पिछले 12 दिनों से लगातार नागरिकता संशोधन कानून का पूरे भारत में विरोध हो रहा है. इन विरोधों का आयोजन देशभर के छात्र संगठन, नागरिक समाज के अगुवा और राजनीतिक दल कर रहे हैं. 13 और 15 दिसंबर को दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय और 15 दिसंबर को अलीगढ़ केंद्रीय विश्वविद्यालय में हुए प्रदर्शनों का पुलिस ने बर्बरता से दमन किया. जामिया में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों और अन्य लोगों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले दागे. छात्रों को गोली लगने के वीडियो भी सामने आए हैं. कानून के विरोध को अंतराष्ट्रीय सुर्खियां भी मिल रही हैं और विदेशों में भी लोग प्रदर्शकारियों को अपना समर्थन दे रहे हैं.
नेपाल में भी जामिया और भारत के अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों के समर्थन में काठमांडू में लोग विरोध प्रदर्शनों का आयोजन कर रहे हैं. 16 दिसंबर को नेपाल की राजधीना काठमांडू के माईतिघर मण्डला में और 19 दिसंबर को काठमांडू के लैनचौर स्थित भारतीय दूतावास के सामने 100 से अधिक लोगों ने प्रदर्शन कर भारत में छात्रों पर हो रही हिंसा को रोके जाने की मांग की है. इन दो प्रदर्शनों के अलावा 20 दिसंबर को मानव अधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की नेपाल शाखा ने भी काठमांडू के घंटाघर से लैनचौर तक रैली निकाली थी.
प्रदर्शनों में नेपाली छात्रों के अलावा स्थानीय लोगों, पत्रकारों और साहित्यकारों ने भी भाग लिया. प्रदर्शन कर रहे छात्रों के मुझे फोन पर बताया कि नागरिकता संशोधन कानून हालांकि भारत का आंतरिक मामला है लेकिन यह भारत के पड़ोसी देशों को भी प्रभावित करेगा. उन्होंने बताया कि भारत सरकार तीन देशों के नागरिकों पर मानवता दिखा रही है लेकिन अपने ही देश के नागरिकों के प्रति अमानवीय है.
9 दिसंबर को लोकसभा और 11 दिसंबर को राज्यसभा में पारित हुए संशोधित नागरिकता कानून का लाभ बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों- हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन- को मिलेगा. संशोधित कानून लक्षित कर मुसलमानों को इसके लाभ से वंचित रखता है.
16 दिसंबर को माईतिघर मण्डला के विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले और त्रिभुवन विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के छात्र संघर्ष दाहाल ने मुझे काठमांडू से फोन पर बताया, "नेपाल में भी राजनीतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण हो रहा है. भारत में हिंदुत्ववादी ताकतों के मजबूत होने से यहां की ऐसी ही ताकतों को बल मिलेगा.”
संघर्ष ने कहा, “भारत सरकार की हिंदुत्ववादी नीति का प्रभाव नेपाल पर भी पड़ रहा है. नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व गृहमंत्री कमल थापा लगातार नेपाल को फिर से एक हिंदू राष्ट्र बनाने के आशय के विचार आए दिन प्रकट करते रहते हैं. ऐसे लोग नेपाल को हिंदूवादी राष्ट्रों की कतार में शामिल कर देखते हैं.”
काठमांडू के पत्रकार नरेश ज्ञवाली भी भारत के नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका को भारत का आंतरिक मामला भर नहीं मानते. उन्होंने मुझे काठमांडू से फोन पर बताया, “भारत में दक्षिणपंथ और फासीवाद के मजबूत होने का असर पूरी दुनिया में पड़ेगा. फासीवाद कहीं भी हो वह उस देश का आंतरिक मामला नहीं होता.” ज्ञवाली ने पूछा, “ऐसे तो हिटलर भी जर्मनी का आंतरिक मामला है फिर दुनिया भर में क्यों हिटलर का विरोध होता है?”
ज्ञवाली ने बताया कि नेपाली लोगों ने हमेशा से ही दुनिया भर की निरंकुश सत्ताओं का विरोध किया है. “जब कन्हैया कुमार को जेल भेजा गया था तो भी नेपाल के लोगों ने विरोध किया था और जब गौरी लंकेश की हत्या हुई तो भी यहां प्रदर्शन हुए थे. हम लोगों ने पाकिस्तान में सैन्य तानाशाही का भी विरोध किया.” ज्ञवाली ने आगे कहा, “जैसे फासीवादी विचारधारा एक देश तक सीमित नहीं रहती वैसे ही मानवतावादी विचारधारा भी भौगोलिक सीमाओं में बंधी नहीं रह सकती.”
प्रदर्शनकारी छात्रों को यह भी डर था कि बर्मा में रोहिंग्या समुदाय पर हुए बर्बर हमले के बाद जो मुसलमान भारत आए अगर अब उनको भारत से निकाला जाएगा तो वे नेपाल में आकर बस जाएंगे. संघर्ष दहाल ने कहा, “भारत के इस कानून का दक्षिण एशिया के कई देशों पर प्रभाव पड़ेगा और शायद नेपाल पर सबसे ज्यादा.” प्रदर्शनकारियों की चिंता अकारण नहीं है. 1980 के दशक में भूटान से नेपाली मूल के एक लाख से ज्यादा नागरिकों को बेदखल कर दिया गया था और बेदखल लोगों ने नेपाल में आकर शरण ली थी. आज भी लगभग 7000 भूटानी शरणार्थी नेपाल के पूर्वी जिलों, झापा और मोरंग में बने शिवरों में रह रहे हैं.
19 दिसंबर को काठमांडू के लैनचौर स्थित भारतीय दूतावास के सामने प्रदर्शन करने वाले छात्रों ने हाथों में “स्टूडेंट्स फॉर स्टूडेंट्स” लिखे बैनर पकड़े हुए थे. प्रदर्शन में शामिल छात्रों ने कहा कि हम उन सभी छात्रों के साथ खड़े हैं जिनके साथ पुलिस ने हिंसा की है. नेपाल लॉ कॉलेज के छात्र विराज थापा ने मुझे बताया, “जामिया के छात्रों और अन्य लोगों पर पुलिस की हिंसा उनके बोलने और विरोध करने की आजादी का हनन है और जब तक सरकार व पुलिस उनके साथ ऐसा व्यवहार करते रहेंगे तब तक हम यहां भी प्रदर्शन जारी रखेंगे.” थापा ने आगे कहा, “भारत में जो हो रहा है वह मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के खिलाफ है जिसका आर्टिकल 9 अभिव्यक्ति और विचार की स्वतंत्रता की आजादी देता है. अन्य देशों की तरह भारत भी इसे मानता है.”
प्रदर्शन करने वाले छात्र इस मुद्दे पर बाकी छात्रों को भी साथ जोड़ने और नेपाल सरकार और वहां के सांसदों से भारत में शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दमन के खिलाफ आवाज उठाने की मांग कर रहे थे. थापा ने फोन पर मुझे बताया, "भारत खुद को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है पर वहां की मोदी सरकार ने लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी है.”
प्रदर्शनकारी छात्रों ने भारत में मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार, बीफ खाने पर लोगों को मार दिए जाने, लव जिहाद के नाम पर डराने-धमकाने और कश्मीर पर भारतीय दमन का भी उल्लेख किया.
दिल्ली की साउथ एशियन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के छात्र दिनेश पंत, जो इस वक्त नेपाल में हैं और छात्रों के प्रदर्शन में शामिल हुए, ने बताया "भारतीय छात्रों का प्रदर्शन आशावाद का संकेत है. उनका विरोध सारी दुनिया में दक्षिणपंथ के उदय के खिलाफ एक आवाज है.” उन्होंने कहा कि भारत में होने वाले किसी भी राजनीतिक बदलाव से नेपाल अलग नहीं रह सकता. पंत ने ज्ञवाली की बात को दोहराते हुए कहा, “अगर भारत में दक्षिणपंथ और हिंदुत्व हावी होगा तो उसका असर हम पर भी पड़ेगा. यह एक राष्ट्रवादी नहीं बल्कि मानवतावादी तर्क है.”
पंत ने बताया कि भारत हमेशा नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है और इसलिए वहां पर दक्षिणपंथ को मजबूत होने से रोकने वाले सभी आंदोलनों को यहां के धर्मनिरपेक्ष लोगों का समर्थन रहता है. पंत ने दावा किया कि नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और नेपाली कांग्रेस में ऐसे कई नेता हैं जो मोदी के कामों का समर्थन करते हैं और नेपाल में हिंदुत्व के मुद्दे को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं. पंत ने आगे कहा "हम भारत के अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ खड़े हैं और जिस समाज में अत्याचार का विरोध नहीं होता वह समाज मरा हुआ होता है.”