3 नवंबर की घटना का जिक्र करते हुए कहा, “शुक्रवार को एक गुज्जर किसान तोमरों के गांव के रास्ते अपने ट्रैक्टर में रेत लेकर आ रहा था. वह तेज गाना बजा रहा था- पारंपरिक किस्म का नहीं, बल्कि डीजे में बजने वाला कोई गाना. तोमर सरपंच ने उसे रोका. उस दोपहर भी उसने सरपंच के घर से गुजरते वक्त वही गाना बजाया था. विवाद हुआ. रात में सरपंच ने अपने गांव से कुछ लोगों को इकट्ठा किया और जाकर गुज्जर की गोली मार कर हत्या कर दी.”

जब मैंने हत्या की आकस्मिक प्रकृति पर हैरानी जताई, तो उन्होंने गर्व के साथ कहा, “डाकू भले ही चले गए हों लेकिन चंबल का पानी हमारी रगों में बहता है. अभी कुछ महीने पहले पुरानी रंजिश के चलते दस साल बाद घर लौटे छह तोमरों की पड़ोसियों ने गोली मार कर हत्या कर दी.”

बाद में दिन में मैंने काफी अखबार टटौले और इनमें से हर कहानी काफी हद तक समाचार रिपोर्टों से मेल खाती थी. 3 नवंबर की हत्या के बाद गुज्जर पीड़ित परिवार ने जाकर पास के राज्य राजमार्ग को जाम कर दिया. जब जिले के अधिकारी उनसे मिलने गए तो उन्होंने मांग की कि हत्या में शामिल सरपंच और अन्य लोगों को गिरफ्तार किया जाए और उसके घर को ढहा दिया जाए. हैरानी की बात है कि जिला अधिकारियों ने आगे बढ़कर सरपंच के घर को ढहा दिया.

कुशवाह ने खुश होते हुए मुझे बताया, “अब गुज्जर एक तोमर मंत्री से नाराज हैं और तोमर उनसे इसलिए नाराज हैं क्योंकि उन्होंने एक तोमर का घर ढहा दिया."

नतीजतन, तोमर जिस स्थिति में हैं, उससे चंबल क्षेत्र में बीजेपी की चिंताएं बढ़ गई हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में, सिंधिया के दल बदलने से पहले, कांग्रेस ने क्षेत्र की 34 में से 26 सीटें जीती थीं. उस समय तोमर क्षेत्र में पार्टी के निर्विरोध नेता थे. सिंधिया के आने से अब ऐसी स्थिति नहीं रही. अगर तोमर चुनाव हार जाते हैं, तो वह क्षेत्र का नियंत्रण सिंधिया से हार जाएंगे.

यह निर्वाचन क्षेत्र अफवाहों से भरा हुआ है कि महाराज, जो यहां सिंधिया को कहा जाता है, तोमर की हार से खुश ही होंगे. सिंधिया का क्या प्रभाव हो सकता है इस पर कुशवाह ने मुझसे कहा, "हालांकि इस क्षेत्र में हम दलबदलुओं को पसंद नहीं करते, इसलिए महाराज की अपील अब वैसी नहीं है जैसी थी."

कुशवाह से मेरी इस बात के कुछ घंटों बाद ही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तोमर की मौजूदगी में मुरैना शहर में एक बड़ी सभा को संबोधित किया. अपने आधे घंटे के भाषण में उन्होंने एक बार भी तोमर का जिक्र नहीं किया. मुझे स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि हमें इस तथ्य को मोदी के अहंकार के अलावा और कुछ नहीं समझना चाहिए. उन्होंने राज्य में ऐसे भाषण भी दिए हैं जहां उन्होंने चार बार मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान का एक बार भी जिक्र नहीं किया. बीजेपी इस अभियान में इस नारे के साथ उतर रही है : "मोदी के मन में बसे एमपी, एमपी के मन में मोदी."

मोदी के मन से बाहर हुए तोमर को घर-घर जा कर प्रचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिसकी उनके जैसे वरिष्ठता नेता से शायद ही उम्मीद की जाती है. मेरी यात्रा से कुछ दिन पहले, वह काजी बसई निर्वाचन क्षेत्र में थे, वास्तव में वहां के मुस्लिम निवासियों से वोट मांग रहे थे. कम से कम यह बीजेपी के लिए हैरानी की बात है, जो लगभग हमेशा मुस्लिम मतदाताओं को नजरअंदाज करती है.

एक स्थानीय किराने की दुकान पर, मुमेन मोहम्मद, जो केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल से हवलदार के पद से रिटायर हुए, ने मुझे बताया, “मैंने पिछले पांच सालों में तोमर को कभी यहां आते नहीं देखा. यह पहली बार है जब हममें से ज्यादातर लोग उनका चेहरा देख रहे हैं.'' मोहम्मद के साथ गांव के अन्य लोग भी शामिल थे. उनमें से एक ने कहा, "वह काम के बारे में बात करते हैं. लेकिन एक शब्द है, मोहब्बत जिसका इस्तेमाल नहीं करते हैं." उन्होंने आगे कहा, "हम सभी जानते हैं कि ऐसा क्यों है."

मोहम्मद अपनी कुर्सी पर आगे की ओर झुक गए. "सबसे अच्छा होता कि वह हमसे कहते, ‘अगर मैंने कभी मुसलमानों का नुकसान किया है तो बताओ?’”