21 अगस्त को तुगलकाबाद में मध्यकालीन संत रविदास मंदिर को गिराए जाने के खिलाफ रामलीला मैदान में हजारों की संख्या में दलित समुदाय ने आंदोलन किया. इस साल 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित प्राचीन रविदास मंदिर को गिराए जाने का आदेश दिया था जिसके बाद 10 अगस्त को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने मंदिर गिरा दिया. आंदोलनकारियों की मांग थी कि मंदिर को दुबारा उसी जगह बनाया जाए.
रविदास या रैदास 15वीं शताब्दी के संत थे जो समाज में गैर-बराबरी और जातिवादी ऊंच-नीच के विरोधी थे. जाति आधारित भेदभाव का विरोध करने के कारण पंजाब के सिख दलित सहित देशभर के दलितों में रविदास बहुत लोकप्रिय हैं. रविदास को मानने वालों को रविदासिया भी कहा जाता है. सिखों के धार्मिक ग्रंथ, आदिग्रंथ अथवा गुरु ग्रंथ साहिब, में रविदास के दोहे हैं.
मंदिर गिराए जाने के बाद से देश के अलग-अलग भागों में विरोध जारी है. दिल्ली में कल हुए आंदोलन से पहले 13 अगस्त को पंजाब और बाद में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शनों का आयोजन हुआ था. गौरतलब है कि पंजाब की कुल आबादी का लगभग 30 प्रतिशत दलित हैं. दिल्ली के आंदोलन में देशभर के दलितों ने भागीदारी की. कांशीराम के बाद पहली बार दलितों ने इस तरह एकजुट होकर दिल्ली में प्रदर्शन किया है.
आधुनिक भारत में रविदास के प्रति दलितों का सम्मान अंबेडकर द्वारा उनके लिए प्रकट किए गए सम्मान से जुड़ा है. आंदोलन में भाग लेने आए दिल्ली स्थित गौतम बुक सेंटर के एस.एस. गौतम ने बताया कि रविदास और अंबेडकर की बातों में बहुत सी समानताएं हैं और इसलिए अंबेडकर ने अपनी एक किताब रविदास को समर्पित भी की है. संत रविदास मंदिर को गिराए जाने के खिलाफ देशभर में जारी आंदोलन को गौतम ने धार्मिक और सामाजिक आंदोलन बताया. उनका कहना था, “यह राजनीतिक नहीं है क्योंकि यहां ज्यादा राजनीतिक लोग नहीं आए हैं.”
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