25 नवंबर को “दिल्ली चलो” मार्च की संध्या पर हजारों पंजाब के किसान हरियाणा बॉर्डर पर मौजूद थे. यह मार्च केंद्र सरकार द्वारा हाल में पारित विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर की किसान यूनियनों ने बुलाया है. हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और उसने पहले से ही घोषणा कर रखी थी कि वह पंजाब और दिल्ली से लगी अपनी सीमाओं को सील रखेगी ताकि किसान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली न पहुंच सकेें. प्रतिबंधों से किसान कमजोर नहीं पड़े बल्कि एक लंबी लड़ाई के लिए भारी संख्या में ट्रैक्टर -ट्रॉली में सवार होकर, महीनों का राशन लेकर वे वहां उपस्थित हैं. दिल्ली जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर सूबा खनौरी की बलवीर कौर ने मुझे बताया, “हमारे पास सब कुछ है. राशन है, खाना पकाने के लिए लकड़ियां हैं, दूध है. हम छह महीने की तैयारी कर निकले हैं.
“दिल्ली चलो” आंदोलन को देशभर के 300 से ज्यादा किसान संगठनों का समर्थन है. इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा के किसान संगठन भी हैं. इसकी अगुवाई ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन समिति कर रही है जो कृषि कानूनों का विरोध करने वाले विभिन्न किसान यूनियन की छाता संगठन है. देशभर के किसानों को 26 और 27 नवंबर को पारित कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए अनिश्चितकाल के लिए दिल्ली पहुंचने का आह्वान किया गया है. भारत सरकार जून में इन कृषि कानूनों को अध्यादेश के मार्फत लाई थी और सितंबर में संसद ने मंजूरी दे दी.
खनौरी के साथ वाले राष्ट्रीय राजमार्ग में हरियाणा पुलिस आंदोलनकारियों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए मौजूद थी. पुलिस ने बड़े-बड़े सीमेंट के ब्लॉक हाईवे पर लगा दिए थे और 10 मीटर की दूरी पर कटीले तारों और बैरिकेड का घेरा लगा दिया था. हरियाणा की तरफ वाली सीमा पर भारी मात्रा में पुलिस बल मौजूद था जिन्होंने दंगारोधी उपकरण पहने हुए थे और पानी की तोपें जमा रखी थी. हरियाणा पुलिस उपमहानिरीक्षक ओम प्रकाश नरवाल और जिंद जिले के पुलिस अधीक्षक खनौरी बॉर्डर पर थे और वहीं से उन्होंने मीडिया को बताया कि राज्य में धारा 144 लगा दी गई है और पांच से अधिक लोगों का जमावड़ा मना है. उन्होंने बताया कि इलाके में भारी पुलिस बंदोबस्त है और चार स्तर पर बैरिकेड लगाए गए हैं ताकि आंदोलनकारी हरियाणा में प्रवेश न कर सकें.
हरियाणा सरकार ने दिल्ली से लगे चार राष्ट्रीय राजमार्गों को भी ब्लॉक कर दिया था और पंजाब से लगे डबवाली, अंबाला जिले के पास के शंभू और खनौरी के इलाकों में ब्लॉकेड लगा दिया था. खबरों के मुताबिक, राज्य सरकार ने पंजाब से हरियाणा के एंट्री प्वाइंट वाले जिले पंचकूला, कैथल, जिंद, फतेहाबाद और सिरसा को 25 नवंबर से तीन दिनों के लिए ब्लॉक कर दिया है.
लेकिन खनौरी में साफ संकेत मिल रहे थे कि किसान आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे. बहुत से किसान पहले ही वहां पहुंच गए थे ताकि अगले दिन आने वाले किसानों के लिए लंगर की व्यवस्था कर सकें. सड़क के किनारे किसानों ने लंगर लगाया था और लकड़ी जलाकर चाय और पकौड़े बना रहे थे. बगल के गांव दत्तासिंहवाला के आदमी सब्जियां काट रहे थे. खनौरी के पास गलाली गांव के सुखविंदर सिंह अपनी कार में 100 किलो गोभी लेकर आए थे. उन्होंने मुझसे कहा हमने गांव से कहा है कि वह दूध की व्यवस्था करे.
कुछ आंदोलनकारी स्पीकर, लाउडस्पीकर लगा रहे थे और बिजली के तार जोड़ रहे थे और अन्य आग जला रहे थे. लोगों की हंसी गूंज रही थी और ऐसा माहौल बन गया था गोया पुलिस की मौजूदगी है ही नहीं. शाम होने तक और किसान ट्रैक्टरों में पहुंचे. बलवीर अपने गांव निहाल से यहां पहुंची थीं. उनका गांव पंजाब के पटियाला जिले में है. वह अपनी एक साथी के साथ बैठी थीं जिनका हरजिंदर कौर. वह भी उनके साथ ही गांव से आई थीं. हरजिंदर ने मुझे बताया कि उनके परिवार के पास पांच एकड़ कृषि भूमि है लेकिन वे कर्ज में डूबे हुए हैं और उन्हें डर है कि नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानून, जो कृषि उपज की बिकवाली और खरीद को नियंत्रित करते हैं, उन्हें और ज्यादा आर्थिक संकट में डाल देंगे. उन्होंने मुझसे कहा, “मोदी को ये कानून वापस लेने होंगे और मैं आपसे कहना चाहती हूं कि ये कानून अडानी-अंबानी जैसे बड़े पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए जानबूझकर हम पर लादे जा रहे हैं.”
किसान आंदोलनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ गुस्सा बार-बार दिखाई पड़ा है. अक्टूबर के मध्य में जब राज्यभर में आंदोलन हो रहे थे तो होशियारपुर जिले के पास के राष्ट्रीय राजमार्ग 44 में हिसार-मंदसौर टोल प्लाजा में प्रधानमंत्री का छह फुट लंबा कार्डबोर्ड का कटआउट लगाकर उसे जूतों की माला पहनाई गई. एक प्रदर्शनकारी ने मुझे बताया कि 24 अक्टूबर को बीजेपी की एक महिला सदस्य ने उस कटआउट से जूतों की माला हटाने की कोशिश की लेकिन वहां मौजूद आंदोलनकारियों ने उसका विरोध किया और वहीं रोक लिया. उस महिला को विरोध के आगे झुकना पड़ा और उसने कटआउट पर दोबारा जूतों की माला चढ़ा दी. उसका वीडियो बनाया गया जिसमें वह कटआउट को जूतों से मार रही है और आंदोलन में अवरोध डालने के लिए माफी मांग रही है. उस घटना के वीडियो को व्यापक शेयर किया गया. उसमें एक जगह वह महिला कह रही है कि उसने जूतों की माला इसलिए हटाई क्योंकि उससे “देखा नहीं जा रहा था.” इस पर एक आंदोलनकारी कहता है, “यह वही मोदी है जो पंजाब को बर्बाद कर रहा है.”
22 नवंबर के एक अन्य वीडियो में देखा जा सकता है कि सीआरपीएफ जवान ने बसों रोक कर जूतों की माला उतार रहे हैं. इस पर आंदोलनकारी किसानों ने सीआरपीएफ का विरोध किया और वहीं सड़क पर लेट गए और मांग करने लगे कि वे तब तक आगे नहीं जाएंगे जब तक कि जूतों की माला कटआउट पर फिर से नहीं लगा दी जाती. वीडियो में आंदोलनकारी सीआरपीएफ से कह रहे हैं, “राज्य बल को देखिए तो, किसान विरोध कर रहे हैं और वे लोग निंदनीय काम कर रहे हैं.” वीडियो में एक जगह एक जवान आंदोलनकारियों से यह कहते हुए सुनाई देता है कि “हमने तो पहले ही माफी मांग ली है.” इस पर वीडियो बना रहा आंदोलनकारी वहां मौजूद एक जवान की ओर इशारा करते हुए उस पर आंदोलनकारियों को गोली से मारने की धमकी देने का आरोप लगाते हुए कहता है कि उसने माफी नहीं मांगी. वह जवान इस आरोप का खंडन करता है.
पंजाब भर के किसान अलग-अलग किसान यूनियनों के बैनर तले मोदी सरकार द्वारा सितंबर में पारित किए गए तीन कानूनों, किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020, किसानों के (सशक्तिकरण और संरक्षण) के लिए मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020 वापस लेने की मांग कर रहे हैं. किसानों को डर है कि ये कानून उनकी उपज को बाजार के हवाले कर देंगे जिससे निजी क्षेत्र उनका शोषण करेगा और सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद का आश्वासन भी नहीं दे रही है. ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन समिति के मुख्य सदस्यों में से एक अवीक साहा ने मुझे बताया कि समिति ने 26 नवंबर को जंतर-मंतर और पार्लियामेंट स्ट्रीट तक मार्च करने के लिए नई दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस से अनुमति मांगी थी. दिल्ली पुलिस ने उनकी अनुमति को कोविड के नाम पर नामंजूर कर दिया. “हमारे द्वारा भेजे गए आवेदनों को खारिज कर दिया गया, जिनमें हमने कोविड के दौरान दिल्ली में हुईं जनसभाओं के उदाहरण दिए थे. हमें दिल्ली पुलिस कमिश्नर की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. हमने लिखा था कि दिल्ली में आम जनजीवन सुचारू है, लोग बाजारों में आ जा रहे हैं लेकिन हमें जवाब नहीं मिला.”
24 नवंबर को दिल्ली पुलिस ने ट्वीट किया, “यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, केरल और पंजाब के किसान संगठनों ने 26 और 27 मार्च को दिल्ली मार्च का आयोजन किया है. कोरोनावायरस के कारण इसकी अनुमति नहीं दी गई है. अनुमति खारिज कर दी गई है और इसकी जानकारी समय रहते आयोजकों को दे दी गई है @CPDelhi @LtGovDelhi.” उसमें पुलिस ने यह भी लिखा है, “यदि प्रदर्शनकारी फिर भी दिल्ली आते हैं तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. @PMOIndia @HMOIndia.”
खनौरी में लंगर की तैयारी के दौरान दत्तासिंहवाला के 40 साल के किसान निर्मल सिंह, जो सब्जी काट रहे थे, ने मुझसे पूछा कि दिल्ली में लोग इस मामले को कैसे देख रहे हैं? मैं उनके सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं दे पाया लेकिन शायद मेरी खामोशी में उन्हें जवाब मिल गया. उन्होंने कहा, “लगता है कि दिल्ली वालों के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है.” 25 नवंबर की हरजिंदर की एक टिप्पणी में आंदोलनकारियों की भावना झलक रही थी. उन्होंने कहा, “हम अपने बच्चों के साथ यहां आए हैं और कल अन्य हजारों महिलाएं और आएंगी. हमारी संख्या देखकर जान लीजिए कि हम दिल्ली तख्त से टकराने जा रहे हैं.”