सीमा घुसपैठ की घटनाओं पर मोदी सरकार की खामोशी से बढ़ते चीन के हौसले

चीन की घुसपैठ पर मोदी प्रशासन ने खामोश रहने की नीति बना ली है. फ्रेड डुफोर/एएफपी/गैटी इमेजिस

इस साल मई के आरंभ में चीन की जनमुक्ति सेना के लद्दाख और सिक्किम क्षेत्र में घुसने से चीन और भारत के बीच जो सीमा विवाद शुरू हुआ है वह पिछले 4 सालों में चीन की सेना की तीसरी बड़ी घुसपैठ थी. इसके बावजूद मोदी सरकार ने कोई खास विरोध नहीं किया है. 2017 में भूटान के भूभाग डोकलाम में चीन के साथ तनातनी के बाद भारतीय सेना ने चीन की घुसपैठ के खिलाफ अतिरिक्त सैन्य टुकड़ियां तैनात तो की हैं लेकिन दोनों देशों की सीमा में जो यथास्थिति थी वह अब चीन के पक्ष में झुक गई है. एक सांसद और अन्य स्थानीय नेताओं ने बताया है कि भारत सरकार ने अरुणाचल प्रदेश में चीन की घुसपैठ के कई मामलों को नजरअंदाज किया है. हालांकि मोदी सरकार नियमित रूप से औपचारिक प्रतिक्रिया जारी कर रही है लेकिन गौर करने पर सवाल बनता है कि क्या भारत ने चीन की घुसपैठ पर चुप रहने की नीति अख्तियार कर रखी है.

संसद में चीन की घुसपैठ के खिलाफ सवाल उठाए जाने के बावजूद केंद्र सरकार ने चुप्पी साध रखी है. पिछले साल नवंबर में अरुणाचल पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के सांसद तापिर गाओ ने इस मामले में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप का अनुरोध किया था. उन्होंने कहा था, “आज चीन ने 56 किलोमीटर से अधिक भारतीय भूभाग अपने कब्जे में कर लिया है.” लेकिन भारत ने औपचारिक रूप से घुसपैठ की बात से इनकार किया है और इसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के बारे में दोनों देशों के अलग-अलग नजरिए का परिणाम बताया है. सिक्किम और लद्दाख में ताजा घुसपैठ की घटनाओं के बारे में गाओ ने मुझे फोन पर बताया कि 2018 से ही चीन ने भारतीय भूभाग में निरंतर निर्माण गतिविधियां की हैं. उन्होंने कहा, “यह लोग हमारी जमीन पर कब्जा करते जा रहे हैं. आखिर हम कुछ कर क्यों नहीं रहे हैं?”

चीन की ताजा घुसपैठें 5 और 9 मई को लद्दाख के पेंगगोंग त्सो और सिक्किम के नाका लू इलाकों में हुई है. ये दोनों इलाके भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर के विवादित सीमा क्षेत्र की लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के पास भारत की ओर हैं. पहले ये दोनों इलाके विवादित नहीं थे. इन घुसपैठों के कारण जनमुक्ति सेना और भारतीय सेना के बीच मुक्का-मुक्की और पथराव भी हुआ था.

दोनों देशों के बीच वह तकरार तो शांत करा ली गई लेकिन उसके बाद से तनाव बढ़ गया है और दोनों देशों ने विवादित सीमा इलाकों में अतिरिक्त टुकड़ियां और मशीनें तैनात की हैं. चीन के सरकारी अंग्रेजी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने मई में रिपोर्ट की थी, “गलवान घाटी में चीनी भूभाग में भारत द्वारा हालिया सैन्य सुविधाओं के अवैध निर्माण करने के जवाब में चीन ने सीमा नियंत्रण उपायों को मजबूत किया है.” गलवान घाटी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल में है और दोनों ही देश इस पर अपना-अपना दावा करते हैं.

दोनों देशों के बीच आमने-सामने की स्थिति 2017 जून में भी बनी थी जब भारतीय सेना ने भूटान के डोकलाम में चीन की जनमुक्ति सेना द्वारा सड़क बनाने के प्रयासों को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया था. हालांकि भारत ने इस विवाद में भूटान के अनुरोध करने के बाद दखल दिया था लेकिन चीन का दावा है कि आधिकारिक रूप से डोकलाम उसका भूभाग है. उस समय 73 दिन तक तनाव जारी रहने के बाद दोनों देश तनाव कम करने के लिए राजी हो गए थे.

चीनी सेना ने विवादित भूमि पर निर्माण कार्य तो रोक दिया लेकिन वह डोकलाम पठार पर बनी रही और उसने अपनी उपस्थिति को विस्तार दिया जो स्पष्ट रूप से यथास्थिति से अलग बात थी. डोकलाम में चीन की उपस्थिति ने उसे भारतीय सीमा के नजदीक ला दिया है और उसे सिलिगुड़ी कॉरिडोर इलाके में मजबूत किया है. यह कॉरिडोर एक छोटी पट्टी है जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश से जोड़ती है. इसके बावजूद भारत सरकार और मुख्यधारा के मीडिया ने तनाव कम होने का जश्न मनाया. मोदी सरकार के कार्यकाल में चीन की ओर से दूसरी बड़ी घुसपैठ 2 साल बाद अरुणाचल प्रदेश में हुई. इस घुसपैठ पर मोदी प्रशासन की प्रतिक्रिया हैरान करने वाली थी. सितंबर 2019 में सांसद तापिर गाओ ने मीडिया को बताया कि अरुणाचल प्रदेश के अंजो जिले के चगलागम इलाके में चीनी सेना घुस आई है और उसने वहां एक नहर के ऊपर लकड़ी का पुल बना लिया है. अपने बयान के समर्थन में उन्होंने उस पुल का वीडियो साझा किया जिसे स्थानीय लोगों ने बनाया था. लेकिन भारतीय सेना ने तुरंत उनके आरोपों को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के बारे में दोनों देशों के अलग-अलग दृष्टिकोण के चलते हुआ घुसपैठ है और भारतीय सेना को वहां कोई पुल नहीं दिखाई पड़ा है.

उस साल जुलाई में अरुणाचल प्रदेश में नेशनल पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष गीचो काबक ने एक प्रेस रिलीज जारी की और कहा कि चीन ने 2018 में अपर सियांग जिले के विशिंग गांव में 2 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया है. काबक ने बताया, “यह गंभीर चिंता की बात है कि राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों ने घटना को समझने के लिए गांव का दौरा अब तक नहीं किया है.” उन्होंने तापिर गाओ से इस मामले को संसद में उठाने का अनुरोध किया. सितंबर में भारतीय सेना द्वारा तापिर गाओ के दावों को खारिज करने के दो दिन बाद द प्रिंट ने रिपोर्ट दी कि क्षेत्र की सेटेलाइट तस्वीरों से बिशिंग गांव में सड़क निर्माण के काबक के दावों की पुष्टि होती है.

पिछले साल नवंबर में गाओ ने चीन की घुसपैठ का मामला संसद में उठाया था. गाओ ने संसद में अपने भाषण के शुरू में कहा था, “अगर आज मैं इस मामले को नहीं उठाऊंगा तो भारतीयों की आने वाली पीढ़ी मुझे माफ नहीं करेगी.” उन्होंने कहा कि जब मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था तो चीन ने आपत्ति जताई थी लेकिन भारत सरकार और मीडिया ने इस मामले को कभी संबोधित नहीं किया. “यदि अबकी कहीं डोकलाम जैसी स्थिति होगी तो वह अरुणाचल प्रदेश में होगी.”

उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में चीन की गतिविधियों पर पाकिस्तान की गतिविधियों की तुलना में कम ध्यान देने की बात की. उन्होंने कहा, “मुझे करांची के बाजार का रोज का भाव पता रहता है लेकिन अरुणाचल प्रदेश में चीन ने जो भारतीय भूमि को अपने कब्जे में कर लिया है उसके बारे में प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई कवरेज नहीं होता और संसद में भी राजनीतिक दलों के नेता इस पर चर्चा नहीं करते.” गाओ ने यह कहते हुए की चीन ने भारत की 50 किलोमीटर से अधिक भूमि पर कब्जा कर लिया है, असाफिला और माजा क्षेत्रों का हवाला दिया जो अपर सुबांसीरी जिले में आते हैं. अपने बात के अंत में उन्होंने दोहराया कि डोकलाम जैसी घटना के अरुणाचल प्रदेश में होने की संभावना है और उन्होंने राज्य से चीन की गतिविधियों पर अधिक ध्यान देने की अपील की.

लगता नहीं कि तापिर  गाओ की उपरोक्त अपील का कोई अर्थपूर्ण असर हुआ है. उसके अगले महीने उन्होंने चीनी सेना की एक और घुसपैठ का मामला उठाया. उन्होंने मीडिया से कहा कि राज्य के दिबांग घाटी जिले के अंद्रेल्ला घाटी में 12 किलोमीटर के अंदर जनमुक्ति सेना घुस आई है और उसने भारतीय सेना के समर कैंपों को यह कह कर हटवा दिया है कि कि वह चीन का भूभाग है. एक वीडियो में, जो उन्होंने साझा किया, चीन की सेना को एक बैनर पकड़े दिखाया गया जिसमें लिखा था. “यह चीन की जमीन है. अपनी जमीन पर लौट जाओ.”

पाकिस्तान और चीन की घुसपैठों के प्रति मुख्यधारा के मीडिया, भारत सरकार और सेना के शीर्ष अधिकारियों की प्रतिक्रिया अलग-अलग रहने के गाओ के अनुमान आधारहीन नहीं हैं. इस साल मई में पाकिस्तान से भारत घुस आने वाले एक कबूतर की चर्चा में भारतीय मीडिया ने चीन की घुसपैठ से ज्यादा समय खर्च किया. चीन की घुसपैठ में कई जवान घायल हुए थे. उसके अगले सप्ताह आईं खबरों के मुताबिक, गलवान घाटी में चीन ने 5000 पीएलए जवानों की तैनाती, लगभग 1000 तंबू खड़े करने के साथ भारी साजो-सामान लगा लिया था.

तापिर के अनुसार, 2018 के बाद से ही चीन की घुसपैठ के बारे में मीडिया ने कम ध्यान दिया है.  गाओ ने अपर सुबांसीरी जिले में चीन की निर्माण गतिविधियों के बारे में बताया जिनमें एक ब्रिज और एक पावर स्टेशन का भी निर्माण चीन ने किया है. गाओ ने दूसरा उदाहरण दिया कि इस साल मार्च के मध्य में 21 साल का अरुणाचली आदमी जड़ी-बूटी इकट्ठी करने गया था और उसे जनमुक्ति सेना ने पकड़ लिया. उसे चीन की सेना ने अप्रैल में रिहा किया. उसे असाफिला से हिरासत में लिया गया था जो भारतीय भूभाग है लेकिन अब वह इलाका चीन के कब्जे में है. असाफिला लंबे समय से दोनों देशों के बीच विवाद का मुद्दा है.

गाओ के अनुसार, चीन की घुसपैठ का एक कारण इलाके में विकास की कमी भी है जिसके कारण यहां रहने वाले लोग राज्य से बाहर पलायन कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “यहां रोड और शैक्षिक और स्वास्थ्य सेवाएं नहीं हैं इसलिए लोग पलायन कर रहे हैं जिससे यहां इंसान रहित इलाके बन रहे हैं और चीन घुस रहा है. उसकी नजर ऐसे इलाकों पर है.”

भारत सरकार ने ना केवल अरुणाचल प्रदेश में बल्कि अन्य स्थानों में भी चीन की घुसपैठ के प्रति आंखें मूंद रखी हैं. डोकलाम में तनाव के एक साल बाद अक्टूबर 2018 में मैंने डोकलाम के नजदीक के कुपुक और गनाथांग गांवों का भ्रमण किया था जो भारतीय सीमा के भीतर आते हैं. ये दोनों गांव लगभग पूरी तरह से खाली थे. कुपुक के एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम ना छापने की शर्त पर मुझे बताया था कि गांव के अधिकांश लोग सीमा इलाकों में सड़क निर्माण का काम कर रहे हैं.

स्थानीय लोगों के अनुसार लोगों को पता था कि सीमा में कुछ गतिविधियां हो रही हैं लेकिन उन्हें इसकी विस्तृत जानकारी नहीं थी. उस आदमी ने मुझे बताया था कि लोगों ने उन्हें बताया है कि सीमा में कुछ समस्या है. वहां सीमावर्ती जिलों में काम कर रहे भारत सरकार के अधिकारियों ने मुझे बताया था कि डोकलाम में उन्होंने चीन की गतिविधि के बारे में सुना है.

डोकलाम में तनाव खत्म हो जाने के छह महीनों के अंदर ही जनवरी 2018 में ऐसी खबर आने लगी थीं कि डोकलाम पठार में चीन की निर्माण गतिविधियों की सेटेलाइट तस्वीरें मिल रही हैं. इसके बावजूद इस मामले में भारत सरकार खामोश रही. शोधकर्ता और रक्षा विशेषज्ञों ने सैटेलाइट की तस्वीरों में कंक्रीट के ढांचों, खंदकों और वाहनों को चिन्हित किया है. सितंबर 2018 में एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार डोकलाम का मामला शांतिपूर्ण तरीके से निपटा लिया गया है. फिर भी उस रिपोर्ट में भारतीय सीमा के नजदीक असहज करने वाली चीन की निर्माण गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है :

तनाव खत्म होने के बाद भी डोकलाम पठान में चीन की उपस्थिति से संबंधित खबरों और चीन के अधिकारियों के बयानों, जिसमें वे कह रहे हैं कि ऐसी चीजें भविष्य में भी हो सकती हैं, से समिति चिंतित है. हालांकि सरकार ने साफतौर पर तनाव की जगह पर चीन की गतिविधियों से इनकार किया है लेकिन उसने डोकलाम पठार के अन्य इलाकों में ऐसी गतिविधियों की अस्पष्ट रूप से पुष्टि भी की है. समिति के लिए वह रिपोर्ट भी चिंता की बात है जिसमें बताया गया है कि चीन द्वारा भारतीय सीमा की ओर महत्वपूर्ण स्तर तक सड़क निर्माण का काम पहले ही हो चुका है.

हाल में जारी विवाद से यह संकेत मिलता है कि चीन की गतिविधियों पर मोदी सरकार की खामोशी ने उसे बल दिया है. लद्दाख स्वायत्त हिल विकास परिषद में शिक्षा के कार्यकारी काउंसलर कोनचोक स्टांजिन ने बताया है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद पहली बार इलाके में चीन की सैन्य गतिविधि इतनी तीव्र हुई है. “हम लोग इलाके में बहुत अधिक सैन्य और अर्धसैनिक बलों की चहलकदमी देख रहे हैं. इस मामले को आपसी संवाद द्वारा हल किया जाना चाहिए.”

लेह के डेमचोक गांव के पूर्व सरपंच रिनजिन तांगे ने मुझे बताया कि इलाके में चीन की सेना की उपस्थिति से गांव वाले चिंतित हैं. डेमचोक में सैन्य अड्डा है और दोनों देश बार-बार भिड़ते रहते हैं. तांगे ने कहा, “हम लोग इस मामले को लंबे समय से उठा रहे हैं. सीमा में चीन की सैन्य उपस्थिति बढ़ी है और वे लोग भारतीय सीमा में घुस रहे हैं और कब्जा कर रहे हैं. यहां जो हो रहा है उसकी रिपोर्ट भारतीय मीडिया नहीं कर रहा.”

डोकलाम विवाद के बाद मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दो बार मुलाकात की है. एक बार वुहान में और दूसरी बार तमिलनाडु में. दोनों बैठकों को कूटनीतिक सफलता बताया गया लेकिन लगता नहीं कि इनका असर सीमा में चीन की गतिविधियों पर पड़ा है. शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि डोकलाम के बाद से मोदी प्रशासन ने चीन की घुसपैठ का विरोध करना बंद कर दिया है.

ताजा घुसपैठ की घटनाओं के बाद भी प्रारंभिक भारतीय प्रतिक्रिया चिंताओं को खारिज करने वाली ही थी. मई के मध्य में सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे ने मीडिया से कहा था, “जहां तक उत्तरी सीमाओं का सवाल है वहां लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल ठीक से परिभाषित नहीं है. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं और दोनों पक्ष अपने दावे वाले इलाके में गश्ती करते हैं और जब भी दोनों पक्ष एक ही स्थान पर आ जाते हैं तो आमना- सामना की स्थिति बन जाती है.”

30 मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह दोहराते हुए कि पूर्व में दोनों देशों के बीच दृष्टिकोण का अंतर रहा है कहा कि “लेकिन इस बार बात अलग है”. फिर उन्होंने कहा, “फिलहाल हम चीन से सैन्य और कूटनीतिक स्तरों में चर्चा कर रहे हैं. मुझे लगता है कि मामला सुलझा लिया जाएगा.” लेकिन तनाव कम करने के लिए भारत और चीन के बीच हुई कई चरणों की वार्ता से अब तक कोई परिणाम नहीं निकला है.

इस बीच न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने उपमहाद्वीप में अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को विस्तार दिया है. बढ़ते तनाव के बीच मई में चीन ने घोषणा की कि वह पाक अधिकृत कश्मीर में, जिसका दावा भारत करता है, बांध निर्माण में पाकिस्तान की मदद करेगा. इसी वक्त चीन से प्रकाशित खबरों के मुताबिक चीन शानशी प्रांत से काठमांडू के लिए रेल सेवा शुरू करने जा रहा. यह घोषणा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे नेपाल की भारत पर निर्भरता कम होगी. साथ ही यह घोषणा भारत की सीमाओं को चुनौती देने वाले नेपाल के नए नक्शे के जारी होने के बाद आई है. यहां तक कि भारत के दक्षिण में हिंद महासागर में चीन एक द्वीप में विकास कार्य कर रहा है जो भारत की सीमा से मात्र 600 किलोमीटर की दूरी पर है. मालदीप ने दिसंबर 2016 में चीन को यह द्वीप 50 साल के लिए लीज पर दिया था. सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के अनुसार, फरवरी 2020 तक चीन ने इस इलाके को दुगना बना लिया था. इसी तरह 2017 में चीन का कर्ज ना चुकाने के कारण श्रीलंका ने दक्षिणी बंदरगाह हमबनटोटा उसे लीज पर दे दिया था.

तापिर गाओ के मुताबिक इसके बावजूद नरेन्द्र मोदी प्रशासन और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने चुपचाप चीन की घुसपैठों को होने दिया है. भारतीय सेना के जनसंपर्क अधिकारी अमन आनंद ने मुझसे कहा, “इस मामले की संवेदनशीलता और दोनों पक्षों के बीच जारी बातचीत के चलते हम इस मामले में अभी कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं.”