छह सिंतबर 2018 को पोल्ट्री के काम से जुड़े 38 साल के कसाई हनीफ कुरैशी पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर मुर्गा मंडी के चिकन मार्केट में काम कर रहे थे. सुबह 9 बजे लगभग 50 की संख्या में पुलिस वालों ने मार्केट पर धावा बोला और पोल्ट्री से जुड़े कसाइयों को बाहर निकालना शुरू कर दिया. हनीफ ने मुझे बताया, “उन्होंने (पुलिस वालों ने) कहा कि सारी कटाई बंद कर दो वरना हम तुम्हें काट डालेंगे.” मुर्गा मंडी में काम करने वाले हजारों लोगों में हनीफ भी हैं. ये लोग कसाई और मजदूर हैं जो मवेशियों और मांस को लाते ले-जाते हैं. इनमें से ज्यादातर कामगार कुरैशी समुदाय से हैं. यह एक पिछड़ा मुस्लिम समुदाय है जो मुख्य तौर पर गोश्त का व्यापार करता है. हनीफ ने कहा, “हम कई पीढ़ियों से यह काम करते आए हैं; हम बस यही कर सकते हैं. अब जब उन्होंने हमें बाहर फेंक दिया तो ऐसे में हम क्या करें?”
पिछले साफ फरवरी में गौरी मौलेखी ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. वह भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की सदस्य हैं, जो पर्यावरण मंत्रालय को सलाह देने वाली एक वैधानिक इकाई है. याचिका में मांग की गई थी कि मुर्गा मंडी में सभी कसाई का काम बंद किया जाए क्योंकि वह बाजार अवैध रूप से चल रहा था. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दो महीने बाद एक रिपोर्ट सौंपी. इसमें बाजार में होने वाले काम के मामले में कई नियमों के उल्लंघनों की बात थी. उदाहरण के लिए- बाजार में जो बेकार चीजें बच जाती थीं उनके ट्रीटमेंट की सुविधा नहीं थी. वहीं, इसके पास के बोरवेल से पानी खींचने की अनुमति भी नहीं थी. अगस्त के महीने में पूर्वी क्षेत्र के लिए उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट ने दिल्ली कृषि विपणन बोर्ड को क्षेत्र में अवैध रूप से चल रहे काम को रोकने का निर्देश दिया. तभी से पूर्वी दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस ने मुर्गी काटे जाने के काम को रोकने के लिए यहां कई छापे मारे हैं. 29 सितंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इलाके में अभी भी इस तरह का कुछ काम जारी है और तुरंत इसे रोकने का आदेश सुना दिया.
एक तरफ जहां सरकारी अधिकारियों ने लगातार इन पर प्रतिबंध लगाने का काम किया है, कुछ ऐसे भी हैं जो कुरैशियों की उस मुख्य चिंता पर बात करते हैं जो रोजगार के नुकसान के बारे में है. उनकी दुर्दशा पूर्वी दिल्ली चुनाव क्षेत्र के लिए इस लोकसभा चुनाव में कोई मुद्दा नहीं लगती है. यहां से लड़ रहे मशहूर उम्मीदवारों की वजह से इस क्षेत्र को बहुत हो-हंगामे वाली मीडिया कवरेज मिली है. यहां से आम आदमी पार्टी की आतिशी लड़ रही हैं जिन्हें अक्सर दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था सुधारने का श्रेय दिया जाता है, वहीं भारतीय जनता पार्टी से पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर चुनाव लड़ रहे हैं. आतिशी, गंभीर या कांग्रेस उम्मीदवार अरविंदर सिंह लवली ने अपने चुनाव अभियान में इस मुद्दे को नहीं उठाया.
दशकों से कसाइयों को एक खास तरीके से हाशिए पर पहुंचाया गया है और इसके पीछे राजनीतिक उदासीनता एक बड़ी वजह है. 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि उत्तरी दिल्ली में ईदगाह बूचड़खाने को बंद कर दिया जाए. यहां हजारों कुरैशी कसाई का काम करते थे और वे इस आदेश के चलते बेरोजगार हो गए. गाजीपुर में उनके व्यापार को बंद किए जाने की वजह से समुदाय को दूसरा झटका लगा है. इस समुदाय के कई सदस्यों का सरकारी संस्थानों और चुनाव से भी भरोसा उठ गया है. 28 वर्षीय कसाई हमजा कुरैशी ने मुझसे कहा, "वोट देकर क्या होगा?"
गाजीपुर की वर्तमान स्थिति ईदगाह के बंद होने के जैसी ही है जो 1900 के दशक की शुरुआत से चालू थी. सदी के अंत तक ईदगाह के खिलाफ कई जनहित याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें दावा किया गया कि यह जगह गंदी है और स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक भी. याचिकाकर्ताओं में धार्मिक संगठन श्री सनातन धर्म सभा और मेनका गांधी भी शामिल थीं जो अब महिला और बाल विकास मंत्री हैं. पिछले साल अदालत पहुंचने वाली याचिकाकर्ता मौलेखी भी गांधी की करीबी सहयोगी हैं. ईदगाह को 2009 में बंद कर दिया गया और मशीन आधारित एक नया कसाईखाना गाजीपुर में खोला गया. समय के साथ इलाके में कसाईखाने के पास जानवरों का एक बाजार उठ खड़ा हुआ.
श्रम-आधारित कसाईखाने से मशीनीकरण की तरफ बढ़ने की वजह से ईदगाह कसाईखाने के अधिकतर श्रमिक बेरोजगार हो गए. एक शोधार्थी जरीन अहमद ने अगस्त, 2013 में इकॉनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में लिखा, "कुरैशी बिरादरी का कहना है कि बिरादरी के सिर्फ 25-30 लोगों को नए मशीनी बूचड़खाने में काम मिला है, जबकि पहले यहां 5000 लोग काम करते थे." इसके अलावा, उनमें से हर व्यक्ति रोजाना ईदगाह से 17 किलोमीटर दूर स्थित गाजीपुर आ-जा नहीं सकता. जिन लोगों का काम छूट गया सरकार ने उनके लिए कोई उपयुक्त प्रावधान नहीं किए. कसाई के काम में निपुण 22 वर्षीय आतिफ ने मुझे बताया, "मुसलमान को कौन काम देता है?"
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की सफाई के मुद्दे को स्वीकार करते हुए ईदगाह कसाईखाने को वहां से हटा दिया, लेकिन नई जगह पर भी इस मुद्दे का समाधान नहीं निकला है बल्कि पहले से ज्यादा जटिल कर दिया है. गाजीपुर कसाईखाने में भैंसों और मेमने का वध होता है न कि मुर्गियों का. विकल्पों की कमी के कारण कई पोल्ट्री कसाई, मुर्गा मंडी में स्लैब और स्टॉल पर मुर्गा काटते हैं. इसके अलावा नया कसाईखाना और मुर्गा मंडी गाजीपुर में कचरे के ढेर से 400 मीटर की दूरी से कम पर स्थित है.
मैंने जितने कसाइयों से बात की उनमें से अधिकतर ने कहा कि पिछले कुछ सालों में मांस का व्यापार पहले से कम हुआ है. उनमें से अधिकतर को कसाई के अलावा कोई दूसरा काम नहीं आता, इस वजह से अधिकतर लोग मजदूरी करने को मजबूर हैं. कसाई का काम छोड़ चुके मोइन कुरैशी ने मुझे नवंबर में बताया था कि वह मुर्गा मंडी में रोजाना काम की तलाश में आते थे. यहां वह जिंदा पशुओं को कसाई के पास ले जाते थे और शहर में मांस बांटने का काम करते थे. मैंने जिन दूसरे लोगों से बात की उन्होंने भी यही कहा लेकिन मोइन ने कहा कि उनके इस काम में कसाई के काम से कम मुनाफा है. उन्होंने कहा, "मैं रोजाना 300-400 रुपए कमाता था, अब मुझे रोजाना 150 रुपए मिलते हैं. मेरे दो बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं और मुझे अपने परिवार को भी पालना है. यह सब मैं कैसे कर सकता हूं."
हाल ही में कसाइयों को परिसर से हटा देने से पूरी मुर्गा मंडी प्रभावित हुई है, जो कभी मांस का बड़ा अड्डा थी. छापेमारी के पहले कुछ महीनों बाद, कसाई मार्केट से जिंदा पशु ले जाते थे, इसे कहीं और काटते और फिर इलाके में लाकर मांस बेचते थे. जब मैंने 28 नवंबर को इसका दौरा किया तो देखा कि लगभग 25 लोग जिंदा पशुओं की मार्केट के बाहर चिकन लेग पीस बेच रहे थे. कसाई का काम छोड़ मोबाइल दुकान चला रहे जावेद कुरैशी ने कहा, "यह काम तो खत्म हो गया है. सबको लगता है कि गंदा काम है."
31 वर्षीय कसाई आशकीन कुरैशी ने मुझे बताया, "यह ऐसी पहली मार्केट थी कि जितना भी माल आ जाए, वह सब खत्म हो जाए." प्रतिबंध के बाद लोगों ने मांस के लिए यहां आना बंद कर दिया. लोग शहर में दूसरे कसाइयों के पास जा रहे हैं." 22 वर्षीय मोहम्मद हातिम, जो चार साल से गाजीपुर में काम कर रहे हैं, ने मुझे बताया कि पशुओं के बाजार पर इसका असर पड़ता है. क्योंकि पहले कसाई उनके सबसे बड़े ग्राहक होते थे. अब उन्हें शहर के अलग-अलग हिस्सों में डिलीवरी का काम देखना पड़ता है. मैंने जिन कसाइयों से बात की उनका कहना था कि सरकार ने उनकी मदद नहीं की. लेकिन अब उन्होंने मुझे बताया कि कि ईडीएमसी ने मुर्गा मंडी में सफाई के मानकों पर खरा उतरने वाली 20 दुकानों को लाइसेंस दिए हैं. ईडीएमसी के वकील हेमंत जैन ने कहा कि यह मामला अदालत में है इसलिए वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. इन मानकों पर खरा उतरना महंगा है इसलिए इलाके के सिर्फ 5 अमीर कसाइयों ने परिसर में अपनी दुकानें शुरू की हैं. इनमें से एक आशकीन ने कहा कि कसाई छापेमारी से पहले ईडीएमसी को एक प्रतिशत "टैक्स" देते थे. आशकीन ने कहा कि ईडीएमसी के किए जाने वाले भुगतान के बाद भी उन्हें अपनी दुकान शुरू करने के लिए अपनी बचत का निवेश करना पड़ा.
दिल्ली मीट मार्चेंट एसोसिएशन या डीएमएमए कसाइयों को अपना काम चलाने के लिए एक साफ जगह उपलब्ध कराने पर काम कर रहा है. डीएमएमए के वकील संजय झा ने मुझे बताया कि 2013 में डीएमएमए ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें नई दिल्ली नगर परिषद और दक्षिण दिल्ली नगर निगम को अपने क्षेत्र में बूचड़खाना बनाने के आदेश देने की मांग थी. उन्होंने कहा, "नगर निगम का “सेक्शन 42-के” कहता है कि हर नगरपालिका में एक बूचड़खाना होना चाहिए. तो दक्षिण दिल्ली और उत्तर दिल्ली में क्यों नहीं बनाया जा रहा है."
जिन लोगों से मैंने बात की उनमें से अधिकतर ने कहा कि 2016 में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद से मांस लाना-लेजाना खतरनाक हो गया है. आतिफ के भाई, आसिफ कुरैशी, जो जिंदा पशु और मांस को लाते-लेजाते हैं ने कहा कि उत्तर प्रदेश से पशु लाते समय पुलिस उन्हें परेशान करती है. आसिफ ने पहले कहा कि कई ट्रांसपोर्टर पुलिसवालों को रिश्वत देते हैं और उसके बाद उन्हें इजाजत मिलती है. आसिफ ने कहा, "अब वे हमारी कार रोककर मुश्किलें खड़ी करते हैं." मोइन ने मुझे बताया, "यहां मोदी राज है इसलिए हमें सजा मिलेगी."
शोधार्थी अहमद ने अपनी किताब दिल्लीज मीटस्कैप्सः मुस्लिम बुचर इन ए ट्रांसफॉर्मिंग मेगा सिटी में लिखा कि "सफाई की बात मुसलमानों के प्रति घृणा और भेदभाव की गहरी जड़ों को छिपाने के लिए एक आवरण थी." ईदगाह के खिलाफ मामले में याचिकाकर्ता गांधी ने संकेत दिए कि ऐसे दृष्टिकोण पर भरोसा किया जा सकता है. इस साल 12 अप्रैल को गांधी ने एक चुनावी रैली में कहा था, "अगर मुसलमान मुझे वोट दिए बिना मेरे पास मदद या नौकरी मांगने आएंगे तो मन खट्टा होता है. तब मैं सोचूंगी, होने दो, इससे क्या फर्क पड़ता है. आखिर में यह भी तो लेन-देन का काम है."
गांधी के गैर-लाभकारी संगठन की ट्रस्टी मौलेखी गाजीपुर के कसाइयों के प्रति संवेदनशील नहीं दिखती हैं. जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने तुरंत कहा कि मुर्गा मंडी में बूचड़खाना अवैध है. नवंबर में उन्होंने मुझे बताया, "70-80 लोग आते हैं गाजीपुर से और रोना पीटना करते हैं." उनकी वकील प्रियंका बांगड़ी ने मुझे बताया कि मौलेखी की गाजीपुर बूचड़खाने और पशु मार्केट के खिलाफ याचिका को ईडीएमसी द्वारा बूचड़खाने चलाने के लिए लाइसेंस देने की शक्ति पर सवाल उठाने वाली याचिका के साथ मिला दिया गया.
मैंने जिन लोगों से बात की उन्होंने अपनी दुर्दशा के लिए सत्तारूढ़ पार्टी को जिम्मेदार ठहराया है, हालांकि उनका पूर्वी दिल्ली सीट पर चुनाव लड़ने वाले अन्य राजनीतिक दलों से भी मोहभंग हो गया है. किसी भी बड़े उम्मीदवार ने अपने प्रचार अभियान या घोषणापत्र में इस मुद्दे पर बात नहीं की है. पूर्वी दिल्ली से बीजेपी के प्रभारी वेद व्यास महाजन भी मौलेखी के विचारों से सहमत हैं. उन्होंने कहा, "जो लोग नियमों का पालन नहीं करते हम उन्हें कैसे काम करने दे सकते हैं? हमें स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए या नहीं? यह किसी धर्म या जाति के बारे में नहीं है." आप की उम्मीदवार आतिशी ने कहा कि वह पिछले एक साल से लोकसभा क्षेत्र के लोगों से मिल रही हैं, लेकिन जिन लोगों से मैंने बात की उन्होंने बताया कि कोई भी सियासी पार्टी उन तक नहीं पहुंची है. आप के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव अक्षय मराठे और कांग्रेस के प्रचार अभियान के मीडिया प्रभारी दुपांशु भारद्वाज ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है.
गाजीपुर में मैंने जिन कसाइयों से बात की उनमें से अधिकतर ने कहा कि इस बार वे वोट नहीं डालेंगे क्योंकि प्रशासन से उनका मोहभंग हो चुका है. 34 वर्षीय कसाई मोहम्मद दानिश ने मुझे बताया कि उन्होंने फैसला नहीं किया है कि वे किसे वोट देंगे लेकिन "बीजेपी को वोट जरूर नहीं देंगे." 42 वर्षीय कसाई वसीम कुरैशी उन कुछ लोगों में शामिल हैं जिन्होंने कहा कि वे एक पार्टी को समर्थन देंगे. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में आने के बाद से उनको परेशान किया जा रहा है और इस बार वे लोग आम आदमी पार्टी को वोट देंगे. कसाई का काम छोड़ चुके 28 वर्षीय मोहम्मद जहीर ने कहा, "वोट देना बेकार है सर, हमने चारों पार्टियों को देख लिया है, हमारे लिए कोई काम नहीं करता है."