मार्च 2018 में, समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद ने उत्तर प्रदेश में गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में जीत हासिल की. इस निर्वाचन क्षेत्र पर पिछले तीन दशक से भारतीय जनता पार्टी काबिज थी. सपा को बहुजन समाज पार्टी और साथ ही कुछ छोटे दलों का समर्थन प्राप्त था. निर्बल भारतीय शोषित हमारा आम दल पार्टी, या निषाद भी इसमें शामिल थी. निषाद के कर्ताधर्ता संजय निषाद, प्रवीण के पिता हैं. यह गठबंधन सपा, बसपा और निषाद के प्रमुख मतदाताओं- यादवों, दलितों और निषादों को एक साथ ले आया. निषाद एक ऐसा समुदाय है, जिसमें कई गैर-प्रमुख जाति-समूह आते हैं जो उत्तर प्रदेश और केंद्र की अन्य पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल हैं.
गोरखपुर के एक पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार मनोज सिंह बताते हैं, "पिछले साल के उपचुनाव ने गोरखपुर पर भाजपा की 27 साल की पकड़ को खत्म कर दिया और इसका एक बड़ा कारण निषाद वोट का एकजुट होना था." आगामी लोकसभा चुनावों के लिए, सपा और बसपा उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी और अन्य छोटे दलों के साथ अपने गठबंधन को दोहराने के लिए तैयार हैं. इस गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल भी शामिल है. गठबंधन अपने जाति-आधारित वोट बैंक पर भरोसा करता दिखाई दे रहा है, जो निषादों के समर्थन से मजबूत हुआ है. इस बीच आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य की भाजपा सरकार, हिंदुत्व और जाति-आधारित चुनावी गणना के तहत विकास के दावे के इर्द गिर्द अपनी रणनीति का मसौदा तैयार करती दिख रही है.
निषाद समुदाय की जनसांख्यिकीय संरचना के साथ-साथ उनके इतिहास के बारे में भी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, गोरखपुर सीट पर करीब 15 प्रतिशत वोटों के साथ 3.5 लाख निषाद मतदाता हैं. सिंह ने मुझे बताया कि निषादों को "गंगापुत्र" के रूप में भी जाना जाता है, और उनकी आजीविका नदियों और जल निकायों के आसपास केंद्रित है - उनमें से कई नाविक, मछुआरे और जाल बुनने वाले हैं. जब मैंने इस साल मार्च की शुरुआत में संजय से गोरखपुर में उनके आवास पर मुलाकात की - जो निषाद का कार्यालय भी है, तो उन्होंने मुझसे कहा, "निषाद आर्यों, मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ लड़े, इसलिए उन्हें एक आपराधिक जनजाति घोषित किया गया. उन्होंने कहा, "यही कारण है कि समुदाय ने दशकों से अनुसूचित जाति श्रेणी के तहत आरक्षण की मांग की है”. संजय के अनुसार, 1990 के दशक तक निषाद समुदाय के अंतर्गत आने वाले समूहों को अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन मंडल आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद, निषाद समुदाय की "सबसे अधिक आबादी वाली उप-जातियां— केवट, मल्लाह, बिंद, कश्यप को पिछड़ी” - ओबीसी के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया. दिसंबर 2016 में, सपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने 17 ओबीसी जातियों को, जिनमें से कुछ निषाद भी थे, अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का आदेश पारित किया, लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी. संजय का कहना है कि, "हमारी प्राथमिक मांग अनुसूचित जाति कोटे के तहत आरक्षण पाना है और हम अपनी संख्या के अनुपात में सत्ता में हिस्सेदारी चाहते हैं."
संजय ने निषादों पर लगभग एक दर्जन पुस्तकों के साथ-साथ भारत में सामाजिक न्याय पर भी लिखा है, निषादों का इतिहास और भारत का असली मालिक कौन है? इसमें शामिल है. उन्होंने दावा किया कि गोरखनाथ मंदिर उनके समुदाय का है क्योंकि इसके संस्थापक मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य थे, जिन्हें संजय ‘निषाद’ बताते हैं. पुर्तगाली खोजकर्ता वास्को डी गामा और इतालवी खोजकर्ता क्रिस्टोफर कोलंबस के चित्र उनके कार्यालय की दीवार पर सजे हुए थे. संजय ने दावा किया कि वे दोनों निषाद थे. सिंह ने मुझे बताया कि संजय की रचनाओं के कुछ ऐतिहासिक पहलुओं को इतिहासकारों द्वारा सत्यापित नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि, "यह स्पष्ट नहीं है कि ऐतिहासिक तथ्य क्या है और कल्पना क्या है, हालांकि, यह उनके लिए महत्वपूर्ण भी नहीं है क्योंकि जो वे कहना चाहते हैं निषाद उसे स्वीकार कर चुके हैं."
संजय ने 1979 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय “कर्मचारी महासंघ” में कांशीराम के मार्गदर्शन में एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में की थी. यह एक ऐसा संगठन था, जो दलित समुदाय के सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर काम करता था. उन्होंने उत्तर प्रदेश में दो बार विधान सभा चुनाव लड़ा, 2012 में कैंपियरगंज निर्वाचन क्षेत्र से राष्ट्रीय महान गणतंत्र पार्टी के टिकट पर, और फिर पांच साल बाद, गोरखपुर ग्रामीण सीट से निषाद के टिकट पर. लेकिन दोनों बार ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने मुझे बताया कि पिछले चुनावों में विभिन्न दलों के बीच उनके समुदाय के वोट बिखरे हुए थे. उन्होंने कहा कि "2014 में, निषादों ने मोदी के लिए मतदान किया क्योंकि उन्होंने कहा कि वह गंगापुत्रों के पिछड़ेपन पर ध्यान देंगे." उन्होंने बताया कि 2017 के विधानसभा चुनावों में भी, निषादों ने आरक्षण के वादे के कारण भाजपा को वोट दिया था. "लेकिन वे वादे पूरे नहीं हुए."
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