गाजीपुर मंडी के कसाइयों को चुनाव में भरोसा नहीं, कहा “हमारे लिए कोई काम नहीं करता”

दशकों से कुरैशी कसाइयों को हाशिए पर डाला गया है और इसके पीछे राजनीतिक उदासीनता एक बड़ी वजह है.
सरवना भारती एबी/कारवां
दशकों से कुरैशी कसाइयों को हाशिए पर डाला गया है और इसके पीछे राजनीतिक उदासीनता एक बड़ी वजह है.
सरवना भारती एबी/कारवां

छह सिंतबर 2018 को पोल्ट्री के काम से जुड़े 38 साल के कसाई हनीफ कुरैशी पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर मुर्गा मंडी के चिकन मार्केट में काम कर रहे थे. सुबह 9 बजे लगभग 50 की संख्या में पुलिस वालों ने मार्केट पर धावा बोला और पोल्ट्री से जुड़े कसाइयों को बाहर निकालना शुरू कर दिया. हनीफ ने मुझे बताया, “उन्होंने (पुलिस वालों ने) कहा कि सारी कटाई बंद कर दो वरना हम तुम्हें काट डालेंगे.” मुर्गा मंडी में काम करने वाले हजारों लोगों में हनीफ भी हैं. ये लोग कसाई और मजदूर हैं जो मवेशियों और मांस को लाते ले-जाते हैं. इनमें से ज्यादातर कामगार कुरैशी समुदाय से हैं. यह एक पिछड़ा मुस्लिम समुदाय है जो मुख्य तौर पर गोश्त का व्यापार करता है. हनीफ ने कहा, “हम कई पीढ़ियों से यह काम करते आए हैं; हम बस यही कर सकते हैं. अब जब उन्होंने हमें बाहर फेंक दिया तो ऐसे में हम क्या करें?”

पिछले साफ फरवरी में गौरी मौलेखी ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. वह भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की सदस्य हैं, जो पर्यावरण मंत्रालय को सलाह देने वाली एक वैधानिक इकाई है. याचिका में मांग की गई थी कि मुर्गा मंडी में सभी कसाई का काम बंद किया जाए क्योंकि वह बाजार अवैध रूप से चल रहा था. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दो महीने बाद एक रिपोर्ट सौंपी. इसमें बाजार में होने वाले काम के मामले में कई नियमों के उल्लंघनों की बात थी. उदाहरण के लिए- बाजार में जो बेकार चीजें बच जाती थीं उनके ट्रीटमेंट की सुविधा नहीं थी. वहीं, इसके पास के बोरवेल से पानी खींचने की अनुमति भी नहीं थी. अगस्त के महीने में पूर्वी क्षेत्र के लिए उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट ने दिल्ली कृषि विपणन बोर्ड को क्षेत्र में अवैध रूप से चल रहे काम को रोकने का निर्देश दिया. तभी से पूर्वी दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस ने मुर्गी काटे जाने के काम को रोकने के लिए यहां कई छापे मारे हैं. 29 सितंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इलाके में अभी भी इस तरह का कुछ काम जारी है और तुरंत इसे रोकने का आदेश सुना दिया.

एक तरफ जहां सरकारी अधिकारियों ने लगातार इन पर प्रतिबंध लगाने का काम किया है, कुछ ऐसे भी हैं जो कुरैशियों की उस मुख्य चिंता पर बात करते हैं जो रोजगार के नुकसान के बारे में है. उनकी दुर्दशा पूर्वी दिल्ली चुनाव क्षेत्र के लिए इस लोकसभा चुनाव में कोई मुद्दा नहीं लगती है. यहां से लड़ रहे मशहूर उम्मीदवारों की वजह से इस क्षेत्र को बहुत हो-हंगामे वाली मीडिया कवरेज मिली है. यहां से आम आदमी पार्टी की आतिशी लड़ रही हैं जिन्हें अक्सर दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था सुधारने का श्रेय दिया जाता है, वहीं भारतीय जनता पार्टी से पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर चुनाव लड़ रहे हैं. आतिशी, गंभीर या कांग्रेस उम्मीदवार अरविंदर सिंह लवली ने अपने चुनाव अभियान में इस मुद्दे को नहीं उठाया.

दशकों से कसाइयों को एक खास तरीके से हाशिए पर पहुंचाया गया है और इसके पीछे राजनीतिक उदासीनता एक बड़ी वजह है. 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि उत्तरी दिल्ली में ईदगाह बूचड़खाने को बंद कर दिया जाए. यहां हजारों कुरैशी कसाई का काम करते थे और वे इस आदेश के चलते बेरोजगार हो गए. गाजीपुर में उनके व्यापार को बंद किए जाने की वजह से समुदाय को दूसरा झटका लगा है. इस समुदाय के कई सदस्यों का सरकारी संस्थानों और चुनाव से भी भरोसा उठ गया है. 28 वर्षीय कसाई हमजा कुरैशी ने मुझसे कहा, "वोट देकर क्या होगा?"

गाजीपुर की वर्तमान स्थिति ईदगाह के बंद होने के जैसी ही है जो 1900 के दशक की शुरुआत से चालू थी. सदी के अंत तक ईदगाह के खिलाफ कई जनहित याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें दावा किया गया कि यह जगह गंदी है और स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक भी. याचिकाकर्ताओं में धार्मिक संगठन श्री सनातन धर्म सभा और मेनका गांधी भी शामिल थीं जो अब महिला और बाल विकास मंत्री हैं. पिछले साल अदालत पहुंचने वाली याचिकाकर्ता मौलेखी भी गांधी की करीबी सहयोगी हैं. ईदगाह को 2009 में बंद कर दिया गया और मशीन आधारित एक नया कसाईखाना गाजीपुर में खोला गया. समय के साथ इलाके में कसाईखाने के पास जानवरों का एक बाजार उठ खड़ा हुआ.

अहान पेनकर कारवां के फेक्ट चेकिंग फेलो हैं.

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