18 जून को पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की कैबिनेट ने कांग्रेस के दो धनकुबेर विधायकों के बेटे अर्जुन प्रताप सिंह बाजवा और भीष्म पांडे को सरकारी नौकरी देने का फैसला किया. ये नियुक्तियां 2022 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से पहले पंजाब कांग्रेस के भीतर चल रही उथल-पुथल के बीच हुई हैं. सरकार द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि नियुक्तियां इसलिए की गईं क्योंकि 33 साल पहले उनके दादा और कांग्रेस नेताओं ने आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में अपनी जान गंवा दी थी. लेकिन जनवरी 2014 में प्रकाशित हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमरिंदर ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था कि अर्जुन के दादा आतंकवादियों के हाथों नहीं बल्कि 1987 में तस्करों के एक समूह के आंतरिक झगड़े में मारे गए थे." रिपोर्ट में कहा गया कि अमरिंदर और अर्जुन के चाचा, कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा दोनों ने इस पत्र में दी जानकारी की पुष्टि करने से इनकार कर दिया.
अमरिंदर को कई अन्य कारणों से और यहां तक कि अपने स्वयं के मंत्रिमंडल से भी इन नियुक्तियों को लेकर ढेरों प्रतिक्रियाएं मिली है. 1980 और 1990 के दशक में आतंकवादियों द्वारा मारे गए हजारों अन्य लोगों के पोते-पोतियों को इस तरह नौकरी नहीं मिली हैं. अनुकंपा मुआवजा भी सीधे तौर पर आश्रितों को दिया जाता है, न कि मृतक के पोते-पोतियों को. यहां तक कि थोड़ी सी पेंशन प्राप्त करने के लिए भी विधवाओं को अक्सर संघर्ष करना पड़ता है. वकील राजविंदर सिंह बैंस के अनुसार इन नियुक्तियों को किसी भी अदालत में सही नहीं ठहराया जा सकता है. अमरिंदर को 1995 में आतंकवादियों द्वारा मारे गए कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री बेंअत सिंह के पोते गुर इकबाल सिंह को 2017 में पंजाब पुलिस का उप-अधीक्षक नियुक्त करने पर भी इसी तरह की आलोचना का सामना करना पड़ा था. गुर इकबाल कांग्रेस के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के भाई हैं. इन सभी कारणों के बावजूद ऐसी नियुक्तियां करने की उनकी जिद उनकी मंशा पर सवाल उठाती है.
18 जून को सरकार द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख है कि कैबिनेट ने भीष्म की राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार (ग्रुप-बी) और अर्जुन की पंजाब पुलिस में अधीक्षक (ग्रुप बी) के रूप में नियुक्ति को मंजूरी दी है. प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि यह नियुक्तियां अनुकंपा से जुड़ी नीतियों में एक बार की रियायत के साथ की गई हैं. लेकिन सरकार का यह कदम उमेश कुमार नागपाल बनाम हरियाणा राज्य, अनुकंपा के आधार पर की गई नियुक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले के अनुरूप नहीं है. 1994 के इस फैसले में कहा गया था कि इस प्रकार अनुकंपा के आधार पर दी जाने वाली नौकरी का उद्देश्य परिवार को अचानक पैदा हुए संकट से उबारने में मदद करना है. इसके अलावा, नौकरी पर रहते हुए किसी कर्मचारी की मृत्यु होने मात्र से उसका परिवार उसकी नौकरी या आजीविका के इस साधन का हकदार नहीं बनाता है.
संबंधित सरकार या सार्वजनिक प्राधिकरण मृतक के परिवार की वित्तीय स्थिति की जांच करती है और नौकरी तभी दी जाती है जब अनुकंपा के प्रावधान के अनुसार परिवार आर्थिक संकट को झेल नहीं पाता है. अर्जुन और भीष्म की पृष्ठभूमि पर गौर करने से पता चलता है कि वे दोनों ही आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी धनवान और रौबदार खानदानों से हैं. भीष्म के पिता राकेश पांडे पंजाब में छह बार से विधायक रहे हैं और पंजाब कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी हैं. राकेश के चुनावी हलफनामे से पता चलता है कि उनकी संपत्ति 2.25 करोड़ रुपए से अधिक है. राकेश ने मुझे बताया कि उनका बेटा 29 वर्षीय स्नातक है और उसने लगभग एक साल पहले इस पद के लिए आवेदन दिया था.
नवंबर 2019 की एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार अर्जुन एक मॉडल, अभिनेता और कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, "बाजवा ने प्रभुदेवा की फिल्म सिंह इज ब्लिंग में सहायक निर्देशक के रूप में काम किया है और वह पंजाब की जिला परिषद के सबसे कम उम्र के सदस्य हैं." इस साल जून में गुरदासपुर जिले के एक प्रशासनिक अधिकारी ने में मुझे बताया कि वह श्री हरगोबिंदपुर की जिला परिषद के सदस्य हैं. अर्जुन कादियान विधानसभा क्षेत्र के विधायक फतेह जंग बाजवा के बेटा हैं. फतेह के 2017 के चुनावी हलफनामे में बताया गया है कि उनकी और उनकी पत्नी की चल और अचल संपत्ति 31 करोड़ रुपए से अधिक है. अर्जुन कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य प्रताप के भतीजे भी हैं. कांग्रेस की प्रदेश इकाई के कई लोगों ने प्रताप और अमरिंदर दोनों की तीखी आलोचना की है. ऐसी रिपोर्ट भी सामने आई थी कि नियुक्ति से ठीक पहले मुख्यमंत्री ने प्रताप से मुलाकात की थी लेकिन दोनों ने ऐसी किसी मुलाकात से इनकार किया है.
1987 में घटी अलग-अलग घटनाओं में आतंकवादियों ने भीष्म और अर्जुन के दादा, जोगिंदर पांडे और सतनाम सिंह बाजवा को मार दिया था. जोगिंदर और उनके एक अंगरक्षक की 19 जनवरी 1987 को लुधियाना में हत्या कर दी गई थी. वह उस समय पंजाब प्रदेश कांग्रेस के महासचिव थे और उससे पहले विधायक और राज्य मंत्री भी रह चुके थे. सतनाम एक कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने 1960 के दशक में पंजाब के मंत्री के रूप में कार्य किया था. इस मामले से संबधित एक प्रेस रिपोर्ट के अनुसार 10 जुलाई 1987 में सतनाम की अमृतसर में उनके खेत में हत्या कर दी गई थी. उनके अलावा वहां मारे गए लोगों में अमृतसर के जगदेव कलां गांव के सरपंच हरभजन सिंह, उनके दो चचेरे भाई- पाल सिंह पहलवान और बीर सिंह और दो अंगरक्षक भी शामिल थे.
हरभजन के परिवार के साथ बातचीत में इस बात का पता चला कि अर्जुन और भीष्म को दी गई नौकरियों पर इतने सवाल क्यों उठ रहे हैं. उनके भाई और दो बहुओं के अनुसार हरभजन की पत्नी जसबीर कौर को उनकी मृत्यु के बाद मामूली पेंशन दी गई. उनकी बहुओं में से एक परमजीत कौर ने कहा, “उन्हें अपने पूरे जीवन में प्रति माह 1500 रुपए मिलते थे, जिसे बाद में 2500 रुपए और फिर राजिंदर कौर भट्टल के मुख्यमंत्री रहते हुए 5000 रुपए प्रति माह कर दिया गया.” अस्सी साल के हो चुके जसबीर, परमजीत के साथ ही रहते हैं. परमजीत ने कहा, "इसके अलावा, मेरे पति और मेरे बच्चों को किसी भी सरकार से कोई मुआवजा या और कोई सहायता नहीं मिली है." दूसरी बहू निर्मल कौर ने मुझे बताया कि उसके पति गुरबेज सिंह को अनुकंपा के आधार पर एक स्कूल में क्लर्क की नौकरी मिली थी. उन्होंने बताया कि पति की मृत्यू के बाद उन्हें चपरासी की नौकरी दी गई. उन्होंने कहा, "मेरे एक बेटे ने पिछले साल अपनी 12वीं पास की है. और हम हमेशा डर में रहते थे लेकिन कभी कोई सुरक्षा या आश्वासन नहीं मिला."
हरभजन के छोटे भाई और आम आदमी पार्टी की किसान शाखा के उपाध्यक्ष कुलदीप सिंह धालीवाल ने मुझे हमले में मारे गए उनके दो चचेरे भाइयों के बारे में बताया, "मेरे चचेरे भाइयों को कुछ नहीं मिला. एक परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो गया, जबकि दूसरे परिवार को बहुत नुकसान उठाना पड़ा था और वे काम की तलाश में हांगकांग चले गए." सतनाम के पोते को निरीक्षक नियुक्त करने की मंजूरी मिल गई है. अपनी पहचान को छुपाए रखने की शर्त पर मुझसे बात करने वाले भारतीय पुलिस सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया कि इस तरह सीधे तौर पर निरीक्षक की भर्ती का कोई प्रावधान नहीं है. पंजाब पुलिस के नियमों के अनुसार ऐसे पद केवल पदोन्नति के जरिए ही भरे जाते हैं. उन्होंने कहा, "भर्ती केवल सिपाही और उप-निरीक्षक के स्तर पर होती है."
बैंस ने मुझे बताया कि गुर इकबाल की नियुक्ति भी पंजाब पुलिस सेवा नियम 1959 का उल्लंघन है और उनके परिवार को अनुकंपा पर की गई इस तरह की नियुक्ति की आवश्यकता नहीं है. 2017 में तरनतारन के प्रवीण कुमार ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में गुर इकबाल की नियुक्ति को चुनौती दी थी. अर्जुन और भीष्म को दी गई नौकरियों का जिक्र करते हुए बैंस ने कहा, "लगता है यह सरकार देर से जागती है और उसने दूसरी बार कानून और संविधान को किनारे रखते हुए उन लोगों को नियुक्ति दी है जिन्हें न तो सरकार की दया और न ही सहानुभूति की जरूरत है." उन्होंने आगे कहा, "ऐसी नियुक्तियां राज्य के कानून के खिलाफ हैं जिसमें कहा गया है कि सभी सार्वजनिक नियुक्तियां योग्यता के आधार पर होनी चाहिए और प्रत्येक योग्य व्यक्तियों को समान अवसर दिए जाने चाहिए." भीष्म और अर्जुन की नियुक्ति की घोषणा करने वाली प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख किया गया था, "उनके परिवारों के बलिदान को देखते हुए, मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे लोगों के बच्चों या पोते-पोतियों के लिए उनकी सरकार प्रत्येक मामले पर गौर करते हुए मुआवजे के तौर पर दी जाने वाली नियुक्ति को लेकर विचार करेगी." 10 जुलाई 1987 की मामले से जुड़ी एक प्रेस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है ऐसे मामलों की एक बड़ी संख्या है. पुलिस के अनुसार आतंकवादियों ने उस वर्ष 544 लोगों को मार डाला था.
जब मैंने राकेश से मामले को लेकर उठ रही प्रतिक्रियाओं के बारे में बात की, तो वह बचाव में ऊतर आए. उन्होंने कहा कि परमराज सिंह उमरानंगल, जिनके पिता को 1987 में आतंकवादियों ने गोली मार दी थी, को उसी वर्ष डीएसपी के पद पर नियुक्त किया गया था. इस साल की शुरुआत में, ड्रग तस्करों के साथ संबंध होने पर उमरानंगल को निलंबित कर दिया गया था. राकेश ने कहा, "अगर सरकार कोविड-19 से जान गंवाने वालों के बच्चों को गोद ले सकती है, तो इसका मतलब यह नहीं होता है कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के बच्चों को किसी चीज का अधिकार नहीं हैं. हमने अपने पिता की मृत्यु के बाद पेंशन या किसी और चीज का कोई लाभ नहीं लिया." मैंने फतेह को कई बार फोन और मैसेज किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. प्रताप ने तब से कई बार फतेह और राकेश दोनों से नौकरी के प्रस्ताव को छोड़ने का अनुरोध किया है.
पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक सीआरपीएफ के साथ मिलकर आतंकवाद विरोधी अभियानों का नेतृत्व करने वाले सरबदीप सिंह वर्क ने कहा कि पंजाब में जिस समय आतंकवाद का दौर था उस समय इस तरह की नियुक्तियां आम थीं. वर्क ने कहा, “उन दिनों इस तरह नियुक्तियां करना सही भी लगता था क्योंकि सरकार को तुरंत लोगों को संदेश देना होता था कि वह आतंकवाद से लड़ने वालों के साथ खड़ी है.” उन्होंने आगे कहा कि जब वह पंजाब पुलिस में नौकरी कर रहे थे तब जूलियो फ्रांसिस रिबेरो इसका नेतृत्व कर रहे थे. “लेकिन परमराज सिंह उमरानंगल की नियुक्ति के तुरंत बाद रिबेरो को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह चयनात्मक रूप से काम करने लगे. उन्होंने बिना योग्यता के ऐसी नियुक्तियों को उदारतापूर्वक नहीं करने का निर्णय लिया. 30 साल से अधिक समय के बाद ऐसी नियुक्तियों का कोई मतलब नहीं है."
इन नियुक्तियों के कारण अमरिंदर को हर तरफ से विरोध का सामना करना पड़ रहा है. 18 जून को जिस दिन नियुक्तियों की घोषणा की गई थी, पंजाब सरकार के पांच राज्य मंत्रियों- रजिया सुल्ताना, सुखजिंदर सिंह रंधावा, सुखबिंदर सिंह सरकारिया, तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा और चरणजीत सिंह चन्नी ने कथित तौर पर कैबिनेट की बैठक में इस फैसले का विरोध किया था. अगले दिन पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़, दो विधायकों- कुलजीत सिंह नागरा और अमरिंदर सिंह राजा वारिंग- और पंजाब युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बृन्दर ढिल्लों ने भी इस फैसले को वापस लेने की मांग की. लेकिन अभी तक अमरिंदर ने इस कदम को वापस लेने से इनकार किया है, जबकि हर साल इस तरह की प्रतिष्ठित सरकारी नौकरियों पाने के लिए हजारों लोग कड़ी मेहनत करते हैं और इन नौकरियों के लिए होड़ लगी रहती है. अमरिंदर ने नियुक्तियों का बचाव करते हुए कहा, "उनके परिवारों ने जो बलिदान दिया है, यह बस उसका आभार व्यक्त करने के लिए छोटा सा मुआवजा है.”
मुख्यमंत्री को विपक्षी नेताओं के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है. अमरिंदर के हर घर में नौकरी देने के वादे वाले नारे का जिक्र करते हुए आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान ने मुझे बताया, “घर-घर पक्की नौकरी देने का वादा करके उन्होंने सिर्फ तीन विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को ही नौकरी दी. यह ऐसी बात हो गई कि अपनों के लिए दावतें देते हैं और बाकी लोगों के लिए सिर्फ संघर्ष. यह अनुकंपा पर दी जाने वाली नियुक्तियों के प्रावधानों का घोर उल्लंघन है." मान ने यह भी बताया कि कैसे पंजाब में अस्थायी शिक्षक पक्की नौकरीयों और वेतन में वृद्धि की मांग को लेकर विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि ये नियुक्तियां ऐसे समय में की गई हैं, जब शिक्षक सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए पानी के टैंकरों पर चढ़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं. उन्होंने आगे कहा, “शिक्षकों पर 6000 रुपए से अधिक वेतन मांगने पर लाठीचार्ज किया जा रहा है. और दूसरी तरफ नेताओं के पोते-पोतियों को योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों को छीनते हुए थाली में परोसकर नौकरी दी जा रही है.” कुलदीप ने कहा कि सभी पीड़ितों के परिवारों को ऐसी नियुक्तियां और मुआवजा समान रूप से देना चाहिए. उन्होंने आगे कहा, "यह सीधी बात है कि आप जो कुछ भी देना चाहते हैं, उसे सभी को बराबर रूप से दें, सिर्फ नेताओं के रिश्तेदारों को ही न दें.”