पांच साल तक नरेन्द्र मोदी की जय-जयकार करने वाला मीडिया, जारी लोकसभा चुनावों में भी कुछ अलग करता नजर नहीं आ रहा है. फर्क सिर्फ इतना है कि अब मीडिया दबाव के बिना ऐसा कर रहा है. मीडिया में आने वाली अधिकांश खबरें चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन, विभाजनकारी बयानबाजी और चुनाव प्रचार में मोदी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली असभ्य भाषा से संबंधित हैं. लेकिन मीडिया है कि गुस्से वाले गैर-जरूरी तेवर में इन खबरों को दिखा रहा है. मोदी तो उसी भाषा में बोल रहे हैं जिसकी उम्मीद उनसे की जाती है. मोदी ऐसा कुछ नहीं कर रहे जो उनके चरित्र से मेल नहीं खाता है. उन्हें चुना ही उन लोगों ने है जो उनके मुखारबिंद से ऐसे ही शब्द सुनना पसंद करते हैं.
हम केवल उम्मीद ही कर सकते हैं कि कभी कोई संस्था इसे रोकने की हिम्मत दिखाएगी. लेकिन लगता है कि मोदी बहुत सोच समझ कर बोलते हैं. लगता है कि उन्हें पक्का विश्वास है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी और मीडिया उसी तरह से घटनाओं को पेश करेगा जैसा वह चाहते हैं. वह लोगों को उत्तेजित करने में सफल हो रहे हैं.
इस श्रृंखला की ताजा कड़ी में, मोदी ने कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर अपमानजनक टिप्पणी की है. यह टिप्पणी हैरान करने वाली है क्योंकि मोदी ने अबकी बार अपने आध्यात्मिक गुरु राजीव गांधी पर टिप्पणी की है. राजीव गांधी ने ही मोदी को सिखाया था कि कैसे हिंसक घटना (इंदिरा गांधी की हत्या या गुजरात के गोधरा में रेलगाड़ी में मारे गए लोग) का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. ये ऐसी घटनाएं हैं जिनका इस्तेमाल कर कोई राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों को निशाना बनाता है और सुनिश्चित करता है कि पुलिस आंख मूंद लेगी या आगे बढ़ कर हिंसा में साथ देगी. इसके बाद प्रायोजित हिंसा को पेशेवर कॉर्पोरेट एडवरटाइजिंग एजेंसियों की मदद से चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किया जाता है.
असल मायनों में वह राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ही थी जिसने पहला हिंदू बहुसंख्यक धुव्रीकरण वाला चुनाव जीता था. यह एकमात्र उपकार नहीं है जो राजीव गांधी ने हिंदू दक्षिण पंथियों पर किया था. अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर राजीव गांधी ने, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सपनों का बहुसंख्यकवाद तैयार किया और भारतीय जनता पार्टी के हवाले कर दिया था. तब सवाल है कि ऐसा क्या हो गया कि मोदी ने राजीव गांधी पर ही हमला कर दिया?
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