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बिहार चुनाव से ठीक पहले जातीय राजनीति की बात उठा कर चर्चा में आए इंद्रजीत प्रसाद गुप्ता ने पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी को मुद्दा बना कर चुनावी मैदान में कदम रख दिया है. कांग्रेस से अलग होकर बनी उनकी ‘इंडियन इंक्लूसिव पार्टी’ महागठबंधन का हिस्सा है और तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है. गुप्ता ‘अखिल भारतीय पान महासंघ’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं जिसमें उन्होंने पान, चौपाल, तांती, तत्वा जाति समूह के लोगों को जोड़ा है. इंजीनियर से नेता बने गुप्ता का मानना है कि बिहार में 100 से अधिक सीटों पर यह जातीय समूह असर डालता है. गुप्ता पेशे से व्यवसायी हैं. हाल में वह पूरे बिहार में ‘पान रथ’ लेकर घूम रहे हैं. गुप्ता से कारवां के स्टाफ़ राइटर सुनील कश्यप और मल्टीमीडिया रिपोर्टर शाहिद तांत्रे ने चुनाव, जाति और आरक्षण जैसे मुद्दों पर विस्तार से बातचीत की. (यह इंटरव्यू गठबंधन में जुड़ने और सीटों के बटवारे से पहले लिया गया था.)
आपका राजनीतिक सफ़र कैसे शुरू हुआ?
मैं अपनी इच्छा से नेता नहीं बना. परिस्थितियों ने मुझे नेता बनाया है. वर्ष 2012 में जब मैं अपने गांव गया था, तब मेरे दिल में कसक थी. 25 वर्ष पहले जिस हाल में गांव को छोड़ कर गया था आज भी गांव वैसी ही हालत में है. यही हाल समाल के लोगों का भी था. आज भी कम उम्र में बच्चों की शादी की जा रही थी. मैंने पूरे गांव को गोद ले लिया और छोटे-छोटे समूह बना कर मीटिंगें शुरू कीं. इनकी चर्चा पंचायत ब्लाक जिले में होने लगी.
उसके बाद धीरे-धीरे यह बात पूरे बिहार में पहुंच गई. फिर जहां भी हमारा समाज था, वहां से मुझे फ़ोन आने लगे. मुझे एहसास हुआ कि मैं पैसे के दम पर व्यवस्था को नहीं बदल सकता. मैं लंबे समय से समाज सेवा कर रहा हूं, लेकिन इससे हमारे समाज में कोई भी बदलाव का रास्ता नहीं दिख रहा. 2019 में हमारा समाज अनुसूचित जाति में था. लोगों ने मुझे कहा कि आप चुनाव क्यों नहीं लड़ते. मुझे उस समय उसका कोई अनुभव नहीं था, पर मैं चुनावी राजनीति की चर्चा का विषय बन गया.
2019 में जमुई लोकसभा से मैं चिराग पासवान के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ना चाहता था. मुझे उस लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला. उस समय मैं किसी पार्टी का हिस्सा भी नहीं था. राजद से मुझे उम्मीद थी कि मुझे टिकट देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पूर्व सांसद सूरजभान सिंह ने मुझसे संपर्क किया. उन्होंने दिल्ली में मेरी मुलाक़ात रामविलास पासवान से करवाई. उसमें तय हुआ कि 2020 में मेरे समाज को पांच विधानसभा टिकट मिलेंगे. चिराग पासवान जब हमारे घर आए थे, उस समय उन्होंने पत्रकार वार्ता में कहा था कि 2020 विधानसभा चुनाव में हमसे किया गया वादा पूरा करेंगे.
रामविलास पासवान दुनिया में नहीं रहे और चिराग पासवान वादे से पीछे हट गए. छह महीने बाद मैंने पार्टी छोड़ दी. उसके बाद मैं कांग्रेस पार्टी का हिस्सा बना. 2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जमुई विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहता था, लेकिन इस बार भी मुझे टिकट नहीं मिला. उसके बाद समस्तीपुर से चुनाव लड़ने का मन था. यहां भी मुझे टिकट नहीं मिला. उसी दौरान 15 जुलाई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उस नोटिफिकेशन को रद्ध कर दिया जिसमें 2015 में नीतीश कुमार की सरकार ने तांती, तत्वा, पान और अन्य समाजों को एससी कैटेगरी का दर्जा दिया था. यहां से ही हमारा राजनीतिक संघर्ष शुरू हुआ.
हम लोगों ने नीतीश कुमार से मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने समय नहीं दिया. 21 लोगों की एक टीम राज्य सरकार में मंत्री नित्यानंद राय से मिली, लेकिन कुछ नहीं हुआ. हमारी संख्या 80 लाख से एक करोड़ के बीच है, जिनसे आरक्षण छीन लिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट की गलत व्याख्या ने हमारे हजारों बच्चों को स्कूली एडमिशन और नौकरियों से वंचित कर दिया. पूरे समाज को एक फैसले ने पीछे धकेल दिया. सबसे शपथपत्र लिया गया, जिस समय परीक्षा ली गई हम अनुसूचित जाति थे, बाद में ईबीसी में कर दिया गया. यानी 12 अगस्त, 2025 को फिर से हमें ईबीसी कैटेगिरी में डाल दिया गया.
व्यक्ति जिस जाति में पैदा होता है, जिंदगी भर उसी जाति में रहता है. मान लीजिए आई. पी. गुप्ता इस नोटिफिकेशन से पहले तांती था. नोटिफिकेशन के बाद पान हो गया. वह रद्द हुआ तो तत्वा हो गया, लेकिन इस बीच हमारे समाज में जिस बच्चे ने जन्म लिया, वह तो पान पैदा हुए. हमारे बच्चों की इसमें क्या ग़लती थी. आपके दिए सर्टिफिकेट पर उन्होंने परीक्षाएं दी. यह भारत के हर राज्य में कानून है कि प्रमोशन में आप बीच में नियम नहीं बदल सकते.
जिस दिन नोटिफिकेशन निकलता है, उसके बाद परीक्षा पास करने वाले लोगों का जब तक जब तक जॉईनिंग न हो जाए तब तक आप नियम नहीं बदल सकते. आखिर तांती, तत्वा और पान को सुप्रीम कोर्ट द्वारा ग़लत व्याख्या करने के चलते, इस समाज के बच्चों से सारी नौकरी छिन गई है. हमारे समाज से एक भी विधायक होता, एक भी संसद होता तो सीएम की मजबूरी होती हम से मिलने की. जब यह नोटिफिकेशन रद्द हो रहा था, तब क्या हम आवाज नहीं उठाते.
हमने यह जानना चाहा कि आख़िर क्या कारण है कि हमें कोई जानता-पहचानता नहीं है. हमारा इतिहास क्या है? हमें पता चला कि हमारा कोई इतिहास नहीं है. जिस जाति का कोई इतिहास नहीं होता उसका कोई भविष्य नहीं होता. आख़िर क्या कारण है कि हमारे समाज में शिवाजी महाराज पैदा नहीं हो रहे, हमारे यहां महाराणा प्रताप, बाला साहेब ठाकरे, लालू यादव, रामविलास पासवान पैदा नहीं हो रहे. इतिहास नहीं, तो भविष्य नहीं. चेहरा नहीं, तो पहचान नहीं. 6 अक्टूबर, 2024 को बापू की कर्मभूमि पूर्वी चंपारण से हमने आंदोलन शुरू किया. उस आंदोलन का परिणाम है कि हम आज यहां हैं.
आख़िर ये पान, तांती और तत्वा समाज क्या है?
इसको समझने के लिए आज़ादी से पहले जाना होगा. 1931 की जातिगत जनगणना में हम लोगों की तांती नाम से गणना हुई थी. हमारा समाज अंग्रेज़ों के समय बड़ा समृद्ध था. यह समाज कपड़ा बुनने का काम करता था. हमारा व्यपार विदेशों तक था. जिससे समाज को अच्छी आमदनी होती थी. जब अंग्रेज़ों ने अपना व्यपार बढ़ाया, तो हमारा नुक़सान होने लगा.
बंगाल के मैदानों में हमारे लोगों की लाशें बिछ गईं. और हमारा धंधा मैनचेस्टर चला गया. इसके बाद हमारा समाज किसी दूसरे काम में नहीं आया. पेट भरने के लिए समाज के लोगों ने मरे हुए मवेशी उठाने शुरू किए. शादियों में पालकी ढोने, ढोल बजाने लगे. हमारी महिलाओं ने दाई का काम करना शुरू किया. उस समय अस्पताल नहीं थे, डिलीवरी घर पर ही होती थी.
जमुई जिले में पतौना गांव में कुंए पर जब हम पानी पीते थे तब कोइरी जाति के लोग हमें कुए से पानी नहीं पीने देते थे. हमारे साथ गांव में छुआछूत की जाती थी. बेतिया, औरंगाबाद, जहानाबाद, दरभंगा इन जिलों में हमारे घर शादी कराने ब्राह्मण नहीं आते. दूसरे समाजों के लोग हमारे यहां खाना नहीं खाते. आज़ादी के 78 सालों बाद भी हालत वही है. लेकिन अब हम बिहार में सबसे तेज़ी से शिक्षित होने वाले लोग हैं. आई. पी. गुप्ता के पास पैसा, गाड़ी, बंगाल हो सकता है, मैंने ख़ुद अपनी हैसियत बनाई. जब गाड़ी से चलता हूं, तो सामने वाली दबंग जाति के लोग बोलते हैं, ‘तत्वा है और फॉर्च्यूनर से चलता है’.
सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक सम्मान और राजनीतिक भागेदारी को आप कैसे देखते हैं?
हमारा आरक्षण छीन लिया है. वह हमें वापस कीजिए. जैसे ही आरक्षण मिलता है, सामाजिक सुरक्षा भी मिल जाती है. कोई हम पर हमला करने से पहले सोचेगा, ‘ये अनुसूचित जाति के लोग हैं, इन पर हमला नहीं करना’. दूसरा, आरक्षण से हमारे बच्चों को नौकरी में अवसर मिलेंगे. तीसरा, हम रिजर्व सीट पर चुनाव लड़ सकते हैं. जब आंदोलन की शुरुआत हो रही थी, तब एक सामजिक संगठन बनाया गया, अखिल भारतीय पान महासंघ. इसके बैनर तले लोग इकट्ठा होने शुरू हुए.
आपने इंडियन इंकलाब पार्टी, जो अब इंडिया इंक्लूसिव पार्टी है, का गठन किया. पटना गांधी मैदान में लाखों की भीड़ जुटाई. आपको यह राजनीतिक दल बनाने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
आज से 30 साल पहले भीड़ नेताओं को देखने के लिए इक्कठी होती थी. अब आप उन सभी नेताओं को अपने फ़ोन पर देख सकते हैं. आज के समय में लाखों की भीड़ को लाना आसान नहीं है. मैंने रैली में दो नारे दिए, ‘सोचो, करो, कर सकते हो’ और ‘तुम मुझे दो दिन दो, मैं तुम्हें तुम्हारा आरक्षण दूंगा’.
जब यह तत्वा समाज आपको विधायक बना सकता है, तो हम अपने समाज के व्यक्ति को भी विधायक बना सकते है. हम लोग पढ़े-लिखे नहीं है. हमारे समाज के पास पैसे नहीं हैं. पटना की उन जगहों को जानता हूं, जहां लोग दो घंटे लड्डू बेच कर हजारों कमा लेते हैं. इसका मतलब हुआ करोड़पति होने के लिए पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी नहीं है. हमें बड़ी सोच रखने की ज़रूरत है. हमें बस समाज का काम करने वाले पांच नेता चाहिए, एक बड़ी फ़ौज नहीं. जो भी काम करे, उसके पीछे चल पड़ो. एक बड़ी रैली करने के बाद हमारी किसी भी रैली में 25 हज़ार से कम लोग नहीं आए. मोतिहारी, मुज़फ़्फ़रपुर, बेगूसराय, मधुबनी, भागलपुर, जमुई, नालंदा, दरभंगा में हमने रैली की, इसके बाद बड़ी रैली पटना के गांधी मैदान में की. हमारी इन रैलियों को कोई मीडिया कवरेज़ नहीं मिला. जब कोई कमज़ोर समाज जुटता है, तो बाकी समाज उसको ख़ारिज करता है. हमारी रैली बिहार के इतिहास की सबसे बड़ी रैली रही है.
हमने अखिल भारतीय पान महासंघ के बैनर नीचे आंदोलन शुरू किया था. उसके बाद धीरे-धीरे बिहार में समाज के सारे लोग जुटते चले गए. सभी लोग किसी न किसी दल में थे. सभी दलों के लोग हमारे साथ थे. गांधी मैदान की रैली के बाद अपने-अपने दलों में लौट गए. 7 मार्च से हम पान समाज के लोगों ने त्यागपत्र आंदोलन चलाया. हमारे समाज के जो भी नेता जिस भी दल में थे सभी ने अपने पद से इस्तीफ़ा देना शुरू किया. हम सब एक साथ आए और इंडिया इंक्लूसिव पार्टी का निर्माण हुआ.
आपके समाज की बड़ी आबादी है. आपके हज़ारों कार्यकर्ताओं ने अपने दलों से इस्तीफ़े दिए. क्यों कभी किसी राजनीतिक दल ने आपके लोगों को विधानसभा या लोकसभा चुनाव नहीं लड़वाया.
हमारे लोग दूसरे दलों में एक कार्यकर्ता से ज्यादा कुछ नहीं हैं. उनकी वहां कोई हैसियत नहीं है. हमारे इस आंदोलन के बाद तत्वा को पार्टियों में महत्वपूर्ण पद देने शुरू हुए. उससे पहले ऐसा नहीं था. अब इस बार आप देखिएगा टिकट भी मिलेगा (महागठबंदन में पार्टी को तीन टिकट मिले हैं). हम अगर किसी भी गठबंधन के साथ जाते हैं, तो हमारी जाति के उम्मीदवार के सामने दूसरा गठबंधन भी हमारी ही जाति को टिकट देगा. जब से हमने बड़ा हज़ूम दिखाया है तब से राजनीतिक लोग हमें पूछने लगे हैं. आज़ादी के बाद हमारे समाज के लिए यह नई राजनीतिक चेतना का युग है.
अखिल भारतीय पान महासंघ एक जातिगत संगठन था. अब आपके पास एक राजनीतिक पार्टी है. अब तो ज्यादा चुनौती होगी. और अगर मौका मिला तो आप किस गठबंधन के साथ जाएंगे.
जब आप जातिगत संगठन से राजनीतिक पार्टी की तरफ आते है. तब राजनीतिक दल किसी एक समाज का नहीं रह जाता. दल बनाने के बाद बहुत सारी वंचित जातियां और अतिपिछड़ा समाज हमारे पास आ रहे हैं. हमारे राजनीतिक दल में बहुत लोग आना चाहते हैं. हमारे समाज के लोगों ने कभी राजनीति में भागीदारी नहीं की थी. हमारा मानना है कि आरक्षण वापस लेना, ‘मेरा संघर्ष, मेरा आंदोलन, मेरा सिद्धांत है’. जो हमारी आरक्षण वापसी की मांग के साथ खड़ा होगा, हमारी पार्टी उसके साथ आएगी. हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है इसलिए सबसे ताक़तवर भी हम ही हैं. यह डबल इंजन की सरकार हमारे लिए नहीं लड़ी क्योंकि हम कोई दबंग जाति नहीं हैं. इन्हें लगता है यह तांती समाज हमारा गुलाम है. अब उन्हें पता चलेगा कि हमने लड़ना सीख लिया है. सब हमें कहते हैं कि यादव मारेंगे तो उन्हें ही वोट दो. सवाल यह भी है कि जब यादव हमें मारता है तब तुम बचाने क्यों नहीं आते. तुम चाहते हो हमारा समाज ऐसे ही मार खाए और तुमको जिताए. यह बस यादव का डर दिखाकर वोट ले रहे हैं.
बिहार के एसआइआर पर आप क्या सोचते हैं? विपक्ष वोट चोरी का का आरोप लगा रहा है. आपके लोगों पर इसका क्या असर होगा?
हमने अपने आंदोलन के दौरान बिहार और केंद्र सरकार की किसी भी नीति का विरोध नहीं किया. हमारा फोकस अपने आरक्षण के मुद्दे पर था. हमने हर जगह यही कहा है कि हमें हमारा आरक्षण वापस दो. विपरीत परिस्थितियों को हमने अवसर में बदला है. हमारे समाज में राजनीतिक समझ नहीं थी, इसलिए वे मतदाता सूची में रुची नहीं ले रहे थे. हमारे लोग वोट भी नहीं देते थे. एसआइआर को हमने अपने लिए एक अवसर में बदला और कहा कि अगर हमारे एक मतदाता का नाम कटेगा, तो हम 20 नए नाम जुड़वाएंगे. इससे हमारे वोटरों की संख्या में इज़ाफा हुआ है. यह मेरे समाज के लिए बड़ा अवसर है.
आपके पुराने बैनर पोस्टर और पर्चो पर कबीरदास हैं. उनसे आपके समाज का क्या संबंध है?
हम बुनकर-जुलाहा हैं. कबीरदास हमारे समाज से थे. हम उन्हीं के वंशज हैं. हमारे ही लोग कन्वर्ट हो कर मुस्लिम जुलाहा हुए. कबीरदास हमारे आराध्य हैं. हम लोगों में उन्हीं का खून है. इसलिए वह हमारे लिए सब कुछ हैं. उनके आदर्श हमारे लिए सब कुछ हैं.
राजनीतिक भागेदारी और आरक्षण, दोनों में आपकी क्या रणनीति है?
हमारी प्रथमिकता आरक्षण है. उसके लिए कोई साथ नहीं देगा, तो हम अकेले मैदान में आ जाएंगे. एनडीए हो या इंडिया ब्लॉक हम वही सीट लेंगे जिस पर हम अपने समाज के लोगों के वोट ले सकते हैं. हमारे आंदोलन के बाद बिहार सरकार ने एक रिव्यू पिटीशन भी दाखिल की है.
कांग्रेस और अन्य दल छोड़ने की आख़िर क्या वजह थी?
जब हमने सड़क की राजनीति शुरू की, तब हमारे लिए महत्वपूर्ण था कि सड़क के आंदोलन को मेनस्ट्रीम की राजनीति बनाना. गांधी मैदान की रैली में सभी दलों के नेता थे. अगर मैं पार्टी नहीं बनाता और कांग्रेस में चला जाता, तब सारी शक्ति वैसे ही बिखर जाती. डिवीजन को रोकने के लिए और वोटों की जो ताक़त हमने प्राप्त की है, उसे बनाए रखने के लिए मैंने कांग्रेस को छोड़ा.
आपके इस दल के लिए पैसे कहां से आएंगे? पैसे के बिना राजनीतिक दल कैसे चलेगा?
सरकार छोटे-छोटे आय और व्यय पर नज़र रखती है. उसे सब पता होता है. मेरे पास जो भी पूंजी थी, मैंने सब लगा दी. पब्लिक रैली के सभी खर्चे मेरे समाज के लोगों ने ख़ुद उठाए. यह अपने आप एक सिस्टम बन गया. कोई भी आंदोलन दो कारण से फेल हो जाता है. पहला, जब उसमें बाहर से फंडिंग आए और दूसरा, आंदोलन हिंसक हो जाए. इन दोनों से मैंने अपने आंदोलन को दूर रखा है. हमने नारा दिया था, ‘13 लाख पान दुकान, नई पार्टी का निर्माण गांधी मैदान’.
अभी चुनाव दो बड़े मुद्दों पर लड़ा जाता है: जाति और धर्म. आप इसे कैसे देखते हैं?
मेरा सिद्धांत है, ‘संकल्प और संघर्ष’. हम अपनी जाति के उत्थान के लिए आगे आए हैं. हम हर तरह की हिंसा का विरोध करते हैं और हर तरह की सांप्रदायिकता का विरोध करेंगे. हिंसा किसी भी स्वस्थ समाज के लिए अच्छी नहीं होती.
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