बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक घर से कुछ मीटर की दूरी पर रहने वाले लगभग पचास साल के बटाईदार अरूण कुमार सिंह अपने आस-पड़ोस के इलाके की हालिया राजनीति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, "अगर आज कोई मुझे अपने खेत किराए पर दे दे, तो मैं उसका हो जाऊंगा? वे ऐसा सोच सकते हैं कि मैं उनका आदमी हूं, लेकिन मैं हमेशा वैसा ही रहूंगा जैसा मैं अंदर से हूं." अपने दो दशक से भी कम के कार्यकाल में, 28 जनवरी को नीतीश ने नौवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ ली और एक बार फिर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हो गए. सिंह ने कहा, नीतीश अपने वर्तमान मालिक के प्रति वफादार हो सकते हैं लेकिन उनकी सच्ची निष्ठा हमेशा सिर्फ खुद के लिए रहती है. सिंह के लिए नीतीश के धोखा देने से ज्यादा यह बात मायने रखती थी कि जिला प्रशासन ने इलाके में तीन ट्रांसफार्मर लगाए थे, जिससे उन्हें मुफ्त में इलेक्ट्रिक थ्रेशर चलाने की इजाजत मिल गई थी. 29 नवंबर 2022 को नीतीश कुमार अपने गांव कल्याण बिगहा के दौरे के दौरान के निवासियों से याचिकाएं लेते हुए.ार अपने गांव कल्याण बिगहा के दौरे के दौरान के निवासियों से याचिकाएं लेते हुए.
यह केवल सिंह को नीतीश कुमार की सरकारों द्वारा मिले विभिन्न भौतिक लाभ नहीं हैं, जिसने उन्हें जद(यू) का मतदाता बनाया है. नीतीश की तरह, वह अवधिया कुर्मी हैं, जो राज्य के अन्य पिछड़े वर्गों में सबसे संपन्न जातियों में से एक हैं. सिंह ने मुझसे कहा, "एक कुर्मी सिद्धांतों पर चलता होते हैं. कुर्मी के नेतृत्व वाली सरकार को सभी के लिए निष्पक्ष माना जाना चाहिए."उन्होंने कहा कि अगर नीतीश राजद के साथ सत्ता में रहे, तो यादव राज्य तंत्र पर नियंत्रण हासिल कर लेंगे. सिंह ने राजद के वरिष्ठ नेता लालू प्रसाद यादव को यादवों के पशुपालन के पारंपरिक व्यवसाय का संदर्भ देते एक जातिवादी गाली दी और नीतीश को "शांति निर्माता" बताया.तिवादी गाली दी और नीतीश को "शांति निर्माता" बताया.
नीतीश के गांव कल्याण बिगहा में अवधिया कुर्मी प्रमुख जाति हैं. उनमें से अधिकांश महत्वपूर्ण भूस्वामी हैं, जिनकी जोत आम तौर पर दो से दस हेक्टेयर के बीच है. बिहार के अन्य गांवों की तरह, यह जाति बस्तियों में विभाजित है, जिनमें मुसहर, पासवान और पासी जैसी अनुसूचित जातियां रहती हैं; अत्यंत पिछड़ा वर्ग जैसे कहार, कांडुस और नाइस; यादव और कुर्मी, प्रमुख ओबीसी; और कुछ ब्राह्मण शामिल हैं. मैं निवासियों से बात करने के लिए सभी क्षेत्रों और आस-पास के कुछ गांवों में घूमा. उन सभी ने मुझे बताया कि वे 1985 में हरनौत विधानसभा सीट जीतने के बाद से ही नीतीश की पार्टियों को वोट देते आ रहे हैं. कुर्मी और यादव मुख्यमंत्री के बार-बार दल बदलने के प्रति सहानुभूति रखते थे, उनका तर्क था कि उनके गठबंधन सहयोगियों ने उन्हें कभी भी ठीक से काम नहीं करने दिया, जबकि ईबीसी और एससी जद(यू) के प्रति वफादार रहने के लिए तैयार थे, जब तक कि प्रमुख जातियों की समाज में पकड़ कम नहीं होती और संवैधानिक लाभ उन तक पहुंचते रहे.
कल्याण बिगहा बराह ग्राम पंचायत का हिस्सा है जो नालंदा जिले के हरनौत ब्लॉक का हिस्सा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडी(यू) ने सात विधानसभा सीटों में से पांच पर जीत हासिल की, जिनसे मिलकर नालंदा लोकसभा क्षेत्र बनता है, जिस पर समता पार्टी और जेडी(यू) का कब्जा रहा है. दोनों की ही स्थापना नीतीश ने की थी. 2009 से संसद सदस्य कौशलेंद्र कुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (लिबरेशन) के राज्य विधायक संदीप सौरव से ढाई लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीते हैं. एक स्थानीय समाचार आउटलेट के अनुसार, कुर्मी और यादव को मिलाकर मतदाताओं का लगभग एक तिहाई हिस्सा बनता है, जिनमें कुर्मी की संख्या यादवों से एक लाख से अधिक है. लगभग एक चौथाई एससी हैं और लगभग एक लाख बेलदार हैं. ईबीसी समुदाय मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी का बड़ा समर्थन आधार है, जो हाल के चुनावों में एनडीए और महागठबंधन के बीच बंट गया है.