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लोकसभा चुनावों के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश का इंचार्ज बन कर प्रियंका गांधी के राजनीतिक क्षितिज पर प्रकट होते ही दिल्ली और मुख्यधारा की मीडिया में तूफान आ गया. जमीनी हकीकत यह है कि उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्य तौर पर ब्राह्मणों का समर्थन मिल रहा है.
राज्य में ब्राह्मणों की अनुमानित आबादी 10 से 12 प्रतिशत है और प्रदेश के पूर्वी भाग में इनकी स्थिति मजबूत है. उम्मीद थी कि कांग्रेस पार्टी प्रियंका गांधी को वाराणसी संसदीय क्षेत्र से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मैदान में उतारेगी लेकिन पार्टी ने अजय राय को टिकट दे दिया. आबादी के लिहाज से वाराणसी में ब्राह्मण दूसरे नंबर पर हैं. इस के बावजूद प्रियंका गांधी का राजनीति में आना पारंपरिक रूप से कांग्रेस का वोट बैंक रहे ब्राह्मण समुदाय को वापस पार्टी में लाने का महत्वपूर्ण प्रयास है जो पिछले सालों में बीजेपी के करीब चला गया है.
सभी पार्टियों के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण महत्वपूर्ण हैं. पारंपरिक रूप से कांग्रेस का यह वोट बैंक पिछले सालों में बीजेपी सहित अन्य दलों के करीब गया है. 2007 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों ने बसपा की जीत में असरदार भूमिका निभाई थी. इस बीच ठाकुर समुदाय के योगी आदित्यनाथ को आगे बढ़ाने से बीजेपी के ब्राह्मण और ठाकुर समर्थकों के बीच दरार पैदा हो गई है. इसके अतिरिक्त सपा और बसपा गठबंधन ने अन्य पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम और दलित मतदाताओं पर ध्यान दिया है जिससे कांग्रेस को ब्राह्मणों को अपने पक्ष में करने का अवसर मिला है. इस हिसाब से प्रियंका का राजनीति में प्रवेश करना सफल रहा है.
इस साल मार्च में मैंने पूर्वी उत्तर प्रदेश के सात जिलों का दौरा किया. ये जिले हैं- बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, भदोई, सलेमपुर, देवरिया और मऊ. ये सभी जिले अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्र हैं और इनमें बड़ी संख्या में ब्राह्मण मतदाता हैं. इन सभी जिलों में प्रियंका के लिए समर्थन बढ़ता दिखाई दे रहा है. लग तो रहा है कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी ब्राह्मणों को पार्टी के करीब लाने में सफल हुईं हैं. वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक जानकार अमृत पांडे के अनुसार, इस समुदाय के अंदर “बीजेपी के खिलाफ बोलने को लेकर डर था” लेकिन “अब यह समुदाय राज्य और केन्द्र में सत्तारूढ़ दल के खिलाफ मुखर होने लगा है. यह दिखाता है कि यह लोग अपने मार्गदर्शन के लिए किसी के इंतजार में थे और प्रियंका ने उन्हें राह दिखाई है”.
अपने उत्कर्ष काल में कांग्रेस को ब्राह्मणों, दलित और मुसलमानों का समर्थन प्राप्त था. 1990 के आरंभ तक उत्तर प्रदेश का ब्राह्मण तबका निर्विवाद रूप से कांग्रेस का समर्थक था. लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंश और बीजेपी और आरएसएस के उग्र राष्ट्रवाद के उदय के बाद यह समीकरण बदल गया. राष्ट्रीय फलक पर बीजेपी के उदय के बाद ब्राह्मण बीजेपी के करीब हो गए. बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ब्राह्मण थे और उन्होंने इस समुदाय को कांग्रेस से दूर कर पार्टी के करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
2014 के आम चुनावों में राज्य के ब्राह्मण मतदाताओं ने बीजेपी का समर्थन किया था और उस साल कांग्रेस ने अपने इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन किया था. सलेमपुर के एक निजी स्कूल के शिक्षक संजय सिंह ने बताया कि 2014 के चुनावों में मोदी लहर और कांग्रेस के सबसे खराब प्रदर्शन के बावजूद “गांवों में ऐसे परिवार थे, खासकर वरिष्ठ नागरिकों वाले परिवार, जो आजादी के बाद से ही निरंतर कांग्रेस को सर्मथन देते आए हैं”.
सिंह के इस दावे की मेरी रिपोर्टिंग में पुष्टि हुई. स्पष्ट है कि कांग्रेस के प्रति ब्राह्मणों का समर्थन पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है. इस समुदाय का कांग्रेस के समर्थन के इतिहास को देखने से पता चलता है कि इन्हें लगता है कि यह पार्टी उनके हितों पर ध्यान देती है. बलिया के गंगापुर ब्लॉक निवासी केशव पांडे ने मुझे बताया, “आज भी ब्राह्मण अपनी शक्ति के रूप में कांग्रेस को देखते हैं”. 70 वर्षीय कवि और लेखक प्रभात पांडे ने भी यही बात कही. प्रभात का कहना है, “जो लोग पारंपरिक रूप से, भावनात्मक अथवा पारिवारिक कारणों से, कांग्रेस से जुड़े थे उन लोगों को प्रियंका के आने से खुशी हो रही है.” वह आगे कहते हैं कि प्रियंका के आने से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को “नैतिक बल” मिला है. इन लोगों को पार्टी का नेतृत्व पहले महत्व नहीं देता था. उन्होंने जोड़ा, “अब यह लोग अपनी गुफा से बाहर आकर कांग्रेस को दुबारा मजबूत बनाने में प्रियंका का साथ दे रहे हैं”.
अमृत का मानना है कि प्रियंका की तीन दिवसीय गंगा यात्रा ने, जिसमें वह प्रयागराज से वाराणसी के बीच स्थित विभिन्न गांवों में गईं थीं, “बहुत कुछ साबित” कर दिया है. अमृत ने बताया कि वे नाराज लोग जो बीजेपी और कांग्रेस को वोट नहीं दे रहे थे, आज अपनी भावना को व्यक्त करने की स्थिति में हैं”. अमृत ने आगे बताया कि ब्राह्मणों के बीच प्रियंका के बढ़ते आकर्षण का कारण 2014 के चुनावों में बीजेपी का ओबीसी मतदाताओं को रिझाना भी है. बीजेपी में “अगड़ी ऊंची जाति की जगह अगड़ी पिछड़ी जाति का नेतृत्व स्थापित हो गया है”.
प्रियंका के चुनाव प्रचार को क्षेत्रीय मीडिया में भी खूब जगह मिली. जब से वह पूर्वी उत्तर प्रदेश की इंचार्ज और कांग्रेस की महासचिव बनीं हैं तब से वह लगातार राज्य के कई दैनिक अखबारों के पहले पन्ने पर बनी हुईं हैं. ऐसा उन अखबारों में भी है जो बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं और ऐसा नरेन्द्र मोदी के प्रचार वाले दिनों में भी हुआ.
वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह ने मुझे बताया कि प्रियंका का अभियान गति पकड़ रहा है. सिंह के मुताबिक “जनता नाखुश है और मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए बीजेपी के पास मुद्दे नहीं हैं. आज स्थिति 2014 जैसी नहीं है और माहौल बीजेपी के पक्ष में नहीं है. ऐसे में ब्राह्मण बहुल वाले इस क्षेत्र में प्रियंका को लाने से कांग्रेस को लाभ होगा”. हालांकि सिंह को शक है कि यह सफलता मतों में प्रकट होगी लेकिन यह कांग्रेस को जीवनदान जरूर देगी.
जिन जिलों का मैंने दौरा किया वहां के लोगों का मानना था कि प्रियंका की उपस्थिति से न केवल उन सीटों पर जहां प्रियंका और अन्य ब्राह्मणों चुनाव लड़ रहे हैं फायदा होगा बल्कि पार्टी के सभी उम्मीदवारों को भी इसका फायदा मिलेगा. भदोई के 80 वर्षीय निवासी रामशंकर मिश्रा का कहना है, “लोगों का कहना है कि ब्राह्मण वोटर हमेशा ब्राह्मण उम्मीदवार को वोट देता है”. वह कहते हैं, “2014 में मोदी लहर और कांग्रेस के खिलाफ माहौल था लेकिन इस बार यह स्थिति बदल रही है और इस बार ब्राह्मण वोटर बीजेपी से छिटक कर कांग्रेस की झोली में जा सकता है. लेकिन यह टिकटों के बंटवारे पर निर्भर है”.
देवरिया के रहने वाले राजनीतिक जानकार संजीव शुक्ला मानते हैं कि “पार्टी को ऊंची जातियों का समर्थन हासिल करने के लिए ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट देना होगा”. शुक्ला कहते हैं, “यदि पार्टी ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट देती है तो वह अच्छा प्रदर्शन करेगी क्योंकि तीन दशक बाद पहली बार प्रियंका ने राज्य में कांग्रेस की उपस्थिति दर्ज कराई है”.
बलिया के जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के डीन राजीव कुमार का कहना है कांग्रेस को इस बात का लाभ लेना चाहिए कि सपा और बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियां ब्राह्मणों की अनदेखी कर रही हैं. कुमार ने बताया, “सपा ओबीसी और बसपा दलितों की राजनीति कर रहीं हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन दोनों पार्टियों का जिन कारणों से प्रभाव नहीं है उनमें से एक कारण यह है कि सपा ने ब्राह्मणों की अनदेखी की है. इसलिए इन दोनों पार्टियों के खिलाफ ब्राह्मणों समुदाय में रोष है”. कुमार ने आगे बताया, “प्रियंका ने ऐसा अवसर बनाया है जो कांग्रेस को फायदा पहुंचाएगा. उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन को हासिल करने में यह कांग्रेस के काम आएगा”.
पूर्वी उत्तर प्रदेश की अधिकांश सीटों पर अंतिम चरण में 19 मई को मतदान होना है. इस कारण प्रियंका के पास अभी भी इस क्षेत्र के अन्य इलाकों में प्रचार करने का मौका है. गलगोटिया विश्वविद्यालय में पॉलिटिकल साईंस के प्रमुख श्रीश पाठक का मानना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका की नियुक्ति पार्टी की लंबी योजना का हिस्सा है. “लोकसभा चुनावों से ठीक पहले प्रियंका को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में न उतार कर पूर्वी उत्तर प्रदेश में उतारना कांग्रेस की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है. जबकि दिल्ली के पास के पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मैनेज करना तुलनात्मक रूप से आसान होता”. वह कहते हैं, “उनके भाषणों से साफ समझ आता है कि वह यहां दीर्घकालीन आधार बनाने के लिए काम कर रही हैं जिससे पार्टी को आने वाले चुनावों में फायदा मिलेगा. चुनावों में उत्तर प्रदेश में मिली हार दिल्ली की राह मुश्किल कर देती है”.
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