7 और 8 सितंबर को दिल्ली के भगवान दास मार्ग स्थित इंडियन सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ में “असम में नागरिकता विवाद : संवैधानिक प्रकियाएं और मानवीय मूल्य पर जन सुनवाई” का आयोजन किया गया. सुनवाई अधिकरण की जूरी के सदस्य थे : न्यायधीश (रिटायर्ड) मदन लोकुर, न्यायधीश (रिटायर्ड) कुरियन जोसेफ, न्यायधीश (रिटायर्ड) एपी शाह, राजदूत देब मुखर्जी, गीता हरिहरन, डॉ. सैयदा हमीद, प्रोफेसर मोनिरुल हुसैन और डॉ. फैजान मुस्तफा.
सुनवाई में जूरी सदस्यों ने राष्ट्रीय नागरिक पंजिका से बाहर कर दिए गए लोगों और इस मामले के विभिन्न वरिष्ठ विशेषज्ञों के अनुभवों और विचारों को सुना और इस बात पर सहमति व्यक्त की कि “एनआरसी से मानवीय संकट पैदा हुआ है.” जूरी ने माना कि नागरिकता “वह अधिकार है जो आधुनिक समाजों में व्यक्ति के सबसे बुनियादी और सारभूत अधिकारों को संरक्षित करता है.”
नीचे प्रस्तुत है अधिकरण की जूरी द्वारा जारी अंतरिम रिपोर्ट :
अधिकरण के सदस्यों ने असम के राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (एनआरसी) से बाहर कर दिए गए लोगों और इस मामले के विशेषज्ञों के अनुभवों और विचारों को सुना. हम इस बात से सहमत हैं कि एनआरसी के चलते मानवीय संकट पैदा हुआ है. हमें चिंता है कि इस संकट के मंद पड़ने के संकेत नहीं दिखाई दे रहे है. असम में बड़ी संख्या में धार्मिक, भाषाई और जातीय अल्पसंख्यक इस डर के साए में जीने को अभिशप्त हैं कि उन्हें कह दिया जाएगा कि यह उनका देश नहीं है. इन लोगों को किसी भी वक्त संदिग्ध वोटर ठहरा दिया जाएगा और मताधिकार के प्रयोग से वंचित कर दिया जाएगा. सीमा का स्थानीय पुलिस कांस्टेबल भी उन पर विदेशी नागरिक होने का आरोप लगा सकता है और बंदी शिविर में भेज सकता है. अंतिम रजिस्टर आ जाने के बावजूद चयनित स्तर पर पुनः प्रमाणीकरण की मांग की जा रही है.
इस अधिकरण की कार्यवाही के दौरान जूरी ने एनआरसी प्रक्रिया द्वारा निर्मित परिस्थितियों और प्रक्रिया में सरकार और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका के बारे में सुनवाई की. अधिकरण ने केंद्र के प्रस्तावित नागरिकता संशोधन बिल और विदेशी नागरिक अधिकरण संशोधन आदेश, 2019 पर गौर किया और साथ ही इस एनआरसी को देश भर में विस्तार दिए जाने के प्रस्ताव पर भी गौर किया.
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