कांग्रेस और बीजेपी भीलों के खिलाफ हैं : कांतिलाल रोत, नेता भारतीय ट्राइबल पार्टी

पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए बांसवाड़ा सीट से भील समुदाय से आने वाले 38 वर्षीय कांतिलाल रोत (दाएं) को उम्मीदवार बनाया है. तुषार धारा/कारवां
30 April, 2019

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इस साल भारतीय ट्राइबल पार्टी राजस्थान की चार लोकसभा सीट- बांसवाड़ा, जोधपुर, उदयपुर और चितौड़गढ़- से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही है. 2017 में जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व सदस्य छोटू भाई वसावा ने गुजरात में पार्टी की शुरुआत की थी. स्थापना के दो सालों के भीतर ही बीटीपी ने कई चुनाव जीते हैं. गठन के एक महीने बाद ही बीटीपी ने राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के समर्थन से दो सीटें जीती थीं. पिछले साल दिसंबर में पार्टी ने राजस्थान में अपनी राजनीतिक पारी शुरू की और विधानसभा चुनावों में 11 उम्मीदवार उतारे. इसने राजस्थान के डूंगरपुर जिले में आने वाली चौरासी और सागवाड़ा की सीटें जीत लीं.

बीटीपी की इस सफलता ने राजनीतिक विशेषज्ञों को चकित करने के साथ ही राजस्थान में हारने वालीं राष्ट्रीय पार्टियों में डर भी पैदा किया है. राज्य में इसकी जीत के लिए भील समुदाय को श्रेय दिया जा सकता है. भील समुदाय देश के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक है. भीलों ने दक्षिण राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़ और चितौड़गढ़ के आदिवासी-बहुल इलाकों में बीटीपी के पैर जमाने में काफी सहायता की है.

पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए बांसवाड़ा सीट से भील समुदाय से आने वाले 38 वर्षीय कांतिलाल रोत को उम्मीदवार बनाया है. इस लोकसभा क्षेत्र में पार्टी द्वारा पिछले साल दिसंबर में जीती गई विधानसभा सीट भी आती है. अप्रैल 2019 में कारवां के रिपोर्टिंग फेलो तुषार धारा ने डूंगरपुर में रोत के घर पर उनका इंटरव्यू लिया. रोत ने कहा कि पार्टी के एजेंडे में अलग भील राज्य और संविधान के पांचवीं अनुसूची को सही तरह लागू कराने की मांग है, जिसके तहत आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकार के बचाव के लिए खास अधिकार दिए हैं. रोत आदिवासी मामलों को लेकर राष्ट्रीय पार्टियों के स्टैंड के घोर आलोचक हैं. वह कहते हैं, "कांग्रेस छिपी हुई दुश्मन है जबकि बीजेपी खुली दुश्मन है."

तुषार धारा : क्या आप दक्षिण राजस्थान के भील-बहुल इलाकों की सामाजिक उथल-पुथल के बारे में बता सकते हैं जिससे 2017 में बीटीपी का उदय हुआ?

कांतिलाल रोत : बीटीपी की स्थापना से पहले राजस्थान में कई आदिवासी संगठन काम कर रहे थे. उदाहरण के लिए, राजस्थान आदिवासी संघ, भील महासभा, आदिवासी संगामम और आदिवासी एकता परिषद् (आदिवासी पहचान और अधिकारों को बचाने के लिए काम करने वाले सामाजिक संगठन) गैर-आदिवासी परंपराओं से आदिवासियों में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे थे. भील होने के बाद भी वे नहीं समझे थे कि आदिवासी क्या होते हैं और क्या नहीं होते, हमारी मूल पहचान क्या है, हम कैसे रहते हैं. भील संस्कृति में नाच-गाना बहुत होता है, लेकिन ये संगठन गैर-आदिवासियों के दबाव में उसे बंद करवाना चाहते थे. वे चाहते थे भील आम लोगों की तरह रहें.

लेकिन जैसे आदिवासी युवा शिक्षित हुए, उन्हें लगा कि हमारी संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलू को बचाने की जरूरत है. तब 2007 और 2008 में बामसेफ (अखिल भारतीय पिछड़ा (एससी, एसटी, ओबीसी) एवं अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी संघ) इस इलाके में आया, लेकिन उन्होंने पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के बारे में ज्यादा बात नहीं की. उन्होंने मुख्यतः अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों की बात की. इसलिए बामसेफ को आदिवासियों के बीच ज्यादा स्वीकृति नहीं मिली.

तब हम राजस्थानी भील महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश के भीलों से मिले. हमने सुप्रीम कोर्ट के रामी रेड्डी और समता फैसलों (जो अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के हस्तांतरण से संबंधित है) के महत्व को जाना जो आदिवासियों के हकों पर जोर देते हैं. झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के आदिवासी अपनी पहचान पर गर्व करते हैं, जबकि राजस्थान के भील पीछे रह गए. जोधपुर में भीलों के बीच आदिवासी संस्कृति को लेकर जागरूकता नहीं है. यहां डूंगरपुर में हमने धीरे-धीरे आदिवासी पहचान को लेकर जागरूकता बढ़ाई है.

अगला कदम संगठन बनाने का था. लेकिन पहले से मौजूद आदिवासी संगठनों ने आदिवासियों को बांट रखा था. उदाहरण के लिए, बीजेपी और कांग्रेस में आदिवासी सेल है, जिससे समुदाय राजनीतिक रूप से बंट गया है. वहीं, संघ परिवार से जुड़े गायत्री परिवार (एक आध्यात्मिक संगठन) आदि आदिवासियों को हिंदू धर्म में बदल रहे थे. हम हमारी संस्कृति को शुद्ध करना और सभी आदिवासियों को एकजुट करना चाहते हैं.

टीडीः पार्टी इतने कम समय में राजस्थान विधानसभा की दो सीटें कैसे जीत गई?

केआरः हमने (राजस्थान के भीलों के एक समूह) छोटू भाई वसावा के साथ आठ बैठकें की और उन्हें बताया कि हम बीटीपी के चिन्ह पर राजस्थान में चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन वे हमें नियंत्रित नहीं करेंगे, हम पर कोई फैसले नहीं थोपेंगे और हमारी निर्णय करने वाली समिति राजस्थान की होगी. हमने कहा कि हम आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए काम करेंगे. हमने यह प्रक्रिया राजस्थान विधानसभा चुनावों से एक महीने पहले पूरी की और चुनाव लड़ने के लिए 11 उम्मीदवार चुने. पार्टी हमें काम करने की आजादी देने को तैयार हो गई और हमें राजस्थान के स्थानीय मुद्दों पर प्रचार करने दिया. हमारे दो उम्मीदवार जीते और विधायक बने.

हमारे सभी पदाधिकारी वे कार्यकर्ता हैं जिन्होंन जमीन पर काम किया है. भील सामाजिक संगठनों जैसे भील युवा मोर्चा, भील विद्यार्थी मोर्चा ने हमें समर्थन दिया लेकिन उन्हें बीटीपी में शामिल नहीं किया गया. इसलिए बीटीपी भील आदिवासियों के बीच इतने कम समय में स्थापित होने में कामयाब हुई.

टीडीः बीटीपी प्रचार के लिए पैसा कैसे इकट्ठा करती है?

केआरः हमारे समर्थक हमारे प्रचार अभियान के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं. स्थापित राजनीतिक पार्टियों के पास बहुत पैसा है, वे ट्रक भर-भर कर लोग ला सकते हैं, लेकिन जैसा आदिवासियों के बीच बीटीपी का समर्थन है, हरेक बूथ पर हमारे कार्यकर्ताओं ने खुद से पैसा लगाकर बैठकें और रैलियां आयोजित की हैं.

टीडीः डूंगरपुर के आदिवासी निवासियों ने मुझे बताया कि जहां बीटीपी अपने पास फंड नहीं होने की बात करती है वहीं पार्टी के विधायक चुने जाने के बाद महंगे वाहनों में घूम और बड़े घरों में रह रहे हैं.

केआरः यह बकवास है. घर वैसे ही हैं जैसे पहले थे. जहां तक वाहनों की बात है तो वे दोस्तों और शुभचिंतकों ने दान में दिए हैं. राजकुमार (चौरासी से बीटीपी विधायक) ने लोन लेकर एसयूवी खरीदी है. कांग्रेस, बीजेपी और संघ हमसे हार रहे हैं इसलिए वे हमें बदनाम करने के लिए ऐसे आरोप लगा रहे हैं.

टीडीः 2019 के लोकसभा चुनावों में बीटीपी कौन से मुद्दे उठा रही है?

केआरः दो तरह के मुद्दे हैं- स्थानीय और राष्ट्रीय. स्थानीय मुद्दों की बात करें तो भील राज और भील राज्य हमारे एजेंडे में है. हमारी एक मांग यह है कि हम राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों को मिलाकर अलग भील प्रदेश की मांग कर रहे हैं.

दूसरा मुद्दा पानी है. बांसवाड़ा में नदियों में कई बड़े बांध जैसे माही बांध आदि बने हैं, जिसमें आदिवासियों की जमीनें डूब गई थीं और उन्हें मुआवजा नहीं मिला था. इन बांधों से गुजरात में पानी जा रहा है, लेकिन इसके पास रहने वाले लोगों को कुछ नहीं मिल रहा. हमारी दूसरी मांग है कि डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, सिरोही और प्रतापगढ़ के हर घर में पीने का पानी और सिंचाई का पानी उपलब्ध कराया जाए.

हमारी तीसरी मांग है कि आदिवासियों को विशेष अधिकार देने वाली संविधान की पांचवी अनुसूची को लागू किया जाए. चौथी, डूंगरपुर से मध्यप्रदेश के रतलाम के बीच बनी रेल लाइन बंद की जाए. हम विकास-विरोधी नहीं है, लेकिन हम इस रेल लाइन का विरोध करते हैं क्योंकि इसका इस्तेमाल आदिवासी इलाकों से संगमरमर और खनिज निकालकर ले जाने के लिए किया जाएगा.

टीडीः अलग भील राज्य की मांग कितनी व्यवहारिक है? क्या मौजूदा राज्य आदिवासी राज्य के लिए अपनी जमीन देने को तैयार होंगे?

केआरः यह बहुत मुश्किल है और इसके लिए संघर्ष करना पड़ेगा. राज्य सरकारें भील प्रदेश नहीं चाहेंगी क्योंकि इससे उनका बजट कम हो जाएगा. राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और गुजरात कोई भी इसके लिए राजी नहीं होगा, लेकिन इस जमीन के मालिक आदिवासी अपने लिए राज्य की मांग कर रहे हैं. हम संघर्ष के लिए तैयार हैं.

टीडीः दक्षिण राजस्थान का ज्यादातर इलाका पहाड़ी और बंजर है, इसलिए लोग बेहतर आर्थिक मौकों के लिए दूसरे इलाकों में विस्थापित होते हैं. बीटीपी इस मामले पर क्या योजना लेकर चल रही है?

केआरः समता फैसले से यह साफ है कि आदिवासी अनुसूचित क्षेत्र में खनिज संसाधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं, बाहरी कंपनी और लोग, जो इन इलाकों में काम करना चाहते हैं उनके लिए आदिवासियों को लेकर कुछ बंदिशें लगाई गई हैं लेकिन राजस्थान के आदिवासियों ने अपनी जमीनें इसलिए खो दीं क्योंकि बाहरी लोगों ने उन्हें खरीद लिया. हमें हमारे बीच पीढ़ियों से रहते आए गैर-आदिवासी लोगों से कोई समस्या नहीं है लेकिन हम बाहरी लोगों को हमारी जमीन नहीं देंगे. आदिवासियों की जमीन बेची नहीं जानी चाहिए. अगर समता फैसले को पूरी तरह लागू किया जाता है तो हमारी जमीन सुरक्षित रहेगी.

लोग एक जगह से दूसरी जगह आजीविका के लिए जाते हैं. हर आदिवासी परिवार के पास जमीन का एक छोटा टुकड़ा है और अगर इसकी सिंचाई के लिए पानी का इंतजाम कर दिया जाए तो यहां खेती होनी शुरू हो जाएगी. वे फसल उगा सकेंगे और उन्हें बाजार में बेच सकेंगे.

टीडीः पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम हटा दिया था लेकिन बाद में यह फैसला पलटा गया. इस पर आपके क्या विचार हैं?

केआरः यह आदिवासी-बहुल इलाका है इसके बावजूद कई बार यहां हमारी महिलाओं को परेशान किया गया है. एससी/एसटी कानून को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे सामान्य जातियों में यह भय बना रहेगा कि अगर हमने उन्हें गाली दी तो उनके पास कानूनी अधिकार है.

टीडीः इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने उन आदिवासियों को बेदखल करने का आदेश दिया जिनके वन भूमि के दावों को खारिज कर दिया गया था. बाद में इस आदेश पर रोक लगी.

केआरः आदिवासी हजारों सालों से वन भूमि पर रहते आ रहे हैं. वन अधिकार अधिनियम (अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन प्रवासियों (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006) और वन विभाग बाद में आए हैं. सुप्रीम कोर्ट का 11 लाख आदिवासी परिवारों को बेदखल करने का फैसला बिल्कुल गलत है. अगर भविष्य में जरूरत पड़ी तो हम सड़कों पर प्रदर्शन करेंगे और वन अधिकारियों को खदेड़ देंगे.

टीडीः बीटीपी दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों को एकजुट कैसे करेगी?

केआरः अभी तक एससी और एसटी के लिए अत्याचार कानून है. हर जगह दलितों के साथ भेदभाव होता है लेकिन आदिवासी इलाकों में नहीं. बीटीपी में हमने दलित महासचिव बनाया है. जब मुसलमानों की बात आती है तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही उसे वोट बैंक की तरह देखती है. हम चितौड़गढ़, जो एक सुरक्षित सीट है, से दलित उम्मीदवार खड़ा करना चाहते थे, लेकिन कोई आगे नहीं आया. इसी तरह सवाई माधोपुर और टोंक से हम मुसलमान उम्मीदवार उतारना चाहते थे लेकिन हमें कोई नहीं मिला. वह इसलिए नहीं आ रहे क्योंकि बीटीपी के पास पैसा नहीं है.

टीडीः राजस्थान के एक राजनीतिक शोधार्थी ने मुझे बताया कि बीटीपी में पुरुषों का वर्चस्व है और आदिवासी महिलाओं को उनके बराबर नेतृत्व नहीं मिला है. आदिवासी समुदाय में ज्यादा लैंगिक समानता होती है तो यह राजनीतिक परिदृश्य में क्यों नहीं है?

केआरः राजनीति एक गंदा धंधा है- यह बात आप मान लो. राजनीति करने वाली महिलाएं आगे आ सकती हैं लेकिन एक बार राजनीति में प्रवेश करते ही उन पर कीचड़ उछाला जाएगा चाहें वे कितनी ही सही क्यों न हो. महिलाएं माता-बहनों की तरह होती है. उन्हें राजनीति में आना चाहिए, लेकिन पद की उम्मीद रखने वाली महिलाओं का शोषण होता है. हमारी महिलाएं सुरक्षित हैं और अगर जरूरत पड़ी तो हथियार उठाकर हमारे साथ खड़ी होंगी. शादी की रस्मों के दौरान महिलाएं आगे होती हैं. जरूरत पड़ने पर महिलाएं आगे आएंगी क्योंकि वे भी बराबर की भागीदार हैं.

टीडीः क्या आप राजनीति में महिलाओं के आरक्षण के पक्ष में हैं?

केआरः हम चाहते हैं कि महिलाएं सुरक्षित हों. उन्हे 51 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए.

टीडीः आपके प्रचार अभियान में आपने कहा था कि आप बीजेपी से संविधान बचाना चाहते हैं, लेकिन इस इलाके के आदिवासी पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के साथ रहे हैं. ऐसे में आप कांग्रेस के वोट काट सकते हैं. क्या आपको लगता नहीं कि इससे बीजेपी की मदद हो रही है?

केआरः हम किसी पार्टी के वोट नहीं काट रहे हैं. हमारे पास (चुनाव में उतरने के सिवाय) कोई विकल्प नहीं था. यहां आदिवासी बहुलता में है और कोई विकल्प नहीं था इसलिए वे कांग्रेस और बीजेपी को वोट देते थे. कांग्रेस ने 70 साल राज किया लेकिन आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया. कांग्रेस छिपी हुई और बीजेपी खुली दुश्मन है. दोनों हमारे खिलाफ है.

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