उत्तर प्रदेश में 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को देखते हुए सभी राजनीतिक दल ओबीसी कश्यप समाज को पाले में लेने की कोशिश कर रहे हैं. 30 अक्टूबर को भारतीय जनता पार्टी ने लखनऊ में निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद और कश्यप समाज के लिए "सामाजिक प्रतिनिधि सम्मेलन" आयोजित किया. कहार और धिवार सहित इन जातियों को निषाद जाति समूह में रखा जाता है. निषाद जाति समूह में कई लोग अपने उपनाम में कश्यप लगते हैं.
समाजवादी पार्टी भी 11 नवंबर को उत्तर प्रदेश में कश्यप समुदाय के लिए एक सम्मेलन आयोजित करने जा रही है. अखिलेश यादव ने जुलाई में उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय के जाने-माने नेता मनोहर लाल कश्यप की प्रतिमा का अनावरण किया था. उत्तर प्रदेश में कश्यप लोंगो की संख्या के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. राज्य सरकार द्वारा गठित की गई एक सामाजिक-न्याय समिति की 2001 की रिपोर्ट के अनुसार, "कहार/कश्यप" जाति के लगभग पच्चीस लाख लोग राज्य में रहते हैं.
लेकिन इस वर्ष कश्यप एकता क्रांति मिशन नामक एक सामाजिक संस्था राज्य भर में कश्यप समाज के लोगों के लिए सम्मेलन आयोजित कर रही है. संगठन ने समाज के लोगों से 2022 के विधानसभा चुनावों में उस एक पार्टी को मतदान करने का आग्रह किया है जो उनकी आरक्षण को बढ़ाने की मांग को पूरा करने का वादा करे. ऐसे ही एक सम्मेलन में भाग लेने वाले आनंद कश्यप ने हमें बताया, "हम राजनीतिक दलों को यह बताने के लिए ये सभाएं आयोजित कर रहे हैं कि कश्यप समुदाय में बड़ी संख्या में लोग हैं. हम जिसे चाहें उसे सत्ता में ला सकते हैं."
सितंबर की शुरुआत में हम शामली जिले के रजवाड़ा फार्म हाउस में कश्यप समाज के युवा नेताओं के नेतृत्व में बुलाई गई एक पंचायत में शामिल हुए. सभा में 2000-3000 लोग थे जिनमें अधिकतर लोग युवा थे. कश्यप समाज पिछले 40 साल से अति पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग कर रहा है. सामाजिक तौर पर अति पिछड़ी जातियों की स्थिति बेहतर नहीं है. इनका वोट सपा, बसपा और बीजेपी को जाता रहा है. उत्तर प्रदेश में इन जातियों की संख्या अच्छी खासी मानी जाती है जोकि 15 से 17 प्रतिशत के बीच है. कश्यप एकता क्रांति मिशन के बैनर तले इक्कठा हुए लोंगो ने आरक्षण नहीं तो वोट नहीं का नारा भी लगाया. कश्यप क्रांति एकता मिशन के अध्यक्ष अजय कश्यप ने कहा, “अगर किसी भी दल ने हमारी समस्या का सही समाधान नहीं किया तो हम नोटा के बटन का इस्तेमाल करेंगे. हमारा समाज लंबे समय से संघर्ष कर रहा है. इसमें दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाले बेहद गरीब लोग भी हैं, जो दिन प्रतिदिन पिछड़ते जा रहे हैं.”
उन्होंने आगे बताया कि यह एक सामाजिक संगठन है जिसे 2016 में कश्यप समाज के लोगों के शोषण और उत्पीड़न को रोकने, समाज को एकजुट रखने, उनके मुद्दों पर काम करने और सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में कश्यप समाज की हिस्सेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से बनाया गया था. उत्तर प्रदेश के 40 जिलों में यह संगठन काम कर रहा है. अजय ने कहा कि वे लोग समय-समय पर सपा, बसपा और बीजेपी की सरकार बनवाते रहे हैं लेकिन सभी सरकारों ने समाज को धोखा दिया है. उन्होंने सरकार से तुरहया, मझवार, बेलदार जातियों की तरह ही उनकी जाति को भी अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग रखी. उन्होंने कहा, “हमारे रोटी-बेटी के संबंध है. अगर हमें उनके साथ ही शामिल कर दिया जाए तो इससे हमको भी बेहतर लाभ मिलेगा. और यदि हमें उसमें शामिल नहीं कर सकते तो हमारी गिनती करके हमें 27 प्रतिशत पिछड़ों की जाति में हिस्सा देना होगा. या फिर सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू कर दें.” उन्होंने आगे कहा कि जो राजनितिक दल उनके अधिकारों की बात करेगा उसी को वे 2022 के विधानसभा चुनाव में अपना समर्थन देंगे. 1980-1984 में आवंला के लोकसभा सांसद जयपाल सिंह कश्यप कश्यप समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2004-2005 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इस जाति को ओबीसी से एससी में शामिल करने के लिए केंंद्र को एक प्रस्ताव भेजा था. तत्कालीन यूपीए सरकार ने इसे मंजूरी नहीं दी और बाद में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार के आदेश को खारिज कर दिया. साल 2016 में अखिलेश यादव ने भी ऐसी ही कोशिश की लेकिन केंद्र ने इस मामले में फिर से कोई सहायता नहीं की. रिपोर्ट में लिखा गया कि मुलायम सिंह के इस कदम का विरोध करने वाली मायावती ने 2007 में सत्ता संभालने के बाद इस मामले में मुलायम सिंह से अलग रुख अख्तियार किया. उन्होंने एक शर्त जोड़ते हुए कहा कि उनकी सरकार नौकरियों में आरक्षण के लिए जाति में बदलाव करेगी चाहे यूपी में एससी का हिस्सा 21 प्रतिशत से अधिक क्यों न हो जाए. परंतु यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका. साल 2019 में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भी इन जातियों को एससी श्रेणी में जोड़ा लेकिन इलाहबाद उच्च न्यायालय ने सरकार के इस कदम पर रोक लगी दी.
कमेंट