क्या निषादों के समर्थन के साथ सपा-बसपा-रालोद गठबंधन गोरखपुर में योगी को चुनौती दे पाएगा

गोरखपुर में निषाद पार्टी द्वारा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर आयोजित रैली में लगभग 2000 लोग शामिल थे. साभार मुनीब निषाद
27 March, 2019

Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.

मार्च 2018 में, समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद ने उत्तर प्रदेश में गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में जीत हासिल की. इस निर्वाचन क्षेत्र पर पिछले तीन दशक से भारतीय जनता पार्टी काबिज थी. सपा को बहुजन समाज पार्टी और साथ ही कुछ छोटे दलों का समर्थन प्राप्त था. निर्बल भारतीय शोषित हमारा आम दल पार्टी, या निषाद भी इसमें शामिल थी. निषाद के कर्ताधर्ता संजय निषाद, प्रवीण के पिता हैं. यह गठबंधन सपा, बसपा और निषाद के प्रमुख मतदाताओं- यादवों, दलितों और निषादों को एक साथ ले आया. निषाद एक ऐसा समुदाय है, जिसमें कई गैर-प्रमुख जाति-समूह आते हैं जो उत्तर प्रदेश और केंद्र की अन्य पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल हैं.

गोरखपुर के एक पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार मनोज सिंह बताते हैं, "पिछले साल के उपचुनाव ने गोरखपुर पर भाजपा की 27 साल की पकड़ को खत्म कर दिया और इसका एक बड़ा कारण निषाद वोट का एकजुट होना था." आगामी लोकसभा चुनावों के लिए, सपा और बसपा उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी और अन्य छोटे दलों के साथ अपने गठबंधन को दोहराने के लिए तैयार हैं. इस गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल भी शामिल है. गठबंधन अपने जाति-आधारित वोट बैंक पर भरोसा करता दिखाई दे रहा है, जो निषादों के समर्थन से मजबूत हुआ है. इस बीच आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य की भाजपा सरकार, हिंदुत्व और जाति-आधारित चुनावी गणना के तहत विकास के दावे के इर्द गिर्द अपनी रणनीति का मसौदा तैयार करती दिख रही है.

निषाद समुदाय की जनसांख्यिकीय संरचना के साथ-साथ उनके इतिहास के बारे में भी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, गोरखपुर सीट पर करीब 15 प्रतिशत वोटों के साथ 3.5 लाख निषाद मतदाता हैं. सिंह ने मुझे बताया कि निषादों को "गंगापुत्र" के रूप में भी जाना जाता है, और उनकी आजीविका नदियों और जल निकायों के आसपास केंद्रित है - उनमें से कई नाविक, मछुआरे और जाल बुनने वाले हैं. जब मैंने इस साल मार्च की शुरुआत में संजय से गोरखपुर में उनके आवास पर मुलाकात की - जो निषाद का कार्यालय भी है, तो उन्होंने मुझसे कहा, "निषाद आर्यों, मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ लड़े, इसलिए उन्हें एक आपराधिक जनजाति घोषित किया गया. उन्होंने कहा, "यही कारण है कि समुदाय ने दशकों से अनुसूचित जाति श्रेणी के तहत आरक्षण की मांग की है”. संजय के अनुसार, 1990 के दशक तक निषाद समुदाय के अंतर्गत आने वाले समूहों को अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन मंडल आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद, निषाद समुदाय की "सबसे अधिक आबादी वाली उप-जातियां— केवट, मल्लाह, बिंद, कश्यप को पिछड़ी” - ओबीसी के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया. दिसंबर 2016 में, सपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने 17 ओबीसी जातियों को, जिनमें से कुछ निषाद भी थे, अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का आदेश पारित किया, लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी. संजय का कहना है कि, "हमारी प्राथमिक मांग अनुसूचित जाति कोटे के तहत आरक्षण पाना है और हम अपनी संख्या के अनुपात में सत्ता में हिस्सेदारी चाहते हैं."

संजय ने निषादों पर लगभग एक दर्जन पुस्तकों के साथ-साथ भारत में सामाजिक न्याय पर भी लिखा है, निषादों का इतिहास और भारत का असली मालिक कौन है? इसमें शामिल है. उन्होंने दावा किया कि गोरखनाथ मंदिर उनके समुदाय का है क्योंकि इसके संस्थापक मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य थे, जिन्हें संजय ‘निषाद’ बताते हैं. पुर्तगाली खोजकर्ता वास्को डी गामा और इतालवी खोजकर्ता क्रिस्टोफर कोलंबस के चित्र उनके कार्यालय की दीवार पर सजे हुए थे. संजय ने दावा किया कि वे दोनों निषाद थे. सिंह ने मुझे बताया कि संजय की रचनाओं के कुछ ऐतिहासिक पहलुओं को इतिहासकारों द्वारा सत्यापित नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि, "यह स्पष्ट नहीं है कि ऐतिहासिक तथ्य क्या है और कल्पना क्या है, हालांकि, यह उनके लिए महत्वपूर्ण भी नहीं है क्योंकि जो वे कहना चाहते हैं निषाद उसे स्वीकार कर चुके हैं."

संजय ने 1979 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय “कर्मचारी महासंघ” में कांशीराम के मार्गदर्शन में एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में की थी. यह एक ऐसा संगठन था, जो दलित समुदाय के सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर काम करता था. उन्होंने उत्तर प्रदेश में दो बार विधान सभा चुनाव लड़ा, 2012 में कैंपियरगंज निर्वाचन क्षेत्र से राष्ट्रीय महान गणतंत्र पार्टी के टिकट पर, और फिर पांच साल बाद, गोरखपुर ग्रामीण सीट से निषाद के टिकट पर. लेकिन दोनों बार ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने मुझे बताया कि पिछले चुनावों में विभिन्न दलों के बीच उनके समुदाय के वोट बिखरे हुए थे. उन्होंने कहा कि "2014 में, निषादों ने मोदी के लिए मतदान किया क्योंकि उन्होंने कहा कि वह गंगापुत्रों के पिछड़ेपन पर ध्यान देंगे." उन्होंने बताया कि 2017 के विधानसभा चुनावों में भी, निषादों ने आरक्षण के वादे के कारण भाजपा को वोट दिया था. "लेकिन वे वादे पूरे नहीं हुए."

दो दशकों के दौरान, संजय ने एक साझा मंच के तहत निषादों को एकजुट करने का प्रयास किया. 2016 में उन्हें इसमें सफलता मिली जब उन्होंने निषाद पार्टी बनाई और अपने समुदाय के नेता के रूप में उभरे. उनके अनुसार, भारत में निषादों की 578 उपजातियां हैं, उनमें से 236 उत्तर प्रदेश में हैं. संजय ने बताया, "निषादों में यूपी की 14 से 17 प्रतिशत आबादी शामिल है और वे कम से कम 25 से 30 लोकसभा सीटों पर वोटों को प्रभावित करने की स्थिति में है." सिंह ने मुझे बताया कि संजय का निषादों के एकीकृत चुनावी प्रभाव का अनुमान सही है. उन्होंने कहा, "महागठबंधन के पक्ष में जातीय समीकरण मजबूत हो गया है," तथा निषाद पार्टी पूर्वी उत्तर प्रदेश में सबसे मजबूत है, जिसमें गोरखपुर शामिल है.

सिंह का कहना है कि, "भाजपा गोरखपुर को लेकर चिंतित नहीं थी." आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने तक लगभग दो दशक तक संसद सदस्य रहे." लेकिन पिछले साल प्रवीण निषाद की जीत ने योगी के बारे में चुनावी अजेयता के मिथक को तोड़ दिया." उन्होंने दावा किया​ कि भाजपा चिंतित है, और "विकास और हिंदुत्व की अपनी ढाल के अलावा, वे निषाद और यादव नेताओं को गठबंधन के जातिय गणित बिगाड़ने की कोशिश कर रही है." इस साल मार्च में, भाजपा ने अमरेन्द्र निषाद को पार्टी मे शामिल कर लिया. वे जमुना निषाद के बेटे हैं, जिनकी छवि समुदाय में एक लोकप्रिय व्यक्ति की है. उन्होंने बसपा और सपा के सदस्य के रूप में काम किया है. सूत्रों के अनुसार अमरेन्द्र की गोरखपुर से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की उम्मीद है.

मैंने प्रदीप राव से आगामी चुनावों के लिए भाजपा की रणनीति के बारे में बात की. राव ने 1989 से 2014 तक आदित्यनाथ के प्रेस अधिकारी के रूप में काम किया है. उन्होंने बताया कि, "यह चुनाव अन्य सभी से अलग होगा क्योंकि यह भाजपा द्वारा विकास के मजबूत दावों पर विपक्ष के जातीय गणित के खिलाफ लड़ा जाएगा." राव गोरखनाथ पीठ द्वारा संचालित गोरखपुर की एक संस्था, महाराणा प्रताप पीजी कॉलेज के प्राचार्य हैं. जब मैंने उनसे पूछा कि भाजपा महागठबंधन का मुकाबला कैसे कर सकती है, तो उन्होंने कहा, "लोगों को जातिगत आधार के बजाय धार्मिक आधार पर वोट देने के लिए हिंदुत्व पर जोर देना होगा." उन्होंने कहा, "जब मोदी और योगी एक साथ आते हैं, तो विकास और हिंदुत्व एक हो जाता है."

राव ने दावा किया कि मार्च 2017 में आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद, उत्तर प्रदेश में “अभूतपूर्व पैमाने” पर विकास हुआ है. इस महीने की शुरुआत में, आदित्यनाथ ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में लगभग 300 लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए यही दावा किया. लगभग दो घंटे तक वे राज्य में कानून-व्यवस्था, बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए अपनी सरकार की प्रशंसा करते रहे, जबकि इसके "कुशासन" के लिए पिछली राज्य सरकार की आलोचना की. अगस्त 2017 में, गोरखपुर में बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति समाप्त होने के बाद 34 बच्चों और 18 वयस्कों की मृत्यु हो गई थी. कुछ मीडिया रिपोर्टों ने बताया कि मौतें भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की लापरवाही के कारण हुईं. जब मैंने राव से इन खबरों के बारे में पूछा, तो उन्होंने इसे "100 प्रतिशत धोखाधड़ी" बताया और कहा कि इस विवाद को बेवजह तूल दिया गया.

वे बातचीत को वापिस राजनीति पर ले आए. राव ने मुझे यह भी बताया कि जब यादव और दलित महागठबंधन को वोट देंगे, तो “सवर्ण और ओबीसी भाजपा को वोट देंगे.” गोरखपुर में बसपा के जोन कोऑर्डिनेटर श्रवण कुमार निराला ने गठबंधन के वोट बैंक के बारे में राव के विचारों से सहमति जताई. निराला ने कहा कि "मुस्लिम और निषाद गठबंधन के लिए मतदान करेंगे." गोरखपुर में सपा की युवा शाखा के प्रभारी काली शंकर यादव ने भी दावा किया कि उनके पास "एक अपराजेय जाति का गठबंधन है." यादव ने कहा कि यह शहर आदित्यनाथ के लिए "प्रतिष्ठा" का सवाल था. "गोरखपुर जीतने के लिए धन और बाहुबल का इस्तेमाल होगा," लेकिन हमें भरोसा था कि गठबंधन जीत जाएगा. हालांकि, गोरखपुर से गठबंधन के उम्मीदवार की घोषणा अभी नहीं हुई है, लेकिन सभी ने मुझे इस बात के लिए आश्वस्त किया कि यह उम्मीदवार संभवत: सपा से प्रवीण निषाद ही होगा.

7 मार्च को, गोरखपुर में निषाद पार्टी द्वारा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर आयोजित एक रैली में मैंने भाग लिया. रैली में लगभग 2000 लोग शामिल थे, जिनमें से कई ने लाल टोपी पहनी हुई थी और वे पार्टी के नाम वाले झंडे लिए हुए थे. गोरखपुर के रहने वाले 20 वर्षीय बेरोजगार पप्पू कुमार निषाद ने कहा, “मैंने अभी-अभी बीए की पढ़ाई पूरी की है, लेकिन नौकरी नहीं मिल रही है. हमें आरक्षण की आवश्यकता है.” उन्होंने कहा कि अगर उनके साथी निषाद की सरकारी नौकरी होती तो वे उनकी मदद करने की स्थिति में होते. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के दिलीप निषाद का कहना था कि, "सवर्णों को बिना मांगे आरक्षण मिलता है, क्योंकि सरकार ने 10 प्रतिशत कोटा लागू किया है, लेकिन वे लंबे समय से चली आ रही हमारी मांग को पूरा नहीं करतीं."

संजय ने मुझे बताया कि वे भाजपा के विरोधी हैं. "भाजपा एक झूठी पार्टी है क्योंकि वे निषादों को समृद्ध नहीं करना चाहती है." रैली में शामिल लोगों का भी यही विचार था. हाल के वर्षों में निषादों के बीच उभरती राजनीतिक चेतना का जिक्र करते हुए, उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के निवासी 24 वर्षीय रवींद्र निषाद ने कहा कि, “इसे बनाने में बहुत समय हो गया है, लेकिन पहले हमने ऐसा नहीं किया था हमारी खुद की एक राजनीतिक पार्टी नहीं थी.” उन्होंने कहा, “हम किसी को भी वोट दे देंगे जिसको हमारी पार्टी हमें वोट देने के लिए कहे. कोई भी हो लेकिन भाजपा को नहीं.”