द्वीप में दमन

लक्षद्वीप पर प्रफुल्ल पटेल का धावा

19 जनवरी 2019 को दादरा और नगर हवेली के सिलवासा शहर में कई विकास परियोजनाओं के उद्घाटन समारोह में प्रफुल खोड़ा पटेल (बाएं से तीसरे) के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी. पीआईबी
19 जनवरी 2019 को दादरा और नगर हवेली के सिलवासा शहर में कई विकास परियोजनाओं के उद्घाटन समारोह में प्रफुल खोड़ा पटेल (बाएं से तीसरे) के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी. पीआईबी

लक्षद्वीप के द्वीपों में सबसे दक्षिणी प्रवाल द्वीप मिनिकॉय के एक दुकानदार मुहम्मद फोन पर चिंतित लग रहे थे. उनकी सामान और स्टेशनरी की दुकान में बिक्री चरमरा गई थी. मार्च 2022 तक उनकी मासिक आमदनी 60000 रुपए से घट कर 10000 रुपए हो गई थी. “खरीदारी कम हो गई है. हर किसी को अपने कारोबार में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है,” उन्होंने मुझे बताया. उन्हें अपने कुछ कर्मचारियों को निकालना भी पड़ा था. "कुछ काम ही नहीं है."

मिनिकॉय के उत्तर में लगभग ढाई सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती के एक निवासी, जो सरकारी आंकड़ों पर गहरी नजर रखते हैं, ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि अन्य सभी द्वीपों की कहानी भी इसी तरह की है. उन्होंने कहा कि नोटबंदी और कोविड-19 महामारी के आर्थिक झटकों से कारोबार बहुत जल्दी उबर गए थे लेकिन यह समय अलग है. उन्होंने कहा, "मैंने जिन दुकानदारों से बात की है, जिनमें दवा की दुकान चलाने वाले भी शामिल हैं, पिछले कुछ महीनों में बिक्री में कम से कम सत्तर प्रतिशत की गिरावट का हवाला देते हैं."

लक्षद्वीप में स्थानीय लोगों ने मंदी के उभार को द्वीपों के प्रशासक गुजरात के पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रफुल्ल खोड़ा पटेल से जोड़ा, जिन्हें दिसंबर 2020 में द्वीपसमूह में नियुक्त किया गया था. मैंने जिन निवासियों से बात की उन्होंने कहा कि पटेल के आर्थिक और प्रशासनिक फैसलों ने करीब-करीब सभी स्थानीय आर्थिक गतिविधियों को खत्म कर दिया है. केवल दो उदाहरणों के हवाले से समझें तो, पटेल के प्रशासन ने द्वीपसमूह के लिए माल ढुलाई करने वाले जहाजों की संख्या को सात से घटा कर दो कर दिया और पंचायतों और सहकारी समितियों को बजटीय सहायता में कटौती की. हालांकि उनके फरमानों का एक बड़ा झटका था तीन हजार अस्थायी और आकस्मिक सरकारी कर्मचारियों को काम से बाहर कर दिया जाना. इस लैगून-फ्रिंजिंग एटोल (खाड़ीय सीमांत द्वीप) में राज्य रोजगार का सबसे बड़ा जरिया है और नौकरी से निकाल दिए गए कर्मचारियों को खपा पाने में स्थानीय अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर है. जैसे-जैसे इन परिवारों ने अपना पेट कसना शुरू किया है, दुकानों, होटलों और अन्य कारोबारों की द्वीप की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है.

दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली के केंद्र शासित प्रदेशों में विवादास्पद और उथल-पुथल भरा कार्यकाल बितातने के बाद पटेल लक्षद्वीप आए. पटेल के हिंदू-राष्ट्रवादी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ घनिष्ठ संबंध को देखते हुए मुस्लिम-बहुल लक्षद्वीप में उनकी तैनाती को स्थानीय लोगों ने भारी घबराहट के साथ देखा. लगता है कि निवासियों के डर ने पटेल की हरकतों का पूर्वाभास दे दिया था. उनके कार्यकाल के दौरान, द्वीपों ने विरोध, दबदबे, मनमानी नीति परिवर्तन, अभूतपूर्व आर्थिक कठिनाई और राज्य और नागरिकों के बीच समझौते का लगभग टूटना देखा है.

लेकिन द्वीपों में अशांति से केंद्र पटेल के कान में जूं तक नहीं रेंगी है. गुजरात के एक कांग्रेसी नेता अर्जुन मोढवाडिया ने मुझे बताया कि पटेल अपने राजनीतिक करियर का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देते हैं. पटेल पहली बार 2010 में प्रमुखता से उभरे जब मोदी ने, जो उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उन्हें गृह राज्य मंत्री नियुक्त किया. "आरएसएस वाली कट्टरता है उसकी सोच में," मोढवाडिया ने कहा. "क्रूर फैसले ले सकते हैं."

14 जून 2021 को, लक्षद्वीप द्वीपसमूह के निवासी "लक्षद्वीप बचाओ" के नाम से विरोध करते हुए. स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के नीतिगत फैसलों ने अर्थव्यवस्था पर कहर बरपाया है. एएनआई/हिंदुस्तान टाइम्स

लक्षद्वीप भारत के सबसे छोटे प्रशासनिक प्रांतों में से एक है. 2011 की जनगणना में इसकी आबादी सिर्फ 64473 थी यानी लगभग सोलह हजार परिवार. हालांकि इसके नाम का अर्थ है एक लाख द्वीप, यह अंगूठीनुमा 36 द्वीपों से बना है, जिनमें से केवल दस में ही मानव निवास है. ऐतिहासिक रूप से, द्वीपों की अर्थव्यवस्था व्यापार पर टिकी हुई थी. यहां के ​निवासी कर्नाटक में मंगलुरु और केरल में बेपोर जैसे मुख्य भूमि बंदरगाहों में सस्ते दामों पर नारियल और मछली बेचते थे. उस नकदी का एक हिस्सा मुद्रा के रूप में द्वीप में वापस चला आता. बाकी घर के लिए सामान की खरीदारी में वापस चला जाता.

आजादी के बाद राज्य ने बड़ी भूमिका निभानी शुरू कर दी. जैसे ही स्थानीय प्रशासन ने द्वीपवासियों को काम पर रखना शुरू किया, उनकी मजदूरी आय का एक नया स्रोत बन गई. न केवल सरकारी नौकरियां थीं, जो स्थिर आय और सत्ता तक पहुंच प्रदान करती थीं, जो निवासियों के लिए अधिक आकर्षक थीं, स्थानीय प्रशासन ने पर्यटन जैसे लाभदायक आर्थिक क्षेत्रों में विस्तार किया और उन्हें राज्य द्वारा संचालित स्थानों में बदल दिया. आज भी द्वीपों पर सारे पर्यटन का प्रबंधन सरकार द्वारा संचालित संगठन द सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ नेचर टूरिज्म एंड स्पोर्ट्स द्वारा किया जाता है. राज्य ने द्वीपों के लिए सहकारी समितियों की भी शुरुआत की. साठ के दशक के उत्तरार्ध में पूर्व प्रशासक मूरकोथ रामुन्नी द्वारा शुरू की गई समीतियां लोगों को सशक्त बनाने और द्वीपों में सहकारी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए थी. आज भी द्वीपों में दस सहकारी समितियां हैं और उन सहकारी समितियों का एक संघ है जिन्हें लक्षद्वीप सहकारी विपणन संघ कहा जाता है.

स्वतंत्रता के बाद कुछ दशकों तक सरकारी और पारंपरिक नौकरियां द्वीपवासियों के बीच समान रूप से बंटी रहीं. धीरे-धीरे, पारंपरिक व्यवसायों का महत्व कम होता गया. सरकारी कर्मचारियों का वेतन स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए धन का सबसे बड़ा स्रोत बन गया. एक स्थानीय सरकारी दस्तावेज के अनुसार, जनवरी 2021 तक स्थानीय प्रशासन द्वारा स्थायी, आकस्मिक और संविदात्मक पदों पर कुल मिलाकर 8761 निवासियों को काम दिया गया था.

कवरत्ती निवासी ने मुझे बताया कि स्थायी सरकारी कर्मचारी अपना ज्यादातर पैसा केरल में खर्च करते हैं और इसलिए लक्षद्वीप की स्थानीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से ठेका मजदूरों और दिहाड़ी कर्मचारियों की दिहाड़ी से चलती है. "उनके वेतन का लगभग नब्बे से सौ प्रतिशत स्थानीय अर्थव्यवस्था में खर्च हो जाता है," निवासी ने कहा. उन्होंने कहा कि द्वीपसमूह में मानव बसावट के सभी दस द्वीपों की अर्थव्यवस्था इसी पैसे से चलती है, जो आगे कृषि, मछली पकड़ने या दुकानदारी में लगे बाकी परिवारों का गुजर-बसर करती है और हर साल लक्षद्वीप से जाने वाले धन की जगह लेती है. "अगर कोई स्थानीय लक्षद्वीप में दस रुपए का साबुन खरीदता है, तो लक्षद्वीप में बचा पैसा एक रुपए से भी कम होगा," उन्होंने समझाया. “शेष राशि का भुगतान मुख्य भूमि में थोक व्यापारी, निर्माता, वगैरह को किया जाएगा. इसलिए आर्थिक मंदी से बचने के लिए हर साल बाजार में लगातार पैसे डालने की जरूरत है.”

क्रमिक प्रशासन ने एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण किया था जिसमें स्थानीय लोग जीविका के लिए सरकार पर निर्भर थे. इसके बाद पटेल आए.

28 अप्रैल 2021 को पटेल के प्रशासन ने लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियम (एलडीएआर) जारी किया. यह एक व्यापक कानून है जो स्थानीय विकास में पंचायतों की भूमिका को खत्म कर इसे प्रशासनिक अधिकारियों के वर्चस्व वाले नगर-नियोजन निकाय के साथ निहित करता है. एलडीएआर ड्राफ्ट बिना किसी सार्थक सार्वजनिक परामर्श के जारी किया गया था. निवासियों को अपनी टिप्पणी भेजने के लिए तीन सप्ताह से भी कम का समय दिया गया था, वह भी तब जब कोविड-19 की दूसरी लहर द्वीपों में फैल रही थी. सत्ता का यह हस्तांतरण द्वीपों और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में पटेल की शासन शैली के एक पैटर्न को उजागर करने वाला था यानी सत्ता का संचय और केंद्रीकरण, एक ऐसा पैटर्न जिसने आने वाले महीनों में मामला गर्मा दिया.

इसके तुरंत बाद, 5 मई को, लक्षद्वीप के पंचायत विभाग ने एक अधिसूचना जारी कर कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित शक्तियों और कार्यों को पंचायतों से प्रशासन के निदेशालयों को स्थानांतरित कर दिया. जिसके चलते नौकरी में कटौती हुई. सबसे पहले नौकरी गंवाने वालों में स्थानीय समुद्री जीवन की रक्षा के लिए पर्यावरण विभाग द्वारा गठित एक शिकार विरोधी दस्ते के सदस्य थे. एक सरकारी कर्मचारी ने द न्यूज मिनट को बताया कि उस महीने, "सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ नेचर टूरिज्म एंड स्पोर्ट्स (स्पोर्ट्स) में 197 अतिरिक्त मजदूर, राजस्व विभाग में 30 अनुबंध सर्वेक्षक और महिला और बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग के कई अन्य कर्मचारियों को,” नौकरी से निकाल दिया गया. 

पटेल ने सरकारी डेयरी को बंद करने का भी आदेश दिया. मिनिकॉय के एक डॉक्टर ने मुझे बताया, "वहां लगभग तीस या चालीस गायें और लगभग बीस से पच्चीस स्थानीय कर्मचारी थे, जिनमें से अधिकांश वहां बीस-पच्चीस साल से काम कर रहे थे." वह भी अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते थे. “स्थायी कर्मचारियों को अन्यत्र बहाल कर दिया गया है लेकिन संविदा कर्मियों को हटा दिया गया है." पटेल ने पशु चिकित्सा विभाग और कृषि विभाग के पूरे प्रदर्शन भूखंडों को भी बंद कर दिया. डॉक्टर ने कहा कि द्वीपों में अब पशु चिकित्सक नहीं हैं. "कृषि विभाग प्रत्येक द्वीप में प्रदर्शन इकाइयां चलाता है," उन्होंने कहा. “हर द्वीप में एक कृषि अधिकारी होता था जिसके कर्मचारी उसे रिपोर्ट करते थे. अब पूरी यूनिट को बंद कर दिया गया है. स्थायी कर्मचारियों की बहाली कर दी गई है. मत्स्य विभाग में कुछ कृषि अधिकारी लगाए गए हैं. जहां तक कैजुअल कर्मचारियों का सवाल है, उनकी नौकरी चली गई है.”

कुल कितनी नौकरियां गई हैं इसकी अभी भी साफ जानकारी नहीं है. सितंबर 2021 के दस्तावेज में, "50वीं एक्शन टेकन रिपोर्ट/स्टेटस" शीर्षक से, प्रशासन लिखता है : "कर्मचारियों के युक्तिकरण की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में यूटीएल की मौजूदा कर्मचारियों की संख्या जुलाई 2021 तक पिछले छह महीनों की अवधि में 8761 से घटाकर 6608 कर दी गई है." दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि अगस्त 2021 में कर्मचारियों की संख्या को और 204 घटा कर 6404 कर दिया गया, जिससे नौकरी में कटौती की कुल संख्या 2371 हो गई. आंकड़े यह नहीं बताते कि हटाए गए लोगों में से कितने स्थायी या कैजुअल कर्मचारी थे. इसके बाद के महीनों में अधिक लोगों की छंटनी की गई है.

द न्यूज मिनट में प्रकाशित मई 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, एक सरकारी कर्मचारी ने कर्मचारियों की कुल संख्या 9600 आंकी, जिनमें से 4100 आकस्मिक या संविदात्मक थे. कवरत्ती के निवासी का अनुमान है कि कुल मिला कर लगभग तीन हजार सरकारी कर्मचारियों की नौकरी चली गई, जिनमें से ज्यादातर दिहाड़ी कर्मचारी थे. प्रशासन को भेजे गए सवालों का हमें कोई जवाब नहीं मिला.

इसके आर्थिक परिणाम गंभीर हैं. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को हाल ही में भेजे गए एक पत्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल लिखते हैं कि प्रशासन का कहना है कि उसने “राजकोष के लिए हर महीने लगभग ढाई करोड़ रुपए की बचत की है.” यह आंकड़ा सालाना 30 करोड़ रुपए बैठता है यानी लक्षद्वीप को खर्च करने की क्षमता का इतना ही नुकसान होता है.

आर्थिक गतिविधियों में यह गिरावट पटेल द्वारा लिए गए अन्य निर्णयों से और बढ़ गई है. जिला पंचायत और सहकारी समितियां स्थानीय रोजगार और स्थानीय अर्थव्यवस्था को चलाने वाले धन का एक अन्य स्रोत हैं. पिछले एक साल में दोनों को विभिन्न प्रशासनिक कार्यों के चलते संघर्ष करना पड़ा है.

कवरत्ती निवासी का अनुमान है कि सितंबर 2021 तक पंचायतों को साल के लिए आवंटित कुल धनराशि का केवल छह प्रतिशत ही जारी किया गया था, जिसमें से लगभग नब्बे प्रतिशत चिकित्सा विभाग को गया. धन की कमी ने पंचायतों की राज्य के लिए आर्थिक गतिविधि शुरू करने की क्षमता को पंगु बना दिया है. उनका कामकाज भी प्रभावित हुआ है. उदाहरण के लिए, पटेल से पहले, जिला पंचायत सफाई कर्मचारियों को नियुक्त करती थी. पिछले मार्च महीने में इसे प्रशासन ने अनुबंधित कर ठेकेदारों को दे दिया था. भुगतान अब पंचायतों द्वारा नहीं बल्कि प्रशासन द्वारा किया जाना था. मिनिकॉय के डॉक्टर ने कहा कि फिर उनका भुगतान नहीं किया गया और ठेकेदार अदालत चले गए. उन्होंने कहा कि कचरे के ढेर के लिए प्रशासन ने पंचायतों को दोषी ठहराया . “लेकिन हमारे पास कोई फंड या साजो-सामान नहीं है. हम क्या कर सकते हैं?"

इस बीच, सहकारी समितियां भी संकट में हैं. स्थानीय प्रशासन ने समितियों को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान की. कवरत्ती निवासी ने कहा कि नतीजतन प्रशासन ने "निर्वाचित बोर्ड के ऊपर सचिवों की नियुक्ति करके समितियों के संचालन को नियंत्रित किया. निर्वाचित बोर्ड की कोई भूमिका नहीं थी. स्थानीय लोग इससे दूर रहे.” उन्होंने कहा कि आज लोगों के पास सहकारी समितियों की कुल पूंजी का दस प्रतिशत से भी कम हिस्सा है. प्रशासन पर यह निर्भरता अब पनपने लगी है. 22 जनवरी 2022 को राज्य ने सभी बजटीय सहायता वापस ले ली. इसका अर्थ है कि न केवल सहकारी समितियों की आर्थिक गतिविधियां खतरे में हैं बल्कि उनके कर्मचारी, जिनकी अनुमानित संख्या दो सौ से अधिक है, बेरोजगारी के खतरे का सामना कर रहे हैं.

हालात इतने ही नहीं हैं. द्वीपों को अपनी ज्यादातर आपूर्ति जहाज से मिलती है. मुहम्मद ने मुझे बताया कि जहाज लक्षद्वीप में महीने में लगभग तेरह बार आते थे. जहाज अब महीने में सिर्फ दो या तीन बार आते हैं. द्वीपों और मुख्य भूमि के बीच नौवहन का प्रबंधन लक्षद्वीप विकास निगम द्वारा किया जाता है, जिसका स्वामित्व स्थानीय प्रशासन के पास है. पटेल के कार्यभार संभालने से पहले सात जहाज द्वीपों और मुख्य भूमि के बीच चलते थे. अब केवल दो ही ऐसा करते हैं. "एक बार एक जहाज आ जाता है, तो अगला बारह, पंद्रह, बीस दिनों तक नहीं आता है," मुहम्मद ने कहा. "यहां तक कि जब हमारे पास सामान मांगने ग्राहक आते हैं, तो हमारे पास स्टॉक नहीं होता है."

फैजल ने अपने पत्र में लिखा है कि जहाजों के संचालन और रखरखाव के लिए आवश्यक धन स्वीकृत नहीं किया जा रहा है. एक जहाज, एमवी कवरत्ती में पिछले नवंबर में आग लग गई थी. "इसका रखरखाव आज तक शुरू नहीं हुआ है," कवरत्ती निवासी ने मुझे बताया. माल भाड़ा भी बढ़ा दिया गया है. मुहम्मद ने कहा, "हम 25 किलोग्राम के बैग की शिपिंग के लिए 37 रुपए का भुगतान करते थे. यह रकम अब दोगुनी होकर 65 रुपए हो गई है. हम जो कुछ भी एमआरपी पर बेचते हैं, उस पर हमें कुछ नहीं मिलता है.”

मुख्य भूमि और द्वीपों के बीच कम जहाजों के चलने के साथ मछुआरों ने भी खुद को एक बंधन में पाया है. मछली निर्यात करना अब आसान नहीं है. साथ ही, स्थानीय खर्च करने की शक्ति में गिरावट के साथ, स्थानीय बाजार में उन्हें मिलने वाली कीमतें भी गिर गई हैं.

इस तरह के हर फैसले ने द्वीपों को तगड़ा वित्तीय झटका दिया, नौकरी में कटौती इसका आखिरी उपचार था. इन सबने मिलकर, एक आर्थिक संकट को विकराल बना दिया.

पटेल के प्रशासन ने सरकारी खजाने को नुकसान होने का हवाला देते हुए नौकरी में कटौती का बचाव किया. प्रशासक ने एलडीएआर की तरह द्वीपों में अपने कार्यों का बचाव "विकासवादी" नीतियों के रूप में किया. उदाहरण के लिए डेयरी फार्मों को ही लें. केरल उच्च न्यायालय को दी अपनी प्रतिक्रिया में, प्रशासन ने दावा किया कि डेयरी फार्मों को चलाने से हर साल 90 लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है. और फिर भी प्रशासन केवल घाटे में चल रहे फार्मों को बंद नहीं कर रहा था. इसने द्वीपों के कामकाज के लिए बेहद जरूरी विभागों में खर्च को भी व्यापक रूप से घटा दिया. उदाहरण के लिए, पर्यटन को बढ़ावा देने का दावा करने के बावजूद राज्य ने कचरा संग्रहण और गहरे समुद्र में गोताखोरों पर भी कुठाराघात किया.

यहां तक कि जब प्रशासन ने नौकरियों में कटौती शुरू की, तो निर्माण परियोजनाओं पर मुख्य रूप से ध्यान देने के साथ, इसने कहीं और ही फिजूलखर्ची शुरू कर दी. पटेल व्यावसायिक उड़ानें लेने के बजाय चार्टर्ड विमानों का इस्तेमाल करते रहे हैं. यह तो बस शुरूआत थी. कवरत्ती निवासी ने कहा कि 2021 में प्रशासन ने गांधी जयंती समारोह पर एक करोड़ रुपए खर्च किए. अक्टूबर में पटेल ने घोषणा की कि 26.27 करोड़ रुपए की लागत से कवरत्ती में एक नई जिला जेल का निर्माण किया जाएगा- इस रकम को बाद में 15.17 करोड़ रुपए कर दिया गया था- भले ही लक्षद्वीप में अपराध की दर और जेल में रहने की दर कम है. उनके प्रशासन ने प्रशासक के लिए एक नया आवास बनाने में 8.63 करोड़ रुपए मंजूर किए, जिसमें दिल्ली में इसके भवन के नवीनीकरण के लिए 9.28 करोड़ रुपए अलग से है, सरकारी अधिकारियों के लिए नए आवासीय क्वार्टरों के लिए बोलियां आमंत्रित कीं और उन द्वीपों पर चौड़ी सड़कों के निर्माण की योजना की घोषणा की जो पांच किलोमीटर से ज्यादा लंबी नहीं हैं. पिछले साल, प्रशासन ने यह जानने के लिए और क्या बनाया जा सकता है 150 करोड़ रुपए का टेंडर भी निकाला था.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 2 अक्टूबर 2021 को लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती में गांधी जयंती के अवसर पर एमके गांधी की एक प्रतिमा का अनावरण किया. एक निवासी के अनुसार, प्रशासन ने मूर्ति और उससे जुड़े समारोह पर लगभग एक करोड़ रुपए खर्च किए. पीआईबी

ये प्रोजेक्ट कई सवाल खड़े करते हैं. न केवल इन्हें प्रशासन द्वारा नौकरियों में कटौती करके लॉन्च किया जा रहा है बल्कि इनमें से हरेक में भूमि अधिग्रहण भी किया जा रहा है. हालांकि, गृह मंत्रालय ने अभी तक पटेल प्रशासन द्वारा भेजे गए एलडीएआर को मंजूरी नहीं दी है. एलडीएआर पारित होने तक पटेल को जमीन अधिग्रहण के लिए पंचायत की अनुमति लेनी होगी. डॉक्टर ने कहा, “उस तरह से जमीन हासिल करना आसान नहीं है. और फिर भी पटेल प्रशासन डिजाइन विनिर्देशों और वास्तुशिल्प चित्रों के साथ निविदाएं जारी कर रहा है. दूसरे शब्दों में, यह जानने से पहले ही कि क्या किसी परियोजना पर काम शुरू हो सकता है, प्रशासन वास्तुकला फर्मों को चालू कर रहा है और भुगतान कर रहा है. निर्माण परियोजनाओं के संबंध में पटेल और उनके प्रशासन के तहत कई विभागों को भेजे गए सवालों का इस रिपोर्ट के छपने तक कोई जवाब नहीं मिला.

पिछले साल तक उनके फैसले सुर्खियों में नहीं आए थे, तब तक पटेल ज्यादातर गुजरात में जाने जाते थे. वह राज्य के शुष्क साबरकांठा जिले के एक कस्बे हिम्मतनगर के रहने वाले हैं. उनके आरएसएस के साथ लंबे समय से संबंध हैं. उनके पिता खोड़ाभाई रणछोड़भाई पटेल, आरएसएस सदस्य और संघ के किसान संगठन भारतीय किसान संघ के राज्य कोषाध्यक्ष थे. कांग्रेस नेता मोढवाडिया के अनुसार, परिवार मोदी को उनके संघ के दिनों से जानता है.

पटेल का राजनीतिक जीवन धीमी गति से आगे बढ़ा. 1957 में जन्मे पटेल ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और हिम्मतनगर में सबर कंस्ट्रक्शन नामक एक छोटी साझेदारी फर्म शुरू की. फर्म ने राज्य सरकार के लिए सड़कों का निर्माण किया. मोढवाडिया के मुताबिक जब दिलीप पटेल आणंद से विधायक बने तो पटेल उनके निजी सहायक के तौर पर काम करते थे. पचास साल की उम्र में उन्हें साबरकांठा से विधायक का टिकट दिया गया और वह जीत गए. मोढवाडिया ने पिछले साल मुझसे कहा था, ''उन्हें मोदी के आदेश से टिकट मिला.''

विधायक बनने के बाद भी पटेल एक मामूली क्षेत्रीय शख्सियत बने रहे. जनवरी 2010 में उन्हें साबरकांठा जिले में बीजेपी इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. और फिर सब कुछ बदल गया. उस साल अगस्त में सोहराबुद्दीन शेख की न्यायेतर हत्या के मामले में अमित शाह की गिरफ्तारी के बाद, मोदी ने पटेल को गुजरात सरकार में शाह के दस विभागों में से आठ को संभालने के लिए कहा. यहां तक कि राज्य के गृह विभाग भी.

जैसा कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जीएल सिंघल ने दर्ज किया है, पटेल नवंबर 2011 में कनिष्ठ गृह मंत्री थे, जब गुजरात सरकार के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी के कार्यालय में कथित तौर पर इस पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की, कि इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में जांच को कैसे पटरी से उतारा जाए. आरोपियों में सिंघल और अहमदाबाद के सहायक खुफिया ब्यूरो सहित राज्य पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे. सिंघल , जैसा कि द हिंदू ने बाद में रिपोर्ट किया, “ने भी बैठक में भाग लिया था और वह इस मामले के सात आरोपित अधिकारियों में से एक है.” इस बैठक में शामिल होने वालों में पटेल ही नहीं थे, इंडिया टुडे द्वारा प्रकाशित एक प्रतिलेख से पता चलता है कि वह मुठभेड़ की जांच कर रहे विशेष जांच दल के सदस्य सतीश वर्मा से मिले थे. बाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने पटेल को तीन मामले में संदिग्ध पुलिस अधिकारियों को स्थानांतरित करने के अपने आदेश का पालन नहीं करने के लिए दंडित किया.

पटेल 2012 तक राज्य मंत्री रहे. वह 2012 के चुनावों में हार गए और राज्य मंत्रिमंडल में कभी वापस नहीं आए. अहमदाबाद के एक समाजशास्त्री ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया, “वह राज्य में कभी भी एक शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्ति नहीं रहे हैं. उनके ऊपर जो हाथ था या तो वह हट गया या उन्हें महत्वाकांक्षी के रूप में देखा जाता है और इसलिए दूसरों ने उन्हें दरकिनार कर दिया." मोढवाडिया समाजशास्त्री के आकलन से सहमत थे. "वह एक लोकप्रिय व्यक्ति नहीं है. यहां तक कि अपने ब्लॉक में भी नहीं," उन्होंने कहा.

मोदी से उन्हें फिर से एक मामूली राहत तब मिली जब पटेल को दमन और दीव का प्रशासक नियुक्त किया गया. यह प्र​चलित परंपरा से अलग कदम था क्योंकि केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासक आमतौर पर नौकरशाह रहे हैं. यह भी उनके लिए एक दयनीय स्थिति थी. 2011 की जनगणना के अनुसार, दमन और दीव की जनसंख्या ढाई लाख से भी कम थी- जो इसे देश के सबसे छोटी प्रशासनिक नौकरी बना रही थी. इससे नए संदेह पैदा हुए कि पटेल का राजनीतिक करियर खत्म हो गया है. चार साल बाद, उन्हें दादरा और नगर हवेली का अतिरिक्त प्रभार दिया गया, जिसकी कुल आबादी तीन लाख चालीस हजार थी. इन केंद्र शासित प्रदेशों और अब लक्षद्वीप से पटेल अपने राजनीतिक महत्व को फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

दीव सौराष्ट्र के दक्षिणी तट पर जूनागढ़ के दक्षिण-पूर्व में स्थित है. दमन सूरत से एक सौ बीस किलोमीटर दक्षिण में खंभात की खाड़ी के दूसरी ओर स्थित है . दमन में, दीव की तरह, मछली पकड़ना प्रमुख गतिविधि है. दूसरी ओर दादर और नगर हवेली अंतर्देशीय है. यहां की आधी से ज्यादा आबादी अनुसूचित जनजाति है.

देश के दो सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्य, गुजरात और महाराष्ट्र के बीच, केंद्र शासित प्रदेशों ने निवेश को आकर्षित करने के लिए कम कर दरों और ढीली पर्यावरण निगरानी का इस्तेमाल किया है. रिलायंस और स्टरलाइट जैसे समूह के अलावा, कई उद्योगों के यहां अपने विनिर्माण संयंत्र हैं, जिसमें दवा क्षेत्र सबसे मुख्य है. स्थानीय पर्यटन क्षेत्र फल-फूल रहा है- गुजरात में शराब निषेध और महाराष्ट्र में शराब पर भारी कर पड़ोसी राज्यों के निवासियों को आकर्षित करता है.

दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में लंबे समय से राजनीति की बागडोर स्थानीय दबंगो के हाथ रही है. मोढवाडिया ने मुझे बताया, “अकेले दमन और दीव में तीन हजार औद्योगिक इकाइयां हैं. यह बहुत समृद्ध लेकिन बहुत भ्रष्ट जगह है. बीजेपी हो या कांग्रेस, कोई भी यहां चुनाव पर 30 करोड़ रुपए से कम खर्च नहीं करता है." दादर और नगर हवेली की राजधानी सिलवासा में एक कांग्रेस नेता ने इसकी पुष्टि की. उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "यहां के नेता कंपनियों से पैसे वसूलते हैं. वे आदिवासियों से कम दरों पर जमीन खरीदते हैं- यहां आदिवासियों के सामने नकदी और बंदूक रखने की कहावत है- और फिर इसे ज्यादा कीमतों पर कंपनियों को बेच देते हैं. इन बस्तियों के कई नौकरशाह रिटायर होते-होते अमीर होकर वापस लौटते हैं.”

जिस समय पटेल इन जुड़वां केंद्र शासित प्रदेशों में पहुंचे दादरा और नगर हवेली में क्षत्रप मोहन देलकर थे. वह बीजेपी और कांग्रेस दोनों में रह कर सात बार के सांसद और कई बार स्वतंत्र रूप से चुने गए केंद्र शासित प्रदेश के सबसे बड़े नेता थे.

कार्यभार संभालने के बाद पटेल ने सत्ता का केंद्रीकरण करना शुरू कर दिया. उन्होंने निर्वाचित निकायों से सत्ता छीन कर इसकी शुरुआत की. एक स्थानीय नौकरशाह, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता, ने मुझे बताया, "जब पटेल केंद्र शासित प्रदेश पहुंचे, तो उन्होंने खुद को कई शक्ति केंद्रों -स्थानीय सांसद, नगर पालिका, पंचायतों- से घिरा पाया. उन्होंने उन सभी से शक्तियां छीन लीं, चाहे वह धन हो या पद की." मोढवाडिया ने कहा कि पटेल के अधीन सांसदों के पास कोई स्थानीय शक्ति नहीं थी. "वे केवल लोक सभा में जाते हैं. प्रशासन उनसे आदेश लेता है."

इसके बाद पटेल ने अपने लोगों को स्थानीय प्रशासन में भरना शुरू किया जैसे पटेल के निजी सचिव बतौर सेवानिवृत्त नौकरशाह डीए सत्या; सिलवासा में विनोबा भावे अस्पताल के प्रमुख रह चुके और चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक वीके दास; गुजरात के एक पूर्व पुलिस अधिकारी एयू जडेजा, जिन्हें स्थानीय भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो चलाने के लिए लाया गया. बीसी वार्ली को स्थानीय लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता के रूप में लाया गया और एचएम चावड़ा को जिला पंचायत का मुख्य कार्यकारी बनाया गया.

इन नियुक्तियों पर भौहें तननी ही थीं. स्थानीय नौकरशाह ने कहा, "अगर पटेल स्थानीय पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारियों की गुणवत्ता से असंतुष्ट थे, तो उन्हें केंद्रीय लोक निर्माण विभाग से पीडब्ल्यूडी अधिकारियों को मांगना चाहिए था. इसके बजाए उन्होंने गुजरात प्रशासन के अधिकारियों को लिया." उदाहरण के लिए, वार्ली गुजरात औद्योगिक विकास निगम से थे. तब से केंद्र शासित प्रदेशों बड़े पैमाने पर राजमार्ग, सड़कों, सरकारी भवनों का सुधार, नए भवन जैसे निर्माण कार्य ही देखें हैं जो खुद को किसी भी तरह की आलोचना से परे रखते हैं.

सिविल निर्माण पर इस फोकस को समझने की जरूरत है. पटेल ने स्थानीय पीडब्ल्यूडी से योजना, निर्माण और निगरानी कार्यों को छीन लिया और यह तर्क देते हुए उन्हें निजी फर्मों को दे दिया कि वे अधिक पेशेवर हैं और तेजी से काम करती हैं. यह केवल पीडब्ल्यूडी द्वारा प्रत्येक चरण में निविदा देने का प्रश्न नहीं था. जैसा कि मैंने द वायर में दिसंबर 2021 में रिपोर्ट किया था कि एक समानांतर प्रणाली बनाई गई थी. प्रशासन ने आर्किटेक्ट सलाहकारों का पैनल बनाया. प्रशासन ने इन फर्मों में से एक परियोजना के लिए बिना नया टेंडर पोस्ट किए एक नया आर्किटेक्ट चुन लिया. उघोग के अनुभव वाले आर्किटेक्ट को भवन निर्माण ठेकेदार के योग्य मान लिया गया.

पटेल ने निर्माण कार्य की निगरानी के लिए एक तीसरे पक्ष के निरीक्षक को भी पेश किया. आर्किटेक्ट, निरीक्षक और ठेकेदार के अधिकांश प्रक्रियाओं को संभालने के साथ, पीडब्ल्यूडी की भूमिका केवल बिलों को मंजूरी देने तक सीमित हो गई. पटेल के प्रशासन के दावों के उलट, इस दृष्टिकोण से पीडब्ल्यूडी द्वारा चलाई जा रही पुरानी प्रणाली की तुलना में बेहतर परिणाम नहीं मिले हैं. केंद्र शासित प्रदेशों के निवासियों ने कुछ परियोजनाओं को बेकार बताया. स्थानीय नौकरशाह ने मुझे बताया, "उन्होंने ऐसी जगह पर चार लेन का राजमार्ग प्रस्तावित किया जहां एक साइकिल भी नहीं चलती है." स्थानीय ठेकेदारों की क्षमता से ज्यादा टेंडर साइज बढ़ाने से, गुजरात की कुछ मुट्ठी भर फर्मों ने ज्यादातर ठेके हासिल करना शुरू कर दिए, तब भी जब उन्होंने निविदा मूल्य से अधिक बोली लगाई थीं. कुछ परियोजनाओं में देरी हुई; बाकियों में खराब गुणवत्ता की शिकायतें सामने आईं.

पिछले साल अगस्त में पटेल के प्रशासन द्वारा सिलवासा में बनाए जा रहे नमो मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर की पहली मंजिल का स्लैब ढह गया. इसे गुजरात स्थित फर्म एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट द्वारा डिजाइन किया गया था, जिसका नेतृत्व बिमल पटेल ने किया था, और इसे अहमदाबाद स्थित शांति प्रोकॉन एलएलपी द्वारा बनाया जा रहा था. पटेल के एचसीपी डिजाइन ने मोदी की महत्वाकांक्षी 25000 करोड़ रुपए की दिल्ली में सेंट्रल विस्टा परियोजना के साथ-साथ प्रधानमंत्री की अन्य बड़ी परियोजनाओं का अनुबंध भी हासिल किया.

ऐसा लग रहा था कि पटेल गुजरात बीजेपी के अधिकांश हिस्सों पर लागू होने वाली व्यवस्था को फिर से लागू कर रहे हैं यानी बिल्डरों और नेताओं के बीच सांठ-गांठ. परियोजनाओं को सौंपना उन बिल्डरों के बीच समर्थन को मजबूत करने का एक तरीका है जो मुख्य रूप से पटेल समुदाय से आते हैं. जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस बताया गया है कि जबकि गुजरात बीजेपी के नेता गांव में पटेलों के मोहभंग से जूझ रहे हैं, वहीं अचल संपत्ति क्षेत्र में शहरी पटेलों के साथ उनके संबंध गहरे होते जा रहे हैं. गुजरात की राजनीति और इतिहास पर काम करने वाले एक शोधकर्ता शारिक लालीवाला ने द वायर में छपे मेरे लेख के लिए मुझे बताया था कि पटेल की गतिविधियां बताती हैं कि "वह सामाजिक नेटवर्क बनाने के अलावा किसी को भी लुभा नहीं रहे हैं और गुजरात की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने और साथ ही फिर से इसमें घुसने के लिए ऐसा कर रहे हैं.” जैसे लक्षद्वीप में उन्होंने सैकड़ों आकस्मिक मजदूरों को निकाल दिया. स्थानीय नौकरशाह ने कहा, "उन्हें लगता है कि उन सभी को भाई-भतीजावाद के जरिए नौकरी मिली है." जैसा कि मैंने पिछले साल मई में द वायर के लिए एक अन्य रिपोर्ट में बताया था, "रातोंरात उन्होंने लोक निर्माण विभाग से आदिवासी समुदायों के 560 सदस्यों को निकाल दिया."

केंद्र शासित प्रदेशों में भी सत्ता का मनमाना उपयोग देखने को मिलने लगा है. 2021 की शुरुआत में प्रशासन ने सभी बार लाइसेंसों की समीक्षा करने का ऐलान किया. एक स्थानीय व्यवसायी ने कहा कि उन्हें “कहा गया कि जो चॉलों के सौ मीटर के दायरे में आते हैं उनके लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं होगा. लेकिन, कई मामलों में, चॉलें बाद में बनी हैं. बीस से तीस साल पहले बने होटलों को 2021 में पारित कानून के तहत बंद करने की धमकी दी जा रही है.” पटेल ने अपने सांस्कृतिक संस्कारों को स्थानीय आबादी पर थोपना शुरू कर दिया- आंगनवाड़ी के मेनू से अंडे हटा दिए और अक्षय पात्रा फाउंडेशन को स्कूली भोजन का अनुबंध सौंप दिया गया. यह संस्थान अंडे परोसने के विरोध के लिए जाना जाता है.

पटेल ने असहमति को कुचलने की भी कोशिश की. उनके प्रशासन ने गुजरात असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1985 को केंद्र शासित प्रदेशों तक बढ़ा दिया. इसने सचिवालय के पास लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगा दी. जब स्थानीय लोगों ने विध्वंस का विरोध किया, तो पुलिस ने इतने लोगों को गिरफ्तार किया कि दो सरकारी हाई स्कूलों को अस्थायी निरोध केंद्रों के रूप में इस्तेमाल करना पड़ा. प्रशासन का विरोध करने वालों के रिश्तेदारों का दंडात्मक तबादला कर दिया गया और कई कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया.

इन हथकंडों ने खौफ का माहौल पैदा कर दिया. प्रभुत्व की लड़ाई इतनी भीषण हो गई कि देलकर ने अपने सुसाइड नोट में पटेल का नाम लेते हुए खुद की जान ले ली. स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि फर्मों का पक्ष लेने का दबाव इतना तीखा हो गया कि पीडब्ल्यूडी के एक सम्मानित अधिकारी एसएस भोया ने भी खुदकुशी कर ली. जब मैंने पिछले साल पटेल के प्रशासन पर रिपोर्ट की थी, तो दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में ज्यादातर लोग सामने आकर बोलने को तैयार नहीं थे. कांग्रेस के एक सदस्य ने मुझे बताया, ''वे उनके जाने के बाद ही बात करेंगे.

दिसंबर 2020 से पटेल ने इनमें से कई प्रक्रियाओं को लक्षद्वीप में भी दोहराया है. सत्या और वर्ली जैसे अपने कई भरोसेमंद लोगों को ले आए; सिविल-निर्माण अनुबंध उन फर्मों के पास जाने लगे, जिन्होंने पहले उनके साथ काम किया था. ढह गए स्लैब के बावजूद एचसीपी को सूचीबद्ध किया गया है, जैसा कि प्रशासन के साथ बतौर आर्किटेक्ट "50 एक्शन टेकन रिपोर्ट/स्टेटस" दस्तावेज कहता है, जबकि शांति प्रोकॉन को नेताजी सुभाष चंद्र बोस सैन्य अकादमी परियोजना के निर्माण के लिए वर्क ऑर्डर मिला है.

प्रशासन ने स्थानीय आबादी पर कड़े आदेश जारी किए हैं. दो से अधिक बच्चों वाले अब पंचायत पदों के लिए पात्र नहीं रह गए हैं. मांसाहार को स्कूल के मेनू से हटा दिया गया है. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का विरोध करने वालों को पुलिस की धमकी का सामना करना पड़ा. मछुआरों के शेड तोड़ दिए गए हैं. सामुदायिक भावनाओं को दरकिनार करते हुए प्रशासन शराबबंदी हटाना चाहता है. इसने लक्षद्वीप प्रिवेंशन ऑफ एंटी-सोशल एक्टिविटीज रेगुलेशन का भी प्रस्ताव किया है.

पटेल ने स्थानीय आर्थिक गतिविधियों पर अपने प्रशासन के नियंत्रण का भी विस्तार किया है. इस साल जनवरी में प्रशासन ने लक्षद्वीप टेनेंसी रेगुलेशन जारी किया, जिसमें कहा गया है कि द्वीपों पर किसी भी तरह के किराए के समझौते को "किराया प्राधिकरण" को प्रस्तुत करना होगा जो इस मामले में डिप्टी कलेक्टर के पद से नीचे का कोई व्यक्ति नहीं होगा. साथ ही, 1 जनवरी को, व्यापार लाइसेंस, जो पंचायत विनियमन के तहत थे, को प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया. मिनिकॉय के डॉक्टर ने मुझे बताया कि प्रशासन की नजर अब सारी पंडाराम भूमि पर है जो गांव की साझी जमीन होती है. उन्होंने कहा, "सारी पंडाराम भूमि पर सरकारी भूमि के रूप में दावा किया जा रहा है."

प्रशासन को कोई आलोचना पसंद नहीं है. मई 2021 में संचार विभाग ने स्थानीय समाचार पोर्टल द्वीप डायरी की एक रिपोर्ट को बाधित कर दिया जिसमें स्थानीय लोगों को "प्रशासन की जन-विरोधी नीतियों" का विरोध करने के लिए एक गीत के बारे में बताया गया था. जब प्रशासन में पर्यटन के सहायक निदेशक हुसैन मानिकफान ने जहाज की कमी के बारे में फेसबुक पर पोस्ट किया, उन्हें आधी रात को गिरफ्तार कर लिया गया. कवरत्ती की जिला अदालत ने बाद में उन्हें जमानत दे दी. प्रशासक या स्थानीय अधिकारियों का विरोध करने वाले अन्य लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

एक हद तक व्यवस्थाजन्य दोष खुद ब खुद सामने आ रहा है. केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वोच्च पद प्रशासक का होता है. स्थानीय नौकरशाह ने मुझे बताया, "अतीत में, मध्य स्तर के आईएएस अधिकारी प्रशासक के रूप में तैनात थे. ज्यादा से ज्यादा, वे अतिरिक्त सचिव के स्तर के होते. उनके ऊपर हमेशा एक उच्च नौकरशाही थी. पटेल के साथ ऐसा नहीं है. वह खुद को इस क्षेत्र का निर्विवाद राजा पाते हैं.” यह पटेल का अपना व्यक्तित्व है. नौकरशाह ने कहा, "उन्हें नहीं पता कि फैसलों पर दूसरे, तीसरे और चौथे स्तर की प्रतिक्रियाएं होती हैं. वह बस इतना सोचते हैं कि हुक्म की तामील होनी चाहिए."

और फिर भी लक्षद्वीप में चल रही घटनाओं को किसी एक व्यक्ति की सनक बता कर नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. पटेल के कार्यकाल का वास्तव में आश्चर्यजनक पहलू यह है कि उनके प्रशासन के उल्लंघनों को केंद्र द्वारा चुनौती नहीं दी जाती है. चार्टर्ड फ्लाइट का मामला लें : पिछले साल मैंने द वायर के लिए रिपोर्ट की थी कि पटेल द्वारा 21 फरवरी 2021 को दमन से अगत्ती के लिए आने-जाने के लिए ली गई सिर्फ एक चार्टर्ड उड़ान, प्रशासक के घरेलू यात्रा खर्चों के लिए निर्धारित पूरी वार्षिक राशि से अधिक थी. प्रशासन ने अन्य प्रशासनिक खर्चों के लिए आवंटित धन का उपयोग करके उड़ान के लिए भुगतान किया था, जिसके लिए संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होती. पटेल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.

नौकरी में कटौती के बारे में भी इसी तरह के सवाल उठाए जा सकते हैं. शिकार विरोधी दस्ते के सदस्यों को केंद्र सरकार की एक योजना के तहत भर्ती किया गया था और उनके वेतन के लिए धन पहले ही प्रशासन तक पहुंच गया था. कवरत्ती निवासी ने कहा कि अन्य छंटनी किए गए कर्मचारियों को भी केंद्र सरकार द्वारा आवंटित राशि से भुगतान किया जाना था. इन निधियों को पुन: नियोजित करने के लिए फिर से संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होगी.

पर्यटन को बढ़ावा देना एक अन्य पहलू है. द्वीपों के लिए नीति आयोग, अनगिनत केंद्रीय मंत्रियों और खुद पटेल ने लक्जरी बीच टूरिज्म का मालदीव मॉडल तैयार किया है जिसमें द्वीपों को निजी ऑपरेटरों को दिया जाता है और स्थानीय लोगों को पहुंच से वंचित कर दिया जाता है. 2018 में नीति आयोग ने घोषणा की कि वह दस द्वीपों पर पर्यटन को बढ़ावा देने के बारे में विचार कर रहा है, जिनमें से सिर्फ तीन निर्जन थे. तब से राज्य द्वारा वित्त पोषित वहन क्षमता अध्ययनों के एक समूह ने सुझाव दिया है कि एक बड़ा पर्यटन उभार टिकाऊ है.

हालांकि, मालदीव के उलट, जिसमें 1192 द्वीप हैं- उनमें से दो सौ में बसावट है और लगभग अस्सी में रिसॉर्ट्स हैं- लक्षद्वीप में 36 प्रवाल द्वीप हैं, जिनमें से दस से ज्यादा साल भर मानव बसावट में सक्षम नहीं हैं. प्रशासन पहले से ही पानी की कमी और अपशिष्ट निपटान से जूझ रहे द्वीपों में गहन पर्यटन पर जोर दे रहा है. उदाहरण के लिए, नीति आयोग द्वारा वित्त पोषित 2019 के एक अध्ययन में कहा गया है कि बंगारम द्वीप 168 होटल कमरों का भार उठा सकता है. "1980 के दशक में द्वीप विकास एजेंसी ने निष्कर्ष निकाला था कि बंगाराम सीवेज, ऊर्जा और पानी के मामले में सौ निकायों का भार उठा सकता है," सीजीएच अर्थ एक्सपीरियंस के एक वरिष्ठ कार्यकारी, जो प्रसिद्ध बंगाराम रिसॉर्ट का संचालन करते थे, ने मुझे नाम न छापने की शर्त पर यह बताया. "इसके मायने हुए साठ मेहमान और तीस स्टाफ सदस्य. अब वे एक सौ पचास कमरों की बात कर रहे हैं. यानी तीन सौ मेहमान. दो सौ से ज्यादा कर्मचारी. यह नामुमकिन है."

न केवल लक्जरी पर्यटन मॉडल द्वीपों के लिए अनुपयुक्त है, बल्कि पटेल जिस तरह से इसे लागू करने जा रहे हैं, उसे भी किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ रहा है. पिछले साल के मध्य में बंगाराम रिसॉर्ट के लिए एक प्री-बिड मीटिंग के बाद अमृतारा और सीजीएच अर्थ एक्सपीरियंस जैसी लग्जरी चेन चलाने वालों सहित होटल व्यवसायियों के एक समूह ने पटेल के प्रशासन द्वारा मंगाई गई आगे की निविदाओं में भाग नहीं लेने का फैसला किया.

इसमें कई मतभेद थे. अमृतारा होटल चेन चलाने वाले गुरमीत उबेरई ने उस समय मुझसे कहा था कि जब प्रशासन प्रस्तावों के लिए अनुरोध जारी करता है तो "प्रतिभागियों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब सभी को प्रसारित किए जाने चाहिए. ऐसा नहीं किया गया." जब सीजीएच अर्थ एक्सपीरियंस ने रिसॉर्ट साइट का दौरा करने के लिए कहा, तो कंपनी के अधिकारियों ने मुझे बताया, उन्हें प्रशासन से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. बोली लगाने वालों ने यह भी कहा कि निविदा की आवश्यकताएं अनुचित और अवास्तविक थीं. उबेरई ने कहा, "वे चाहते थे कि हम समझौते पर दस्तखत होने के एक महीने बाद-सारी मंजूरियों के साथ-जो असंभव है, रिसॉर्ट चलाना शुरू कर दें." इसके अलावा बोली दस्तावेजों में दस्तखत किए जाने वाले समझौते की एक मसौदा प्रति नहीं दी गई और प्रशासन ने बाद में कंसोर्टियम को बोली लगाने की इजाजत देने वाला एक खंड हटा दिया. होटल व्यवसायियों में से एक ने दूसरी बैठक में यह भी पूछा कि क्या प्रशासन ने बांगरम को किसी के लिए पहले ही निर्धारित कर दिया है. आखिरकार, बोली की प्रतिक्रिया इतनी धीमी थी कि प्रशासन ने तीसरी बार समय सीमा बढ़ा दी.

प्रफुल्ल पटेल द्वीपों के प्रशासक के रूप में कार्यभार संभालने के हफ्तों बाद लक्षद्वीप द्वीपसमूह में एक "द्वीप यात्रा" कार्यक्रम पर. लक्षद्वीप प्रशासन

प्रफुल्ल पटेल सरीखे प्रशासक के तहत राज्य की प्रकृति क्या है? जवाब है कि उनके कार्य विकासवादी नहीं हैं. वह राजकोषीय विवेक नहीं दिखाते हैं. कुछ भी हो, पटेल के आर्थिक फैसले जनता और उनके प्रशासन के बीच एक खंडित सामाजिक अनुबंध को दर्शाते हैं. जैसा कि स्थानीय नौकरशाह ने पिछले साल मुझे बताया था कि दादरा और नगर हवेली में "उनके लिए उंचे चबूतरे में कुर्सी लगाई गई थी जैसे वह राजा हैं और अन्य प्रजा हैं."

यह एक औपनिवेशिक प्रशासन है जो जरा भी विरोध बर्दाश्त नहीं करता. जब यह लेख लिखा जा रहा था तब प्रवाल द्वीपों में भूमि अधिग्रहण नोटिसों की झड़ी लगी हुई थी. "मिनिकॉय आकार में 4.8 वर्ग किलोमीटर है," डॉक्टर ने कहा. "उन्होंने तय किया है कि पर्यटन के लिए 2.5 वर्ग किलोमीटर का अधिग्रहण किया जाएगा." अपनी संपूर्णता में, बसे हुए और निर्जन प्रवालद्वीपों में फैला, लक्षद्वीप बत्तीस वर्ग किलोमीटर से अधिक नहीं है. डॉक्टर ने कहा कि प्रशासन द्वारा भेजे गए भूमि अधिग्रहण नोटिस में लगभग 5.2 वर्ग किलोमीटर या भूमि का छठा हिस्सा शामिल है.

फैजल ने भी अपने पत्र में इस मुद्दे को उठाया था. उन्होंने लिखा, "पिछले कुछ महीनों के दौरान जिला कलेक्टर द्वारा अब अभूतपूर्व और बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण नोटिस जारी किए जा रहे हैं," उन्होंने लिखा, "यह पिछले 75 सालों में पर्यटन परियोजनाओं सहित विभिन्न विकास गतिविधियों के लिए प्रशासन द्वारा अधिग्रहित कुल भूमि से कई गुना अधिक है." यह देखना बाकी है कि ये टेंडर किसे मिलते हैं. यह देखने का एक तरीका है कि यह प्रशासन किसकी सेवा करता है.

जवाब में, फैजल ने 21 मार्च को कवरत्ती और अन्य नौ बसे हुए द्वीपों पर "विरोध मार्च" का आह्वान किया था. मार्च से एक दिन पहले, जिला मजिस्ट्रेट, अस्कर अली, जो कि कलेक्टर भी हैं, ने भारतीय दंड संहिता की धारा 144 के तहत एक आदेश दिया जिसमें द्वीपों में कहीं भी सार्वजनिक सभा को प्रतिबंधित कर दिया गया. "कोई अस्कर अली या प्रफुल्ल पटेल अपनी मनमर्जी कैसे कर सकता है?" डॉक्टर ने पूछा.

फिलहाल लक्षद्वीप के निवासियों को अपनी परेशानियों का कोई अंत नहीं दिख रहा है. "विकास के नाम पर यह उत्पीड़न है," डॉक्टर ने कहा. “ये सभी उपाय इसलिए किए गए हैं ताकि स्थानीय लोगों की अर्थव्यवस्था चरमरा जाए. उनकी (पटेल की) मांगों को मान कर ही हम सब शांति से रह सकते हैं."


एम राजशेखर पत्रकार हैं जो ऊर्जा, पर्यावरण, कुलीनतंत्र और भारतीय लोकतंत्र पर लिखते हैं. उनकी किताब, "डेस्पिट द स्टेट: व्हाई इंडिया लेट्स इट्स पीपल डाउन एंड हाउ दे कोप" 2021 में वेस्टलैंड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुई है.