विचलन

हीरोपंती से बाज़ आएं राहुल गांधी

Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.

आम चुनावों में उत्तर प्रदेश के परिणाम बीजेपी क्या स्वयं विपक्षी दलों के लिए भी चौंकाने वाले थे. समाजवादी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी का तीसरी बार बहुमत की सरकार बनाने का ख्वाब पूरा नहीं होने दिया. इन नतीजों से सबसे ज़रूरी सबक यह मिलता है कि बीजेपी अपने मतदाताओं को 'विश्वगुरु' जैसी फ़ुज़ूलगोई के दम पर साथ बनाए नहीं रख सकती. पार्टी ने अपना हिंदू उच्च जाति का मतदाता आधार इस बार भी भले बनाए रखा है लेकिन पार्टी ने उन जातियों के मतदाताओं का समर्थन खो दिया, जिन्हें प्रशासनिक भाषा में अति पिछड़ा वर्ग कहा जाता है. लेकिन ताज्जुब है कि कांग्रेस पार्टी, जिसने उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ छह सीटें ही जीती है, बीजेपी को हराने का सारा श्रेय हड़प रही है.

उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने क्या बीजेपी को इसलिए नापसंद किया क्योंकि उन्हें शिव भक्त राहुल में अपने विकास की संभावना अधिक नज़र आई? क्या वे बीजेपी से इसलिए दूर हो गए क्योंकि उन्होंने अभय मुद्रा में उठे पंजे से सुरक्षा का आश्वासन मिला? दोनों ही सवालों का जवाब स्पष्ट रूप से 'न' है. इन मतदाताओं ने भारत की सत्ता संरचना में अधिक प्रतिनिधित्व के लिए मतदान किया, वह प्रतिनिधित्व जिसका वादा कर पिछले चुनावों में बीजेपी ने पिछड़ों के वोट हासिल किए थे लेकिन सत्ता में आने के बाद वह वादा, मोदी के अन्य खोखले वादों की तरह ही, भुला दिया.

अगर हम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सत्ता के पिछले 10 सालों पर नज़र डालें, तो देख सकते हैं कि उन्हें असली चुनौती किसने दी है. भीमा कोरेगांव में दलितों ने उस पेशवा ब्राह्मणवाद को चुनौती दी, जो संघ की वैचारिकी है. उत्तर प्रदेश और दिल्ली के मुसलमानों ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के भेदभावपूर्ण मानदंडों का जमकर विरोध किया. बाद में पंजाब और हरियाणा के किसानों, मुख्यतः सिख किसान, ने मोदी के कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ जबरदस्त आंदोलन किया.

राहुल गांधी और उनके कार्यकर्ता उपरोक्त सभी आंदोलनों से नदारद थे. यहां तक कि जब 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई राज्य प्रायोजित मुस्लिम विरोधी हिंसा में भी राहुल और उनकी कांग्रेस मुसलमानों की सुरक्षा करने में नाकामयाब रहे. आम चुनाव के वक़्त जब राहुल के उम्मीदवार कन्हैया कुमार दिल्ली के इस क्षेत्र में प्रचार करने पहुंचे, तो हिंसा पर एक लफ़्ज नहीं कहा.